08 सूरह अल-अनफ़ाल हिंदी में पेज 1

08 सूरह अल-अनफ़ाल | Surah Al-Anfal

सूरह अल-अनफ़ाल में 75 आयतें हैं। यह सूरह पारा 9, पारा 10 में है। यह सूरह मदीना में नाजिल हुई।

सूरह का नाम पहली आयत में शब्द ‘अनफाल’ से दिया गया है। इस सूरह में अनफाल (युद्ध में जीता हुआ माल) के बारे में कुछ आदेश भी दिए गए हैं।

सूरह अल-अनफ़ाल हिंदी में | Surat Al-Anfal in Hindi

बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहिम
शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम वाला है
  1. यस् अलून – क अनिल् – अन्फालि, कुलिल् – अन्फालु लिल्लाहि वर्रसूलि फ़त्तकुल्ला – ह व अस्लिहू ज़ा – त बैनिकुम् व अतीअुल्ला – ह व रसूलहू इन् कुन्तुम् मुअ्मिनीन
    (ऐ रसूल) तुम से लोग अनफाल (माले ग़नीमत) के बारे में पूछा करते हैं तुम कह दो कि अनफाल मख़सूस ख़ुदा और रसूल के वास्ते है तो ख़़ुदा से डरो (और) अपने बाहमी (आपसी) मामलात की असलाह करो और अगर तुम सच्चे (ईमानदार) हो तो ख़़ुदा की और उसके रसूल की इताअत करो (1)
  2. इन्नमल् मुअ्मिनूनल्लज़ी-न इज़ा जुकिरल्लाहु वजिलत् कुलूबुहुम् व इज़ा तुलियत् अलैहिम् आयातुहू जादत्हुम् ईमानंव् – व अला रब्बिहिम् य – तवक्कलून
    सच्चे ईमानदार तो बस वही लोग हैं कि जब (उनके सामने) ख़़ुदा का जि़क्र किया जाता है तो उनके दिल हिल जाते हैं और जब उनके सामने उसकी आयतें पढ़ी जाती हैं तो उनके इमान को और भी ज़्यादा कर देती हैं और वह लोग बस अपने परवरदिगार ही पर भरोसा रखते हैं (2)
  3. अल्लज़ी – न युकीमूनस्सला-त व मिम्मा रज़क़्नाहुम् युन्फ़िकून
    नमाज़ को पाबन्दी से अदा करते हैं और जो हम ने उन्हें दिया हैं उसमें से (राहे ख़़ुदा में) ख़र्च करते हैं (3)
  4. उलाइ – क हुमुल – मुअ्मिनू – न हक्कन्, लहुम् द – रजातुन् अिन् – द रब्बिहिम् व मग्फि – रतुंव व रिज़्कुन् करीम
    यही तो सच्चे ईमानदार हैं उन्हीं के लिए उनके परवरदिगार के हाँ (बड़े बड़े) दरजे हैं और बक्शीश और इज़्ज़त और आबरू के साथ रोज़ी है (ये माले ग़नीमत का झगड़ा वैसा ही है) (4)
  5. कमा अख़र – ज – क रब्बु – क मिम् – बैति – क बिल्हक़्क़ि व इन् – न फरीक़म् मिनल्- मुअ्मिनी – न लकारिहून
    जिस तरह तुम्हारे परवरदिगार ने तुम्हें बिल्कुल ठीक (मसलहत से) तुम्हारे घर से (जंग बदर) में निकाला था और मोमिनीन का एक गिरोह (उससे) नाखुष था (5)
  6. युजादिलून क फ़िल्हक़्क़ि बअ् – द मा तबय्य-न कअन्नमा युसाकू – न इलल्मौति व हुम् यन्जुरून
    कि वह लोग हक़ के ज़ाहिर होने के बाद भी तुमसे (ख़्वाह माख़्वाह) सच्ची बात में झगड़तें थें और इस तरह (करने लगे) गोया (ज़बरदस्ती) मौत के मुँह में ढकेले जा रहे हैं (6)
  7. व इज् यअिदु कुमुल्लाहु इह़्दत्ताइ – फ़तैनि अन्नहा लकुम् व तवद्दू – न अन् -न गै -र जातिश्शौ – कति तकूनु लकुम् व युरीदुल्लाहु अंय्युह़िक्कल-हक् क़ बिकलिमातिही व यक्त अ़ दाबिरल -काफ़िरीन
