08 सूरह अल-अनफ़ाल हिंदी में पेज 2

सूरह अल-अनफ़ाल हिंदी में | Surat Al-Anfal in Hindi

  1. व ला तकूनू कल्लज़ी-न क़ालू समिअ्ना व हुम् ला यस्मअून
    तथा उनके समान न हो जाओ, जिन्होंने कहा कि हमने सुन लिया, जबकि वास्तव में वे सुनते नहीं थे।
  2. इन्-न शर्रद्दवाब्बि अिन्दल्लाहिस्सुम्मुल-बुक्मुल्लज़ी-न ला यअ्क़िलून
    इसमें शक नहीं कि ज़मीन पर चलने वाले तमाम हैवानात से बदतर अल्लाह के नज़दीक वह बहरे गूँगे (कुफ्फार) हैं जो कुछ नहीं समझते।
  3. व लौ अलिमल्लाहु फ़ीहिम् ख़ैरल् ल-अस्म-अहुम्, व लौ अस्म-अहुम् ल-तवल्लौ व हुम् मुअ्-रिज़ून
    और अगर अल्लाह उनमें नेकी (की बू भी) देखता तो ज़रूर उनमें सुनने की क़ाबलियत अता करता मगर ये ऐसे हैं कि अगर उनमें सुनने की क़ाबिलयत भी देता तो मुँह फेर कर भागते।
  4. या अय्युहल्लज़ी-न आमनुस्तजीबू लिल्लाहि व लिर्रसूलि इज़ा दआकुम् लिमा युह़्यीकुम्, वअ्लमू अन्नल्ला-ह यहूलु बैनल्-मरइ व क़ल्बिही व अन्नहू इलैहि तुह्शरून
    हे ईमान वालो! जब तुम को हमारा रसूल (मोहम्मद) जब वह तुम्हें उस चीज़ की ओर बुलाए जो तुम्हें जीवन प्रदान करनेवाली है,  तो तुम अल्लाह और रसूल के हुक्म दिल से कुबूल कर लो और जान लो कि अल्लाह वह क़ादिर मुतलिक़ है कि आदमी और उसके दिल (इरादे) के दरमियान इस तरह आ जाता है और ये भी समझ लो कि तुम सबके सब उसके सामने हाजिर किये जाओगे।
  5. वत्तक़ू फित् न-तल्-ला तुसीबन्नल्लज़ी-न ज़-लमू मिन्कुम् खास्स-तन्, वअ्लमू अन्नल्ला-ह शदीदुल अिक़ाब
    और उस फितने से डरते रहो जो ख़ास उन्हीं लोगों पर नही पड़ेगा जिन्होने तुम में से ज़ुल्म किया (बल्कि तुम सबके सब उसमें पड़ जाओगे) और यक़ीन मानों कि अल्लाह बड़ा सख़्त अज़ाब करने वाला है।
  6. वज़्कुरू इज़् अन्तुम् क़लीलुम् मुस्तज़्अफू-न फ़िल्अर्ज़ि तख़ाफू न अंय्य तख़त्त फकुमुन्नासु फ़आवाकुम् व अय्य-दकुम् बिनसरिही व र-ज़-क़ कुम् मिनत्तय्यिबाति लअ़ल्लकुम् तश्कुरून
    (मुसलमानों वह वक़्त याद करो) जब तुम थोड़े थे, धरती में निर्बल थे, और बिल्कुल बेबस थे। उससे सहमे जाते थे कि कहीं लोग तुमको उचक न ले जाए, तो अल्लाह ने तुमको (मदीने में) पनाह दी और अपनी सहायता से तुम्हें शक्ति प्रदान की और तुम्हे पाक व पाकीज़ा चीज़े खाने को दी ताकि तुम शुक्र गुज़ारी करो।
  7. या अय्युहल्लज़ी-न आमनू ला तख़ूनुल्ला-ह वर्रसू-ल व तख़ूनू अमानातिकुम व अन्तुम् तअ्लमून
    ऐ ईमान लानेवालो! न तो अल्लाह और रसूल की (अमानत में) ख़्यानत करो और न अपनी अमानतों में ख़्यानत करो हालाँकि समझते बूझते हो।
