14 सूरह इब्राहीम हिंदी में पेज 1

14 सूरह इब्राहीम | Surah Ibrahim

सूरह इब्राहीम में 52 आयतें हैं। यह सूरह पारा 13 में है। यह सूरह मक्का में नाजिल हुई।

आयत 35 के वाक्य ‘‘याद करो वह समय जब इब्राहिम ने दुआ की थी कि पालनहार! इस शहर (मक्का) को शांत नगर बना” से लिया गया है।

सूरह इब्राहीम हिंदी में | Surat Ibrahim in Hindi

बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहिम
शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम वाला है
  1. अलिफ्-लाम्-रा, किताबुन् अन्ज़ल्नाहु इलै – क लितुख़्रिजन्ना – स मिनज़्ज़ुलुमाति इलन्-नूरि बि- इज़्नि रब्बिहिम् इला सिरातिल् अ़ज़ीज़ल – हमीद
    अलिफ़ लाम रा ऐ रसूल ये (क़ुरान वह) किताब है जिसकों हमने तुम्हारे पास इसलिए नाजि़ल किया है कि तुम लोगों को परवरदिगार के हुक्म से (कुफ्र की) तारीकी से (इमान की) रौशनी में निकाल लाओ ग़रज़ उसकी राह पर लाओ जो सब पर ग़ालिब और सज़ावार हम्द है (1)
  2. अल्लाहिल्लज़ी लहू मा फ़िस्समावाति वमा फिल्अर्ज़ि, व वैलुल् – लिल् – काफ़िरी-न मिन् अ़ज़ाबिन् शदीद
    वह ख़ुदा को कुछ आसमानों में और जो कुछ ज़मीन में है (ग़रज़ सब कुछ) उसी का है और (आखि़रत में) काफिरों को लिए जो सख़्त अज़ाब (मुहय्या किया गया) है अफसोस नाक है (2)
  3. अल्लज़ी – न यस्तहिब्बूनल् – हयातद्दुन्या अ़लल् – आख़िरति व यसुद्दू – न अन् सबीलिल्लाहि व यब्गूनहा अि – वजन्, उलाइ – क फ़ी ज़लालिम्-बईद
    वह कुफ्फार जो दुनिया की (चन्द रोज़ा) जि़न्दगी को आखि़रत पर तरजीह देते हैं और (लोगों) को ख़ुदा की राह (पर चलने) से रोकते हैं और इसमें ख़्वाह मा ख़्वाह कज़ी पैदा करना चाहते हैं यही लोग बड़े पल्ले दर्जे की गुमराही में हैं (3)
  4. व मा अरसल्ना मिर्रसूलिन् इल्ला बिलिसानि – कौमिही लियुबय्यि – न लहुम, फ़युज़िल्लुल्लाहु मंय्यशा – उ व यदी मंय्यशा – उ, व हुवल् अ़ज़ीजुल हकीम
    और हमने जब कभी कोई पैग़म्बर भेजा तो उसकी क़ौम की ज़बान में बातें करता हुआ (ताकि उसके सामने (हमारे एहक़ाम) बयान कर सके तो यही ख़ुदा जिसे चाहता है गुमराही में छोड़ देता है और जिस की चाहता है हिदायत करता है वही सब पर ग़ालिब हिकमत वाला है (4)
  5. व ल – कद् अरसल्ना मूसा बिआयातिना अन् अख्रिज् कौम – क मिनज़्ज़ुलुमाति इलन्नूरि व ज़क्किरहुम् बिअय्यामिल्लाहि, इन् – न फ़ी ज़ालि-क लआयातिल् लिकुल्लि सब्बारिन् शकूर
    और हमने मूसा को अपनी निशनियाँ देकर भेजा (और ये हुक्म दिया) कि अपनी क़ौम को (कुफ्र की) तारिकियों से (इमान की) रौशनी में निकाल लाओ और उन्हें ख़ुदा के (वह) दिन याद दिलाओ (जिनमें ख़ुदा की बड़ी बड़ी कुदरतें ज़ाहिर हुयी) इसमें शक नहीं इसमें तमाम सब्र शुक्र करने वालों के वास्ते (कुदरते ख़ुदा की) बहुत सी निशानियाँ हैं (5)
