08 सूरह अल-अनफ़ाल हिंदी में पेज 3

सूरह अल-अनफ़ाल हिंदी में | Surat Al-Anfal in Hindi

पारा 10 शुरू

  1. वअ्लमू अन्नमा ग़निम्तुम् मिन् शैइन् फ-अन् न लिल्लाहि खुमु-सहू व लिर्रसूलि व लिज़िल्क़ुरबा वल्यतामा वल्मसाकीनि वब् निस्-सबीलि, इन् कुन्तुम् आमन्तुम् बिल्लाहि व मा अन्ज़ल्ना अला अब्दिना यौमल्फुरक़ानि यौमल् तक़ल्जम्आनि, वल्लाहु अला कुल्लि शैइन् क़दीर
    और जान लो कि जो कुछ तुम (माल लड़कर) लूटो तो उनमें का पाचवां हिस्सा मख़सूस अल्लाह और रसूल और (रसूल के) क़राबतदारों और यतीमों और मिस्कीनों और परदेसियों का है अगर तुम अल्लाह पर और उस (ग़ैबी इमदाद) पर ईमान ला चुके हो जो हमने ख़ास बन्दे (मोहम्मद) पर फ़ैसले के दिन (जंग बदर में) नाजि़ल की थी जिस दिन (मुसलमानों और काफिरों की) दो जमाअतें बाहम गुथ गयी थी और अल्लाह तो हर चीज़ पर क़ादिर है।
  2. इज़् अन्तुम् बिल् अुद्-वतिद्दुन्या व हुम् बिल् अुद्-वतिल्-क़ुसवा वर्रक्बु अस्फ-ल मिन्कुम्, व लौ तवा अत्तुम् लख़्त-लफ्तुम् फिल्मी आ़दि, व लाकिल्-लियक़्ज़ियल्लाहु अम्रन का न मफ़अूलल् लियह़्लि-क मन् ह-ल-क अम्बय्यि-नतिंव्-व यह़्या मन् हय्-य अ़म्बय्यि नतिन्, व इन्नल्ला-ह ल समीअुन् अलीम
    (ये वह वक़्त था) जब तुम (मैदाने जंग में मदीने के) क़रीब नाके पर थे और वह कुफ़्फ़ार बईद (दूर के) के नाके पर और (काफि़ले के) सवार तुम से नषेब में थे और अगर तुम एक दूसरे से (वक़्त की तक़रीर का) वायदा कर लेते हो तो और वक़्त पर गड़बड़ कर देते मगर (अल्लाह ने अचानक तुम लोगों को इकट्ठा कर दिया ताकि जो बात सदनी (होनी) थी वह पूरी कर दिखाए ताकि जो शख़्स हलाक (गुमराह) हो वह (हक़ की) हुज्जत तमाम होने के बाद हलाक हो और जो जि़न्दा रहे वह हिदायत की हुज्जत तमाम होने के बाद जि़न्दा रहे और अल्लाह यक़ीनी सुनने वाला ख़बरदार है।
  3. इज़् युरीकहुमुल्लाहु फ़ी मनामि-क क़लीलन्, व लौ अराकहुम् कसीरल् ल फ़शिल्तुम् व ल-तनाज़अ्तुम् फ़िल्-अम्रि व लाकिन्नल्ला-ह सल्ल-म, इन्नहू अलीमुम बिज़ातिस्सुदूर
    (ये वह वक़्त था) जब अल्लाह ने तुम्हें ख़्वाब में कुफ़्फ़ार को कम करके दिखलाया था और अगर उनको तुम्हें ज़्यादा करते दिखलाता तुम यक़ीनन हिम्मत हार देते और लड़ाई के बारे में झगड़ने लगते मगर अल्लाह ने इसे (बदनामी) से बचाया इसमें तो शक ही नहीं कि वह दिली ख़्यालात से वाकि़फ़ है।
  4. व इज़् युरीकुमूहुम् इज़िल्तक़ैतुम् फ़ी अअ्युनिकुम् क़लीलंव्-व युक़ल्लिलुकुम फ़ी अअ्युनिहिम् लि-यक़्ज़ियल्लाहु अमरन् का-न मफ्अूलन्, व इलल्लाहि तुरजअुल-उमूर *
    (ये वह वक़्त था) जब तुम लोगों ने मुठभेड़ की तो अल्लाह ने तुम्हारी आँखों में कुफ़्फ़ार को बहुत कम करके दिखलाया और उनकीआँखों में तुमको थोड़ा कर दिया ताकि अल्लाह को जो कुछ करना मंज़ूर था वह पूरा हो जाए और कुल बातों का दारोमदार तो अल्लाह ही पर है।
  5. या अय्युहल्लज़ी-न आमनू इज़ा लक़ीतुम् फ़ि-अतन् फस्बुतू वज़्कुरूल्ला-ह कसीरल्-लअ़ल्लकुम् तुफ्लिहून
    ऐ इमानदारों जब तुम किसी फौज से मुठभेड़ करो तो ख़बरदार अपने क़दम जमाए रहो और अल्लाह को बहुंत याद करते रहो ताकि तुम फलाह पाओ।
