07 सूरह अल-आराफ़ हिंदी में पेज 1

07 सूरह अल-आराफ़ | Surah Al-Araf

सूरह अल-आराफ़ में 206 आयतें हैं। यह सूरह पारा 8, पारा 9 में है। यह सूरह मक्का में नाजिल हुई। 

आयत 139 से 141 तक और 146 से 147 तक की आयतों में कुछ मवेशियों के हराम होने और कुछ के हलाल होने के सम्बन्ध में अरब वालों के अंध विश्वासों का खंडन किया गया है। इसलिए इसका नाम अल-अन्आम (मवेशी) रखा गया है।

सूरह अल-आराफ़ हिंदी में | Surat Al-Araf in Hindi

बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहिम
शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम वाला है
  1. अलिफ़ – लाम्- मीम् – सॉद्
    अलिफ़ लाम मीम स्वाद (1)
  2. किताबुन उन्ज़ि – ल इलै – क फला यकुन् फ़ी सदरि-क ह-रजुम् मिन्हु लितुन्ज़ि-र बिही व ज़िक्रा लिल्मु अ्मिनीन
    (ऐ रसूल) ये किताब ख़ुदा (क़ुरान) तुम पर इस ग़रज़ से नाजि़ल की गई है ताकि तुम उसके ज़रिये से लोगों को अज़ाबे ख़ुदा से डराओ और ईमानदारों के लिए नसीहत का बायस हो (2)
  3. इत्तबिअू मा उन्ज़ि-ल इलैकुम् मिर्रब्बिकुम् वला तत्तबिअू मिन् दूनिही औलिया-अ, कलीलम् मा तज़क्करून
    तुम्हारे दिल में उसकी वजह से कोई न तंगी पैदा हो (लोगों) जो तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से तुम पर नाजि़ल किया गया है उसकी पैरवी करो और उसके सिवा दूसरे (फर्जी) बुतों (माबुदों) की पैरवी न करो (3)
  4. व कम् मिन् कर यतिन् अह़्लक्नाहा फ़जा-अहा बअ्सुना बयातन् औ हुम् का-इलून
    तुम लोग बहुत ही कम नसीहत क़ुबूल करते हो और क्या (तुम्हें) ख़बर नहीं कि ऐसी बहुत सी बस्तियाँ हैं जिन्हें हमने हलाक कर डाला तो हमारा अज़ाब (ऐसे वक्त) आ पहुचा (4)
  5. फ़मा का -न दअ्वाहुम् इज् जा-अहुम् बअ्सुना इल्ला अन् कालू इन्ना कुन्ना ज़ालिमीन
    कि वह लोग या तो रात की नींद सो रहे थे या दिन को क़लीला (खाने के बाद का लेटना) कर रहे थे तब हमारा अज़ाब उन पर आ पड़ा तो उनसे सिवाए इसके और कुछ न कहते बन पड़ा कि हम बेशक ज़ालिम थे (5)
  6. फ़- लनस् – अलन्नल्लज़ी – न उरसि – ल इलैहिम् व ल – नस् – अलन्नल् मुरसलीन
    फिर हमने तो ज़रूर उन लोगों से जिनकी तरफ पैग़म्बर भेजे गये थे (हर चीज़ का) सवाल करेगें और ख़ुद पैग़म्बरों से भी ज़रूर पूछेगें (6)
  7. फ-ल-नकु स्सन् न अलैहिम् बिअिल्मिंव -व मा कुन्ना गा-इबीन
    फिर हम उनसे हक़ीक़त हाल ख़ूब समझ बूझ के (ज़रा ज़रा) दोहराएगें (7)
  8. वल्वज्नु यौमइज़ि-निल्हक्कु फ़-मन् सकुलत् मवाज़ीनुहू फ़-उलाइ-क हुमुल्-मुफ्लिहून
    और हम कुछ ग़ायब तो थे नहीं और उस दिन (आमाल का) तौला जाना बिल्कुल ठीक है फिर तो जिनके (नेक अमाल के) पल्ले भारी होगें तो वही लोग फायज़ुलहराम (नजात पाये हुए) होगें (8)
  9. व मन् खफ्फत् मवाज़ीनुहू फ़-उला-इकल्लज़ी-न खसिरू अन्फु-सहुम् बिमा कानू बिआयातिना यज़्लिमून
