06 सूरह अल-अनआम हिंदी में पेज 2

सूरह अल-अनआम हिंदी में | Surat Al-Araf in Hindi

  1. व हुम् यन्हौ-न अन्हु व यन्औ-न अन्हु, व इंय्युह़्लिकू-न इल्ला अन्फु-सहुम् व मा यश्अुरून
    और ये लोग (दूसरों को भी) उस के (सुनने से) से रोकते हैं और ख़ुद तो अलग थलग रहते ही हैं और (इन बातों से) बस आप ही अपने को हलाक करते हैं और (अफसोस) समझते नहीं।
  2. व लौ तरा इज़् वुक़िफू अलन्नारि फ़क़ालू या-लैतना नुरद्-दू व ला नुकज़्ज़ि-ब बिआयाति रब्बिना व नकू-न मिनल मुअ्मिनीन
    (ऐ रसूल!) अगर तुम उन लोगों को उस वक़्त देखते (तो ताज्जुब करते) जब जहन्नुम (के किनारे) पर लाकर खड़े किए जाओगे तो (उसे देखकर) कहेगें ऐ काश! हम (दुनिया में) फिर (दुबारा) लौटा भी दिए जाते और अपने परवरदिगार की आयतों को न झुठलाते और हम मोमिनीन से होते (मगर उनकी आरज़ू पूरी न होगी)।
  3. बल् बदा लहुम् मा कानू युख़्फू-न मिन् क़ब्लु, व लौ रूद्दू लआदू लिमा नुहू अन्हु व इन्नहुम् लकाज़िबून
    बल्कि जो (बेइमानी) पहले से छिपाते थे आज (उसकी हक़ीक़त) उन पर खुल गयी और (हम जानते हैं कि) अगर ये लोग (दुनिया में) लौटा भी दिए जाए तो भी जिस चीज़ की मनाही की गयी है उसे करें और ज़रुर करें और इसमें शक नहीं कि ये लोग ज़रुर झूठे हैं।
  4. व क़ालू इन् हि-य इल्ला हयातु नद्दुन्या व मा नह़्नु बिमब् अूसीन
    और कुफ्फार ये भी तो कहते हैं कि हमारी इस दुनिया ज़िन्दगी के सिवा कुछ भी नहीं और (क़यामत वग़ैरह सब ढकोसला है) हम (मरने के बाद) भी उठाए ही न जायेंगे।
  5. व लौ तरा इज़् वुक़िफू अला रब्बिहिम्, क़ा-ल अलै-स हाज़ा बिल्हक़्क़ि, क़ालू बला व रब्बिना, क़ा-ल फ़ज़ूक़ुल अज़ा-ब बिमा कुन्तुम् तक्फुरून *
    और (ऐ रसूल!) अगर तुम उनको उस वक़्त देखते (तो ताज्जुब करते) जब वे लोग अल्लाह के सामने खड़े किए जाएगें और अल्लाह उनसे पूछेगा कि क्या ये (क़यामत का दिन) अब भी सही नहीं है वह (जवाब में) कहेगें कि (दुनिया में) इससे इन्कार करते थे।
  6. क़द् ख़सिरल्लज़ी-न कज़्ज़बू बिलिक़ा इल्लाहि, हत्ता इज़ा जाअत्हुमुस्-सा-अतु बग़्-ततन् क़ालू या-हस्र- तना अला मा फर्रत्-ना फ़ीहा, व हुम् यह़्मिलू-न औज़ारहुम् अला ज़ुहूरिहिम्, अला सा-अ मा यज़िरून
    उसकी सज़ा में अज़ाब (के मजे़) चखो बेषक जिन लोगों ने क़यामत के दिन अल्लाह की हुज़ूरी को झुठलाया वह बड़े घाटे में हैं यहाँ तक कि जब उनके सर पर क़यामत एक दम आ पहँचेगी तो कहने लगेगें: अफसोस! हम ने तो इसमें बड़ी कोताही की (ये कहते जाएगे) और अपने गुनाहों का पुश्तारा अपनी अपनी पीठ पर लादते जाएगे देखो तो (ये) क्या बुरा बोझ है जिसको ये लादे (लादे फिर रहे) हैं।
