06 सूरह अल-अनआम हिंदी में पेज 3

सूरह अल-अनआम हिंदी में | Surat Al-Araf in Hindi

  1. व अन्ज़िर् बिहिल्लज़ी न यख़ाफू-न अंय्युह्शरू इला रब्बिहिम् लै-स लहुम् मिन् दूनिही वलिय्युंव-व ला शफ़ीअुल् लअल्लहुम् यत्तक़ून
    और इस क़ुरान के ज़रिए से तुम उन लोगों को डराओ जो इस बात का ख़ौफ रखते हैं कि वह (मरने के बाद) अपने अल्लाह के सामने जमा किये जायेंगे (और यह समझते है कि) उनका अल्लाह के सिवा न कोई सरपरस्त हे और न कोई सिफारिश करने वाला ताकि ये लोग परहेज़गार बन जाए।
  2. व ला ततरूदिल्लज़ी-न यद्अू-न रब्बहुम् बिल्ग़दाति वल् अशिय्यि युरीदू-न वज्हहू, मा अलै-क मिन हिसाबिहिम् मिन् शैइंव्-व मा मिन् हिसाबि-क अलैहिम् मिन् शैइन् फ़-ततरू-दहुम् फ़-तकू-न मिनज़्ज़ालिमीन
    और (ऐ रसूल!) जो लोग सुबह व शाम अपने परवरदिगार से उसकी ख़़ुशनूदी की तमन्ना में दुआएं माँगा करते हैं- उनको अपने पास से न धुत्कारो-न उनके (हिसाब किताब की) जवाब देही कुछ उनके जिम्मे है ताकि तुम उन्हें (इस ख़्याल से) धुत्कार बताओ तो तुम ज़ालिम (के शुमार) में हो जाओगे।
  3. व कज़ालि-क फ़तन्ना बअ्ज़हुम् बिबअ्ज़िल्-लियक़ूलू अ-हाउला-इ मन्नल्लाहु अलैहिम् मिम्-बैनिना, अलैसल्लाहु बिअअ् ल-म बिश्शाकिरीन
    और इसी तरह हमने कुछ आदमियों को कुछ से आज़माया ताकि वह लोग कहें कि हाए क्या ये लोग हममें से हैं जिन पर अल्लाह ने अपना फ़जल व करम किया है (यह तो समझते की) क्या अल्लाह शुक्र गुज़ारों को भी नही जानता।
  4. व इज़ा जा-अकल्लज़ी-न युअ्मिनू न बिआयातिना फ़क़ुल् सलामुन् अलैकुम् क-त-ब रब्बुकुम् अला नफ्सिहिर्रह़्म-त अन्नहू मन् अमि-ल मिन्कुम् सूअम् बि- जहालतिन् सुम्-म ता-ब मिम्-बअ्दिही व अस्ल-ह फ़-अन्नहू ग़फूरुर्रहीम
    और जो लोग हमारी आयतों पर ईमान लाए हैं तुम्हारे पास आँए तो तुम सलामुन अलैकुम (तुम पर अल्लाह की सलामती हो) कहो तुम्हारे परवरदिगार ने अपने ऊपर रहमत लाजि़म कर ली है बेशक तुम में से जो शख्स नादानी से कोई गुनाह कर बैठे उसके बाद फिर तौबा करे और अपनी हालत की (असलाह करे अल्लाह उसका गुनाह बख़्श देगा क्योंकि) वह यक़ीनी बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है।
  5. व कज़ालि-क नुफस्सिलुल्-आयाति व लितस्तबी-न सबीलुल-मुज्रिमीन *
    और हम (अपनी) आयतों को यू तफ़सील से बयान करते हैं ताकि गुनाहगारों की राह (सब पर) खुल जाए और वह इस पर न चले।
