05 सूरह मायदा हिंदी में पेज 3

सूरह मायदा हिंदी में | Surah Al-Maidah in Hindi

  1. या अय्युहर्रसूलु ला यह्ज़ुनकल्लज़ी-न युसारिअू-न फ़िल्कुफ्रि मिनल्लज़ी-न क़ालू आमन्ना बिअफ़्वाहिहिम् व लम् तुअ्मिन् क़ुलूबुहुम्, व मिनल्लज़ी-न हादू, सम्माअू-न लिल्कज़िबि सम्माअू-न लिक़ौमिन् आख़री-न, लम् यअ्तू-क, युहर्रिफूनल्-कलि-म मिम्-बअ्दि मवाज़िअिही, यक़ूलू-न इन् ऊतीतुम् हाज़ा फ़ख़ुज़ूहु व इल्लम् तुअ्तौहू फ़ह़्ज़रू, व मंय्युरिदिल्लाहु फ़ित्-नतहू फ़-लन् तम्लि-क लहू मिनल्लाहि शैअन्, उला-इकल्लज़ी-न लम् युरिदिल्लाहु अंय्युतह़्हि-र क़ुलूबहुम्, लहुम् फ़िद्दुन्या ख़िज़्युंव्-व लहुम् फ़िल्-आख़ि-रति अज़ाबुन् अज़ीम
    ऐ रसूल! जो लोग अधर्म की तरफ़ लपक के चले जाते हैं तुम उनके कारण दुखी न हो, उनमें कुछ तो ऐसे हैं कि अपने मुँह से तो कह देते हैं कि हम ईमान लाए हालाँकि उनके दिल ईमान नहीं लाये। और कुछ यहूदी ऐसे हैं कि (जासूसी की ग़रज़ से) झूठी बातें बहुत (शौक से) सुनते हैं ताकि कुफ़्फ़ार के दूसरे गिरोह को जो (अभी तक) तुम्हारे पास नहीं आए हैं सुनाए, वे शब्दों को(तौरात के) उनके निश्चित स्थान होने के के बाद भी उनके स्थान से हटा देते हैं। (और लोगों से) कहते हैं कि (ये तौरात का हुक्म है) अगर मोहम्मद (स०) की तरफ़ से (भी) तुम्हें यही हुक्म दिया जाय तो उसे मान लेना और अगर यह हुक्म तुमको न दिया जाए तो उससे अलग ही रहना। और (ऐ रसूल) जिसे अल्लाह ही आपदा में डालना चाहे तो उसके वास्ते अल्लाह से तुम्हारा कुछ ज़ोर नहीं चल सकता। यह लोग तो वही हैं जिनके दिलों को अल्लाह ने (गुनाहों से) पाक करने का इरादा ही नहीं किया (बल्कि) उनके लिए तो दुनिया में भी रूसवाई है और परलोक में भी (उनके लिए) बड़ी यातना है।
  2. सम्माअू-न लिल्कज़िबि अक्कालू-न लिस्सुह्ति, फ़- इन् जाऊ-क फ़ह़्कुम् बैनहुम् औ अअ्-रिज़् अन्हुम्, व इन् तुअ्-रिज़् अन्हुम् फ़-लंय्यज़ुर्रू-क शैअन्, व इन् हकम्-त फ़ह़्कुम् बैनहुम् बिल्क़िस्ति, इन्नल्ला-ह युहिब्बुल मुक़्सितीन
    ये (कम्बख़्त) झूठी बातों को बड़े शौक़ से सुनने वाले और बड़े ही हरामख़ोर हैं तो (ऐ रसूल स०) अगर ये लोग तुम्हारे पास (कोई मामला लेकर) आए तो तुमको अधिकार है या उनके बीच  फै़सला कर दो या उन्हें टाल जाओ और अगर तुम उन्हें टाल गए तो (कुछ ख़्याल न करो) ये लोग तुम्हारा हरगिज़ कुछ बिगाड़ नहीं सकते और अगर उनमें फै़सला करो तो इन्साफ़ से फै़सला करो क्योंकि अल्लाह इन्साफ़ करने वालों को दोस्त रखता है।
  3. व कै-फ़ युहक्किमून-क व अिन्दहुमुत्तौरातु फ़ीहा हुक्मुल्लाहि सुम्-मय तवल्लौ-न मिम् बअ्दि ज़ालि-क, व मा उलाइ-क बिल्-मुअ्मिनीन *