  6. व अतीअुल्ला-ह व रसूलहू व ला तनाज़अू फ़-तफ्शलू व तज़्ह-ब रीहुकुम वस्बिरू, इन्नल्ला-ह मअ़स्साबिरीन
    और अल्लाह की और उसके रसूल की इताअत करो और आपस में झगड़ा न करो वरना तुम हिम्मत हारोगे और तुम्हारी हवा उखड़ जाएगी और (जंग की तकलीफ़ को) झेल जाओ (क्योंकि) अल्लाह तो यक़ीनन सब्र करने वालों का साथी है।
  7. व ला तकूनू कल्लज़ी न ख़- रजू मिन् दियारिहिम् ब-तरंव् व रिआअन्नासि व यसुद्दू-न अन् सबीलिल्लाहि, वल्लाहु बिमा यअ्मलू-न मुहीत
    और उन लोगों के ऐसे न हो जाओ जो इतराते हुए और लोगों के दिखलाने के वास्ते अपने घरों से निकल खड़े हुए और लोगों को अल्लाह की राह से रोकते हैं और जो कुछ भी वह लोग करते हैं अल्लाह उस पर (हर तरह से) अहाता किए हुए है।
  8. व इज़् ज़य्य-न लहुमुश्शैतानु अअ्मालहुम् व क़ा-ल ला ग़ालि-ब लकुमुल्यौ-म मिनन्नासि व इन्नी जारूल्लकुम्, फ-लम्मा तरा-अतिल्-फ़ि अतानि न-क-स अला अ़क़िबैहि व क़ा-ल इन्नी बरीउम् मिन्कुम् इन्नी अरा माला तरौ-न इन्नी अख़ाफुल्ला-ह, वल्लाहु शदीदुल् – अिक़ाब *
    और जब शैतान ने उनकी कारस्तानियों को उम्दा कर दिखाया और उनके कान में फूंक दिया कि लोगों में आज कोई ऐसा नहीं जो तुम पर ग़ालिब आ सके और मै तुम्हारा मददगार हूँ फिर जब दोनों लष्कर मुकाबिल हुए तो अपने उलटे पाव भाग निकला और कहने लगा कि मै तो तुम से अलग हूँ मै वह चीजें देख रहा हूँ जो तुम्हें नहीं सूझती मैं तो अल्लाह से डरता हूँ और अल्लाह बहुत सख़्त अज़ाब वाला है।
  9. इज़् यक़ूलुल्-मुनाफ़िक़ू-न वल्लज़ी-न फ़ी क़ुलूबिहिम् म-रज़ुन् ग़र्-र हा-उला-इ दीनुहुम, व मंय्य तवक्कल् अ़लल्लाहि फ़-इन्नल्ला-ह अ़ज़ीज़ुन् हकीम
    (ये वक़्त था) जब मुनाफिक़ीन और जिन लोगों के दिल में (कुफ्र का) मजऱ् है कह रहे थे कि उन मुसलमानों को उनके दीन ने धोके में डाल रखा है (कि इतराते फिरते हैं हालाकि जो शख़्स अल्लाह पर भरोसा करता है (वह ग़ालिब रहता है क्योंकि) अल्लाह तो यक़ीनन ग़ालिब और हिकमत वाला है।
  10. व लौ तरा इज़् य-तवफ्फ़ल्लज़ी-न क-फरूल्मलाइ-कतु यज़्रिबू न वुजू-हहुम् व अदबारहुम्, व ज़ूक़ू अज़ाबल्-हरीक़
    और काश (ऐ रसूल) तुम देखते जब फ़रिश्ते काफि़रों की जान निकाल लेते थे और रूख़ और पुश्त(पीठ) पर कोड़े मारते थे और (कहते थे कि) अज़ाब जहन्नुम के मज़े चखों।
  11. ज़ालि-क बिमा क़द्द-मत् ऐदीकुम् व अन्नल्ला-ह लै-स बिज़ल्लामिल्-लिल् अ़बीद
    ये सज़ा उसकी है जो तुम्हारे हाथों ने पहले किया कराया है और अल्लाह बन्दों पर हरगिज़ ज़ुल्म नहीं किया करता है।
  12. कदअ्बि आलि फ़िरऔ-न, वल्लज़ी-न मिन् क़ब्लिहिम्, क-फ़ रू बिआयातिल्लाहि फ़-अ-ख़-ज़हुमुल्लाहु बिज़ुनूबिहिम्, इन्नल्ला-ह क़विय्युन् शदीदुल-अिक़ाब
    (उन लोगों की हालत) क़ौमे फिरआऊन और उनके लोगों की सी है जो उन से पहले थे और अल्लाह की आयतों से इन्कार करते थे तो अल्लाह ने भी उनके गुनाहों की वजह से उन्हें ले डाला बेशक अल्लाह ज़बरदस्त और बहुत सख़्त अज़ाब देने वाला है।
  13. ज़ालि-क बिअन्नल्ला-ह लम् यकु मुग़य्यिरन् निअ्-मतन् अन्अ़-महा अ़ला क़ौमिन् हत्ता युग़य्यिरू मा बिअन्फुसिहिम् व अन्नल्ला-ह समीअुन् अलीम