  6. क़ुल इन्नी नुहीतु अन् अअ्बुदल्लज़ी-न तद्अू-न मिन् दूनिल्लाहि, क़ुल ला अत्तबिअु अह़्वा-अकुम्, क़द् ज़लल्तु इज़ंव्-व मा अ-ना मिनल मुह्तदीन
    (ऐ रसूल!) तुम कह दो कि मुझसे उसकी मनाही की गई है कि मैं अल्लाह को छोड़कर उन माबूदों की इबादत करुं जिन को तुम पूजा करते हो (ये भी) कह दो कि मै तो तुम्हारी (नफसानी) ख़्वाहिश पर चलने का नहीं (वरना) फिर तो मै गुमराह हो जाऊॅगा और हिदायत याफता लोगों में न रहूँगा।
  7. क़ुल इन्नी अला बय्यि-नतिम् मिर्रब्बी व कज़्ज़ब्तुम् बिही, मा अिन्दी मा तस्तअ्जिलू-न बिही, इनिल्हुक्मु इल्ला लिल्लाहि, यक़ुस्सुल्हक़्-क़ व हु-व ख़ैरूल्-फ़ासिलीन
    तुम कह दो कि मै तो अपने परवरदिगार की तरफ से एक रौशन दलील पर हूँ और तुमने उसे झुठला दिया (तो) तुम जिस की जल्दी करते हो (अज़ाब) वह कुछ मेरे पास (एख़्तियार में) तो है नहीं हुकूमत तो बस ज़रुर अल्लाह ही के लिए है वह तो (हक़) बयान करता है और वह तमाम फैसला करने वालों से बेहतर है।
  8. क़ुल् लौ अन्-न अिन्दी मा तस्तअ्जिलू-न बिही लक़ुज़ियल्-अम्रू बैनी व बैनकुम्, वल्लाहु अअ्लमु बिज़्ज़ालिमीन
    (उन लोगों से) कह दो कि जिस (अज़ाब) की तुम जल्दी करते हो अगर वह मेरे पास (एख़्तियार में) होता तो मेरे और तुम्हारे दरम्यिान का फैसला कब का चुक गया होता और अल्लाह तो ज़ालिमों से खूब वाकिफ़ है।
  9. व अिन्दहू मफ़ातिहुल्ग़ैबि ला यअ्लमुहा इल्ला हु-व, व यअ्लमु मा फ़िल्बर्रि वल्बह्-रि, व मा तस्क़ुतु मिंव्व-र क़तिन् इल्ला यअ्लमुहा व ला हब्बतिन् फ़ी ज़ुलुमातिल्-अर्ज़ि व ला रतबिंव्-व ला याबिसिन् इल्ला फ़ी किताबिम् मुबीन
    और उसके पास ग़ैब की कुन्जिया हैं जिनको उसके सिवा कोई नही जानता और जो कुछ खुश्की और तरी में है उसको (भी) वही जानता है और कोई पत्ता भी नहीं खटकता मगर वह उसे ज़रुर जानता है और ज़मीन की तारीकियों में कोई दाना और न कोई शुष्क चीज़ है मगर वह नूरानी किताब (लौहे महफूज़) में मौजूद है।
  10. व हुवल्लज़ी य-तवफ्फाकुम् बिल्लैलि व यअ्लमु मा जरह्तुम् बिन्नहारि सुम्-म यब्अ़सुकुम् फ़ीहि लियुक्ज़ा अ-जलुम् मुसम्मन्, सुम्-म इलैहि मर्जिअुकुम् सुम्-म युनब्बिअुकुम् बिमा कुन्तुम् तअ्मलून*
    वह वही (अल्लाह) है जो तुम्हें रात को (नींद में एक तरह पर दुनिया से) उठा लेता हे और जो कुछ तूने दिन को किया है जानता है फिर तुम्हें दिन को उठा कर खड़ा करता है ताकि (ज़िन्दगी की) (वह) मियाद जो (उसके इल्म में) मुअय्युन है पूरी की जाए फिर (तो आख़िर) तुम सबको उसी की तरफ लौटना है फिर जो कुछ तुम (दुनिया में भला बुरा) करते हो तुम्हें बता देगा।
