04 सूरह अन-निसा हिंदी में पेज 1

04 सूरह अन-निसा | Surah An-Nisa

सूरह निसा में 176 आयतें और 24 रुकू हैं। यह सूरह पारा 4, पारा 5, पारा 6 में है। यह सूरह मदनी है।

सूरह अन-निसा हिंदी में | Surah An-Nisa in Hindi

बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहिम
शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम वाला है
  1. या अय्युहन्नासुत्तक़ू रब्बकुमुल्लज़ी ख़-ल-क़कुम् मिन् नफ्सिंव्वाहि-दतिंव व ख़-ल-क़ मिन्हा ज़ौजहा व बस्-स मिन्हुमा रिजालन् कसीरंव-व निसाअन्, वत्तक़ुल्लाहल्लज़ी तसाअलू-न बिही वल्अरहा-म, इन्नल्ला-ह का-न अलैकुम् रक़ीबा
    ऐ लोगों! अपने पालने वाले से डरो जिसने तुम सबको (सिर्फ) एक आदमी(आदम) से पैदा किया। और (वह इस तरह कि पहले) उनकी बाकी मिट्टी से उनकी बीवी (हव्वा) को पैदा किया। और (सिर्फ़) उन्हीं दो (मियाँ बीवी) से बहुत से मर्द और औरतें दुनिया में फैला दिये। और उस अल्लाह से डरो जिसका वास्ता देकर तुम एक-दूसरे के सामने आपनी माँगें रखते हो। और रक्त संबंधों को तोड़ने से डरो बेशक अल्लाह तुम्हारी देखभाल करने वाला है।
  2. व आतुल्-यतामा अम्वालहुम् व ला त-तबद्दलुल्ख़बी-स बित्तय्यिबि, व ला तअ्कुलू अम्वालहुम् इला अम्वालिकुम्, इन्नहू का-न हूबन् कबीरा
    और अनाथों को उनके माल दे दो और बुरी चीज़ (माले हराम) को भली चीज़ (माले हलाल) के बदले में न लो। और उनके माल अपने मालों में मिलाकर न खा जाओ क्योंकि ये बहुत बड़ा गुनाह है।
  3. व इन् खिफ्तुम् अल्ला तुक़्सितू फ़िल्यतामा फ़न्किहू मा ता-ब लकुम् मिनन्निसा-इ मसना व सुला-स व रूबा अ,  फ़-इन् ख़िफ्तुम् अल्ला तअ्दिलू फ़वाहि-दतन् औ मा म-लकत् ऐमानुकुम्, ज़ालि-क अद्ना अल्ला तअूलू
    और अगर तुमको अन्देशा हो कि (निकाह करके) तुम यतीम लड़कियों (की रखरखाव) में इन्साफ न कर सकोगे तो उनमें से, जो तुम्हें पसन्द हों,  तीन तीन और चार चार निकाह करो (फिर अगर तुम्हे इसका) अन्देशा हो कि उन बीवियों में (भी) इन्साफ न कर सकोगे तो एक ही से करो। या जो (लौडी) तुम्हारी मिल्कियत हो, उसीपर बस करो। इसमें तुम्हारे न्याय से न हटने की अधिक सम्भावना है।
  4. व आतुन्निसा-अ सदुक़ातिहिन्-न निह़्ल-तन्, फ़-इन् तिब्-न लकुम् अन् शैइम् मिन्हु नफ्सन् फ़कुलूहु हनीअम्-मरीआ
    और औरतों को उनके महर(विवाह उपहार) ख़ुशी ख़ुशी दे डालो। फिर अगर वह ख़ुशी ख़ुशी तुम्हें कुछ छोड़ दे तो शौक़ से खाओ पियो।
  5. व ला तुअतुस्सु-फ़ हा-अ अम्वालकुमुल्लती ज-अलल्लाहु लकुम् क़ियामंव-वरज़ुक़ूहुम् फ़ीहा वक्सूहुम् व क़ूलू लहुम् कौलम् मअरूफ़ा
