06 सूरह अल-अनआम हिंदी में पेज 5

सूरह अल-अनआम हिंदी में | Surat Al-Araf in Hindi

  1. बदी अुस्समावाति वल्अर्ज़ि, अन्ना यकूनु लहू व-लदुंव् व लम् तकुल्लहू साहि-बतुन्, व ख़-ल-क़ कुल-ल शैइन् व हु-व बिकुल्लि शैइन् अ़लीम
    सारे आसमान और ज़मीन का बनाने वाला है उसके कोई लड़का क्योंकर हो सकता है जब उसकी कोई बीबी ही नहीं है और उसी ने हर चीज़ को पैदा किया और वही हर चीज़ से खूब वाकिफ़ है।
  2. ज़ालिकुमुल्लाहु रब्बुकुम्, ला इला-ह इल्ला हु-व, ख़ालिक़ु कुल्लि शैइन् फ़अ्बुदूहु, व हु-व अला कुल्लि शैइंव्-वकील
    (लोगों) वही अल्लाह तुम्हारा परवरदिगार है उसके सिवा कोई माबूद नहीं वही हर चीज़ का पैदा करने वाला है तो उसी की इबादत करो और वही हर चीज़ का निगेह बान है।
  3. ला तुदरिकुहुल्-अब्सारू, व हु-व युदरिकुल्-अब्सा-र, व हुवल् लतीफुल्-ख़बीर
    उसको आँखें देख नहीं सकती (न दुनिया में न आख़िरत में) और वह (लोगों की) नज़रों को खूब देखता है और वह बड़ा बारीक बीन (देखने वाला) ख़बरदार है।
  4. क़द् जा-अकुम बसा-इरू मिर्रब्बिकुम्, फ-मन् अब्स-र फ़लिनफ्सिही, व मन् अमि-य फ़ अलैहा, व मा अ-ना अलैकुम् बिहफ़ीज़
    तुम्हारे पास तो सुझाने वाली चीज़े आ ही चुकीं फिर जो देखे (समझे) तो अपने दम के लिए और जो अन्धा बने तो (उसका नुकसान भी) ख़ुद उस पर है और (ऐ रसूल! उन से कह दो) कि मै तुम लोगों का कुछ निगेहबान तो हूँ नहीं।
  5. व कज़ालि-क नुसर्रिफुल्-आयाति व लियक़ूलू दरस्-त व लिनुबय्यि-नहू लिक़ौमिंय्-यअ्लमून
    और हम (अपनी) आयतें यू उलट फेरकर बयान करते है (ताकि हुज्जत तमाम हो) और ताकि वह लोग ज़बानी भी इक़रार कर लें कि तुमने (क़ुरान उनके सामने) पढ़ दिया और ताकि जो लोग जानते है उनके लिए (क़ुरान का) खूब वाजेए करके बयान कर दें।
  6. इत्तबिअ् मा ऊहि-य इलै-क मिर्रब्बि-क, ला इला-ह इल्ला हु-व, व अअ्-रिज़ अ़निल मुश्रिकीन
    जो कुछ तुम्हारे पास तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से ‘वही’ की जाए बस उसी पर चलो अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं और मुश्रिकों से किनारा कश रहो।
  7. व लौ शाअल्लाहु मा अश्रकू, व मा जअ़ल्ना-क अलैहिम् हफ़ीज़न, व मा अन्-त अलैहिम् बि-वकील
    और अगर अल्लाह चाहता तो ये लोग शिर्क ही न करते और हमने तुमको उन लोगों का निगेहबान तो बनाया नहीं है और न तुम उनके जि़म्मेदार हो।
  8. व ला तसुब्बुल्लज़ी-न यद्अू-न मिन् दूनिल्लाहि फ़- यसुब्बुल्ला-ह अद् वम् बिग़ैरि अिल्मिन्, कज़ालि-क ज़य्यन्ना लिकुल्लि उम्मतिन् अ-म-लहुम्, सुम्-म इला रब्बिहिम् मर्जिअुहुम् फ़-युनब्बिउहुम् बिमा कानू यअ्मलून
