05 सूरह मायदा हिंदी में पेज 1

05 सूरह अल-मायदा | Surah Al-Maidah

सूरह अल-मायदा में 120 आयतें हैं। यह सूरह पारा 6, पारा 7 में है। यह सूरह मदीना मे नाज़िल हुई। इस सूरह का नाम आयत 112 के शब्द माइदा (खाने से भरा दस्तरखान) से लिया गया है।

सूरह मायदा हिंदी में | Surah Al-Maidah in Hindi

बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहिम
शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम वाला है
  1. या अय्युहल्लज़ी-न आमनू औफू बिल्-अुक़ूदि, उहिल्लत् लकुम् बहीमतुल-अन् आमि इल्ला मा युत्ला अलैकुम् ग़ै-र मुहिल्लिस्-सैदि व अन्तुम् हुरूमुन्, इन्नल्लाह यह़्कुमु मा युरीद
    ऐ ईमान लानेवालो! (अपने) समझौतों को पूरा करो (देखो) तुम्हारे लिए चैपाए जानवर हलाल कर दिये गये, उन के सिवा जो तुमको पढ़ कर सुनाए जाएगे हलाल कर दिए गए। मगर जब तुम एह़राम की स्थिति में हो अर्थात जब हज्ज अथवा उमरा का एहराम बांधे रहो तो शिकार को हलाल न समझना। बेशक अल्लाह जो चाहता है हुक्म देता है।
  2. या अय्युहल्लज़ी-न आमनू ला तुहिल्लू शआ़-इरल्लाहि व लश्शह़रल्-हरा-म व लल्-हद्-य व लल्क़लाइ-द व ला आम्मीनल् बैतल्-हरा-म यब्तग़ू-न फज़्लम् मिर्रब्बिहिम् व रिज़्वानन्, व इज़ा हलल्तुम् फ़स्तादू, व ला यज्रिमन्नकुम श-नआनु क़ौमिन् अन् सद्दूकुम् अनिल् मस्जिदिल्-हरामि अन् तअ्तदू . व तआ़वनू अलल्- बिर्रि वत्तक़्-वा, व ला तआ़वनू अलल्-इस्मि वल-द्-वानि वत्तक़ुल्ला-ह, इन्नल्ला-ह शदीदुल्-अिक़ाब •
    ऐ ईमान लानेवालो! (देखो) न अल्लाह की निशानियों की अनादर करो और न आदर वाले महीने की और न क़ुरबानी की और न पट्टे वाले जानवरों की (जो नज़रे अल्लाह के लिए निशान देकर मिना में ले जाते हैं) और न उनका, जो अपने पालनहार की अनुग्रह और उसकी प्रसन्नता की खोज में सम्मानित घर (काबा) की ओर जा रहे हों। और जब तुम (एहराम) खोल दो तो शिकार कर सकते हो। तुम्हें किसी गिरोह की शत्रुता इस बात पर न उभार दे कि अत्याचार करने लगो, क्योंकि उन्होंने मस्जिदे-ह़राम से तुम्हें रोक दिया था, और (तुम्हारा तो फ़र्ज यह है कि ) सदाचार तथा संयम में एक दूसरे की मदद किया करो और पाप और ज़्यादती में एक-दूसरे की मदद न करो।और अल्लाह से डरते रहो (क्योंकि) अल्लाह तो निःसंदेह बड़ा कठोर दंड देने वाला है।
  3. हुर्रिमत् अलैकुमुल्मैततु वद्दमु व लह़्मुल-ख़िन्ज़ीरि व मा उहिल्-ल लिग़ैरिल्लाहि बिही वल्मुन्ख़नि-क़तु वल्मौ क़ूज़तु वल्मु-तरद्दियतु वन्नती-हतु व मा अ-कलस्सबुअु इल्ला मा ज़क्कैतुम्, व मा ज़ुबि-ह अलन्नुसुबि व अन् तस्तक़्सिमू बिल्अज़्लामि, ज़ालिकुम् फिस्क़ुन्, अल्यौ-म य-इसल्लज़ी-न क-फरू मिन् दीनिकुम् फ़ला तख़्शौहुम् वख़्शौनि, अल्यौ-म अक्मल्तु लकुम् दीनकुम् व अत्मम्तु अलैकुम् निअ्मती व रज़ीतु लकुमुल्-इस्ला-म दीनन्, फ़-मनिज़्तुर-र फी मख़्म- सतिन् ग़ै-र मु-तजानिफि ल्-लिइस्मिन्, फ़-इन्नल्ला-ह गफूरुर्रहीम