  7. व मल्हयातुद्दुन्या इल्ला लअिबुंव् व लह़्वुन्, व लद्दारूल्-आख़ि-रतु ख़ैरूल लिल्लज़ी न यत्तक़ून, अ-फला तअ्क़िलून
    और (ये) दुनियावी ज़िन्दगी तो खेल तमाशे के सिवा कुछ भी नहीं और ये तो ज़ाहिर है कि आख़िरत का घर (बहिश्त) परहेज़गारो के लिए उसके बदर व (कई गुना) बेहतर है तो क्या तुम (इतना भी) नहीं समझते।
  8. क़द् नअ्लमु इन्नहू ल-यह़्ज़ुनुकल्लज़ी यक़ूलू-न फ़-इन्नहुम् ला युकज़्ज़िबून-क व लाकिन्नज़्ज़ालिमी-न बिआयातिल्लाहि यज्हदून
    हम खूब जानते हैं कि उन लोगों की बकबक तुम को सदमा पहुँचाती है तो (तुम को समझना चाहिए कि) ये लोग तुम को नहीं झुठलाते बल्कि (ये) ज़ालिम (हक़ीक़तन) अल्लाह की आयतों से इन्कार करते हैं।
  9. व ल-क़द् कुज़्ज़िबत् रूसुलुम् मिन् क़ब्लि-क फ़-स-बरू अला मा कुज़्ज़िबू व ऊज़ू हत्ता अताहुम् नस्रूना, व ला मुबद्दि-ल लि-कलिमातिल्लाहि, व ल-क़द् जाअ-क मिन् न-बइल् मुर्सलीन
    और (कुछ तुम ही पर नहीं) तुमसे पहले भी बहुतेरे रसूल झुठलाए जा चुके हैं तो उन्होनें अपने झुठलाए जाने और अज़ीयत (व तकलीफ) पर सब्र किया यहाँ तक कि हमारी मदद उनके पास आयी और (क्यों न आती) अल्लाह की बातों का कोई बदलने वाला नहीं है और पैग़म्बर के हालात तो तुम्हारे पास पहुँच ही चुके हैं।
  10. व इन् का-न कबु-र अलै-क इअ्-राज़ुहुम् फ़-इनिस् -ततअ्-त अन् तब्तग़ि-य न-फ़कन् फ़िल्अर्ज़ि औ सुल्लमन् फ़िस्समा-इ फ़-तअ्तियहुम् बिआयतिन्, व लौ शाअल्लाहु ल-ज-म-अहुम् अलल्हुदा फ़ला तकूनन्-न मिनल् जाहिलीन
    अगरचे उन लोगों का मुँह फेरना तुम पर भारी ज़रुर है (लेकिन) अगर तुम्हारा बस चले तो ज़मीन के अन्दर कोई सुरगं ढूढ निकालो या आसमान में सीढ़ी लगाओ और उन्हें कोई चमत्कार ला दिखाओ (तो ये भी कर देखो) अगर अल्लाह चाहता तो उन सब को राहे रास्त पर इकट्ठा कर देता (मगर वह तो इम्तिहान करता है) बस (देखो) तुम हरगिज़ ज़ालिमों में (शामिल) न होना।
  11. इन्नमा यस्तजीबुल्लज़ी-न यस्मअू-न, वल्मौता यब् असुहुमुल्लाहु सुम्-म इलैहि युर्जअन
    (तुम्हारा कहना तो) सिर्फ वही लोग मानते हैं जो (दिल से) सुनते हैं और मुर्दो को तो अल्लाह क़यामत ही में उठाएगा फिर उसी की तरफ लौटाए जाएगें।
  12. व क़ालू लौ ला नुज़्ज़ि-ल अलैहि आयतुम् मिर्रब्बिही, क़ुल इन्नल्ला-ह क़ादिरून् अला अंय्युनज़्ज़ि-ल आयतंव्-व लाकिन्-न अक्स रहुम् ला यअ्लमून
    और कुफ़्फ़ार कहते हैं कि (आख़िर) उस नबी पर उसके परवरदिगार की तरफ से कोई मौजिज़ा क्यों नहीं नाज़िल होता तो तुम (उनसे) कह दो कि अल्लाह मौजिज़े के नाज़िल करने पर ज़रुर क़ादिर है मगर उनमें के अक्सर लोग (अल्लाह की मसलहतों को) नहीं जानते।
