06 सूरह अल-अनआम हिंदी में पेज 4

सूरह अल-अनआम हिंदी में | Surat Al-Araf in Hindi

  1. फ़-लम्मा जन्-न अलैहिल्लैलु रआ कौ-कबन्, क़ा-ल हाज़ा रब्बी, फ़-लम्मा अ-फ़-ल क़ा-ल ला उहिब्बुल् आफ़िलीन
    तो जब उन पर रात की तारीक़ी (अंधेरा) छा गयी तो एक सितारे को देखा तो दफअतन बोल उठे (हाए क्या) यही मेरा अल्लाह है फिर जब वह डूब गया तो कहने लगे ग़ुरूब (डूब) हो जाने वाली चीज़ को तो मै (अल्लाह बनाना) पसन्द नहीं करता।
  2. फ़-लम्मा रअल् क़-म-र बाज़िग़न् क़ा-ल हाज़ा रब्बी, फ़-लम्मा अ-फ़-ल क़ा-ल ल-इल्लम् यह़्दिनी रब्बी ल-अकूनन्-न मिनल् क़ौमिज़्ज़ाल्लीन
    फिर जब चाँद को जगमगाता हुआ देखा तो बोल उठे (क्या) यही मेरा अल्लाह है फिर जब वह भी ग़ुरुब हो गया तो कहने लगे कि अगर (कहीं) मेरा (असली) परवरदिगार मेरी हिदायत न करता तो मैं ज़रुर गुमराह लोगों में हो जाता।
  3. फ़-लम्मा रअश्शम् स बाज़ि-ग़तन् क़ा-ल हाज़ा रब्बी हाज़ा अक्बरू, फ़-लम्मा अ-फ़लत् क़ा-ल याक़ौमि इन्नी बरीउम् मिम्मा तुश्रिकून
    फिर जब आफताब को दमकता हुआ देखा तो कहने लगे (क्या) यही मेरा अल्लाह है ये तो सबसे बड़ा (भी) है फिर जब ये भी ग़ुरुब हो गया तो कहने लगे ऐ मेरी क़ौम जिन जिन चीज़ों को तुम लोग (अल्लाह का) शरीक बनाते हो उनसे मैं बेज़ार हूँ।
  4. इन्नी वज्जह्तु वज्हि-य लिल्लज़ी फ़-तरस्समावाति वल्अर्-ज़ हनीफंव् व मा अ-ना मिनल्-मुश्रिकीन
    (ये हरगिज़ नहीं हो सकते) मैने तो बातिल से कतराकर उसकी तरफ से मुँह कर लिया है जिसने बहुतेरे आसमान और ज़मीन पैदा किए और मैं मुशरेकीन से नहीं हूँ।
  5. व हाज्जहू क़ौमुहू, क़ा-ल अतुहाज्जून्नी फ़िल्लाहि व क़द् हदानि, व ला अख़ाफु मा तुश्रिकू-न बिही इल्ला अंय्यशा-अ रब्बी शैअन्, वसि-अ रब्बी कुल-ल शैइन् अिल्मन्, अ-फ़ ला त-तज़क्करून
    और उनकी क़ौम के लोग उनसे हुज्जत करने लगे तो इब्राहीम ने कहा था क्या तुम मुझसे अल्लाह के बारे में हुज्जत करते हो हालाँकि वह यक़ीनी मेरी हिदायत कर चुका और तुम मे जिन बुतों को उसका शरीक मानते हो मै उनसे डरता (वरता) नहीं (वह मेरा कुछ नहीं कर सकते) मगर हाॅ मेरा अल्लाह खुद (करना) चाहे तो अलबत्ता कर सकता है मेरा परवरदिगार तो बाएतबार इल्म के सब पर हावी है तो क्या उस पर भी तुम नसीहत नहीं मानते।
  6. व कै-फ़ अख़ाफु मा अश्रक्तुम् व ला तख़ाफू-न अन्नकुम् अश्रक़्तुम् बिल्लाहि मा लम् युनज़्ज़िल् बिही अलैकुम् सुल्तानन्, फ़ अय्युल फ़रीक़ैनि अहक़्क़ु बिल्-अम्नि, इन् कुन्तुम् तअ्लमून •