    और ये (मुशरेकीन) जिन की अल्लाह के सिवा (अल्लाह समझ कर) इबादत करते हैं उन्हें तुम बुरा न कहा करो वरना ये लोग भी अल्लाह को बिना समझें अदावत से बुरा (भला) कह बैठें (और लोग उनकी ख़्वाहिश नफसानी के) इस तरह पाबन्द हुए कि गोया हमने ख़ुद हर गिरोह के आमाल उनको सॅवाकर अच्छे कर दिखाए फिर उन्हें तो (आखिरकार) अपने परवरदिगार की तरफ लौट कर जाना है तब जो कुछ दुनिया में कर रहे थे अल्लाह उन्हें बता देगा।
  9. व अक़्समू बिल्लाहि जह्-द ऐमानिहिम् ल-इन् जाअत्हुम् आयतुल् लयुअ्मिनुन्-न बिहा, क़ुल इन्नमल्-आयातु अिन्दल्लाहि व मा युश्अिरूकुम्, अन्नहा इज़ा जाअत् ला युअ्मिनून
    और उन लोगों ने अल्लाह की सख़्त सख़्त क़समें खायीं कि अगर उनके पास कोई मोजिज़ा आए तो वह ज़रूर उस पर ईमान लाएँगे (ऐ रसूल!) तुम कहो कि मौजिज़े तो बस अल्लाह ही के पास हैं और तुम्हें क्या मालूम ये यक़ीनी बात है कि जब मोजिज़ा भी आएगा तो भी ये ईमान न लाएँगे।
  10. व नुक़ल्लिबु अफ्इ-द तहुम् व अब्सारहुम् कमा लम् युअ्मिनू बिही अव्व-ल मर्रतिंव्-व न-ज़रूहुम् फ़ी तुग़्यानिहिम् यअ्महून *
    और हम उनके दिल और उनकी आँखें उलट पलट कर देंगे जिस तरह ये लोग कु़रान पर पहली मरतबा ईमान न लाए और हम उन्हें उनकी सरकशी की हालत में छोड़ देंगे कि परेशान रहें। (पारा 7 समाप्त)

पारा 8 शुरू

  1. व लौ अन्नना नज़्ज़ल्ना इलैहिमुल-मलाइ-क-त व कल्ल-महुमुल्-मौता व हशरना अलैहिम् कुल्-ल शैइन् कुबुलम् मा कानू लियुअ्मिनू इल्ला अंय्यशा-अल्लाहु व लाकिन्-न अक्स-रहुम् यज्हलून
    और (ऐ रसूल! सच तो ये है कि) हम अगर उनके पास फ़रिश्ते भी नाज़िल करते और उनसे मुर्दे भी बातें करने लगते और तमाम (छुपी) चीज़ें (जैसे जन्नत व नार वग़ैरह) अगर वह गिरोह उनके सामने ला खड़े करते तो भी ये ईमान लाने वाले न थे मगर जब अल्लाह चाहे, लेकिन उनमें के अक्सर नहीं जानते।
  2. व कज़ालि-क जअ़ल्ना लिकुल्लि नबिय्यिन् अदुव्वन् शयातीनल-इन्सि वलजिन्नि यूही बअ्ज़ुहुम् इला बअ्ज़िन् जुख़्रूफ़ल्क़ौलि ग़ुरूरन्, व लौ शा-अ रब्बु-क मा फ़-अलूहु फ़-ज़र्हुम् व मा यफ़्तरून
    कि और (ऐ रसूल!) जिस तरह ये कुफ़्फ़ार तुम्हारे दुश्मन हैं उसी तरह गोया हमने खुद आज़माइश के लिए शरीर आदमियों और जिनों को हर नबी का दुश्मन बनाया, वह लोग एक दूसरे को फरेब देने की ग़रज़ से चिकनी चुपड़ी बातों की सरग़ोशी करते हैं और अगर तुम्हारा परवरदिगार चाहता तो ये लोग ऐसी हरकत करने न पाते।
  3. व लितस्गा इलैहि अफ्इ दतुल्लजी-न ला युअ्मिनू-न बिल्-आख़िरति व लियरज़ौहु व लियक़्तरिफू मा हुम् मुक़्तरिफून
     (वे ऐसा इस लिए करते हैं) ताकि उसकी ओर, उन लोगों के दिल झुक जायें, जो प्रलोक पर विश्वास नहीं रखते और ताकि वे उससे प्रसन्न हो जाएँ और ताकि वे भी वही कुकर्म करने लगें, जो कुकर्म वे लोग कर रहे हैं।
  4. अ-फग़ैरल्लाहि अब्तग़ी ह-कमंव्-व हुवल्लज़ी अन्ज़-ल इलैकुमुल्-किता-ब मुफ़स्सलन्, वल्लज़ी न आतैनाहुमुल किता-ब यअ्लमू-न अन्नहू मुनज़्ज़लुम्-मिर्रब्बि-क बिल्हक़्क़ि फ़ला तकूनन्-न मिनल्-मुम्तरीन