  11. व हुवलक़ाहिरू फौ-क़ अिबादिही व युर्सिलु अ़लैकुम ह-फ़-ज़तन्, हत्ता इज़ा जा-अ अ-हद कुमुल्मौतु तवफ्फ़त्हु रूसुलुना व हुम् ला युफ़र्रितून
    वह अपने बन्दों पर ग़ालिब है वह तुम लोगों पर निगेहबान (फ़रिश्ते तैनात करके) भेजता है-यहाँ तक कि जब तुम में से किसी की मौत आए तो हमारे भेजे हुये फ़रिश्ते उसको (दुनिया से) उठा लेते हैं और वह (हमारे तामीले हुक्म में ज़रा भी) कोताही नहीं करते।
  12. सुम्-म रूद्दू इलल्लाहि मौलाहुमुल्-हक़्क़ि, अला लहुल्हुक्मु, व हु-व अस्रअुल-हासिबीन
    फिर ये लोग अपने सच्चे मालिक अल्लाह के पास वापस बुलाए गए-आगाह रहो कि हुक़ूमत ख़ास उसी के लिए है और वह सबसे ज़्यादा हिसाब लेने वाला है।
  13. क़ुल मंय्युनज्जीकुम् मिन् ज़ुलुमातिल बर्रि वल्बह़रि तद्अूनहू तज़र्रुअंव्-व खुफ्यतन्, ल-इन् अन्जाना मिन् हाज़िही ल-नकूनन्-न मिनश्शाकिरीन
    (ऐ रसूल!) उनसे पूछो कि तुम खुश्की और तरी के (घटाटोप) अंधेरों से कौन छुटकारा देता है जिससे तुम गिड़ गिड़ाकर और (चुपके) दुआए माँगते हो कि अगर वह हमें (अब की दफ़ा) उस (बला) से छुटकारा दे तो हम ज़रुर उसके शुक्र गुज़ार (बन्दे होकर) रहेगें।
  14. क़ुलिल्लाहु युनज्जीकुम् मिन्हा व मिन् कुल्लि करबिन् सुम्-म अन्तुम् तुश्रिकून
    तुम कहो उन (मुसीबतों) से और हर बला में अल्लाह तुम्हें नजात देता है (मगर अफसोस) उस पर भी तुम शिर्क करते ही जाते हो।
  15. क़ुल हुवल्क़ादिरू अला अंय्यब्अ़-स अलैकुम् अज़ाबम् मिन् फौक़िकुम् औ मिन् तह़्ति अर्जुलिकुम् औ यल्बि सकुम् शि यअ़ंव् व युज़ी-क बअ्ज़कुम् बअ्-स बअ्ज़िन्, उन्ज़ुर् कै-फ नुसर्रिफुल्-आयाति लअल्लहुम् यफ़्क़हून
    (ऐ रसूल!) तुम कह दो कि वही उस पर अच्छी तरह क़ाबू रखता है कि अगर (चाहे तो) तुम पर अज़ाब तुम्हारे (सर के) ऊपर से नाज़िल करे या तुम्हारे पाव के नीचे से (उठाकर खड़ा कर दे) या एक गिरोह को दूसरे से भिड़ा दे और तुम में से कुछ लोगों को कुछ आदमियों की लड़ाई का मज़ा चखा दे ज़रा ग़ौर तो करो हम किस किस तरह अपनी आयतों को उलट पुलट के बयान करते हैं ताकि लोग समझे।
  16. व कज़्ज़-ब बिही क़ौमु-क व हुवल्हक़्क़ु, क़ुल् लस्तु अलैकुम् बि-वकील