    और अपने वह माल जिसे अल्लाह ने तुम्हारे लिए जीवन-यापन का साधन बनाया है, बेसमझ लोगों को न दो। हाँ उसमें से उन्हें खिलाओ और उनको पहनाओ और उनसे अच्छी तरह बात करो।
  6. वब्तलु ल्-यतामा हत्ता इज़ा ब-लगुन्निका-ह, फ़-इन् आनस्तुम् मिन्हुम् रूश्दन् फद्फ़अू इलैहिम् अम्वालहुम्, व ला तअ्कुलूहा इसराफंव्-व बिदारन् अंय्यक्बरू, व मन् का-न ग़निय्यन् फ़ल्यस्तअ्फिफ, व मन् का-न फ़क़ीरन् फ़ल्यअ्कुल बिल्मअ्-रूफि, फ़- इज़ा द-फ़अ्तुम इलैहिम् अम्वालहुम् फ़-अश्हिदू अलैहिम्, व कफ़ा बिल्लाहि हसीबा
    और अनाथों को कारोबार में लगाए रहो यहाँ तक के वे विवाह की आयु को पहुँच जायें, फिर उस वक़्त तुम उन्हे  अगर होशियार पाओ तो उनका माल उनके हवाले कर दो। और (ख़बरदार) ऐसा न करना कि इस ख़ौफ़ से कि कहीं ये बड़े हो जाएंगे अनुचित रूप से उड़ाकर और जल्दी करके न खाओ। और जो (जो वली या सरपरस्त) दौलतमन्द हो तो वह (माले यतीम अपने ख़र्च में लाने से) बचता रहे और (हाँ) जो मोहताज हो वह अलबत्ता दस्तूर के मुताबिक़ खा सकता है। तो जब उनके माल उनके हवाले करने लगो तो लोगों को उनका गवाह बना लो और (यॅू तो) हिसाब लेने को अल्लाह काफ़ी ही है।
  7. लिर्रिजालि नसीबुम्-मिम्मा त-रकल्-वालिदानि वल-अक़रबू-न, व लिन्निसा-इ नसीबुम्-मिम्मा त रकल्-वालिदानि वल्-अक़्रबू-न मिम्मा क़ल्-ल मिन्हु औ कसु-र, नसीबम् मफ़्रूज़ा
    और पुरुषों के लिए उसमें से भाग है, जो माता-पिता तथा समीपवर्तियों ने छोड़ा है। तथा जो माता-पिता तथा समीपवर्तियों ने छोड़ा हो, उसमे कुछ हिस्सा ख़ास औरतों का भी है। चाहे वह थोड़ा हो या अधिक हो – यह हिस्सा निश्चित किया हुआ है। (इस्लाम से पहले साधारणतः यह विचार था कि पुत्रियों का धन और संपत्ति की विरासत (उत्तराधिकार) में कोई भाग नहीं। इस में इस कुरीति का निवारण किया गया और नियम बना दिय गया कि अधिकार में पुत्र और पुत्री दोनों समान हैं। यह इस्लाम ही की विशेषता है जो संसार के किसी धर्म अथवा विधान में नहीं पाई जाती। इस्लाम ही ने सर्वप्रथम नारी के साथ न्याय किया, और उसे पुरुषों के बराबर अधिकार दिया है।)
  8. व इज़ा ह-ज़रल क़िस्म-त उलुल्क़ुरबा वल्-यतामा वल्मसाकीनु फर्ज़ुक़ूहुम् मिन्हु व क़ूलू लहुम क़ौलम् मअ्-रूफ़ा
    और जब बाँटने के समय नातेदार और अनाथ और मुहताज उपस्थित हों तो उन्हें भी उसमें से (उनका हिस्सा) दे दो और उनसे भली बात करो।
  9. वल्यख़्शल्लज़ी-न लौ त-रकू मिन् ख़ल्फिहिम् ज़ुर्रिय्यतन ज़िआ़फन् ख़ाफू अलैहिम्, फ़ल्यत्तक़ुल्ला-ह वल्-यक़ूलू क़ौलन् सदीदा
    और उन लोगों को डरना (और ख़्याल करना चाहिये) कि अगर वह लोग ख़ुद अपने बाद (नन्हे नन्हे) निर्बल बच्चे छोड़ जाते तो उन पर (किस क़दर) तरस आता। बस उनको (ग़रीब बच्चों पर सख़्ती करने में) अल्लाह से डरना चाहिये। और उनसे सीधी तरह बात करना चाहिए।