    (क्या तुम ये चाहते हो कि) मैं अल्लाह को छोड़ कर किसी और को सालिस तलाश करुँ हालाँकि वह वही अल्लाह है जिसने तुम्हारे पास वाज़ेए किताब नाज़िल की और जिन लोगों को हमने किताब अता फरमाई है वह यक़ीनी तौर पर जानते हैं कि ये (कु़रान) तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से बरहक़ नाज़िल किया गया है।
  5. व तम्मत् कलि-मतु रब्बि-क सिद्कंव्-व अद्लन्, ला मुबद्दि-ल लि-कलिमातिही, व हुवस्समीअुल्-अ़लीम
    तो तुम (कहीं) शक करने वालों से न हो जाना और सच्चाई और इन्साफ में तो तुम्हारे परवरदिगार की बात पूरी हो गई कोई उसकी बातों का बदलने वाला नहीं और वही बड़ा सुनने वाला वाकि़फकार है।
  6. व इन् तुतिअ् अक्स-र मन् फिल्अर्ज़ि युज़िल्लू-क अन् सबीलिल्लाहि, इंय्यत्तबिअू-न इल्लज़्ज़न् न व इन् हुम् इल्ला यख्रूसून
    और (ऐ रसूल!) दुनिया में तो बहुतेरे लोग ऐसे हैं कि तुम उनके कहने पर चलो तो तुमको अल्लाह की राह से बहका दें ये लोग तो सिर्फ अपने ख़्यालात की पैरवी करते हैं और ये लोग तो बस अटकल पच्चू बातें किया करते हैं।
  7. इन्-न रब्ब-क हु-व अअ्लमु मंय्यज़िल्लु अन् सबीलिही, व हु-व अअ्लमु बिल्मुह्तदीन
    (तो तुम क्या जानों) जो लोग उसकी राह से बहके हुए हैं उनको (कुछ) अल्लाह ही ख़ूब जानता है और वह तो हिदायत याफ्ता लोगों से भी ख़ूब वाकिफ़ है।
  8. फ़-कुलू मिम्मा ज़ुकिरस् मुल्लाहि अलैहि इन् कुन्तुम् बिआयातिही मुअ्मिनीन
    तो अगर तुम उसकी आयतों पर ईमान रखते हो तो जिस ज़ीबह पर (वक़्ते जिबाह) अल्लाह का नाम लिया गया हो उसी को खाओ।
  9. व मा लकुम् अल्ला तअ्कुलू मिम्मा ज़ुकिरस्मुल्लाहि अलैहि व क़द् फस्स-ल लकुम् मा हर्र-म अलैकुम् इल्ला मज़्तुरिरतुम् इलैहि, व इन्-न कसीरल्-लयुज़िल्लू-न बिअहवाइहिम् बिग़ैरि अिल्मिन्, इन्-न रब्ब-क हु-व अअ्लमु बिल्मुअ्तदीन
    और तुम्हें क्या हो गया है कि जिस पर अल्लाह का नाम लिया गया हो उसमें नहीं खाते हो हालाँकि जो चीज़ें उसने तुम पर हराम कर दीं हैं वह तुमसे तफसीलन बयान कर दीं हैं मगर (हाँ) जब तुम मजबूर हो तो अलबत्ता (हराम भी खा सकते हो) और बहुतेरे तो (ख़्वाहमख़्वाह) अपनी नफसानी ख़्वाहिशो से बे समझे बूझे (लोगों को) बहका देते हैं और तुम्हारा परवरदिगार तो हक़ से तजाविज़ करने वालों से ख़ूब वाकिफ़ है।
  10. व ज़रू ज़ाहिरल्-इस्मि व बाति-नहू, इन्नल्लज़ी-न यक्सिबूनल्-इस्-म सयुज्ज़ौ-न बिमा कानू यक़्तरिफून
    (ऐ लोगों!) ज़ाहिरी और बातिनी गुनाह (दोनों) को (बिल्कुल) छोड़ दो जो लोग गुनाह करते हैं उन्हें अपने आमाल का अनक़रीब ही बदला दिया जाएगा।
  11. व ला तअ्कुलू मिम्मा लम् युज़् करिस् मुल्लाहि अलैहि व इन्नहू लफिस्क़ुन्, व इन्नश्शयाती-न लयूहू-न इला औलिया-इहिम् लियुजादिलूकुम्, व इन् अतअ्तुमूहुम् इन्नकुम् लमुश्रिकून *