    और उसी (क़ुरान) को तुम्हारी क़ौम ने झुठला दिया हालाँकि वह बरहक़ है। (ऐ रसूल!) तुम उनसे कहो कि मैं तुम पर कुछ निगेहबान तो हूँ नहीं हर ख़बर (के पूरा होने) का एक ख़ास वक़्त मुक़र्रर है और अनक़रीब (जल्दी) ही तुम जान लोगे।
  17. लिकुल्लि-न-बइम् मुस्तक़ररूंव्-व सौ-फ तअ्लमून
    और जब तुम उन लोगों को देखो जो हमारी आयतों में बेहूदा बहस कर रहे हैं तो उन (के पास) से टल जाओ यहाँ तक कि वह लोग उसके सिवा किसी और बात में बहस करने लगें और अगर (हमारा ये हुक्म) तुम्हें शैतान भुला दे तो याद आने के बाद ज़ालिम लोगों के साथ हरगिज़ न बैठना।
  18. व इज़ा रऐतल्लज़ी-न यख़ूज़ू-न फी आयातिना फ-अअ्-रिज़् अन्हुम् हत्ता यख़ूज़ू फी हदीसिन् ग़ैरिही, व इम्मा युन्सियन्न-कश्शैतानु फला तक़अुद् बअ्दज़्ज़िक्रा मअ़ल् क़ौमिज़्ज़ालिमीन
    और ऐसे लोगों (के हिसाब किताब) का जवाब देही कुछ परहेज़गारो पर तो है नहीं मगर (सिर्फ नसीहतन) याद दिलाना (चाहिए) ताकि ये लोग भी परहेज़गार बनें।
  19. व मा अलल्लज़ी न यत्तक़ू-न मिन् हिसाबिहिम् मिन् शैइंव्-व लाकिन् ज़िक्रा लअ़ल्लहुम् यत्तक़ून
    और जिन लोगों ने अपने दीन को खेल और तमाशा बना रखा है और दुनिया की जि़न्दगी ने उन को धोके में डाल रखा है ऐसे लोगों को छोड़ो और क़़ुरान के ज़रिए से उनको नसीहत करते रहो (ऐसा न हो कि कोई) शख्स़ अपने करतूत की बदौलत मुब्तिलाए बला हो जाए (क्योंकि उस वक़्त) तो अल्लाह के सिवा उसका न कोई सरपरस्त होगा न सिफारिशी और अगर वह अपने गुनाह के ऐवज़ सारे (जहाँन का) बदला भी दे तो भी उनमें से एक न लिया जाएगा जो लोग अपनी करनी की बदौलत मुब्तिलाए बला हुए है उनको पीने के लिए खौलता हुआ गर्म पानी (मिलेगा) और (उन पर) दर्दनाक अज़ाब होगा क्योंकर वह कुफ़्र किया करते थे।
  20. व ज़रिल्लज़ीनत्त-ख़ज़ू दीनहुम् लअिबंव् व लह़्वंव्-व ग़र्रत्हुमुल् हयातुद्दुन्या व ज़क्किर् बिही अन् तुब्स-ल नफ्सुम्-बिमा क-सबत्, लै-स लहा मिन् दूनिल्लाहि वलिय्युंव्-व ला शफ़ीअुन्, व इन् तअ्दिल् कुल्-ल अद्लिल्-ला युअ्ख़ज़् मिन्हा, उला-इकल्लज़ी-न उब्सिलू बिमा क-सबू, लहुम् शराबुम् मिन् हमीमिंव्-व अ़ज़ाबुन् अलीमुम् बिमा कानू यक्फुरून *
