28 सूरह अल क़सस हिंदी में पेज 4

सूरह अल क़सस हिंदी में | Surat Al-Qasas in Hindi

  1. फ़- अम्मा मन् ता – ब व आम-न व अ़मि-ल सालिहन फ़-अ़सा अंय्यकू-न मिनल्-मुफ्लिहीन
    मगर हाँ जिस शख़्स ने तौबा कर ली और इमान लाया और अच्छे अच्छे काम किए तो क़रीब है कि ये लोग अपनी मुरादें पाने वालों से होंगे।
  2. व रब्बु – क यख़्लुकु मा यशा- उ व यख़्तारु, मा का-न लहुमुल् खि – य – रतु, सुब्हानल्लाहि व तआ़ला अ़म्मा युश्रिकून
    और तुम्हारा परवरदिगार जो चाहता है पैदा करता है और (जिसे चाहता है) मुन्तखि़ब करता है और ये इन्तिख़ाब लोगों के एख़्तियार में नहीं है और जिस चीज़ को ये लोग अल्लाह का शरीक बनाते हैं उससे अल्लाह पाक और (कहीं) बरतर है।
  3. व रब्बु – क यअ्लमु मा तुकिन्नु सुदूरुहुम् व मा युअ़लिनून
    और (ऐ रसूल) ये लोग जो बातें अपने दिलों में छिपाते हैं और जो कुछ ज़ाहिर करते हैं तुम्हारा परवरदिगार खूब जानता है।
  4. व हुवल्लाहु ला इला-ह इल्ला हु-व, लहुल-हम्दु फिल्-ऊला वल् – आख़िरति व लहुल् – हुक्मु व इलैहि तुर्जअून
    और वही अल्लाह है उसके सिवा कोई क़ाबिले परसतिश नहीं दुनिया और आखि़रत में उस की तारीफ़ है और उसकी हुकूमत है और तुम लोग (मरने के बाद) उसकी तरफ लौटाए जाओगे।
  5. कुल अ-रऐतुम् इन् ज-अ़लल्लाहु अ़लैकुमुल्-लै-ल सर्-मदन् इला यौमिल् – क़ियामति मन् इलाहुन् ग़ैरुल्लाहि यअ्तीकुम् बिज़ियाइन्, अ-फ़ला तस्-मअून
    (ऐ रसूल इन लोगों से) कहो कि भला तुमने देखा कि अगर अल्लाह हमेशा के लिए क़यामत तक तुम्हारे सरों पर रात को छाए रहता तो अल्लाह के सिवा कौन अल्लाह है जो तुम्हारे पास रौशनी ले आता तो क्या तुम सुनते नहीं हो।
  6. कुल अ – रऐतुम् इन् ज- अ़लल्लाहु अ़लैकुमुन्नहा – र सर् – मदन् इला यौमिल् – कियामति मन् इलाहुन् ग़ैरुल्लाहि यअ्तीकुम् बिलैलिन् तस्कुनू – न फ़ीहि, अ-फ़ला तुब्सिरून
    (ऐ रसूल उन से) कह दो कि भला तुमने देखा कि अगर अल्लाह क़यामत तक बराबर तुम्हारे सरों पर दिन किए रहता तो अल्लाह के सिवा कौन अल्लाह है जो तुम्हारे लिए रात को ले आता कि तुम लोग इसमें रात को आराम करो तो क्या तुम लोग (इतना भी) नहीं देखते।
  7. व मिर्रह्मतिही ज अ़-ल लकुमुल्लै-ल वन्नहा – र लितस्कुनू फ़ीहि व लि – तब्तगू मिन् फ़ज़्लिही व लअ़ल्लकुम् तश्कुरून
    और उसने अपनी मेहरबानी से तुम्हारे वास्ते रात और दिन को बनाया ताकि तुम रात में आराम करो और दिन में उसके फज़ल व करम (रोज़ी) की तलाश करो और ताकि तुम लोग शुक्र करो।
  8. व यौ-म युनादीहिम् फ़-यकूलु ऐ-न शु रकाइ-यल्लज़ी-न कुन्तुम् तज् अुमून
    और (उस दिन को याद करो) जिस दिन वह उन्हें पुकार कर पूछेगा जिनको तुम लोग मेरा शरीक ख़्याल करते थे वह (आज) कहाँ हैं।
  9. व न – ज़अ्ना मिन् कुल्लि उम्मतिन् शहीदन् फ़ – कुल्ना हातू बुरहा – नकुम् फ़-अ़लिमू अन्नल् – हक्-क़ लिल्लाहि व ज़ल्-ल अ़न्हुम्
    मा कानू यफ़्तरून *