  8. वअ्लमू अन्नमा अम्वालुकुम् व औलादुकुम् फ़ित्-नतुंव्-व अन्नल्ला-ह अिन्दहू अज्रुन् अ़ज़ीम *
    और यक़ीन जानों कि तुम्हारे माल और तुम्हारी औलाद तुम्हारी आज़माइश (इम्तेहान) की चीज़े हैं कि जो उनकी मोहब्बत में भी अल्लाह को न भूले और वह दीनदार है।
  9. या अय्युहल्लज़ी-न आमनू इन् तत्तक़ुल्ला-ह यज् अल्लकुम् फुरक़ानंव्-व युकफ्फिर अ़न्कुम् सय्यिआतिकुम् व यग़्फिर् लकुम्, वल्लाहु ज़ुल्फ़ज़्लिल्-अज़ीम
    हे ईमान वालो! यदि तुम अल्लाह से डरोगे, तो तुम्हें विवेक प्रदान करेगा तथा तुमसे तुम्हारी बुराईयाँ दूर कर देगा, तुम्हे क्षमा कर देगा और अल्लाह बड़ा दयाशील है।
  10. व इज़् यम्कुरू बिकल्लज़ी-न क-फ़रू लियुस्बितू-क औ यक़्तुलू-क औ युख़रिजू-क, व यम्कुरू-न व यम्कुरूल्लाहु, वल्लाहु ख़ैरूल् माकिरीन
    और (ऐ रसूल! वह वक़्त याद करो) जब  काफ़िर आपके विरुध्द षड्यंत्र रच रहे थे, ताकि तुमको क़ैद कर लें या तुमको मार डाले या तुम्हें (घर से) निकाल बाहर करे। वह तो ये चाल चल रहे थे। और अल्लाह भी (उनके खिलाफ) चाल चल रहा था।
  11. व इज़ा तुत्ला अ़लैहिम् आयातुना क़ालू क़द् समिअ्ना लौ नशा-उ लक़ुल्ना मिस्-ल हाज़ा, इन् हाज़ा इल्ला असातीरूल-अव्वलीन
    और जब उनको हमारी आयतें सुनाई जाती हैं, तो कहते हैः हमने (इसे) सुन लिया है। यदि हम चाहें, तो इसी (क़ुर्आन) जैसी बातें कह दें। ये तो वही प्राचीन लोगों की कथायें हैं।
  12. व इज़् क़ालुल्लाहुम्-म इन् का-न हाज़ा हुवल्-हक़् क़ मिन् अिन्दि-क फ़अम्तिर् अलैना हिजा-रतम् मिनस्समा-इ अविअ्तिना बिअज़ाबिन् अलीम
    और (ऐ रसूल! वह वक़्त याद करो) जब उन काफिरों ने दुआएँ माँगीं थी कि अल्लाह अगर ये (दीन इस्लाम) हक़ है और तेरे पास से (आया है) तो हम पर आसमान से पत्थर बरसा या हम पर कोई और दर्दनाक अज़ाब ही नाज़िल फरमा।
  13. व मा कानल्लाहु लियुअ़ज़्ज़ि-बहुम् व अन्-त फ़ीहिम्, व मा कानल्लाहु मुअज़्ज़ि-बहुम् व हुम् यस्तग़्फिरून
    हालाँकि जब तक तुम उनके दरम्यिान मौजूद हो और अल्लाह ऐसा नहीं कि तुम उनके बीच उपस्थित हो और वह उन्हें यातना देने लग जाए, और न अल्लाह ऐसा है कि वे क्षमा-याचना कर रहे हों और वह उन्हें यातना से ग्रस्त कर दे।
  14. व मा लहुम् अल्-ला युअ़ज़्ज़ि-बहुमुल्लाहु व हुम् यसुद्दू-न अनिल् मस्जिदिल्-हरामि व मा कानू औलिया-अहू, इन् औलिया-उहू इल्लल्-मुत्तक़ू-न व लाकिन् न अक्स रहुम् ला यअ्लमून