    (ऐ रसूल!) उनसे पूछो तो कि क्या हम लोग अल्लाह को छोड़कर उन (माबूदों) से मुनाज़ात (दुआ) करे जो न तो हमें नफ़ा पहुचा सकते हैं न हमारा कुछ बिगाड़ ही सकते हैं- और जब अल्लाह हमारी हिदायत कर चुका) उसके बाद उल्टे पावँ कुफ्र की तरफ उस शख्स़ की तरह फिर जाए जिसे शैतानों ने जंगल में भटका दिया हो और वह हैरान (परेशान) हो (कि कहा जाए क्या करें) और उसके कुछ रफीक़ हो कि उसे राहे रास्त (सीधे रास्ते) की तरफ पुकारते रह जाए कि (उधर) हमारे पास आओ और वह एक न सुने (ऐ रसूल!) तुम कह दो कि हिदायत तो बस अल्लाह की हिदायत है और हमें तो हुक्म ही दिया गया है कि हम सारे जहाँन के परवरदिगार अल्लाह के फरमाबरदार हैं।
  21. क़ुल् अ-नद्अू मिन् दूनिल्लाहि मा ला यन्फ़अु-ना व ला यज़ुर्रूना व नुरद्दू अ़ला अअ्क़ाबिना बज्-द इज़् हदानल्लाहु कल्लज़िस् तह़्वत्हुश्शयातीनु फिल्अर्ज़ि हैरा-न, लहू अस्हाबुंय्-यद्अूनहू इलल्-हुदअ्तिना, क़ुल इन्-न हुदल्लाहि हुवल्हुदा, व उमिरना लिनुस्लि-म लिरब्बिल् आ़लमीन
    और ये (भी हुक्म हुआ है) कि पाबन्दी से नमाज़ पढ़ा करो और उसी से डरते रहो और वही तो वह (अल्लाह) है जिसके हुज़ूर में तुम सब के सब हाजिर किए जाओगे।
  22. व अन् अक़ीमुस्सला-त वत्तक़ूहु, व हुवल्लज़ी इलैहि तुह्शरून
    वह तो वह (अल्लाह है) जिसने ठीक ठीक बहुतेरे आसमान व ज़मीन पैदा किए और जिस दिन (किसी चीज़ को) कहता है कि हो जा तो (फौरन) हो जाती है।
  23. व हुवल्लज़ी ख़-लक़स्समावाति वल्अर्-ज़ बिल्हक़्क़ि, व यौ-म यक़ूलु कुन् फ़-यकून • क़ौलुहुल्-हक़्क़ु, व लहुल्मुल्कु यौ-म युन्फख़ु फिस्सूरि, आलिमुल्ग़ैबि वश्शहा-दति, व हुवल हकीमुल-ख़बीर
    उसका क़ौल सच्चा है और जिस दिन सूर फूका जाएगा (उस दिन) ख़ास उसी की बादशाहत होगी (वही) ग़ायब हाजि़र (सब) का जानने वाला है और वही दाना वाक़िफ़कार है।
  24. व इज़् क़ा-ल इब्राहीमु लि-अबीहि आज़-र अ-तत्तख़िज़ु अस् नामन् आलि-हतन्, इन्नी अरा-क व क़ौम-क फ़ी ज़लालिम् मुबीन
    (ऐ रसूल!) उस वक़्त का याद करो) जब इब्राहीम ने अपने (मुँह बोले) बाप आज़र से कहा क्या तुम बुतों को अल्लाह मानते हो-मै तो तुमको और तुम्हारी क़ौम को खुली गुमराही में देखता हूँ।
  25. व कज़ालि-क नुरी इब्राही-म म-लकूतस्समावाति वल्अर्ज़ि व लियकू-न मिनल् मूक़िनीन
    और (जिस तरह हमने इब्राहीम को दिखाया था कि बुत क़ाबिले परसतिश (पूजने के क़ाबिल) नहीं) उसी तरह हम इब्राहीम को सारे आसमान और ज़मीन की सल्तनत का (इन्तज़ाम) दिखाते रहे ताकि वह (हमारी वहदानियत का) यक़ीन करने वालों से हो जाए।

Surah Al-Anam Video

Share this:

Leave a Comment

error: Content is protected !!