    और उसे (अपनी आँखों से) देख रहे हैं और (ये वक़्त था) जब ख़़ुदा तुमसे वायदा कर रहा था कि (कुफ्फार मक्का) दो जमाअतों में से एक तुम्हारे लिए ज़रूरी हैं और तुम ये चाहते थे कि कमज़ोर जमाअत तुम्हारे हाथ लगे (ताकि बग़ैर लड़े भिड़े माले ग़नीमत हाथ आ जाए) और ख़ुदा ये चाहता था कि अपनी बातों से हक़ को साबित (क़दम) करें और काफिरों की जड़ काट डाले (7)
  8. लियुहिक़्क़ ल हक् क व युब्तिलल् – बाति – ल व लौ करिहल् – मुज्रिमून
    ताकि हक़ को (हक़) साबित कर दे और बातिल का मिटियामेट कर दे अगर चे गुनाहगार (कुफ्फार उससे) नाखुश ही क्यों न हो (8)
  9. इज् तस्तगीसू – न रब्बकुम् फ़स्तजा – ब लकुम् अन्नी मुमिद्दुकुम् बिअल्फ़िम् मिनल् – मलाइ कति मुर्दिफ़ीन
    (ये वह वक़्त था) जब तुम अपने परवदिगार से फरियाद कर रहे थे उसने तुम्हारी सुन ली और जवाब दे दिया कि मैं तुम्हारी लगातार हज़ार फरिष्तों से मदद करूँगा (9)
  10. व मा ज-अ-लहुल्लाहु इल्ला बुश्रा व लितत्मइन् – न बिही कुलूबुकुम्, व मन्नसू इल्ला मिन् अिन्दिल्लाहि, इन्नल्ला – ह अज़ीजुन हकीम *
    और (ये इमदाद ग़ैबी) ख़़ुदा ने सिर्फ तुम्हारी ख़ातिर (ख़ुशी) के लिए की थी और तुम्हारे दिल मुतमइन हो जाय और (याद रखो) मदद ख़़ुदा के सिवा और कहीं से (कभी) नहीं होती बेशक ख़ुदा ग़ालिब हिकमत वाला है (10)
  11. इज् युगश्शीकुमुन्नुआ-स-अ-म-नतम् मिन्हु व युनज्ज़िलु अलैकुम् मिनस्समा-इ माअल्- लियुतह़्हि -रकुम बिही व युज्हि ब अन्कुम् रिज्ज़श्शैतानि व लियरबि – त अ़ला कुलूबिकुम् व युसब्बि – त बिहिल्अक्दाम
    ये वह वक़्त था जब अपनी तरफ से इत्मिनान देने के लिए तुम पर नींद को ग़ालिब कर रहा था और तुम पर आसमान से पानी बरस रहा था ताकि उससे तुम्हें पाक (पाकीज़ा कर दे और तुम से शैतान की गन्दगी दूर कर दे और तुम्हारे दिल मज़बूत कर दे और पानी से (बालू जम जाए) और तुम्हारे क़दम ब क़दम (अच्छी तरह) जमाए रहे (11)
  12. इज् यूही रब्बु-क इलल्मलाइ-कति अन्नी म -अ़कुम् फ़- सब्बितुल्लज़ी – न आमनू, सउल्की फ़ी कुलूबिल्लज़ी-न क -फरूर्रूअ् -ब फ़जरिबू फ़ौक़ल् अअ्नाकि वज्रिबू मिन्हुम् कुल-ल बनान
    (ऐ रसूल ये वह वक़्त था) जब तुम्हारा परवरदिगार फरिश्तों से फरमा रहा था कि मै यकीनन तुम्हारे साथ हूँ तुम ईमानदारों को साबित क़दम रखो मै बहुत जल्द काफिरों के दिलों में (तुम्हारा रौब) डाल दूँगा (पस फिर क्या है अब) तो उन कुफ्फार की गर्दनों पर मारो और उनकी पोर पोर को चटिया कर दो (12)
  13. ज़ालि- क बिअन्नहुम् शाक़्कुल्ला – ह व रसूलहू व मंय्युशाकिकिल्ला – ह व रसूलहू फ़ – इन्नल्ला – ह शदीदुल् – अिकाब