    (लोगों!) मरा हुआ जानवर और ख़ून और सुअर का गोश्त और जिस (जानवर) पर (जिबाह) के वक़्त अल्लाह के सिवा किसी दूसरे का नाम लिया जाए और गर्दन मरोड़ा हुआ और चोट खाकर मरा हुआ और जो कुएं (वगै़रह) में गिरकर मर जाए और जो सींग से मार डाला गया हो और जिसको दरिन्दे ने फाड़ खाया हो मगर जिसे तुमने मरने के क़ब्ल जि़बाह कर लो। और (जो जानवर) बुतों (के थान) पर चढ़ा कर ज़िबाह किया जाए और जिसे तुम (पाँसे) के तीरों से अपना हिस्सा बाटो(यह सब चीज़ें) तुम पर हराम की गयी हैं। ये गुनाह की बात है (मुसलमानों) अब तो कुफ़्फ़ार तुम्हारे दीन से (फिर जाने से) मायूस हो गए तो तुम उनसे तो डरो ही नहीं बल्कि सिर्फ मुझी से डरो आज मैंने तुम्हारे दीन को परिपूर्ण कर दिया और तुमपर अपना पुरस्कार पूरी कर दी और तुम्हारे (इस) दीने इस्लाम को पसन्द किया बस जो शख़्स भूख़ में मजबूर हो जाए जबकि उसका झुकाव पाप के लिए न हो (और कोई चीज़ खा ले) तो अल्लाह बेशक अति क्षमाशील, दयावान् है।
  4. यस्अलून-क माज़ा उहिल्-ल लहुम्, क़ुल उहिल्-ल लकुमुत्तय्यिबातु, व मा अल्लम्तुम् मिनल-जवारिहि मुकल्लिबी-न तुअल्लिमूनहुन्-न मिम्मा अल्ल-मकुमुल्लाहु, फ़कुलू मिम्मा अम्-सक्-न अलैकुम् वज़्कुरूस्मल्लाहि अलैहि, वत्तक़ुल्ला-ह, इन्नल्ला-ह सरीअुल हिसाब
    (ऐ रसूल!) तुमसे लोग पूछतें हैं कि कौन (कौन) चीज़ उनके लिए हलाल की गयी है। तुम (उनसे) कह दो कि तुम्हारे लिए पाकीज़ा चीजें हलाल की गयीं और शिकारी जानवर जो तुमने शिकार के लिए सधा रखें है। और जो (तरीके़) अल्लाह ने तुम्हें बताये हैं उनमें के कुछ तुमने उन जानवरों को भी सिखाया हो। तो ये शिकारी जानवर जिस शिकार को तुम्हारे लिए पकड़ रखें उसको खाओ और (जानवर को छोंड़ते वक़्त) अल्लाह का नाम ले लिया करो। और अल्लाह से डरते रहो (क्योंकि) इसमें तो शक ही नहीं कि अल्लाह बहुत जल्द हिसाब लेने वाला है।
  5. अल्यौ-म उहिल्-ल लकुमुत्तय्यिबातु, व तआमुल्लज़ी-न ऊतुल्-किता-ब हिल्लुल्लकुम्, व तआ़मुकुम हिल्लुल्लहुम् वल्मुह़्सनातु मिनल-मुअ्मिनाति वल्मुह़्सनातु मिनल्लज़ी-न ऊतुल-किता-ब मिन् क़ब्लिकुम् इज़ा आतैतुमूहुन्-न उजू रहुन्-न मुह़्सिनी – न ग़ै-र मुसाफ़िही-न व ला मुत्तख़िज़ी अख़्दानिन्, व मंय्यक्फुर बिल्ईमानि फ-क़द हबि-त अ-मलुहू, व हु-व फ़िल-आख़ि-रति मिनल-ख़ासिरीन*