    और जिन्हें तुम अल्लाह का शरीक बताते हो मै उन से क्यों डरुँ जब तुम इस बात से नहीं डरते कि तुमने अल्लाह का शरीक ऐसी चीज़ों को बनाया है जिनकी अल्लाह ने कोई सनद तुम पर नहीं नाजि़ल की फिर अगर तुम जानते हो तो (भला बताओ तो सही कि) हम दोनों फरीक़ (गिरोह) में अमन क़ायम रखने का ज़्यादा हक़दार कौन है।
  7. अल्लज़ी-न आमनू व लम् यल्बिसू ईमानहुम् बिज़ुल्मिन् उलाइ-क लहुमुल्-अम्नु व हुम् मुह्तदून *
    जिन लोगों ने ईमान क़ुबूल किया और अपने ईमान को ज़ुल्म (शिर्क) से आलूदा नहीं किया उन्हीं लोगों के लिए अमन (व इतमिनान) है और यही लोग हिदायत याफ़ता हैं।
  8. व तिल्-क हुज्जतुना आतैनाहा इब्राही-म अला क़ौमिही, नरफ़अु द-रजातिम् मन्-नशा उ, इन्-न रब्ब-क हकीमुन् अलीम
    और ये हमारी (समझाई बुझाई) दलीलें हैं जो हमने इब्राहीम को अपनी क़ौम पर (ग़ालिब आने के लिए) अता की थी हम जिसके मरतबे चाहते हैं बुलन्द करते हैं बेशक तुम्हारा परवरदिगार हिक़मत वाला बाख़बर है।
  9. व वहब्-ना लहू इस्हा-क़ व यअ्क़ू-ब, कुल्लन् हदैना, व नूहन् हदैना मिन् क़ब्लु व मिन् ज़ुर्रिय्यतिही दावू-द व सुलैमा-न व अय्यू-ब व यूसु-फ़ व मूसा व हारू-न, व कज़ालि-क नजज़िल् मुह़्सिनीन,
    और हमने इब्राहीम को इसहाक़ वा याक़ूब (सा बेटा पोता) अता किया हमने सबकी हिदायत की और उनसे पहले नूह को (भी) हम ही ने हिदायत की और उन्हीं (इब्राहीम) को औलाद से दाऊद व सुलेमान व अय्यूब व यूसुफ व मूसा व हारुन (सब की हमने हिदायत की) और नेकों कारों को हम ऐसा ही इल्म अता फरमाते हैं।
  10. वज़-करिय्या व यह्-या व ईसा व इल्या-स, कुल्लुम् मिनस्सालिहीन
    और ज़करिया व यहया व ईसा व इलियास (सब की हिदायत की (और ये) सब (अल्लाह के) नेक बन्दों से हैं।
  11. व इस्माई-ल वल्य-स-अ व यूनु-स व लूतन्, व कुल्लन् फज़्ज़ल्ना अलल् आलमीन
    और इस्माईल व इलियास व युनूस व लूत (की भी हिदायत की) और सब को सारे जहाँन पर फज़ीलत अता की।
  12. व मिन् आबाइहिम् व ज़ुर्रिय्यातिहिम् व इख़्वानिहिम्, वज्तबैनाहुम् व हदैनाहुम् इला सिरातिम् मुस्तक़ीम
    और (सिर्फ उन्हीं को नहीं बल्कि) उनके बाप दादाओं और उनकी औलाद और उनके भाई बन्दों में से (बहुतेरों को) और उनके मुन्तख़ब किया और उन्हें सीधी राह की हिदायत की।
  13. ज़ालि-क हुदल्लाहि यह़्दी बिही मंय्यशा-उ मिन् अिबादिही, व लौ अश्रकू ल-हबि-त अन्हुम् मा कानू यअ्मलून
    (देखो) ये अल्लाह की हिदायत है अपने बन्दों से जिसको चाहे उसी की वजह से राह पर लाए और अगर उन लोगों ने शिर्क किया होता तो उनका किया (धरा) सब अकारत हो जाता।