    (और जिनके नेक अमाल के) पल्ले हलके होगें तो उन्हीं लोगों ने हमारी आयत से नाफरमानी करने की वजह से यक़ीनन अपना आप नुक़सान किया (9)
  10. व-ल-कद् मक्कन्नाकुम् फ़िलअर्जि व जअ़ल्ना लकुम् फ़ीहा मआयि -श, क़लीलम् मा तश्कुरून *
    और (ऐ बनीआदम) हमने तो यक़ीनन तुमको ज़मीन में क़ुदरत व इख़तेदार दिया और उसमें तुम्हारे लिए असबाब ज़िन्दगी मुहय्या किए (मगर) तुम बहुत ही कम शुक्र करते हो (10)
  11. व ल – क़द् खलक्नाकुम् सुम् -म सव्वर्नाकुम् सुम् -म कुल्ना लिल्मलाइ कतिस्जुदू लिआद-म फ़-स-जदू इल्ला इब्ली-स, लम् यकुम् मिनस्साजिदीन
    हालाकि इसमें तो शक ही नहीं कि हमने तुम्हारे बाप आदम को पैदा किया फिर तुम्हारी सूरते बनायीं फिर हमनें फ़रिश्तों से कहा कि तुम सब के सब आदम को सजदा करो तो सब के सब झुक पड़े मगर शैतान कि वह सजदा करने वालों में शामिल न हुआ। (11)
  12. का-ल मा म-न-अ-क अल्ला तस्जु-द इज् अमरतु-क, का-ल अ-न खैरूम् -मिन्हु ख़लक़्तनी मिन् नारिंव्-व ख़लक़्तहू मिन् तीन
    ख़ुदा ने (शैतान से) फरमाया जब मैनें तुझे हुक्म दिया कि तू फिर तुझे सजदा करने से किसी ने रोका कहने लगा मैं उससे अफ़ज़ल हूँ (क्योंकि) तूने मुझे आग (ऐसे लतीफ अनसर) से पैदा किया (12)
  13. का -ल फ़ह़्बित् मिन्हा फ़मा यकूनु ल-क अन् त-तकब्ब -र फ़ीहा फख्रूज इन-क मिनस्सागिरीन
    और उसको मिटटी (ऐसी काशिफ अनसर) से पैदा किया ख़ुदा ने फरमाया (तुझको ये ग़ुरूर है) तो बहिस्त से नीचे उतर जाओ क्योंकि तेरी ये मजाल नहीं कि तू यहाँ रहकर ग़ुरूर करे तो यहाँ से (बाहर) निकल बेशक तू ज़लील लोगों से है (13)
  14. का -ल अन्जिरनी इला यौमि युब्अ़सून
    कहने लगा तो (ख़ैर) हमें उस दिन तक की (मौत से) मोहलत दे (14)
  15. का -ल इन्न -क मिनल् मुन्ज़रीन
    जिस दिन सारी ख़ुदाई के लोग दुबारा जलाकर उठा खड़े किये जाएगें (15)
  16. का -ल फबिमा अग्वैतनी ल-अक्अुदन् -न लहुम् सिरा-तकल् मुस्तकीम
    फ़रमाया (अच्छा मंजूर) तुझे ज़रूर मोहलत दी गयी कहने लगा चूँकि तूने मेरी राह मारी तो मैं भी तेरी सीधी राह पर बनी आदम को (गुमराह करने के लिए) ताक में बैठूं तो सही (16)
  17. सुम्- म लआतियन्नहुम् मिम् -बैनि ऐदीहिम् व मिन् ख़ल्फ़िहिम् व अन् ऐमानिहिम् व अन् शमा-इलिहिम्, व ला तजिदु अक्स-रहुम् शाकिरीन
    फिर उन लोगों से और उनके पीछे से और उनके दाहिने से और उनके बाएं से (गरज़ हर तरफ से) उन पर आ पडॅ़ूगां और (उनको बहकाऊगा) और तू उन में से बहुतरों की शुक्रग़ुज़ार नहीं पायेगा (17)
  18. कालख्रुज मिन्हा मज्ऊमम-मद्हूरन्, ल-मन् तबि-अ-क मिन्हुम् लअम्-लअन्-न जहन्न-म मिन्कुम अज्मईन
    ख़ुदा ने फरमाया यहाँ से बुरे हाल में (राइन्दा होकर निकल) (दूर) जा उन लोगों से जो तेरा कहा मानेगा तो मैं यक़ीनन तुम (और उन) सबको जहन्नुम में भर दूंगा (18)