    और जब ख़ुद उनके पास तौरात है और उसमें अल्लाह का हुक्म (मौजूद) है तो फिर तुम्हारे पास फैसला कराने को क्यों आते हैं और इसके बाद फिर (तुम्हारे हुक्म से) मुँह मोड़ते हैं ओर सच तो यह है कि यह लोग ईमानदार ही नहीं हैं।
  4. इन्ना अन्ज़ल्नत्तौरा-त फ़ीहा हुदंव्-व नूरून्, यह़्कुमु बिहन्न बिय्यूनल्लज़ी-न अस्लमू लिल्लज़ी-न हादू वर्रब्बानिय्यू-न वल्-अह़्बारू बिमस्तुह़्फ़िज़ू मिन् किताबिल्लाहि व कानू अलैहि शु-हदा-अ, फ़ला तख़्शवुन्ना-स वख़्शौनि व ला तश्तरू बिआयाती स- मनन् क़लीलन्, व मल्लम् यह्कुम् बिमा अन्ज़लल्लाहु फ़-उलाइ-क हुमुल्काफिरून
    निस्संदेह हम ने तौरात उतारी जिसमें (लोगों की) मार्गदर्शन और नूर (ईमान) है, उसी के मुताबिक़ अल्लाह के आज्ञाकारी बन्दे (नबी) यहूदियों को हुक्म देते रहे और अल्लाह वाले और शास्त्रवेत्ता (यहूद) भी किताबे अल्लाह से (हुक्म देते थे) क्योंकि वे अल्लाह की पुस्तक के रक्षक बनाये गये थे। और वह उसके गवाह भी थे बस (ऐ मुसलमानों) तुम लोगों से (ज़रा भी) न डरो (बल्कि) मुझ ही से डरो। और मेरी आयतों के बदले में तनिक मूल्य(दुनिया की दौलत जो दर हक़ीक़त बहुत थोड़ी क़ीमत है) न लो।और (समझ लो कि) जो शख्स अल्लाह की उतारी  (किताब) के मुताबिक़ निर्णय न दे तो ऐसे ही लोग काफिर हैं।
  5. व कतब्-ना अलैहिम् फ़ीहा अन्नफ़्-स बिन्नफ्सि, वल्ऐ- न बिल् ऐनि वल्अन्-फ़ बिल् अन्फ़ि वल्अुज़ु-न बिल-उज़ुनि वस्सिन्-न बिस्सिन्नि, वल्-जुरू-ह क़िसासुन, फ़-मन् तसद्द-क़ बिही फ़हु-व कफ्फारतुल्लहू, व मल्लम् यह्कुम् बिमा अन्ज़ लल्लाहु फ़-उलाइ-क हुमुज़्ज़ालिमून
    और हम ने तौरात में यहूदियों पर यह हुक्म फर्ज़ कर दिया था कि जान के बदले जान और आँख के बदले आँख और नाक के बदले नाक और कान के बदले कान और दाँत के बदले दाँत और जख़्म के बदले (वैसा ही) बराबर का बदला (जख़्म) है फिर जो (मज़लूम ज़ालिम की) ख़ता माफ़ कर दे तो ये उसके गुनाहों का कफ़्फ़ारा हो जाएगा और जो शख़्स अल्लाह की नाजि़ल की हुयी (किताब) के मुवाफि़क़ हुक्म न दे तो ऐसे ही लोग ज़ालिम हैं।
  6. व क़फ्फैना अला आसारिहिम् बिअीसब्नि मर य-म मुसद्दिक़ल्लिमा बै-न यदैहि मिनत्तौराति, व आतैनाहुल् इन्जी-ल फ़ीहि हुदंव्-व नूरूंव्-व मुसद्दिक़ल्-लिमा बै-न यदैहि मिनत्तौराति व हुदंव्-व मौअि-ज़तल् लिल्मुत्तक़ीन
    और हम ने उन्हीं पैग़म्बरों के पश्चात् मरियम के बेटे ईसा (अ०) को चलाया और वह इस किताब तौरात की भी तस्दीक़ करते थे जो उनके सामने (पहले से) मौजूद थी और हमने उनको इन्जील (भी) अता की जिसमें (लोगों के लिए हर तरह की) मार्गदर्शन थी और नूर (ईमान) और वह अपनी पूर्ववर्ती किताब तौरात की पुष्टि करनेवाली थी, और अल्लाह से डरने वालों की मार्गदर्शन तथा शिक्षा थी।