  14. उला-इ कल्लज़ी-न आतैनाहुमुल-किता-ब वल्हुक्-म वन्नुबुव्व-त, फ़-इंय्यक्फुर् बिहा हा-उला-इ फ़-क़द् वक्कल्ना बिहा क़ौमल्लैसू बिहा बिकाफ़िरीन
    (पैग़म्बर) वह लोग थे जिनको हमने (आसमानी) किताब और हुकूमत और नुबूवत अता फरमाई पस अगर ये लोग उसे भी न माने तो (कुछ परवाह नहीं) हमने तो उस पर ऐसे लोगों को मुक़र्रर कर दिया हे जो (उनकी तरह) इन्कार करने वाले नहीं।
  15. उला-इकल्लज़ी-न हदल्लाहु फबिहुदा हुमुक़्तदिह, क़ुल ला अस्अलुकुम् अलैहि अज्रन्, इन् हु-व इल्ला ज़िक्रा लिल आलमीन *
    (ये अगले पैग़म्बर) वह लोग थे जिनकी अल्लाह ने हिदायत की पस तुम भी उनकी हिदायत की पैरवी करो (ऐ रसूल! उन से) कहो कि मै तुम से इस (रिसालत) की मज़दूरी कुछ नहीं चाहता सारे जहाँन के लिए सिर्फ नसीहत है।
  16. व मा क़-दरूल्ला-ह हक़्-क़  क़द्रिही इज़् क़ालू मा अन्ज़लल्लाहु अला ब-शरिम् मिन् शैइन्, क़ुल् मन् अन्ज़लल्-किताबल्लज़ी जा-अ बिही मूसा नूरंव्-व हुदल्-लिन्नासि तज् अलूनहू क़राती-स तुब्दूनहा व तुख़्फू-न कसीरन्, व अुल्लिम्तुम् मा लम् तअ्लमू अन्तुम् वला आबाउकुम्, क़ुलिल्लाहु, सुम्-म ज़रहुम् फी ख़ौज़िहिम् यल्अबून
    और बस और उन लोगों (यहूद) ने अल्लाह की जैसी क़दर करनी चाहिए न की इसलिए कि उन लोगों ने (बेहूदे पन से) ये कह दिया कि अल्लाह ने किसी बशर (इनसान) पर कुछ नाजि़ल नहीं किया (ऐ रसूल!) तुम पूछो तो कि फिर वह किताब जिसे मूसा लेकर आए थे किसने नाज़िल की जो लोगों के लिए रौषनी और (सर से पैर तक) हिदायत (थी जिसे तुम लोगों ने अलग-अलग करके कागज़ के पन्ने बना डाला और इसमें को कुछ हिस्सा (जो तुम्हारे मतलब का है वह) तो ज़ाहिर करते हो और बहुतेरे को (जो खिलाफ मदआ है) छिपाते हो हालाँकि उसी किताब के ज़रिए से तुम्हें वो बातें सिखायी गयी जिन्हें न तुम जानते थे और न तुम्हारे बाप दादा (ऐ रसूल! वह तो जवाब देगें नहीं) तुम ही कह दो कि अल्लाह ने (नाज़िल फरमाई)।
  17. व हाज़ा किताबुन् अन्ज़ल्नाहु मुबारकुम् -मुसद्दिक़ुल्लज़ी बै-न यदैहि व लितुन्ज़ि-र उम्मल्क़ुरा व मन् हौलहा, वल्लज़ी-न युअ्मिनू-न बिल्आखि-रति युअ्मिनू-न बिही व हुम् अला सलातिहिम् युहाफिज़ून
    उसके बाद उन्हें छोड़ के (पडे़ झक मारा करें (और) अपनी तू-तू मै-मै में खेलते फिरें और (क़ुरान) भी वह किताब है जिसे हमने बाबरकत नाज़िल किया और उस किताब की तसदीक़ करती है जो उसके सामने (पहले से) मौजूद है और (इस वास्ते नाज़िल किया है) ताकि तुम उसके ज़रिए से एहले मक्का और उसके एतराफ़ के रहने वालों को (ख़ौफ अल्लाह से) डराओ और जो लोग आख़िरत पर इमान रखते हैं वह तो उस पर (बे ताम्मुल) ईमान लाते है और वही अपनी अपनी नमाज़ में भी पाबन्दी करते हैं।