    और हम हर एक उम्मत से एक गवाह (पैग़म्बर) निकाले (सामने बुलाएँगे) फिर (उस दिन मुशरेकीन से) कहेंगे कि अपनी (बराअत की) दलील पेश करो तब उन्हें मालूम हो जाएगा कि हक़ अल्लाह ही की तरफ़ है और जो इफ़तेरा परवाजि़याँ ये लोग किया करते थे सब उनसे ग़ायब हो जाएँगी।
  10. व न – ज़अ्ना मिन् कुल्लि उम्मतिन् शहीदन् फ़ – कुल्ना हातू बुरहा – नकुम् फ़-अ़लिमू अन्नल् – हक्-क़ लिल्लाहि व ज़ल्-ल अ़न्हुम्
    मा कानू यफ़्तरून *
    (नाशुक्री का एक कि़स्सा सुनो) मूसा की क़ौम से एक शख़्स कारुन (नामी) था तो उसने उन पर सरकशी शुरु की और हमने उसको इस क़दर ख़ज़ाने अता किए थे कि उनकी कुन्जियाँ एक सकतदार जमाअत (की जामअत) को उठाना दूभर हो जाता था जब (एक बार) उसकी क़ौम ने उससे कहा कि (अपनी दौलत पर) इतरा मत क्योंकि अल्लाह इतराने वालों को दोस्त नहीं रखता।
  11. वब्तगि फीमा आताकल्लाहुद् -दारल्-आख़िर त व ला तन् – स नसी-ब-क मिनद् दुन्या व अह्सिन् कमा अह्स – नल्लाहु इलै – क व ला तब्गिल् – फ़सा – द फ़िल्अर्जि, इन्नल्ला – ह ला युहिब्बुल् – मुफ्सिदीन
    और जो कुछ अल्लाह ने तूझे दे रखा है उसमें आखि़रत के घर की भी जुस्तजू कर और दुनिया से जिस क़दर तेरा हिस्सा है मत भूल जा और जिस तरह अल्लाह ने तेरे साथ एहसान किया है तू भी औरों के साथ एहसान कर और रुए ज़मीन में फसाद का ख़्वाहा न हो-इसमें शक नहीं कि अल्लाह फ़साद करने वालों को दोस्त नहीं रखता।
  12. का – ल इन्नमा ऊतीतुहू अ़ला अिल्मिन् अिन्दी, अ – व लम् यअ्लम् अन्नल्ला – ह कद् अह़्ल – क मिन् क़ब्लिही मिनल्- कुरूनि मन् हु-व अशद्दु मिन्हु कुव्वतंव् – व अक्सरु जम्अ्न्, व ला युस्अलु अन् जुनूबिहिमुल् मुज्रिमून
    तो क़ारुन कहने लगा कि ये (माल व दौलत) तो मुझे अपने इल्म (कीमिया) की वजह से हासिल होता है क्या क़ारुन ने ये भी न ख़्याल किया कि अल्लाह उसके पहले उन लोगों को हलाक़ कर चुका है जो उससे क़ू़वत और हैसियत में कहीं बढ़ बढ़ के थे और गुनाहगारों से (उनकी सज़ा के वक़्त) उनके गुनाहों की पूछताछ नहीं हुआ करती।
  13. फ़-ख़-र-ज अ़ला क़ौमिही फ़ी जी – नतिही, क़ालल्लज़ी न युरीदूनल् – हयातद्दुन्या यालै – त लना मिस् – ल मा ऊति – य कारूनु इन्नहू लजू हज्जिन् अ़ज़ीम
    ग़रज़ (एक दिन क़ारुन) अपनी क़ौम के सामने बड़ी आराइश और ठाठ के साथ निकला तो जो लोग दुनिया को (चन्द रोज़ा) जि़न्दगी के तालिब थे (इस शान से देख कर) कहने लगे जो माल व दौलत क़ारुन को अता हुयी है काश मेरे लिए भी होती इसमें शक नहीं कि क़ारुन बड़ा नसीब वर था।
  14. व कालल्लज़ी – न ऊतुल् – अिल्- म वैलकुम् सवाबुल्लाहि ख़ैरुल् – लिमन् आम-न व अ़मि-ल सालिहन् व ला युलक़्क़ाहा इल्लस्साबिरून
    और जिन लोगों को (हमारी बारगाह में) इल्म अता हुआ था कहनें लगे तुम्हारा नास हो जाए (अरे) जो शख़्स इमान लाए और अच्छे काम करे उसके लिए तो अल्लाह का सवाब इससे कही बेहतर है और वह तो अब सब्र करने वालों के सिवा दूसरे नहीं पा सकते।
  15. फ़- ख़सपना बिही व बिदारिहिल् अर् ज़ फ़मा का-न लहू मिन् फ़ि – अतिंय् – यन्सुरूनहू मिन् दूनिल्लाहि, व मा का – न मिनल्- मुन्तसिरीन