  7. वल्यह्कुम् अह्लुल्-इन्जीलि बिमा अन्ज़लल्लाहु फ़ीहि, व मल्लम् यह्कुम् बिमा अन्ज़लल्लाहु फ़-उलाइ-क हुमुल फ़ासिक़ून
    और इन्जील वालों (नसारा) को जो कुछ अल्लाह ने (उसमें) उतारा है उसके मुताबिक़ हुक्म करना चाहिए और जो शख़्स अल्लाह की उतारी हुयी (किताब के अनुसार) हुक्म न दे तो ऐसे ही लोग अधर्मी हैं।
  8. व अन्ज़ल्ना इलैकल्- किता-ब बिल्हक़्क़ि मुसद्दिक़ल्लिमा बै-न यदैहि मिनल्-किताबि व मुहैमिनन् अलैहि फ़ह़्कुम् बैनहुम् बिमा अन्ज़लल्लाहु व ला तत्तबिअ् अह़्वा-अहुम् अम्मा जाअ-क मिनल् हक़्क़ि, लिकुल्लिन् जअ़ल्ना मिन्कुम् शिर्-अतंव् व मिन्हाजन्, व लौ शाअल्लाहु ल-ज-अ-लकुम उम्मतंव्-वाहि-दतंव्-व लाकिल्लियब्लु-वकुम् फी मा आताकुम् फ़स्तबिक़ुल-ख़ैराति, इलल्लाहि मर्जिअुकुम् जमीअ़न् फ़युनब्बिउकुम् बिमा कुन्तुम् फ़ीहि तख़्तलिफून
    और (ऐ रसूल!) हमने तुम्हारी ओर यह किताब हक़ के साथ उतारी है, जो किताब (उसके पहले से) उसके वक़्त में मौजूद है उसकी पुष्टि करती है और उसकी संरक्षक (भी) है। जो कुछ तुम पर अल्लाह ने उतारा है उसी के मुताबिक तुम भी हुक्म दो। और जो हक़ बात अल्लाह की तरफ़ से आ चुकी है उसे छोड़कर उनकी इच्छाओं का पालन न करना। हमने तुममें से प्रत्येक के लिए एक ही घाट (शरीअत) और एक ही मार्ग निश्चित किया है। और अगर अल्लाह चाहता तो तुम सब के सब को एक ही (शरीयत की) उम्मत बना देता मगर (विभिन्न शरीयतों से) अल्लाह का मतलब यह था कि जो कुछ तुम्हें दिया है उसमें तुम्हारा इम्तेहान करे बस तुम नेकी में लपक कर आगे बढ़ जाओ और (यक़ीन जानो कि) तुम सब को अल्लाह ही की तरफ़ लौट कर जाना है।
  9. व अनिह़्कुम् बैनहुम् बिमा अन्जलल्लाहु व ला तत्तबिअ् अह़्वा-अहुम् वह़्ज़रहुम् अंय्यफ्तिनू-क अम्बअ्ज़ि मा अन्ज़लल्लाहु इलै-क, फ़-इन् तवल्लौ फ़अ लम् अन्नमा युरीदुल्लाहु अंय्युसीबहुम् बि-बअ्ज़ि ज़ुनूबिहिम्, व इन्-न कसीरम् मिनन्नासि लफ़ासिक़ून
    तब (उस वक़्त) जिन बातों में तुम मतभेद करते वह तुम्हें बता देगा और (ऐ रसूल!) हम फिर कहते हैं कि जो अल्लाह ने उतारा है, तुम उसके मुताबिक़ फै़सला करो और उनकी इच्छाओं का पालन न करो और उनसे बचते रहो (ऐसा न हो) कि किसी हुक्म से जो अल्लाह ने तुम पर उतारा है तुमको ये लोग भटका दें फिर अगर ये लोग तुम्हारे हुक्म से मुँह मोड़ें तो समझ लो कि (गोया) अल्लाह ही की मरज़ी है कि उनके कुछ गुनाहों की वजह से उन्हें मुसीबत में फँसा दे और इसमें तो शक ही नहीं कि बहुत-से लोग उल्लंघनकारी हैं।