  6. व इज् का-ल मूसा लिकौमिहिज़्कुरू निअ्म – तल्लाहि अलैकुम् इज् अन्जाकुम् मिन् आलि फिरऔ-न यसूमूनकुम् सूअल् – अ़ज़ाबि व युज़ब्बिहू – न अब्ना अकुम व यस्तह्यू – न निसा-अकुम्, व फ़ी ज़ालिकुम् बलाउम् – मिर्रब्बिकुम् अ़ज़ीम
    और वह (वक़्त याद दिलाओ) जब मूसा ने अपनी क़ौम से कहा कि ख़ुदा ने जो एहसान तुम पर किए हैं उनको याद करो जब अकेले तुमको फिरआऊन के लोगों (के ज़ुल्म) से नजात दी कि वह तुम को बहुत बड़े बड़े दुख दे के सताते थे तुम्हारा लड़कों को जबाह कर डालते थे और तुम्हारी औरतों को (अपनी खि़दमत के वास्ते) जिन्दा रहने देते थे और इसमें तुम्हारा परवरदिगार की तरफ से (तुम्हारा सब्र की) बड़ी (सख़्त) आज़माइश थी (6)
  7. व इज् त – अज़्ज़ – न रब्बुकुम् ल इन् श कर्तुम् ल अज़ीदन्नकुम् व ल – इन् क – फ़रतुम् इन् – न अ़ज़ाबी ल – शदीद
    और (वह वक़्त याद दिलाओ) जब तुम्हारे परवरदिगार ने तुम्हें जता दिया कि अगर (मेरा) शुक्र करोगें तो मै यक़ीनन तुम पर (नेअमत की) ज़्यादती करुँगा और अगर कहीं तुमने नाशुक्री की तो (याद रखो कि) यक़ीनन मेरा अज़ाब सख़्त है (7)
  8. व का – ल मूसा इन् तक्फ़रू अन्तुम व मन् फ़िलअर्जि जमीअन् फ़ इन्नल्ला – ह ल – ग़निय्युन हमीद
    और मूसा ने (अपनी क़ौम से) कह दिया कि अगर और (तुम्हारे साथ) जितने रुए ज़मीन पर हैं सब के सब (मिलकर भी ख़ुदा की) नाशुक्री करो तो ख़ुदा (को ज़रा भी परवाह नहीं क्योंकि वह तो बिल्कुल) बे नियाज़ है (8)
  9. अलम् यक्तिकुम् न – बउल्लज़ी – न मिन् क़ब्लिकुम् क़ौमि नूहिंव् – व आदिंव् – व समू-द, वल्लज़ी-न मिम् – बअ्दिहिम्, ला यअ्लमुहुम् इल्लल्लाहु, जाअत्हुम् रूसुलुहुम् बिल्बय्यिनाति फ़- रद्दू ऐदि-यहुम् फ़ी अफ़्वाहिहिम् व कालू इन्ना क – फर्ना बिमा उर्सिल्तुम् बिही व इन्ना लफ़ी शक्किम् मिम्मा तद्अूनना इलैहि मुरीब
    और हम्द है क्या तुम्हारे पास उन लोगों की ख़बर नहीं पहुँची जो तुमसे पहले थे (जैसे) नूह की क़ौम और आद व समूद और (दूसरे लोग) जो उनके बाद हुए (क्योकर ख़बर होती) उनको ख़ुदा के सिवा कोई जानता ही नहीं उनके पास उनके (वक़्त के) पैग़म्बर मौजिज़े लेकर आए (और समझाने लगे) तो उन लोगों ने उन पैग़म्बरों के हाथों को उनके मुँह पर उलटा मार दिया और कहने लगे कि जो (हुक्म लेकर) तुम ख़ुदा की तरफ से भेजे गए हो हम तो उसको नहीं मानते और जिस (दीन) की तरफ तुम हमको बुलाते हो बड़े गहरे शक में पड़े है (9)
  10. कालत् रूसुलुहुम् अफ़िल्लाहि शक्कुन् फ़ातिरिस्समावाति वलअर्जि यद्अूकुम् लियग्फि – र लकुम् मिन् जुनूबिकुम् व यु – अख्खि – रकुम् इला अ – जलिम् – मुसम्मन्, कालू इन अन्तुम इल्ला ब शरूम् – मिस्लुना, तुरीदू – न अन् तसुद्दूना अम्मा का-न यअ्बुदु आबाउना फ़अ्तूना बिसुल्तानिम् – मुबीन