    आज सब अच्छी स्वच्छ चीजें तुम्हारे लिए हलाल (वैध) कर दी गयी हैं और एहले किताब की ख़ुश्क चीजे़ं गेहूँ (वगैरह) तुम्हारे लिए हलाल हैं और तुम्हारी ख़ुश्क चीजें गेहॅू (वगैरह) उनके लिए हलाल हैं और आज़ाद ईमानवाली औरतें और उन लोगों में की आज़ाद ईमानवाली औरतें जिनको तुमसे पहले किताब दी जा चुकी है जब तुम उनको उनके मेहर दे दो (और) विवाह में लाने के लिए, व्यभिचार के लिए नहीं और न प्रेमिका बनाने के लिए और जिस शख़्स ने ईमान से इन्कार किया तो उसका सब सत्कर्म व्यर्थ हो गया और परलोक में भी वही घाटे में रहेगा।
  6. या अय्युहलज़ी-न आमनू इज़ा क़ुम्तुम् इलस्सलाति फ़ग़्सिलू वुजूहकुम् व ऐदि-यकुम् इलल्-मराफ़िक़ि वम्सहू बिरूऊसिकुम् व अर्जु-लकुम् इलल्कअ्बैनि, व इन् कुन्तुम् जुनुबन् फत्तह़्हरू, व इन् कुन्तुम् मरज़ा औ अला स-फ़रिन् औ जा-अ अ-हदुम् मिन्कुम् मिनल्ग़ा-इति औ लामस्तुमुन्निसा-अ फ़-लम् तजिदू माअन् फ़-तयम्म-मू सईदन् तय्यिबन् फम्सहू बिवुजूहिकुम् व ऐदीकुम् मिन्हु, मा युरीदुल्लाहु लि-यज्अ़-ल अलैकुम् मिन् ह रजिंव्-व लाकिंय्युरीदु लियुतह़्हि-रकुम् व लियुतिम्-म निअ्म-तहू अलैकुम् लअ़ल्लकुम तश्कुरून
    ऐ इमानदारों! जब तुम नमाज़ के लिये खड़े हो तो अपने मुँह और कोहनियों तक हाथ धो लिया करो और अपने सरों का और टखनों तक पॉवों का मसाह कर लिया करो मसह़ का अर्थ है, दोनों हाथ भिगो कर सिर पर फेरना। और अगर तुम हालते जनाबत में हो तो तुम स्नान  कर लो जनाबत से अभिप्राय वह मलिनता है, जो स्वप्नदोष तथा स्त्री संभोग से होती है। यही आदेश मासिक धर्म तथा प्रसव का भी है। (हाँ) और अगर तुम बीमार हो या सफ़र में हो या तुममें से किसी को पैख़ाना निकल आए या औरतों से हमबिस्तरी की हो और तुमको पानी न मिल सके तो शुध्द धूल से तयम्मुम कर लो यानि (दोनों हाथ मारकर) उससे अपने मुँह और अपने हाथों का मसाह कर लो (देखो तो अल्लाह ने कैसी आसानी कर दी) अल्लाह तो ये चाहता ही नहीं कि तुम पर किसी तरह की तंगी करे बल्कि वो ये चाहता है कि पवित्र कर दे और तुमपर अपना पुरस्कार पूरा कर दे ताकि तुम कृतज्ञ बन जाओ।
  7. वज़्कुरू निअ्-मतल्लाहि अलैकुम व मीसाक़हुल्लज़ी वास-क़कुम् बिही, इज़ क़ुल्तुम् समिअ्ना व अतअ्ना, वत्तक़ुल्ला-ह, इन्नल्ला-ह अलीमुम् बिज़ातिस्सुदूर
    और जो अनुग्रह अल्लाह ने तुमपर किए हैं उनको और उस प्रतिज्ञा को याद करो जिसका तुमसे पक्का वचन ले चुका है जब तुमने कहा था कि हमने (एहकामे अल्लाह को) सुना और दिल से मान लिया और अल्लाह से डरते रहो क्योंकि इसमें ज़रा भी शक नहीं कि अल्लाह दिलों के भेदों से भी जानने वाला है।
  8. या अय्युहल्लज़ी-न आमनू कूनू क़व्वामी-न लिल्लाहि शु-हदा-अ बिल्क़िस्ति, व ला यज्रिमन्नकुम् श-नआनु क़ौमिन् अला अल्ला तअ्दिलू, इअ्दिलू, हु-व अक़्रबु लित्तक़्वा, वत्तक़ुल्ला-ह, इन्नल्ला-ह ख़बीरूम्-बिमा तअ्मलून
