16 सूरह अन नहल हिंदी में पेज 1

16 सूरह अन नहल | Surah An-Nahl

सूरह अन नहल में 128 आयतें हैं। यह सूरह पारा 14 में है। यह सूरह मक्का में नाजिल हुई।

इस सूरह का नाम आयत 68 के वाक्यांश “और देखो तुम्हारे रब ने मधुमक्खी (नहल) पर यह बात वह्यी कर दी” से लिया गया है।

सूरह अन नहल हिंदी में | Surat An-Nahl in Hindi

बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहिम
अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम वाला है

  1. ऐ कुफ़्फ़ारे मक्का (ख़़ुदा का हुक्म (क़यामत गोया) आ पहुँचा तो (ऐ काफिरों बे फायदे) तुम इसकी जल्दी न मचाओ जिस चीज़ को ये लोग शरीक क़रार देते हैं उससे वह ख़ुदा पाक व पाकीज़ा और बरतर है (1)
  2. वही अपने हुक्म से अपने बन्दों में से जिसके पास चाहता है ‘वहीं’देकर फ़रिश्तौं को भेजता है कि लोगों को इस बात से आगाह कर दें कि मेरे सिवा कोई माबूद नहीं तो मुझी से डरते रहो (2)
  3. उसी ने सारे आसमान और ज़मीन मसलहत व हिकमत से पैदा किए तो ये लोग जिसको उसका शरीक बनाते हैं उससे कहीं बरतर है (3)
  4. उसने इन्सान को नुत्फे से पैदा किया फिर वह यकायक (हम ही से) खुल्लम खुल्ला झगड़ने वाला हो गया (4)
  5. उसी ने चरपायों को भी पैदा किया कि तुम्हारे लिए ऊन (ऊन की खाल और ऊन) से जाडे़ का सामान है (5)
  6. इसके अलावा और भी फायदें हैं और उनमें से बाज़ को तुम खाते हो और जब तुम उन्हें सिरे शाम चराई पर से लाते हो जब सवेरे ही सवेरे चराई पर ले जाते हो (6)
  7. तो उनकी वजह से तुम्हारी रौनक़ भी है और जिन शहरों तक बग़ैर बड़ी जान ज़ोख़म में डाले बगै़र के पहुँच न सकते थे वहाँ तक ये चैपाए भी तुम्हारे बोझे भी उठा लिए फिरते हैं इसमें शक नहीं कि तुम्हारा परवरदिगार बड़ा शफीक़ मेहरबान है (7)
  8. और (उसी ने) घोड़ों ख़च्चरों और गधों को (पैदा किया) ताकि तुम उन पर सवार हो और (इसमें) ज़ीनत (भी) है (8)
  9. (उसके अलावा) और चीज़े भी पैदा करेगा जिनको तुम नहीं जानते हो और (खुश्क व तर में) सीधी राह (की हिदायत तो ख़ुदा ही के जि़म्मे हैं और बाज़ रस्ते टेढे़ हैं (9)
  10. और अगर ख़़ुदा चाहता तो तुम सबको मजि़ले मक़सूद तक पहुँचा देता वह वही (ख़ुदा) है जिसने आसमान से पानी बरसाया जिसमें से तुम सब पीते हो और इससे दरख़्त शादाब होते हैं (10)
  11. जिनमें तुम (अपने मवेशियों को) चराते हो इसी पानी से तुम्हारे वास्ते खेती और जै़तून और खुरमें और अंगूर उगाता है और हर तरह के फल (पैदा करता है) इसमें शक नहीं कि इसमें ग़ौर करने वालो के वास्ते (कुदरते ख़ुदा की) बहुत बड़ी निशानी है (11)
  12. उसी ने तुम्हारे वास्ते रात को और दिन को और सूरज और चाँद को तुम्हारा ताबेए बना दिया है और सितारे भी उसी के हुक्म से (तुम्हारे) फरमाबरदार हैं कुछ शक ही नहीं कि (इसमें) समझदार लोगों के वास्ते यक़ीनन (कुदरत खु़दा की) बहुत सी निशानियाँ हैं (12)