    (तब) उनके पैग़म्बरों ने (उनसे) कहा क्या तुम को ख़ुदा के बारे में शक है जो सारे आसमान व ज़मीन का पैदा करने वाला (और) वह तुमको अपनी तरफ बुलाता भी है तो इसलिए कि तुम्हारे गुनाह माफ कर दे और एक वक़्त मुक़र्रर तक तुमको (दुनिया में चैन से) रहने दे वह लोग बोल उठे कि तुम भी बस हमारे ही से आदमी हो (अच्छा) अब समझे तुम ये चाहते हो कि जिन माबूदों की हमारे बाप दादा परसतिश करते थे तुम हमको उनसे बाज़ रखो अच्छा अगर तुम सच्चे हो तो कोई साफ खुला हुआ सरीही मौजिज़ा हमे ला दिखाओ (10)
  11. कालत् लहुम् रूसुलुहुम् इन् नह्नु इल्ला ब- शरूम् – मिस्लुकुम् व लाकिन्नल्ला – ह यमुन्नु अ़ला मंय्यशा – उ मिन् अिबादिही, व मा का – न लना अन् नअ्ति -यकुम् बिसुल्तानिन् इल्ला बि – इज़्निल्लाहि, व अलल्लाहि फल्य तवक्कलिल्-मुअ्मिनून
    उनके पैग़म्बरों ने उनके जवाब में कहा कि इसमें शक नहीं कि हम भी तुम्हारे ही से आदमी हैं मगर ख़ुदा अपने बन्दों में जिस पर चाहता है अपना फज़ल (व करम) करता है (और) रिसालत अता करता है और हमारे एख़्तियार मे ये बात नही कि बे हुक्मे ख़ुदा (तुम्हारी फरमाइश के मुवाफिक़) हम कोई मौजिज़ा तुम्हारे सामने ला सकें और ख़ुदा ही पर सब इमानदारों को भरोसा रखना चाहिए (11)
  12. व मा लना अल्ला न-तवक्क-ल अ़लल्लाहि व कद् हदाना सुबु – लना, व लनस्बिरन् – न अ़ला मा आज़ैतुमूना व अ़लल्लाहि फल्य – तवक्कलिल् मुतवक्किलून *
    और हमें (आखि़र) क्या है कि हम उस पर भरोसा न करें हालाँकि हमे (निजात की) आसान राहें दिखाई और जो तूने अजि़यतें हमें पहुँचाइ (उन पर हमने सब्र किया और आइन्दा भी सब्र करेगें और तवक्कल भरोसा करने वालो को ख़ुदा ही पर तवक्कल करना चाहिए (12)
  13. व कालल्लज़ी – न क – फरू लिरूसुलिहिम् लनुखरिजन्नकुम् मिन् अर्ज़िना औ-ल तअूदुन् – न फी मिल्लतिना, फ़- औहा इलैहिम् रब्बुहुम् लनुह़्लिकन्नज्-ज़ालिमीन
    और जिन लोगों नें कुफ्र एख़्तियार किया था अपने (वक़्त के) पैग़म्बरों से कहने लगे हम तो तुमको अपनी सरज़मीन से ज़रुर निकाल बाहर कर देगें यहाँ तक कि तुम फिर हमारे मज़हब की तरफ पलट आओ-तो उनके परवरदिगार ने उनकी तरफ वही भेजी कि तुम घबराओं नहीं हम उन सरकष लोगों को ज़रुर बर्बाद करेगें (13)
  14. व लनुस्किनन्न – कुमुल् अर्-ज़ मिम्-बअ्दिहिम्, ज़ालि- क लिमन् ख़ा -फ मक़ामी व ख़ा-फ वईद
    और उनकी हलाकत के बाद ज़रुर तुम्ही को इस सरज़मीन में बसाएगें ये (वायदा) महज़ उस शख़्स से जो हमारी बारगाह में (आमाल की जवाब देही में) खड़े होने से डरे (14)
  15. वस्तफ़्तहू व ख़ा – ब कुल्लु जब्बारिन् अ़नीद