    ऐ ईमान लानेवालो! अल्लाह (की ख़ुशी) के लिए इन्साफ़ के साथ गवाही देने के लिए तैयार रहो और तुम्हें किसी गिरोह की शत्रुता तुम्हें इसपर न उभार दे कि न्याय न करो। तुम (हर हाल में) इन्साफ़ करो यही धर्मपरायणता से बहुत क़रीब है और अल्लाह से डरो क्योंकि जो कुछ तुम करते हो (अच्छा या बुरा) अल्लाह उसे ज़रूर जानता है।
  9. व-अदल्लाहुल्लज़ी-न आमनू व अमिलुस्सालिहाति, लहुम् मग़्फिरतुंव् व अज्रून अज़ीम
    और जिन लोगों ने ईमान क़ुबूल किया और अच्छे अच्छे काम किए अल्लाह ने वायदा किया है कि उनके लिए (आख़िरत में) क्षमा और बड़ा प्रतिफल है।
  10. वल्लज़ी-न क-फरू व कज़्ज़बू बिआयातिना उलाइ-क अस्हाबुल-जहीम
    और जिन लोगों ने इनकार किया और हमारी आयतों को झुठलाया वह जहन्नुमी हैं।
  11. या अय्युहल्लज़ी-न आमनुज़्कुरू निअ्- मतल्लाहि अलैकुम इज़् हम्-म क़ौमुन् अंय्यब्सुतू इलैकुम् ऐदि – यहुम् फ़-कफ्-फ़ ऐदि-यहुम् अ़न्कुम्, वत्तक़ुल्ला-ह, व अलल्लाहि फल्य-तवक्कलिल् मुअ्मिनून *
    ऐ इमानदारों! अल्लाह ने जो उपकार तुमपर किए हैं उनको याद करो। और ख़ूसूसन जब एक क़बीले ने तुम पर हाथ बढ़ाने का निश्चय किया था तो अल्लाह ने उनके हाथों को तुम तक पहँचने से रोक दिया। और अल्लाह से डरते रहो और ईमानवालों को अल्लाह ही पर भरोसा रखना चाहिए।
  12. व ल-क़द् अ-ख़ज़ल्लाहु मीसा क़ बनी इस्राई-ल, व बअ़स्-ना मिन्हुमुस्-नै अ-श-र नक़ीबन्, व क़ालल्लाहु इन्नी म-अ़कुम्, ल-इन् अक़म्तुमुस्सला-त व आतैतुमुज़्ज़का-त व आमन्तुम् बिरूसुली व अज़्ज़रतुमूहुम् व अक़्रज़्तुमुल्ला-ह क़र्जन् ह-सनल् ल-उकफ्फिरन्-न अन्कुम् सय्यिआतिकुम् व ल- उद्ख़िलन्नकुम् जन्नातिन् तज्री मिन् तह़्तिहल्-अन्हारू, फ़-मन् क-फ़-र बअ्-द ज़ालि-क मिन्कुम् फ़-क़द् ज़ल्-ल सवाअस्सबील
    और इसमें भी शक नहीं कि अल्लाह ने बनी इसराईल से (भी ईमान का) एहद व वचन ले लिया था और हम (अल्लाह) ने इनमें के बारह सरदार उनपर नियुक्त किए।और अल्लाह ने बनी इसराईल से कहा था कि मैं तो यक़ीनन तुम्हारे साथ हॅू अगर तुम भी पाबन्दी से नमाज़ पढ़ते और ज़कात देते रहो और हमारे पैग़म्बरों पर ईमान लाओ और उनकी मदद करते रहो और अल्लाह (की ख़ुशी के वास्ते लोगों को) अच्छा ऋण देते रहो। तो मैं भी तुम्हारे गुनाह तुमसे ज़रूर दूर करूंगा और तुमको स्वर्ग के उन (हरे भरे ) बाग़ों में जा पहँच जाऊंगा जिनके (पेड़ों के) नीचे नहरें प्रवाहित हैं। फिर तुममें से जो शख़्स इसके बाद भी इन्कार करे तो यक़ीनन वह सुपथ से भटक गया।