  10. अ-फ़हुक्मल् जाहिलिय्यति यब्ग़ू-न, व मन् अह्सनु मिनल्लाहि हुक्मल लिक़ौमिंय्यूक़िनून*
    अब क्या वे अज्ञान का फ़ैसला चाहते हैं? हालाँकि यक़ीन करने वाले लोगों के वास्ते हुक्मे अल्लाह से बेहतर कौन होगा।
  11. या अय्युहल्लज़ी-न आमनू ला तत्तख़िज़ुल् यहू-द वन्नसारा औलिया-अ • बअ्ज़ुहुम् औलिया-उ बअ्ज़िन्, व मंय्य-तवल्लहुम् मिन्कुम् फ-इन्नहू मिन्हुम्, इन्नल्ला-ह ला यह़्दिल् क़ौमज़-ज़ालिमीन
    ऐ ईमान लानेवालो! यहूदियों और ईसाइयों को अपना मित्र (राज़दार) न बनाओ (क्योंकि) ये लोग (तुम्हारे विरुद्ध हैं मगर) परस्पर एक दूसरे के दोस्त हैं और (याद रहे कि) तुममें से जिसने उनको अपना मित्र बनाया बस फिर वह भी उन्हीं लोगों में से हो गया बेशक अल्लाह ज़ालिम लोगों को सीधी राह पर नहीं लाता।
  12. फ़-तरल्लज़ी-न फी क़ुलूबिहिम् मरजुंय्युसारिअू-न फ़ीहिम् यक़ूलू-न नख़्शा अन् तुसीबना दा-इ-रतुन्, फ़ असल्लाहु अंय्यअ्ति-य बिल्फ़त्हि औ अम्रिम् मिन् अिन्दिही फ़युस्बिहू अला मा असर्रु फ़ी अन्फुसिहिम् नादिमीन
    तो (ऐ रसूल!) जिन लोगों के दिलों में रोग है, तुम उन्हें देखोगे कि उनमें दौड़ दौड़ के मिले जाते हैं। वे कहते हैं, “हमें भय है कि कहीं हम किसी संकट में न ग्रस्त हो जाएँ।” तो अनक़रीब ही अल्लाह (मुसलमानों की) फ़तेह या कोई और बात अपनी तरफ़ से ज़ाहिर कर देगा तब यह लोग इस बदगुमानी पर जो अपने जी में छुपाते थे शर्माएंगे।
  13. व यक़ू लुल्लज़ी-न आमनू अ-हाउलाइल्लज़ी-न अक़्समू बिल्लाहि जह्-द ऐमानिहिम्, इन्नहुम् ल-म-अकुम्, हबितत् अअ्मालुहुम् फ़अस्बहू ख़ासिरीन
    तथा (उस समय) ईमान वाले कहेंगेः क्या यही वे हैं, जो अल्लाह की बड़ी गंभीर शपथें लेकर कहा करते थे कि हम ज़रूर तुम्हारे साथ हैं उनका सारा किया धरा अकारत हुआ और सख़्त घाटे में आ गए।
  14. या अय्यु हल्लज़ी-न आमनू मंय्यर्तद्-द मिन्कुम् अन् दीनिही फ़सौ-फ़ यअ्तिल्लाहु बिक़ौमिंय्-युहिब्बुहुम् व युहिब्बूनहू, अज़िल्लतिन् अलल्-मुअ्मिनी-न अअिज़्ज़तिन् अलल्काफ़िरी-न, युजाहिदू-न फ़ी सबीलिल्लाहि व ला यख़ाफून लौ-म त ला-इमिन्, ज़ालि-क फज़्लुल्लाहि युअ्तीहि मंय्यशा-उ, वल्लाहु वासिअुन् अलीम
    ऐ ईमान लानेवालो! तुममें से जो कोई अपने धर्म से फिरेगा तो (कुछ परवाह नहीं फिर जाए) जल्द ही अल्लाह ऐसे लोगों को ज़ाहिर कर देगा जिन्हें अल्लाह दोस्त रखता होगा। और वह उसको दोस्त रखते होंगे ईमानदारों के साथ नर्म और अविश्वासियों के साथ सख़्त अल्लाह की राह में जी-तोड़ कोशिश करेंगे और किसी भर्त्सना करने वाले की भर्त्सना की कुछ परवाह न करेंगे। ये अल्लाह का उदार अनुग्रह है वह जिसे चाहता है, देता है और अल्लाह तो बड़ी गुन्जाइश वाला सर्वज्ञ है।