    ये (सज़ा) इसलिए है कि उन लोगों ने ख़़ुदा और उसके रसूल की मुख़ालिफ की और जो शख़्स (भी) ख़़ुदा और उसके रसूल की मुख़ालफ़त करेगा तो (याद रहें कि) ख़़ुदा बड़ा सख़्त अज़ाब करने वाला है (13)
  14. ज़ालिकुम फ़जूकूहु व अन्- न लिल्काफ़िरी-न अज़ाबन्नार
    (काफिरों दुनिया में तो) लो फिर उस (सज़ा का चखो और (फिर आखि़र में तो) काफिरों के वास्ते जहन्नुम का अज़ाब ही है (14)
  15. या अय्युहल्लज़ी – न आमनू इज़ा लकीतुमुल्लज़ी – न क – फरू ज़ह्फ़न् फला तुवल्लूहुमुल अदबार
    ऐ ईमानदारों जब तुमसे कुफ़्फ़ार से मैदाने जंग में मुक़ाबला हुआ तो (ख़बरदार) उनकी तरफ पीठ न करना (15)
  16. व मंय्युवल्लिहिम् यौमइज़िन् दुबु – रहू इल्ला मु – तहर्रिफ़ल् लिक़ितालिन् औ मु – तहय्यिजन् इला फ़ि अतिन् फ़-क़द् बा-अ बि- ग-ज़ बिम् मिनल्लाहि व मअ्वाहु जहन्नमु, व बिअ्सल्मसीर
    (याद रहे कि) उस शख़्स के सिवा जो लड़ाई वास्ते कतराए या किसी जमाअत के पास (जाकर) मौके़ पाए (और) जो शख़्स भी उस दिन उन कुफ़्फ़ार की तरफ पीठ फेरेगा वह यक़ीनी (हिर फिर के) ख़ुदा के ग़जब में आ गया और उसका ठिकाना जहन्नुम ही हैं और वह क्या बुरा ठिकाना है (16)
  17. फ़ – लम् तक्तुलूहुम् व लाकिन्नल्ला-ह क़-त -लहुम् व मा रमै- त इज़् रमै -त व लाकिन्नल्ला – ह रमा व लियुब्लियल् – मुअ्मिनी – न मिन्हु बलाअन् ह – सनन्, इन्नल्ला – ह समीअुन् अलीम
    और (मुसलमानों) उन कुफ़्फ़ार को कुछ तुमने तो क़त्ल किया नही बल्कि उनको तो ख़़ुदा ने क़त्ल किया और (ऐ रसूल) जब तुमने तीर मारा तो कुछ तुमने नही मारा बल्कि ख़़ुद ख़़ुदा ने तीर मारा और ताकि अपनी तरफ से मोमिनीन पर खूब एहसान करे बेशक ख़ुदा (सबकी) सुनता और (सब कुछ) जानता है (17)
  18. जालिकुम् व अन्नल्ला – ह मूहिनु कैदिल् – काफ़िरीन
    ये तो ये ख़ुदा तो काफिरों की मक्कारी का कमज़ोर कर देने वाला है (18)
  19. इन् तस्तफ्तिहू फ़-क द् जा-अकुमुल्-फ़त्हू व इन् तन्तहू फ़हु – व खैरूल्लकुम् व इन् तअूदू नअुद् व लन् तुग्नि- य अ़न्कुम् फ़ि अतुकुम् शैअंव् – व लौ कसुरत् व अन्नल्ला – ह मअल्- मुअमिनीन *
    (काफि़र) अगर तुम ये चाहते हो (कि जो हक़ पर हो उसकी) फ़तेह हो (मुसलमानों की) फ़तेह भी तुम्हारे सामने आ मौजूद हुयी अब क्या गु़रूर बाक़ी है और अगर तुम (अब भी मुख़तलिफ़ इस्लाम) से बाज़ रहो तो तुम्हारे वास्ते बेहतर है और अगर कहीं तुम पलट पड़े तो (याद रहे) हम भी पलट पड़ेगें (और तुम्हें तबाह कर छोड़ देगें) और तुम्हारी जमाअत अगरचे बहुत ज़्यादा भी हो हरगिज़ कुछ काम न आएगी और ख़़ुदा तो यक़ीनी मामिनीन के साथ है (19)
  20. या अय्युहल्लज़ी – न आमनू अतीअुल्ला-ह व रसूलहू व ला तवल्लौ अन्हु व अन्तुम् तस्मअून
    (ऐ ईमानदारों खुदा और उसके रसूल की इताअत करो और उससे मुँह न मोड़ो जब तुम समझ रहे हो (20)

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