  10. इन्नल्लज़ी-न यअ्कुलू-न अम्वालल् यतामा ज़ुल्मन् इन्नमा यअ्कुलू-न फ़ी बुतूनिहिम् नारन्, व स-यस्लौ-न सईरा *
    जो लोग यतीमों के माल अत्याचार से खाते हैं, वह अपने पेट में बस अंगारे भरते हैं। और शीघ्र ही नरक की अग्नि में प्रवेश करेंगे।
  11. यूसीकुमुल्लाहु फ़ी औलादिकुम्, लिज़्ज़-करि मिस्लु हज़्ज़िल उन्सयैनि फ़-इन् कुन्-न निसाअन् फ़ौक़स्- नतैनि फ़-लहुन्-न सुलुसा मा त-र-क, व इन् कानत् वाहि-दतन् फ-लहन्निस्फु, व लि-अ-बवैहि लिकुल्लि वाहिदिम्-मिन्हुमस्सुदुसु मिम्मा त-र-क इन् का-न लहू व लदुन् फ़-इल्लम् यकुल्लहू व-लदुंव्-व वरि-सहू अ-बवाहू फ़-लिउम्मिहिस्सुलुसु, फ़-इन् का-न लहू इख़्वतुन् फ़-लिउम्मिहिस्सुदुसु मिम्-बअ्दि वसिय्यतिंय् यूसी बिहा औ दैनिन्, आबाउकुम् व अब्नाउकुम् ला तदरू-न अय्युहुम् अक़्रबु लकुम् नफ्अन्, फ़री-ज़तम् मिनल्लाहि , इन्नल्ला-ह का-न अलीमन् हकीमा
    अल्लाह तुम्हारी औलाद के हक़ में तुम्हें आदेश देता है कि लड़के का हिस्सा दो लड़कियों के बराबर है। और अगर (मय्यत की) औलाद में सिर्फ लड़कियां ही हों (दो) या (दो) से ज़्यादा तो उनका (मुक़र्रर हिस्सा) कुल हिस्से का दो तिहाई है। और अगर एक लड़की हो तो उसका आधा है और मय्यत के बाप माँ हर एक का अगर मय्यत की कोई औलाद मौजूद न हो तो हिस्से के माल में से ख़ास चीज़ों में छटा हिस्सा है। और अगर मय्यत के कोई औलाद न हो और उसके सिर्फ माँ बाप ही वारिस हों तो माँ का ख़ास चीज़ों में एक तिहाई हिस्सा तय है और बाक़ी बाप का। लेकिन अगर मय्यत के (हक़ीक़ी और सौतेले) भाई भी मौजूद हों तो (यद्यपि उन्हें कुछ न मिले) उस वक़्त माँ का हिस्सा छठा ही होगा (और वह भी) मय्यत नें जिसके बारे में वसीयत की है। उसकी तालीम और (अदाए) क़र्ज़ के बाद तुम्हारे बाप हों या बेटे तुम तो यह नहीं जानते हों कि उसमें कौन तुम्हारी नाफ़रमानी में ज़्यादा क़रीब है। यह हिस्सा अल्लाह का निश्चित किया हुआ है। क्योंकि अल्लाह सब कुछ जानता, समझता है।
  12. व लकुम् निस्फु मा त-र-क अज़्वाजुकुम् इल्लम् युकुल्लहुन्-न व लदुन्, फ़-इन का न लहुन्-न व-लदुन् फ़-लकुमुर्रूबुअु मिम्मा तरक्-न मिम्-बअ्दि वसिय्यतिंय्यूसी-न बिहा औ दैनिन्, व लहुन्नर्रूबुअु मिम्मा तरक्तुम् इल्लम् यकुल्लकुम् व-लदुन्, फ़-इन् का-न लकुम व-लदुन् फ़-लहुन्नस्सुमुनु मिम्मा तरक्तुम् मिम् -बअ्दि वसिय्यतिन् तूसू-न बिहा औ दैनिन्, व इन् का-न रजुलुंय्यू-रसु कलाल-तन् अविम-र-अतुंव-व् लहू अखुन् औ उख़्तुन् फ़ लिकुल्लि वाहिदिम् मिन्हुमस्सुदुसु, फ़-इन् कानू अक्स-र मिन् ज़ालि-क फ़हुम् शु-रका-उ फिस्सुलुसि मिम्-बअ्दि वसिय्यतिंय्यूसा बिहा औ दैनिन् ग़ै-र मुज़ाररिन् वसिय्यतम् मिनल्लाहि, वल्लाहु अलीमुन् हलीम