  15. इन्नमा वलिय्युकुमुल्लाहु व रसूलुहू वल्लज़ी-न आमनुल्लज़ी-न युक़ीमूनस्सला-त व युअ्तूनज़्ज़का-त व हुम् राकिअून
    (ऐ ईमान लानेवालो!) तुम्हारे मित्र तो बस यही हैं अल्लाह और उसका रसूल और वह ईमानवाले जो पाबन्दी से नमाज़ अदा करते हैं, ज़कात देते हैं और अल्लाह के आगे झुकने वाले हैं।
  16. व मंय्य-तवल्लल्ला-ह व रसूलहू वल्लज़ी-न आमनू फ़-इन्-न हिज़्बल्लाहि हुमुल्-ग़ालिबून *
    और जिस शख़्स ने अल्लाह और रसूल और (उन्हीं) ईमानदारों को अपना सहायक बनाया तो (अल्लाह के दल में आ गया और) इसमें तो शक नहीं कि अल्लाह ही का गिरोह प्रभावी होकर रहेगा।
  17. या अय्युहल्लज़ी-न आमनू ला तत्तख़िज़ुल्लज़ीनत्त ख़ज़ू दीनकुम् हुज़ुवंव्-व लअिबम् मिनल्लज़ी-न ऊतुल्-किता-ब मिन् क़ब्लिकुम् वल्कुफ्फ़ा-र औलिया-अ, वत्तक़ुल्ला-ह इन् कुन्तुम् मुअ्मिनीन
    ऐ ईमान लानेवालो! जिन लोगों (यहूद व नसारा) को तुम से पहले किताबे (अल्लाह) (तौरात, इन्जील) दी जा चुकी है उनमें से जिन लोगों ने तुम्हारे दीन को हँसी खेल बना रखा है। उनको और इनकार करने वालों को अपना मित्र न बनाओ। और अगर तुम सच्चे ईमानदार हो तो अल्लाह ही से डरते रहो।
  18. व इज़ा नादैतुम् इलस्सलातित्-त ख़ज़ूहा हुज़ुवंव्-व लअिबन्, ज़ालि-क बि-अन्नहुम् क़ौमुल्ला यअ्क़िलून
    और जब तुम (अज़ान देकर) नमाज़ के वास्ते (लोगों को) बुलाते हो ये लोग नमाज़ को हॅसी खेल बनाते हैं ये इस वजह से कि वे समझ नहीं रखते।
  19. क़ुल् या अह़्लल्-किताबि हल् तन्क़िमू-न मिन्ना इल्ला अन् आमन्ना बिल्लाहि व मा उन्ज़ि-ल इलैना व मा उन्ज़ि-ल मिन् क़ब्लु, व अन्-न अक्स रकुम् फ़ासिक़ून
    (ऐ रसूल! एहले किताब से कहो कि) आख़िर तुम हमसे इसके सिवा और क्या दोष लगा सकते हो कि हम अल्लाह पर और जो (किताब) हमारे पास भेजी गयी है और जो हमसे पहले भेजी गयी ईमान लाए हैं और ये तुममें के अक्सर अवज्ञाकारी हैं।
  20. क़ुल हल् उनब्बिउकुम् बि-शर्रिम् मिन ज़ालि-क मसू- बतन् जिन्दल्लाहि, मल्ल-अ नहुल्लाहु व ग़ज़ि-ब अ़लैहि व ज-अ-ल मिन्हुमुल क़ि-र-द-त वल्ख़नाज़ी-र व अ-ब-दत्ताग़ू-त, उलाइ-क शर्रुम् मकानंव्-व अज़ल्लु अन् सवा-इस्सबील
    (ऐ रसूल!) तुम कह दो कि मैं तुम्हें अल्लाह के नज़दीक सज़ा में इससे कहीं बदतर बुरा बता दॅू (अच्छा लो सुनो) जिसपर अल्लाह ने लानत की हो और उस पर प्रकोप हुआ हो और उनमें से किसी को बन्दर और (किसी को) सूअर बना दिया हो और (अल्लाह को छोड़कर) शैतान की पूजने लगे बस ये लोग दरजे में कहीं बुरा और राहे रास्त से भटक के सबसे ज़्यादा दूर जा पहँचे हैं।

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