  13. व मा मिन् दाब्बतिन् फिल् अर्ज़ि व ला ताइरिंय्यतीरू बिजनाहैहि इल्ला उ-ममुन् अम्सालुकुम्, मा फर्रत्-ना फ़िल्किताबि मिन् शैइन् सुम्-म इला रब्बिहिम् युह्शरून
    ज़मीन में जो चलने फिरने वाला (हैवान) या अपने दोनों परों से उड़ने वाला परिन्दा है उनकी भी तुम्हारी तरह जमाअतें हैं और सब के सब लौहे महफूज़ में मौजूद (हैं) हमने किताब (क़ुरान) में कोई बात नहीं छोड़ी है फिर सब के सब (चरिन्द हों या परिन्द) अपने परवरदिगार के हुज़ूर में लाए जायेंगे।
  14. वल्लज़ी-न कज़्ज़बू बिआयातिना सुम्मुंव्-व बुक्मुन् फिज़्ज़ुलुमाति, मंय्य-श इल्लाहु युज़्लिल्हु, व मंय्यशअ् यज्अ़ल्हु अला सिरातिम् मुस्तक़ीम
    और जिन लोगों ने हमारी आयतों को झुठला दिया। गोया वह (कुफ्र के घटाटोप) अंधेरों में गुगें बहरे (पड़े हैं) अल्लाह जिसे चाहे उसे गुमराही में छोड़ दे और जिसे चाहे उसे सीधे ढर्रे पर लगा दे।
  15. क़ुल अ-रऐतकुम् इन् अताकुम् अज़ाबुल्लाहि औ अतत्कुमुस्-सा अतु अग़ैरल्लाहि तदअू-न, इन् कुन्तुम् सादिक़ीन
    (ऐ रसूल! उनसे) पूछो तो कि क्या तुम यह समझते हो कि अगर तुम्हारे सामने अल्लाह का अज़ाब आ जाए या तुम्हारे सामने क़यामत ही आ खड़ी मौजूद हो तो तुम अगर (अपने दावे में) सच्चे हो तो (बताओ कि मदद के वास्ते) क्या अल्लाह को छोड़कर दूसरे को पुकारोगे।
  16. बल् इय्याहु तद्अू-न फ़-यक्शिफु मा तद्अू-न इलैहि इन् शा-अ व तन्सौ-न मा तुश्रिकून *
    (दूसरों को तो क्या) बल्कि उसी को पुकारोगे फिर अगर वह चाहेगा तो जिस के वास्ते तुमने उसको पुकारा है उसे दफा कर देगा और (उस वक़्त) तुम दूसरे माबूदों को जिन्हे तुम (अल्लाह का) शरीक समझते थे भूल जाओगे।
  17. व ल-क़द् अरसल्ना इला उ-ममिम् मिन् क़ब्लि-क फ़-अख़ज़्नाहुम् बिल्बअ्सा-इ वज़्ज़र्रा-इ लअ़ल्लहुम् य तज़र्रअून
    और (ऐ रसूल!) जो उम्मतें तुमसे पहले गुज़र चुकी हैं हम उनके पास भी बहुतेरे रसूल भेज चुके हैं फिर (जब नाफ़रमानी की) तो हमने उनको सख़्ती और तकलीफ़ में गिरफ़्तार किया ताकि वह लोग (हमारी बारगाह में) गिड़गिड़ाए।
  18. फ़लौ ला इज़् जाअहुम् बअ्सुना तज़र्रअू व लाकिन् क़-सत् क़ुलूबुहुम् व ज़य्य-न लहुमुश्शैतानु मा कानू यअ्मलून
    तो जब उन (के सर) पर हमारा अज़ाब आ खड़ा हुआ तो वह लोग क्यों नहीं गिड़गिड़ाए (कि हम अज़ाब दफा कर देते) मगर उनके दिल तो सख़्त हो गए थे। ओर उनकी कारस्तानियों को शैतान ने आरास्ता कर दिखाया था (फिर क्योंकर गिड़गिड़ाते)।
  19. फ़-लम्मा नसू मा ज़ुक्किरू बिही फ़तह़्ना अलैहिम् अब्वा-ब कुल्लि शैइन्, हत्ता इज़ा फ़रिहू बिमा ऊतू अख़ज़्नाहुम् बग़्-ततन् फ़-इज़ा हुम् मुब्लिसून
