15 सूरह अल-हिज्र हिंदी में पेज 1

15 सूरह अल-हिज्र | Surah Al-Hijr

सूरह अल-हिज्र में 99 आयतें हैं। यह सूरह पारा 13, पारा 14 में है। यह सूरह मक्का में नाजिल हुई।

इस सूरह का नाम आयत 80 के वाक्यांश ‘‘हिज्र के लोग भी रसूलों को झुठला चुके हैं,” से लिया गया है।

सूरह अल-हिज्र हिंदी में | Surat Al-Hijr in Hindi

बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहिम
शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम वाला है
  1. अलिफ लाम् – रा, तिल – क आयातुल् – किताबि व कुरआनिम् – मुबीन
    अलिफ़ लाम रा ये किताब (ख़ुदा) और वाजेए व रौशन क़ुरान की (चन्द) आयते हैं (1)
  2. रू-बमा यवद्दुल्लज़ी-न क-फरू लौ कानू मुस्लिमीन
    (एक दिन वह भी आने वाला है कि) जो लोग काफि़र हो बैठे हैं अक्सर दिल से चाहेंगें (2)
  3. ज़रहुम् यअ्कुलू व य-त मत्तअू व युल्हिहिमुल्-अ-मलु फ़ सौ-फ य्अलमून
    काश (हम भी) मुसलमान होते (ऐ रसूल) उन्हें उनकी हालत पर रहने दो कि खा पी लें और (दुनिया के चन्द रोज़) चैन कर लें और उनकी तमन्नाएँ उन्हें खेल तमाशे में लगाए रहीं (3)
  4. व मा अह़्लक्ना मिन् कर्यतिन् इल्ला व लहा किताबुम् -मअ्लूम
    अनक़रीब ही (इसका नतीजा) उन्हें मालूम हो जाएगा और हमने कभी कोई बस्ती तबाह नहीं की मगर ये कि उसकी तबाही के लिए (पहले ही से) समझी बूझी मियाद मुक़र्रर लिखी हुयी थी (4)
  5. मा तस्बिकु मिन् उम्मतिन् अ-ज-लहा व मा यस्तअ्खिरून
    कोई उम्मत अपने वक़्त से न आगे बढ़ सकती है न पीछे हट सकती है (5)
  6. व कालू या अय्युहल्लज़ी नुज़्ज़ि-ल अलैहिज्जिक्रु इन्न-क ल – मज्नून
    (ऐ रसूल कुफ़्फ़ारे मक्का तुमसे) कहते हैं कि ऐ शख़्स (जिसको ये भरम है) कि उस पर ‘वही’ व किताब नाजि़ल हुई है तो (अच्छा ख़ासा) सिड़ी है (6)
  7. लौ मा तअ्तीना बिल्मलाइ – कति इन् कुन् -त मिनस्सादिक़ीन
    अगर तू अपने दावे में सच्चा है तो फरिष्तों को हमारे सामने क्यों नहीं ला खड़ा करता (7)
  8. मा नुनज़्ज़िलुल-मलाइ-क-त इल्ला बिल्हक्कि व मा कानू इज़म् – मुन्ज़रीन
    (हालाँकि) हम फरिश्तों को खुल्लम खुल्ला (जिस अज़ाब के साथ) फैसले ही के लिए भेजा करते हैं और (अगर फरिश्ते नाजि़ल हो जाए तो) फिर उनको (जान बचाने की) मोहलत भी न मिले (8)
  9. इन्ना नह्नु नज़्ज़ल् – नज़्ज़िक्र व इन्ना लहू लहाफिजून
    बेशक हम ही ने क़ुरान नाजि़ल किया और हम ही तो उसके निगेहबान भी हैं (9)
  10. व ल – कद् अर्सल्ना मिन् कब्लि – क फ़ी शि- यअिल्- अव्वलीन
    (ऐ रसूल) हमने तो तुमसे पहले भी अगली उम्मतों में (और भी बहुत से) रसूल भेजे (10)
  11. व मा यस्तीहिम् मिर्रसूलिन् इल्ला कानू बिही यस्तह्ज़िऊन
    और (उनकी भी यही हालत थी कि) उनके पास कोई रसूल न आया मगर उन लोगों ने उसकी हँसी ज़रुर उड़ाई (11)
  12. कज़ालि – क नस्लुकुहू फी कुलूबिल् – मुज्रिमीन
    हम (गोया खुद) इसी तरह इस (गुमराही) को (उन) गुनाहगारों के दिल में डाल देते हैं (12)
  13. ला युअ्मिनू – न बिही व कद् ख़लत् सुन्नतुल अव्वलीन