    और हमारे अज़ाब से ख़ौफ खाए और उन पैग़म्बरों हम से अपनी फतेह की दुआ माँगी (आखि़र वह पूरी हुयी) (15)
  16. मिंव्वराइही जहन्नमु व युस्का मिम् – माइन् सदीद
    और हर एक सरकश अदावत रखने वाला हलाक हुआ (ये तो उनकी सज़ा थी और उसके पीछे ही पीछे जहन्नुम है और उसमें) से पीप लहू भरा हुआ पानी पीने को दिया जाएगा (16)
  17. य – तजर्रअुहू व ला यकादु युसीगुहू व यअ्तीहिल् – मौतु मिन् कुल्लि मकानिंव् – व मा हु- व बि मय्यितिन्, व मिंव्वराइही अ़ज़ाबुन् ग़लीज़
    (ज़बरदस्ती) उसे घूँट घूँट करके पीना पड़ेगा और उसे हलक़ से आसानी से न उतार सकेगा और (वह मुसीबत है कि) उसे हर तरफ से मौत ही मौत आती दिखाई देती है हालाँकि वह मारे न मर सकेगा-और फिर उसके पीछे अज़ाब सख़्त होगा (17)
  18. म सलुल्लज़ी – न क – फ़रू बिरब्बिहिम् अअ्मालुहुम् क- रमादि निश्तद्दत बिहिर्रींहु फी यौमिन् आ़सिफिन्, ला यक्दिरू – न मिम्मा क – सबू अ़ला शैइन्, ज़ालि – क हुवज़्ज़लालुल् – बईद
    जो लोग अपने परवरदिगार से काफिर हो बैठे हैं उनकी मसल ऐसी है कि उनकी कारस्तानियाँ गोया (राख का एक ढेर) है जिसे (अन्धड़ के रोज़ हवा का बड़े ज़ोरों का झोंका उड़ा लेगा जो कुछ उन लोगों ने (दुनिया में) किया कराया उसमें से कुछ भी उनके क़ाबू में न होगा यही तो पल्ले दर्जे की गुमराही है (18)
  19. अलम् त-र अन्नल्ला-ह ख़-लकस् समावाति वल् अर्ज़ बिल् – हक्कि, इंय्यशस् युज्हिब्कुम् व यअ्ति बिख़ल्किन् जदीद
    क्या तूने नहीं देखा कि ख़ुदा ही ने सारे आसमान व ज़मीन ज़रुर मसलहत से पैदा किए अगर वह चाहे तो सबको मिटाकर एक नई खिलक़त (बस्ती) ला बसाए (19)
  20. व मा ज़ालि- क अ़लल्लाहि बि अ़ज़ीज़
    औ ये ख़ुदा पर कुछ भी दुशवार नहीं (20)
  21. व ब-रजू लिल्लाहि जमीअ़न् फ़कालज़्जु- अफ़ा-उ लिल्लज़ीनस् तक्बरू इन्ना कुन्ना लकुम् त- बअ़न् फ़ -हल् अन्तुम् मुग्नू – न अन्ना मिन् अ़ज़ाबिल्लाहि मिन् शैइन्, कालू लौ हदानल्लाहु ल – हदैनाकुम् , सवाउन् अ़लैना अ – जज़िअ्ना अम् सबरना मा लना मिम् महीस *
    और (क़यामत के दिन) लोग सबके सब ख़ुदा के सामने निकल खड़े होगें जो लोग (दुनिया में कमज़ोर थे बड़ी इज़्ज़त रखने वालो से (उस वक़्त) कहेंगें कि हम तो बस तुम्हारे क़दम ब क़दम चलने वाले थे तो क्या (आज) तुम ख़ुदा के अज़ाब से कुछ भी हमारे आड़े आ सकते हो वह जवाब देगें काश ख़ुदा हमारी हिदायत करता तो हम भी तुम्हारी हिदायत करते हम ख़्वाह बेक़रारी करें ख़्वाह सब्र करे (दोनो) हमारे लिए बराबर है (क्योंकि अज़ाब से) हमें तो अब छुटकारा नहीं (21)