  19. व या आदमुस्कुन् अन्-त व ज़ौजुकल्जन्न-त फ़-कुला मिन् हैसु शिअ्तुमा व ला तक्रबा हाज़िहिश्-श-ज-र-त फ़-तकूना मिनज्-ज़ालिमीन
    और (आदम से कहा) ऐ आदम तुम और तुम्हारी बीबी (दोनों) बहिश्त में रहा सहा करो और जहाँ से चाहो खाओ (पियो) मगर (ख़बरदार) उस दरख़्त के करीब न जाना वरना तुम अपना आप नुक़सान करोगे (19)
  20. फ़-वस्व-स लहुमश्-शैतानु लियुब्दि-य लहुमा मा वूरि-य अन्हुमा मिन् सौअतिहिमा व का-ल मा नहाकुमा रब्बुकुमा अन् हाज़िहिश्श-ज-रति इल्ला अन् तकूना म-लकैनि औ तकूना मिनल्ख़ालिदीन
    फिर शैतान ने उन दोनों को वसवसा (शक) दिलाया ताकि (नाफरमानी की वजह से) उनके अस्तर की चीज़े जो उनकी नज़र से बहिश्ती लिबास की वजह से पोशीदा थी खोल डाले कहने लगा कि तुम्हारे परवरदिगार ने दोनों को दरख़्त (के फल खाने) से सिर्फ इसलिए मना किया है (कि मुबादा) तुम दोनों फ़रिश्ते बन जाओ या हमेशा (जि़न्दा) रह जाओ (20)
  21. व का-स-महुमा इन्नी लकुमा लमिनन्नासिहीन
    और उन दोनों के सामने क़समें खायीं कि मैं यक़ीनन तुम्हारा ख़ैर ख़्वाह हूँ (21)
  22. फ़दल्लाहुमा बिगुरूरिन् फ़-लम्मा ज़ाक़श्श-ज-र-त बदत् लहुमा सौआतुहुमा व तफ़िका यख्सिफ़ानि अलैहिमा मिंव्व- रकिल्-जन्नति, व नादाहुमा रब्बुहुमा अलम् अन्हकुमा अन् तिल्कुमश्श- ज-रति व अकुल् – लकुमा इन्नश्शैता-न लकुमा अदुव्वुम् मुबीन
    ग़रज़ धोखे से उन दोनों को उस (के खाने) की तरफ ले गया ग़रज़ जो ही उन दोनों ने इस दरख़्त (के फल) को चखा कि (बहिश्ती लिबास गिर गया और समझ पैदा हुयी) उन पर उनकी शर्मगाहें ज़ाहिर हो गयीं और बहिश्त के पत्ते (तोड़ जोड़ कर) अपने ऊपर ढापने लगे तब उनको परवरदिगार ने उनको आवाज़ दी कि क्यों मैंने तुम दोनों को इस दरख़्त के पास (जाने) से मना नहीं किया था और (क्या) ये न जता दिया था कि शैतान तुम्हारा यक़ीनन खुला हुआ दुश्मन है (22)
  23. काला रब्बना ज़लम्ना अन्फु-सना व इल्लम् तग़फ़िर् लना व तरहम्ना ल – नकूनन् – न मिनल ख़ासिरीन
    ये दोनों अर्ज़ करने लगे ऐ हमारे पालने वाले हमने अपना आप नुकसान किया और अगर तू हमें माफ न फरमाएगा और हम पर रहम न करेगा तो हम बिल्कुल घाटे में ही रहेगें (23)
  24. कालह़्बितू बअ्जुकुम् लि-बअ्ज़िन अ़दुव्वुन् व लकुम् फ़िलअर्जि मुस्तकर्रूंव्-व मताअुन् इला हीन
    हुक्म हुआ तुम (मियां बीबी शैतान) सब के सब बहिश्त से नीचे उतरो तुममें से एक का एक दुश्मन है और (एक ख़ास) वक़्त तक तुम्हारा ज़मीन में ठहराव (ठिकाना) और जि़न्दगी का सामना है (24)
  25. का – ल फ़ीहा तह़्यौ-न व फ़ीहा तमूतू-न व मिन्हा तुखरजून *
    ख़ुदा ने (ये भी) फरमाया कि तुम ज़मीन ही में जिन्दगी बसर करोगे और इसी में मरोगे (25)

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