    फिर जिसकी उन्हें नसीहत की गयी थी जब उसको भूल गए तो हमने उन पर (ढील देने के लिए) हर तरह की (दुनियावी) नेअमतों के दरवाज़े खोल दिए। यहाँ तक कि जो नेअमते उनको दी गयी थी जब उनको पाकर ख़ुश हुए तो हमने उन्हें नागाहाँ (एक दम) ले डाला तो उस वक़्त वह नाउम्मीद होकर रह गए।
  20. फ़क़ुति-अ दाबिरूल् क़ौमिल्लज़ी-न ज़-लमू, वल्हम्दु लिल्लाहि रब्बिल-आ़लमीन
    फिर ज़ालिम लोगों की जड़ काट दी गयी और सारे जहाँन के मालिक अल्लाह का शुक्र है।
  21. क़ुल अ-रऐतुम् इन् अ-ख़ज़ल्लाहु सम्अ़कुम् व अब्सारकुम् व ख़-त म अला क़ुलूबिकुम् मन् इलाहुन् ग़ैरूल्लाहि यअ्तीकुम् बिही, उन्ज़ुर् कै-फ़ नुसर्रिफुल् -आयाति सुम्-म हुम् यस्दिफून
    (कि किस्सा पाक हुआ) (ऐ रसूल!) उनसे पूछो तो कि क्या तुम ये समझते हो कि अगर अल्लाह तुम्हारे कान और तुम्हारी आँखे लें ले और तुम्हारे दिलों पर मोहर कर दे तो अल्लाह के सिवा और कौन मौजूद है जो (फिर) तुम्हें ये नेअमतें (वापस) दे (ऐ रसूल!) देखो तो हम किस किस तरह अपनी दलीले बयान करते हैं इस पर भी वह लोग मुँह मोडे़ जाते हैं।
  22. क़ुल अ-रऐतकुम् इन् अताकुम् अज़ाबुल्लाहि बग़्- ततन् औ जह् रतन् हल् युह़्लकु इल्लल् क़ौमुज़्ज़ालिमून
    (ऐ रसूल!) उनसे पूछो कि क्या तुम ये समझते हो कि अगर तुम्हारे सर पर अल्लाह का अज़ाब बेख़बरी में या जानकारी में आ जाए तो क्या गुनाहगारों के सिवा और लोग भी हलाक़ किए जाएगें (हरगिज़ नहीं)।
  23. व मा नुर्सिलुल-मुरसली-न इल्ला मुबश्शिरी-न व मुन्ज़िरी-न, फ़-मन् आम-न व अस्ल-ह फ़ला ख़ौफुन् अलैहिम् व ला हुम् यह्ज़नून
    और हम तो रसूलों को सिर्फ इस ग़रज़ से भेजते हैं कि (नेको को जन्नत की) खुशख़बरी दें और (बदो को अज़ाबे जहन्नुम से) डराए फिर जिसने इमान कुबूल किया। और अच्छे अच्छे काम किए तो ऐसे लोगों पर (क़यामत में) न कोई ख़ौफ होगा और न वह ग़मग़ीन होगें।
  24. वल्लज़ी-न कज़्ज़बू बिआयातिना यमस्सुहुमुल्-अज़ाबु बिमा कानू यफ्सुक़ून
    और जिन लोगों ने हमारी आयतों को झुठलाया तो चूकि बदकारी करते थे (हमारा) अज़ाब उनको पलट जाएगा।
  25. क़ुल ला अक़ूलु लकुम् अिन्दी ख़ज़ाइनुल्लाहि व ला अअ्लमुल्ग़ै-ब व ला अक़ूलु लकुम् इन्नी म-लकुन्, इन् अत्तबिअु इल्ला मा यूहा इलय्-य, क़ुल हल यस्तविल्- अअ्मा वल्बसीरू, अ-फ़ला त-तफ़क्करून *
    (ऐ रसूल!) उनसे कह दो कि मै तो ये नहीं कहता कि मेरे पास अल्लाह के ख़ज़ाने हैं (कि ईमान लाने पर दे दूगा) और न मै गै़ब के (कुल हालात) जानता हूँ और न मै तुमसे ये कहता हूँ कि मै फ़रिश्ता हूँ, मै तो बस जो (अल्लाह की तरफ से) मेरे पास वही की जाती है उसी का पाबन्द हूँ (उनसे पूछो तो) कि अन्धा और आँख वाला बराबर हो सकता है तो क्या तुम (इतना भी) नहीं सोचते।

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