  13. और जो तरह तरह के रंगों की चीज़े उसमें ज़मीन में तुम्हारे नफे के वास्ते पैदा की (13)
  14. कुछ शक नहीं कि इसमें भी इबरत व नसीहत हासिल करने वालों के वास्ते (कुदरते ख़़ुदा की) बहुत सी निशानी है और वही (वह ख़ुदा है जिसने दरिया को (भी तुम्हारे) क़ब्ज़े में कर दिया ताकि तुम इसमें से (मछलियों का) ताज़ा ताज़ा गोश्त खाओ और इसमें से जे़वर (की चीज़े मोती वगैरह) निकालो जिन को तुम पहना करते हो और तू कश्तियों को देखता है कि (आमद व रफत में) दरिया में (पानी को) चीरती फाड़ती आती है (14)
  15. और (दरिया को तुम्हारे ताबेए) इसलिए (कर दिया) कि तुम लोग उसके फज़ल (नफा तिजारत) की तलाश करो और ताकि तुम शुक्र करो और उसी ने ज़मीन पर (भारी भारी) पहाड़ों को गाड़ दिया (15)
  16. ताकि (ऐसा न हों) कि ज़मीन तुम्हें लेकर झुक जाए (और तुम्हारे क़दम न जमें) और (उसी ने) नदियाँ और रास्ते (बनाए) (16)
  17. ताकि तुम (अपनी अपनी मंजि़ले मक़सूद तक पहुँचों (उसके अलावा रास्तों में) और बहुत सी निशानियाँ (पैदा की हैं) और बहुत से लोग सितारे से भी राह मालूम करते हैं (17)
  18. तो क्या जो (ख़ुदा इतने मख़लूकात को) पैदा करता है वह उन (बुतों के बराबर हो सकता है जो कुछ भी पैदा नहीं कर सकते तो क्या तुम (इतनी बात भी) नहीं समझते और अगर तुम ख़ुदा की नेअमतों को गिनना चाहो तो (इस कसरत से हैं कि) तुम नहीं गिन सकते हो (18)
  19. बेषक ख़़ुदा बड़ा बख़्षने वाला मेहरबान है कि (तुम्हारी नाफरमानी पर भी नेअमत देता है) (19)
  20. और जो कुछ तुम छिपाकर करते हो और जो कुछ ज़ाहिर करते हो (ग़रज़) ख़ुदा (सब कुछ) जानता है और (ये कुफ्फार) ख़़ुदा को छोड़कर जिन लोगों को (हाजत के वक़्त) पुकारते हैं वह कुछ भी पैदा नहीं कर सकते (20)
  21. (बल्कि) वह ख़ुद दूसरों के बनाए हुए मुर्दे बेजान हैं और इतनी भी ख़बर नहीं कि कब (क़यामत) होगी और कब मुर्दे उठाए जाएगें (21)
  22. (फिर क्या काम आएगी) तुम्हारा परवरदिगार (यकता खुदा है तो जो लोग आखि़रत पर इमान नहीं रखते उनके दिल ही (इस वजह के हैं कि हर बात का) इन्कार करते हैं और वह बड़े मग़रुर हैं (22)
  23. ये लोग जो कुछ छिपा कर करते हैं और जो कुछ ज़ाहिर बज़ाहिर करते हैं (ग़रज़ सब कुछ) ख़ुदा ज़रुर जानता है वह हरगिज़ तकब्बुर करने वालों को पसन्द नहीं करता (23)
  24. और जब उनसे कहा जाता है कि तुम्हारे परवरदिगार ने क्या नाजि़ल किया है तो वह कहते हैं कि (अजी कुछ भी नहीं बस) अगलो के किस्से हैं (24)
  25. (उनको बकने दो ताकि क़यामत के दिन) अपने (गुनाहों) के पूरे बोझ और जिन लोगों को उन्होंने बे समझे बूझे गुमराह किया है उनके (गुनाहों के) बोझ भी उन्हीं को उठाने पड़ेगें ज़रा देखो तो कि ये लोग कैसा बुरा बोझ अपने ऊपर लादे चले जा रहें हैं (25)

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