    ये कुफ़्फ़ार इस (क़ुरान) पर इमान न लाएँगें और (ये कुछ अनोखी बात नहीं) अगलों के तरीक़े भी (ऐसे ही) रहें है (13)
  14. व लौ फ़तह़्ना अलैहिम् बाबम् – मिनस्समा – इ फज़ल्लू फ़ीहि यअ्-रूजून
    और अगर हम अपनी कुदरत से आसमान का एक दरवाज़ा भी खोल दें और ये लोग दिन दहाड़े उस दरवाज़े से (आसमान पर) चढ़ भी जाएँ (14)
  15. लकालू इन्नमा सुक्किरत् अब्सारूना बल् नह्नु कौमुम् – मस्हूरून *
    तब भी यहीं कहेगें कि हो न हो हमारी आँखें (नज़र बन्दी से) मतवाली कर दी गई हैं या नहीं तो हम लोगों पर जादू किया गया है (15)
  16. वल – कद् जअ़ल्ना फिस्समा-इ बुरूजंव् – व ज़य्यन्नाहा लिन्नाज़िरीन
    और हम ही ने आसमान में बुर्ज बनाए और देखने वालों के वास्ते उनके (सितारों से) आरास्ता (सजाया) किया (16)
  17. व हफिज़्नाहा मिन् कुल्लि शैतानिर्रजीम
    और हर शैतान मरदूद की आमद रफत (आने जाने) से उन्हें महफूज़ रखा (17)
  18. इल्ला मनिस्त- रक़स्सम् अ फ़अत्ब – अहू शिहाबुम् – मुबीन
    मगर जो शैतान चोरी छिपे (वहाँ की किसी बात पर) कान लगाए तो शहाब का दहकता हुआ शोला उसके (खदेड़ने को) पीछे पड़ जाता है (18)
  19. वल्अर् -ज़ मदद्नाहा व अल्कैना फ़ीहा रवासि – य व अम्बत्ना फ़ीहा मिन् कुल्लि शैइम् – मौजून
    और ज़मीन को (भी अपने मख़लूक़ात के रहने सहने को) हम ही ने फैलाया और इसमें (कील की तरह) पहाड़ो
    के लंगर डाल दिए और हमने उसमें हर किस्म की मुनासिब चीज़े उगाई (19)
  20. व जअ़ल्ना लकुम् फ़ीहा मआ़यि – श व मल्लस्तुम् लहू बिराज़िक़ीन
    और हम ही ने उन्हें तुम्हारे वास्ते जि़न्दगी के साज़ों सामान बना दिए और उन जानवरों के लिए भी जिन्हें तुम रोज़ी नहीं देते (20)
  21. व इम्मिन् शैइन् इल्ला अिन्दना ख़ज़ाइनुहू व मा नुनज्जिलुहू इल्ला बि-क-दरिम्-मअ्लूम
    और हमारे यहाँ तो हर चीज़ के बेषुमार खज़ाने (भरे) पड़े हैं और हम (उसमें से) एक जची तली मिक़दार भेजते रहते है (21)
  22. व अरसल्नर्रिया – ह लवाकि ह फ़ अन्ज़ल्ना मिनस्समा – इ माअन् फ़ – अस्क़ैनाकुमूहु व मा अन्तुम् लहू बिख़ाज़िनीन
    और हम ही ने वह हवाएँ भेजी जो बादलों को पानी से (भरे हुए) है फिर हम ही ने आसमान से पानी बरसाया फिर हम ही ने तुम लोगों को वह पानी पिलाया और तुम लोगों ने तो कुछ उसको जमा करके नहीं रखा था (22)
  23. व इन्ना ल-नह्नु नुह़्यी व नुमीतु व नह़्नुल्-वारिसून
    और इसमें शक नहीं कि हम ही (लोगों को) जिलाते और हम ही मार डालते हैं और (फिर) हम ही (सब के) वाली वारिस हैं (23)
  24. व ल – कद् अ़लिम्नल् – मुस्तक्दिमी – न मिन्कुम् व ल – क द् अ़लिम्नल् – मुस्तअ्खिरीन
    और बेषक हम ही ने तुममें से उन लोगों को भी अच्छी तरह समझ लिया जो पहले हो गुज़रे और हमने उनको भी जान लिया जो बाद को आने वाले हैं (24)
  25. व इन् -न रब्ब -क हु -व यह्शुरूहुम्, इन्नहू हकीमुन् अलीम *
    और इसमें शक नहीं कि तेरा परवरदिगार वही है जो उन सब को (क़यामत में कब्रों से) उठाएगा बेशक वह हिक़मत वाला वाकि़फकार है (25)

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