    ये सज़ा इस वजह से (दी गई) कि जब कोई नेअमत अल्लाह किसी क़ौम को देता है तो जब तक कि वह लोग ख़ुद अपनी कलबी हालत (न) बदलें अल्लाह भी उसे नहीं बदलेगा और अल्लाह तो यक़ीनी (सब की सुनता) और सब कुछ जानता है।
  14. कदअ्बि आलि फ़िरऔ-न, वल्लज़ी-न मिन् क़ब्लिहिम्, कज़्ज़बू बिआयाति रब्बिहिम् फ़-अह़्लक्नाहुम् बिज़ुनूबिहिम् व अग़्रक़्ना आ-ल फ़िरऔ-न, व कुल्लुन् कानू ज़ालिमीन
    (उन लोगों की हालत) क़ौम फिरआऊन और उन लोगों की सी है जो उनसे पहले थे और अपने परवरदिगार की आयतों को झुठलाते थे तो हमने भी उनके गुनाहों की वजह से उनको हलाक़ कर डाला और फिरआऊन की क़ौम को डुबा मारा और (ये) सब के सब ज़ालिम थे।
  15. इन्-न शर्रद्दवाब्बि अिन्दल्लाहिल्लज़ी-न क-फरू फहुम् ला युअ्मिनून
    इसमें शक नहीं कि अल्लाह के नज़दीक जानवरों में कुफ़्फ़ार सबसे बदतरीन तो (बावजूद इसके) फिर ईमान नहीं लाते।
  16. अल्लज़ी-न आहत्-त मिन्हुम् सुम्-म यन्क़ुज़ू-न अह्-दहुम् फ़ी कुल्लि मर्रतिंव्-व हुम् ला यत्तक़ून
    ऐ रसूल जिन लोगों से तुम ने एहद व पैमान किया था फिर वह लोग अपने एहद को हर बार तोड़ डालते है और (फिर अल्लाह से) नहीं डरते।
  17. फ़-इम्मा तस्क़फ़न्नहुम् फ़िल्हर्बि फ-शर्रिद् बिहिम् मन् ख़ल्फ़हुम् लअल्लहुम यज़्ज़क्करून
    तो अगर वह लड़ाई में तुम्हारे हाथे चढ़ जाएँ तो (ऐसी सख़्त गोशमाली दो कि) उनके साथ साथ उन लोगों का तो अगर वह लड़ाई में तुम्हारे हत्थे चढ़ जाएं तो (ऐसी सजा दो की) उनके साथ उन लोगों को भी तितिर बितिर कर दो जो उन के पुश्त पर हो ताकि ये इबरत हासिल करें।
  18. व इम्मा तख़ाफ़न्-न मिन् क़ौमिन् ख़िया नतन् फ़म्बिज़् इलैहिम् अ़ला सवाइन्, इन्नल्ला-ह ला युहिब्बुल्-ख़ाइनीन*
    और अगर तुम्हें किसी क़ौम की ख़्यानत (एहद शिकनी(वादा खि़लाफी)) का ख़ौफ हो तो तुम भी बराबर उनका एहद उन्हीं की तरफ से फेंकी मारो (एहदो शिकन के साथ एहद शिकनी करो अल्लाह हरगिज़ दग़ाबाजों को दोस्त नहीं रखता।
  19. व ला यह्स-बन्नल्लज़ी-न क-फ़रू स-बक़ू, इन्नहुम् ला युअ्जिज़ून
    और कुफ़्फ़ार ये न ख़्याल करें कि वह (मुसलमानों से) आगे बढ़ निकले (क्योंकि) वह हरगिज़ (मुसलमानों को) हरा नहीं सकते।
  20. व अअिद्दू लहुम् मस्त-तअ्तुम् मिन् क़ुव्वतिंव्-व मिर्रिबातिल्ख़ैलि तुर्हिबू-न बिही अ़दुव्वल्लाहि व अ़दुव्वकुम् व आख़री-न मिन् दूनिहिम्, ला तअ्लमूनहुम्, अल्लाहु यअ्लमुहम्, व मा तुन्फिक़ू मिन् शैइन् फी सबीलिल्लाहि युवफ्-फ इलैकुम् व अन्तुम् ला तुज़्लमून
    और (मुसलमानों तुम कुफ्फार के मुकाबले के) वास्ते जहाँ तक तुमसे हो सके (अपने बाज़ू के) ज़ोर से और बॅधे हुए घोड़े से लड़ाई का सामान मुहय्या करो इससे अल्लाह के दुष्मन और अपने दुश्मन और उसके सिवा दूसरे लोगों पर भी अपनी धाक बढ़ा लेगें जिन्हें तुम नहीं जानते हो मगर अल्लाह तो उनको जानता है और अल्लाह की राह में तुम जो कुछ भी ख़र्च करोगें वह तुम पूरा पूरा भर पाओगें और तुम पर किसी तरह ज़ुल्म नहीं किया जाएगा।

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