    और जब ये लोग लोगों को मस्जिदुल हराम (ख़ान ए काबा की इबादत) से रोकते है तो फिर उनके लिए कौन सी बात बाक़ी है कि उन पर अज़ाब न नाज़िल करे और ये लोग तो ख़ानाए काबा के व्यवस्थापक भी नहीं (फिर क्यों रोकते है) उसके संरक्षक तो केवल अल्लाह के आज्ञाकारी हैं, मगर इन काफ़िरों में से बहुतेरे नहीं जानते।
  15. व मा का-न सलातुहुम् अिन्दल्-बैति इल्ला मुकाअंव्-व तस्दि-यतन्, फ़ज़ूक़ुल-अ़ज़ा-ब बिमा कुन्तुम् तक्फुरून
    और ख़ानाए काबे के पास सीटियाँ तालिया बजाने के सिवा उनकी नमाज ही क्या थी तो (ऐ काफिरों!) तो अब यातना का मज़ा चखो, उस इनकार के बदले में जो तुम करते रहे हो।
  16. इन्नल्लज़ी-न क-फरू युन्फ़िक़ू-न अम्वालहुम् लि- यसुद्दू अन् सबीलिल्लाहि, फ़-सयुन्फिक़ूनहा सुम्-म तकूनु अलैहिम् हस्-रतन् सुम्-म युग़्लबू-न, वल्लज़ी-न क-फरू इला जहन्न-म युह्शरून
    निश्चय ही इनकार करनेवाले अपने माल अल्लाह के मार्ग से रोकने के लिए ख़र्च करते हैं। वे तो उनको ख़र्च करते रहेंगे, फिर यही उनके लिए पश्चाताप बनेगा। फिर वे पराभूत होंगे और इनकार करनेवाले जहन्नम की ओर समेट लाए जाएँगे।
  17. लि-यमीज़ल्लाहुल्-ख़बी-स मिनत्तय्यिबि व यज्अ़लल् ख़बी-स बअ्ज़हू अला बअ्जिन् फ़-यरकु-महू जमीअ़न् फ़-यज्अ-लहू फ़ी जहन्न-म, उलाइ-क हुमुल्- ख़ासिरून *
    ताकि अल्लाह पाक को नापाक से जुदा कर दे और नापाक लोगों को एक दूसरे पर रख के ढेर बनाए फिर सब को जहन्नुम में झोंक दे यही लोग घाटा उठाने वाले हैं।
  18. क़ुल लिल्लज़ी-न क-फरू इंय्यन्तहू युग़्फर् लहुम् मा क़द् स-ल-फ, व इंय्यअूदू फ-क़द् मज़त् सुन्नतुल अव्वलीन
    (ऐ रसूल!) उन इनकार करनेवालों से कह दो कि वे यदि बाज़ आ जाएँ तो जो कुछ हो चुका, उसे क्षमा कर दिया जाएगा, किन्तु यदि वे फिर भी वही करेंगे तो पूर्ववर्ती लोगों के सिलसिले में जो रीति अपनाई गई वह सामने से गुज़र चुकी है।
  19. व क़ातिलूहुम् हत्ता ला तकू-न फित्-नतुंव्-व यकूनद्दीनु कुल्लुहू लिल्लाहि, फ़-इनिन्तहौ फ़-इन्नल्ला-ह बिमा यअ्मलू-न बसीर
    मुसलमानों! काफ़िरों से लड़े जाओ यहाँ तक कि कोई फसाद (बाक़ी) न रहे और (बिल्कुल सारी दुनिया में) अल्लाह का दीन ही दीन हो जाए फिर अगर ये लोग (फ़साद से) न बाज़ आए तो अल्लाह उनकी कारवाइयों को ख़ूब देखता है।
  20. व इन् तवल्लौ फअ्लमू अन्नल्ला-ह मौलाकुम्, निअ्मल् मौला व निअ्मन्-नसीर
    और यदि वे मुँह फेरें, तो (मुसलमानों) समझ लो कि अल्लाह यक़ीनी तुम्हारा संरक्षक है और वह क्या अच्छा संरक्षक है और क्या अच्छा मददगार है। (पारा 9 समाप्त)

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