  13. फबिमा नक़्ज़िहिम मीसाक़हुम् लअन्नाहुम् व जअ़ल्ना क़ुलूबहुम् क़ासि-यतन्. युहर्रिफूनल्कलि-म अम्-मवाज़िअिही, व नसू ह़ज्ज़म् मिम्मा ज़ुक्किरू बिही, व ला तज़ालु तत्तलिअु अला ख़ाइ-नतिम् मिन्हुम इल्ला क़लीलम् मिन्हुम् फ़अ्फु अन्हुम् वस्फ़ह्, इन्नल्ला-ह युहिब्बुल मुह़्सिनीन
    बस हमने उनकी वचन को भंग कर देने के कारण उनपर लानत की और उनके दिलों को (गोया) हमने ख़ुद सख़्त बना दिया कि (हमारे) कलमात को उनके असली मायनों से बदल कर दूसरे मायनो में इस्तेमाल करते हैं। और जिन जिन बातों की उन्हें नसीहत की गयी थी उनमें से एक बड़ा हिस्सा भुला बैठे। और (ऐ रसूल!) (अब) आप बराबर उनके किसी न किसी विश्वासघात से सूचित होते रहेंगे, तो तुम उन (के क़सूर) को माफ़ कर दो और और उन्हें छोड़ो। (क्योंकि) अल्लाह एहसान करने वालों को ज़रूर दोस्त रखता है।
  14. व मिनल्लज़ी-न क़ालू इन्ना नसारा अख़ज़्ना मीसाक़हुम् फ़-नसू हज़्ज़म् मिम्मा ज़ुक्किरू बिही, फ़-अग़्रैना बैनहुमुल अदा-व-त वल्बग़्ज़ा-अ इला यौमिल्-क़ियामति, व सौ-फ युनब्बिउहुमुल्लाहु बिमा कानू यस्-नअून
    और जो लोग कहते हैं कि हम नसरानी(ईसाई) हैं उनसे (भी) हमने इमान का दृढ़ वचन लिया था मगर जिन जिन बातों की उन्हें निर्देश दिया गया था उनमें से एक बड़ा हिस्सा (रिसालत) भुला बैठे तो हमने भी (उसकी सज़ा में) क़यामत तक उनमें शत्रुता और द्वेष की आग भड़का दी।और अल्लाह उन्हें बहुत जल्द (क़यामत के दिन) बता देगा कि वह क्या क्या करते थे।
  15. या अह़्लल्-किताबि क़द् जाअकुम् रसूलुना युबय्यिनु लकुम् कसीरम्-मिम्मा कुन्तुम् तुख़्फू-न मिनल्-किताबि व यअ्फू अन् कसीरिन्, क़द् जाअकुम् मिनल्लाहि नूरूंव्-व किताबुम् मुबीन
    ऐ एहले किताब! तुम्हारे पास हमारा पैगम्बर (मोहम्मद स0) आ चुका जो किताबे अल्लाह की उन बातों में से जिन्हें तुम छुपाया करते थे बहुतेरी तो साफ़ साफ़ बयान कर देगा और बहुत-सी बातों को छोड़ देगा। तुम्हरे पास तो अल्लाह की तरफ़ से एक (चमकता हुआ) नूर और साफ़ साफ़ बयान करने वाली किताब (कु़रान) आ चुकी है।
  16. यह़्दी बिहिल्लाहु मनित्त-ब-अ रिज़्वानहू सुबुलस्सलामि व युख़्रिजुहुम् मिनज़्ज़ुलुमाति इलन्नूरि बि -इज़्निही व यह़्दीहिम् इला सिरातिम् मुस्तक़ीम
    जो लोग अल्लाह की प्रसन्नता के अनुगामी हैं उनको तो उसके ज़रिए से सलामती की राहें दिखा रहा है। और अपने हुक्म से (कुफ़्र की) अँधेरों से निकालकर (ईमान की) रौशनी में लाता है और सीधे मार्ग पर पहुँचा देता है।
  17. ल-क़द् क-फरल्लज़ी-न क़ालू इन्नल्ला-ह हुवल्- मसीहुब्नु मर्य-म, क़ुल फ़-मंय्यम्लिकु मिनल्लाहि शैअन् इन् अरा-द अंय्युह़्लिकल्-मसीहब्-न मर्य-म व उम्म-हू व मन् फिलअर्ज़ि जमीअ़न्, व लिल्लाहि मुल्कुस्समावाति वल्अर्ज़ि व मा बैनहुमा, यख़्लुक़ु मा यशा-उ, वल्लाहु अला कुल्लि शैइन् क़दीर