    और जिस (ज़बीहे) पर अल्लाह का नाम न लिया गया उसमें से मत खाओ (क्योंकि) ये बेशक बदचलनी है और शयातीन तो अपने हवा ख़वाहों के दिल में वसवसा डाला ही करते हैं ताकि वह तुमसे (बेकार) झगड़े किया करें और अगर (कहीं) तुमने उनका कहना मान लिया तो (समझ रखो कि) बेशुबहा तुम भी मुशरिक हो।
  12. अ-व मन् का-न मैतन् फ़-अह़्यैनाहु व जअ़ल्ना लहू नूरंय्यम्शी बिही फिन्नासि कमम् म-सलुहू फिज़्जुलुमाति लै-स बिख़ारिजिम् मिन्हा, कज़ालि-क ज़ुय्यि-न लिल्काफ़िरी-न मा कानू यअ्मलून
    क्या जो शख्स़ (पहले) मुर्दा था फिर हमने उसको ज़िन्दा किया और उसके लिए एक नूर बनाया जिसके ज़रिए वह लोगों में (बेतकल्लुफ़) चलता फिरता है उस शख्स़ का सामना हो सकता है जिसकी ये हालत है कि (हर तरफ से) अँधेरे में (फँसा हुआ है) कि वहाँ से किसी तरह निकल नहीं सकता (जिस तरह मोमिनों के वास्ते ईमान आरास्ता किया गया) उसी तरह काफिरों के वास्ते उनके आमाल (बद) आरास्ता कर दिए गए हैं।
  13. व कज़ालि-क जअ़ल्ना फ़ी कुल्लि क़र् यतिन् अकाबि-र मुज्रिमीहा लियम्कुरू फ़ीहा, व मा यम्कुरू-न इल्ला बिअन्फुसिहिम् व मा यश्अुरून
    (कि भला ही भला नज़र आता है) और जिस तरह मक्के में है उसी तरह हमने हर बस्ती में उनके कुसूरवारों को सरदार बनाया ताकि उनमें मक्कारी किया करें और वह लोग जो कुछ करते हैं अपने ही हक़ में (बुरा) करते हैं और समझते (तक) नहीं।
  14. व इज़ा जाअत्हुम् आयतुन् क़ालू लन्-नुअ्मि-न हत्ता नुअ्ता मिस्-ल मा ऊति-य रूसुलुल्लाहि • अल्लाहु अअ्लमु हैसु यज्अलु रिसाल-तहू, सयुसीबुल्लज़ी-न अज्रमू सग़ारून अिन्दल्लाहि व अज़ाबुन शदीदुम् बिमा कानू यम्कुरून
    और जब उनके पास कोई निशानी (नबी की तसदीक़ के लिए) आई है तो कहते हैं जब तक हमको ख़ुद वैसी चीज़ (वही वग़ैरह) न दी जाएगी जो पैग़म्बराने अल्लाह को दी गई है उस वक़्त तक तो हम ईमान न लाएँगे और अल्लाह जहाँ (जिस दिल में) अपनी पैग़म्बरी क़रार देता है उसकी (काबलियत व सलाहियत) को ख़ूब जानता है जो लोग (उस जुर्म के) मुजरिम हैं उनको अनक़रीब उनकी मक्कारी की सज़ा में अल्लाह के यहाँ बड़ी ज़िल्लत और सख़्त अज़ाब होगा।
  15. फ़मंय्युरिदिल्लाहु अंय्यह़्दि-यहू यशरह् सद्-रहू लिल्इस्लामि, व मंय्युरिद् अंय्युज़िल्लहू यज्अल् सद्- रहू ज़य्यिक़न् ह-रजन् कअन्नमा यस्सअ्-अ़दु फिस्समा-इ, कज़ालि-क यज्अलुल्लाहुर्रिज्-स अलल्लज़ी-न ला युअ्मिनून
    तो अल्लाह जिस शख्स़ को राह रास्त दिखाना चाहता है उसके सीने को इस्लाम (की दौलियत) के वास्ते (साफ़ और) कुशादा (चौड़ा) कर देता है और जिसको गुमराही की हालत में छोड़ना चाहता है उनके सीने को तंग दुश्वार ग़ुबार कर देता है गोया (कुबूल इमान) उसके लिए आसमान पर चढ़ना है जो लोग ईमान नहीं लाते अल्लाह उन पर बुराई को उसी तरह मुसल्लत कर देता है।

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