  18. व मन् अज़्लमु मिम्-मनिफ्तरा अलल्लाहि कज़िबन औ क़ा-ल ऊहि-य इलय्-य व लम् यू-ह इलैहि शैउंव्-व मन् क़ा-ल स-उन्ज़िलु मिस्-ल मा अन्ज़लल्लाहु, व लौ तरा इज़िज़्ज़ालिमू-न फी ग़-मरातिल मौति वल्मलाइ- कतु बासितू ऐदीहिम्, अख़्रिजू अन्फु सकुम्, अल्यौ-म तुज्ज़ौ-न अज़ाबल्हूनि बिमा कुन्तुम् तक़ूलू-न अलल्लाहि ग़ैरल्हक़्क़ि व कुन्तुम् अ़न् आयातिही तस्तक्बिरून
    और उससे बढ़ कर ज़ालिम कौन होगा जो अल्लाह पर झूठ (मूठ) इफ़तेरा करके कहे कि हमारे पास वही आयी है हालाँकि उसके पास वही वगै़रह कुछ भी नही आयी या वह शख्स़ दावा करे कि जैसा क़ुरान अल्लाह ने नाज़िल किया है वैसा मै भी (अभी) अनक़रीब (जल्दी) नाजि़ल किए देता हूँ और (ऐ रसूल!) काश तुम देखते कि ये ज़ालिम मौत की सख़्तियों में पड़ें हैं और फ़रिश्ते उनकी तरफ (जान निकाल लेने के वास्ते) हाथ लपका रहे हैं और कहते जाते हैं कि अपनी जानें निकालो आज ही तो तुम को रुसवाई के अज़ाब की सज़ा दी जाएगी क्योंकि तुम अल्लाह पर नाहक़ (नाहक़) झूठ छोड़ा करते थे और उसकी आयतों को (सुनकर उन) से अकड़ा करते थे।
  19. व ल-क़द् जिअ्तुमूना फुरादा कमा ख़लक़्नाकुम् अव्व-ल मर्रतिंव्-व तरक्तुम् मा ख़व्वल्नाकुम् वरा-अ-ज़ुहूरिकुम्, व मा नरा-म-अकुम् शु-फ़आ अकुमुल्लज़ी न ज़अ़म्तुम् अन्नहुम् फ़ीकुम् शु-रका-उ, लक़त्त-क़त्त-अ बैनकुम् व ज़ल्-ल अन्कुम् मा कुन्तुम् तज़् अमून *
    और आख़िर तुम हमारे पास इसी तरह तन्हा आए (ना) जिस तरह हमने तुम को पहली बार पैदा किया था और जो (माल व औलाद) हमने तुमको दिया था वह सब अपने पस्त पुश्त (पीछे) छोड़ आए और तुम्हारे साथ तुम्हारे उन सिफारिश करने वालों को भी नहीं देखते जिन को तुम ख़्याल करते थे कि वह तुम्हारी (परवरिश वगै़रह) मै (हमारे) साझेदार है अब तो तुम्हारे बाहरी ताल्लुक़ात मनक़तआ (ख़त्म) हो गए और जो कुछ ख़्याल करते थे वह सब तुम से ग़ायब हो गए।
  20. इन्नल्लाह फ़ालिक़ुल-हब्बि वन्नवा, युख़्रिजुल हय्-य मिनल्मय्यिति व मुख़्रिजुल्मय्यिति मिनल्-हय्यि, ज़ालिकुमुल्लाहु फ़-अन्ना तुअ्फ़कून
    अल्लाह ही तो गुठली और दाने को चीर (करके दरख़्त ऊगाता) है वही मुर्दे में से ज़िन्दे को निकालता है और वही ज़िन्दा से मुर्दे को निकालने वाला है (लोगों) वही तुम्हारा अल्लाह है फिर तुम किधर बहके जा रहे हो।
  21. फ़ालिक़ुल-इस्बाहि, व ज-अलल्लै-ल स-कनंव्-वश्शम् स वल्क़-म-र हुस्बानन्, ज़ालि-क तक़्दीरूल अज़ीज़िल अलीम