    और हमने क़ारुन और उसके घर बार को ज़मीन में धंसा दिया फिर अल्लाह के सिवा कोई जमाअत ऐसी न थी कि उसकी मदद करती और न खुद आप अपनी मदद आप कर सका।
  16. फ़- ख़सपना बिही व बिदारिहिल् अर् ज़ फ़मा का-न लहू मिन् फ़ि – अतिंय् – यन्सुरूनहू मिन् दूनिल्लाहि, व मा का – न मिनल्- मुन्तसिरीन
    और जिन लोगों ने कल उसके जाह व मरतबे की तमन्ना की थी वह (आज ये तमाशा देखकर) कहने लगे अरे माज़अल्लाह ये तो अल्लाह ही अपने बन्दों से जिसकी रोज़ी चाहता है कुशादा कर देता है और जिसकी रोज़ी चाहता है तंग कर देता है और अगर (कहीं) अल्लाह हम पर मेहरबानी न करता (और इतना माल दे देता) तो उसकी तरह हमको भी ज़रुर धॅसा देता-और माज़अल्लाह (सच है) हरगिज़ कुफ्फार अपनी मुरादें न पाएँगें।
  17. तिल्कद् – दारुल् – आखि- रतु नज् अ़लुहा लिल्लज़ी – न ला युरीदू – न अुलुव्वन् फ़िलअर्जि व ला फ़सादन् वल -आ़कि-बतु लिल्-मुत्तक़ीन
    ये आखि़रत का घर तो हम उन्हीं लोगों के लिए ख़ास कर देगें जो रुए ज़मीन पर न सरकशी करना चाहते हैं और न फसाद-और (सच भी यूँ ही है कि) फिर अन्जाम तो परहेज़गारों ही का है।
  18. मन् जा – अ बिल्ह – स नति फ़ – लहू ख़ैरुम् – मिन्हा व मन् जा – अ बिस्सय्यि – अति फ़ला युज्ज़ल्लज़ी-न अ़मिलुस्सय्यि आति
    इल्ला मा कानू यअ्मलून
    जो शख़्स नेकी करेगा तो उसके लिए उसे कहीं बेहतर बदला है औ जो बुरे काम करेगा तो वह याद रखे कि जिन लोगों ने बुराइयाँ की हैं उनका वही बदला हे जो दुनिया में करते रहे हैं।
  19. इन्नल्लजी फ़-र-ज़ अ़लैकल् कुरआ-न ल-राद्दु-क इला मआ़दिन्, कुर्रब्बी अअ्लमु मन् जा-अ बिल्हुदा व मन् हु-व फ़ी ज़लालिम् – मुबीन
    (ऐ रसूल!) अल्लाह जिसने तुम पर क़़ुरआन नाजि़ल किया ज़रुर ठिकाने तक पहुँचा देगा (ऐ रसूल) तुम कह दो कि कौन राह पर आया और कौन सरीही गुमराही में पड़ा रहा।
  20. व मा कुन्-त तरजू अंय्युल्का इलैकल्-किताबु इल्ला रह्म-तम् मिर्रब्बि-क फला तकूनन्-न ज़हीरल् लिल्-काफ़िरीन
    इससे मेरा परवरदिगार ख़ूब वाकि़फ है और तुमको तो ये उम्मीद न थी कि तुम्हारे पास अल्लाह की तरफ़ से किताब नाजि़ल की जाएगी मगर तुम्हारे परवरदिगार की मेहरबानी से नाजि़ल हुयी तो तुम हरगि़ज़ काफिरों के पुष्त पनाह न बनना।
  21. व ला यसुद्दुन्न-क अ़न् आयातिल्लाहि बस्-द इज् उन्ज़िलत् इलै-क वद्अु इला रब्बि-क व ला तकूनन्-न मिनल्-मुश्रिकीन
    कहीं ऐसा न हो एहकामे अल्लाह वन्दी नाजि़ल होने के बाद तुमको ये लोग उनकी तबलीग़ से रोक दें और तुम अपने परवरदिगार की तरफ़ (लोगों को) बुलाते जाओ और ख़बरदार मुशरेकीन से हरगिज़ न होना।
  22. व ला तद्अु मअ़ल्लाहि इलाहन् आ-ख़-र • ला इला-ह इल्ला हु-व, कुल्लु शैइन् हालिकुन् इल्ला वज्-हहू, लहुल्-हुक्मु व इलैहि तुर्जअून *
    और अल्लाह के सिवा किसी और माबूद की परसतिश न करना उसके सिवा कोई क़ाबिले परसतिश नहीं उसकी ज़ात के सिवा हर चीज़ फ़ना होने वाली है उसकी हुकूमत है और तुम लोग उसकी तरफ़ (मरने के बाद) लौटाये जाओगे।

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