    जो लोग अनुसरण करते हैं कि मरियम के बेटे मसीह ही अल्लाह हैं वह ज़रूर काफिर हो गए। (ऐ रसूल!) उनसे पूछो तो कि भला अगर अल्लाह मरियम के बेटे मसीह और उनकी माँ को और जितने लोग ज़मीन में हैं सबको मार डालना चाहे तो किसमें शक्ति है कि वह उसे रोक दे? और सारे आसमान और ज़मीन में और जो कुछ भी उनके बीच में है सब अल्लाह ही की सल्तनत है। वह जो चाहता है, पैदा करता है और अल्लाह तो हर चीज़ पर क़ादिर है।
  18. व क़ालतिल्-यहूदु वन्नसारा नह़्नु अब्नाउल्लाहि व अहिब्बाउहू, क़ुल फ़लि-म युअ़ज़्ज़िबुकुम् बिज़ु नूबिकुम्, बल् अन्तुम ब-शरूम् मिम्-मन् ख़-ल-क, यग़्फिरू लिमंय्यशा-उ व युअ़ज़्ज़िबु मंय्यशा-उ, व लिल्लाहि मुल्कुस्समावाति वल्अर्ज़ी व मा बैनहुमा, व इलैहिल-मसीर
    और ईसाई और यहूदी तो कहते हैं कि हम ही अल्लाह के बेटे और उसके चहेते हैं। (ऐ रसूल!) उनसे तुम कह दो (कि अगर ऐसा है) तो फिर तुम्हें तुम्हारे गुनाहों की सज़ा क्यों देता है? बात यह नहीं है, बल्कि तुम भी उसके पैदा किए हुए प्राणियों में से एक मनुष्य हो। अल्लाह जिसे चाहेगा क्षमा देगा और जिसको चाहेगा सज़ा देगा। आसमान और ज़मीन और जो कुछ उन दोनों के बीच में है सब अल्लाह ही का मुल्क है। और सबको उसी की तरफ़ लौट कर जाना है।
  19. या अह़्लल्-किताबि क़द् जाअकुम् रसूलुना युबय्यिनु लकुम् अला फ़त् रतिम् मिनर्रुसुलि अन् तक़ूलू मा जाअना मिम्-बशीरिंव-व ला नज़ीरिन्, फ़-क़द् जा-अकुम् बशीरूंव् व नज़ीरून्, वल्लाहु अला कुल्लि शैइन् क़दीर*
    ऐ एहले किताब! तुम्हारे पास रसुलों के आने का क्रम बंद होने के पश्चात्, हमारा रसूल तुम्हारे पास आया, वह तुम्हारे लिए (सत्य को) उजागर कर रहे हैं, ताकि तुम कहीं ये न कह बैठो कि हमारे पास तो न कोई ख़ुशख़बरी देने वाला (पैग़म्बर) आया न (अज़ाब से) डराने वाला। अब तो (ये नहीं कह सकते क्योंकि) यक़ीनन तुम्हारे पास ख़ुशख़बरी देने वाला और डराने वाला पैग़म्बर आ गया और अल्लाह जो चाहे, कर सकता है।
  20. व इज़् क़ा-ल मूसा लिक़ौमिही या क़ौमिज़्कुरू निअ् – मतल्लाहि अलैकुम् इज़् ज-अ-ल फ़ीकुम् अम्बिया-अ व ज-अ-लकुम् मुलूकंव्, व आताकुम् मा लम् युअ्ति अ-हदम् मिनल्-आलमीन
    ऐ रसूल! उनको वह वक़्त याद (दिलाओ) जब मूसा ने अपनी क़ौम से कहा था कि ऐ मेरी क़ौम जो नेमते अल्लाह ने तुमको दी है उसको याद करो। इसलिए कि उसने तुम्हीं लोगों से बहुतेरे पैग़म्बर बनाए और तुम ही लोगों को बादशाह (भी) बनाया और तुम्हें वह नेमतें दी हैं जो संसार में किसी एक को न दीं।

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