  22. व कालश्शैतानु लम्मा कुज़ियल् – अम्रु इन्नल्ला – ह व-अ-दकुम् वअ्दल्-हक्कि व व-अ़त्तुकुम् फ़ – अख़्लफ़्तुकुम्, व मा का – न लि-य अ़लैकुम् मिन् सुल्तानिन् इल्ला अन् दऔ़तुकुम् फ़स्त – जब्तुम् ली फ़ला तलूमूनी व लूमू अन्फु सकुम् मा अ-न बिमुस्रिख़िकुम् व मा अन्तुम् बिमुस्रिखिय् य, इन्नी क- फरतु बिमा अश्रक्तुमूनि मिन् कब्लु, इन्नज़्ज़ालिमी – न लहुम् अ़ज़ाबुन् अलीम
    और जब (लोगों का) ख़ैर फैसला हो चुकेगा (और लोग शैतान को इल्ज़ाम देगें) तो शैतान कहेगा कि ख़ुदा ने तुम से सच्चा वायदा किया था (तो वह पूरा हो गया) और मैने भी वायदा तो किया था फिर मैने वायदा खि़लाफ़ी की और मुझे कुछ तुम पर हुकूमत तो थी नहीं मगर इतनी बात थी कि मैने तुम को (बुरे कामों की तरफ) बुलाया और तुमने मेरा कहा मान लिया तो अब तुम मुझे बुंरा (भला) न कहो बल्कि (अगर कहना है तो) अपने नफ़्स को बुरा कहो (आज) न तो मैं तुम्हारी फरियाद को पहुँचा सकता हूँ और न तुम मेरी फरियाद कर सकते हो मै तो उससे पहले ही बेज़ार हूँ कि तुमने मुझे (ख़ुदा का) शरीक बनाया बेषक जो लोग नाफरमान हैं उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है (22)
  23. व उद्खिलल्लज़ी – न आमनू व अ़मिलुस्सालिहाति जन्नातिन् तज्री मिन् तह़्तिहल् – अन्हारू ख़ालिदी – न फीहा बि- इज्नि रब्बिहिम्, तहिय्यतुहुम् फ़ीहा सलाम
    और जिन लोगों ने (सदक़ दिल से) इमान क़ुबूल किया और अच्छे (अच्छे) काम किए वह (बेहिश्त के) उन बाग़ों में दाखि़ल किए जाएँगें जिनके नीचे नहरे जारी होगी और वह अपने परवरदिगार के हुक्म से हमेशा उसमें रहेगें वहाँ उन (की मुलाक़ात) का तोहफा सलाम का हो (23)
  24. अलम् त-र कै-फ़ ज़- रबल्लाहु म-सलन् कलि – मतन् तय्यि – बतन् क-श-ज – रतिन् तय्यि – बतिन् अस्लुहा साबितुंव – व फर्अुहा फिस्समा – इ
    (ऐ रसूल) क्या तुमने नहीं देखा कि ख़ुदा ने अच्छी बात (मसलन कलमा तौहीद की) वैसी अच्छी मिसाल बयान की है कि (अच्छी बात) गोया एक पाकीज़ा दरख़्त है कि उसकी जड़ मज़बूत है और उसकी टहनियाँ आसमान में लगी हो (24)
  25. तुअ्ती उकु – लहा कुल्-ल हीनिम् – बि इज्नि रब्बिहा, व यज्रिबुल्लाहुल् – अम्सा – ल लिन्नासि लअ़ल्लहुम् य – तज़क्करून
    अपने परवरदिगार के हुक्म से हर वक़्त फला (फूला) रहता है और ख़ुदा लोगों के वास्ते (इसलिए) मिसालें बयान फरमाता है ताकि लोग नसीहत व इबरत हासिल करें (25)
  26. व म – सलु कलि – मतिन् ख़बीसतिन् क-श-ज-रतिन् ख़बीसति – निज्तुस्सत् मिन् फौकिल्अर्जि मा लहा मिन् करार
    और गन्दी बात (जैसे कलमाए शिर्क) की मिसाल गोया एक गन्दे दरख़्त की सी है (जिसकी जड़ ऐसी कमज़ोर हो) कि ज़मीन के ऊपर ही से उखाड़ फेंका जाए (क्योंकि) उसको कुछ ठहराओ तो है नहीं (26)

Surah Ibrahim Video

Share this:

Leave a Comment

error: Content is protected !!