    उसी के लिए सुबह की पौ फटी और उसी ने आराम के लिए रात और हिसाब के लिए सूरज और चाँद बनाए ये ख़ुदाए ग़ालिब व दाना के मुक़र्रर किए हुए किरदा (उसूल) हैं।
  22. व हुवल्लज़ी ज-अ-ल लकुमुन्नुजू-म लितह्तदू बिहा फी ज़ुलुमातिल्बर्रि वल्बह़रि, क़द् फस्सलनल-आयाति लिकौमिंय्-यअ्लमून
    और वह वही (अल्लाह) है जिसने तुम्हारे (नफे के) वास्ते सितारे पैदा किए ताकि तुम जॅगलों और दरियाओं की तारीकियों(अंधेरों) में उनसे राह मालूम करो जो लोग वाक़िफ़कार हैं उनके लिए हमने (अपनी क़़ुदरत की) निशानियाँ ख़ूब तफ़सील से बयान कर दी हैं।
  23. व हुवल्लज़ी अन्श-अकुम् मिन् नफ़्सिंवाहि-दतिन् फमुस्त क़र्रूंव्-व मुस्तौदअुन्, क़द् फस्सलनल -आयाति लिक़ौमिंय्-यफ्क़हून
    और वह वही अल्लाह है जिसने तुम लोगों को एक शख्स़ से पैदा किया फिर (हर शख्स़ के) क़रार की जगह (बाप की पुश्त (पीठ)) और सौंपने की जगह (माँ का पेट) मुक़र्रर है हमने समझदार लोगों के वास्ते (अपनी कु़दरत की) निशानियाँ ख़ूब तफसील से बयान कर दी हैं।
  24. व हुवल्लज़ी अन्ज़-ल मिनस्समा-इ माअन्, फ़-अख़्रज्ना बिही नबा-त कुल्लि शैइन फ़-अख्रज्ना मिन्हु ख़ज़िरन् नुख़्रिजु मिन्हु हब्बम् मु-तराकिबन्, व मिनन्नख्लि मिन् तल्अिहा क़िन्वानुन् दानियतुंव्-व जन्नातिम् मिन् अअ्नाबिंव्-वज़्ज़ैतू-न वर्रूम्मा-न मुश्तबिहंव्-व ग़ै-र मु-तशाबिहिन्, उन्ज़ुरू इला स-मरिही इज़ा अस्म-र व यन्अिही, इन-न फ़ी ज़ालिकुम् लआयातिल्-लिकौमिंय्युअ्मिनून
    और वह वही (क़ादिर तवाना है) जिसने आसमान से पानी बरसाया फिर हम ही ने उसके ज़रिए से हर चीज़ के कोए निकालें फिर हम ही ने उससे हरी भरी टहनियाँ निकालीं कि उससे हम बाहम गुत्थे दाने निकालते हैं और छुहारे के बोर (मुन्जिर) से लटके हुए गुच्छे पैदा किए और अंगूर और ज़ैतून और अनार के बाग़ात जो बाहम सूरत में एक दूसरे से मिलते जुलते और (मजे़ में) जुदा जुदा जब ये पिघले और पक्के तो उसके फल की तरफ ग़ौर तो करो बेशक अमन में ईमानदार लोगों के लिए बहुत सी (अल्लाह की) निशानियाँ हैं।
  25. व ज-अलू लिल्लाहि शु-रकाअल्-जिन्-न व ख़-ल क़हुम् व ख़-रक़ू लहू बनी-न व बनातिम् बिग़ैरि अिल्मिन्, सुब्हानहू व तआ़ला अम्मा यसिफून *
    और उन (कम्बख़्तों) ने जिन्नात को अल्लाह का शरीक बनाया हालाँकि जिन्नात को भी अल्लाह ही ने पैदा किया उस पर भी उन लोगों ने बे समझे बूझे अल्लाह के लिए बेटे बेटियाँ गढ़ डालीं जो बातों में लोग (उसकी शान में) बयान करते हैं उससे वह पाक व पाकीज़ा और बरतर है।

Surah Al-Anam Video

Share this:

Leave a Comment

error: Content is protected !!