    और जो कुछ तुम्हारी बीवियां छोड़ कर (मर) जाए बस अगर उनके कोई औलाद न हो तो तुम्हारा आधा है। और अगर उनके कोई औलाद हो तो जो कुछ वह हिस्सा छोड़े उसमें से बाज़ चीज़ों में चौथाई तुम्हारा है (और वह भी) औरत ने जिसकी वसीयत की हो। और (अदाए) क़र्ज़ के बाद अगर तुम्हारे कोई औलाद न हो तो तुम्हारे हिस्से में से तुम्हारी बीवियों का कुछ चीज़ों में चौथाई है। और अगर तुम्हारी कोई औलाद हो तो तुम्हारे हिस्से में से उनका ख़ास चीज़ों में आठवाँ हिस्सा है। (और वह भी) तुमने जिसके बारे में वसीयत की है उसको पूरी करने और (अदाए) क़र्ज़ के बाद और अगर कोई मर्द या औरत दूसरी मां से भाई या बहन को वारिस छोड़े तो उनमें से हर एक का ख़ास चीजों में छठा हिस्सा है। और अगर उससे ज़्यादा हो तो सबके सब एक ख़ास तिहाई में साझी रहेंगे और (ये सब) मय्यत ने जिसके बारे में वसीयत की है उसकी तामील और (अदाए) क़र्ज़ के बाद। मगर हाँ वह वसीयत (वारिसों को ख़्वाह मख़्वाह) नुक़्सान पहुँचाने वाली न हो। (तब) ये वसीयत अल्लाह की तरफ़ से है और अल्लाह तो हर चीज़ का जानने वाला और हिक्मत वाला है।
  13. तिल-क हुदूदुल्लाहि व मंय्युतिअिल्ला-ह व रसूलहू युद्ख़िल्हु जन्नातिन् तज्री मिन् तह़्तिहल-अन्हारू ख़ालिदी-न फ़ीहा, व ज़ालिकल फौजुल अज़ीम
    यह अल्लाह की (निर्धारित) सीमायें हैं। और अल्लाह और रसूल के आदेशों का पालन करे उसको अल्लाह स्वर्ग में ऐसे (हर भरे) बाग़ों में पहुँचा देगा। जिसके नीचे नहरें प्रवाहित होंगी और वह उनमें हमेशा (चैन से) रहेंगे। और यही तो बड़ी सफलता है।
  14. व मंय्यअ्सिल्ला-ह व रसूलहू व य-तअद्-द हुदू-दहू युदख़िल्हु नारन् ख़ालिदन् फ़ीहा, व लहू अज़ाबुम् मुहीन *
    और जिस शख़्स ने अल्लाह व रसूल की अवज्ञा की और उसकी सीमाओं का उल्लंघन करेगा तो बस अल्लाह उसको नरक में प्रवेश करेगा।
  15. वल्लाती यअ्तीनल्-फ़ाहि-श-त मिन्निसा-इकुम् फस् तशहिदू अलैहिन्-न अर-ब अतम् मिन्कुम्, फ-इन् शहिदू फ़-अम्सिकूहुन्-न फ़िल्बुयूति हत्ता य-तवफ्फाहुन्नल्मौतु औ-यज्अलल्लाहु लहुन्-न सबीला
    और वह उसमें हमेशा अपना किया भुगतता रहेगा और उसके लिए बड़ी रूसवाई का अज़ाब है और तुम्हारी औरतों में से जो औरतें व्यभिचार करें तो अपने लोगों में से चार गवाही लो और फिर अगर चारों गवाह उसकी गवाही करें तो (उसकी सज़ा ये है कि) उनको घरों में बन्द रखो यहाँ तक कि मौत आ जाए या अल्लाह उनकी कोई (दूसरी) राह निकाले।
  16. वल्लज़ानि यअ्तियानिहा मिन्कुम् फ-आज़ूहुमा, फ इन् ताबा व अस्लहा फ-अअ्-रिज़ू अन्हुमा, इन्नल्ला-ह का-न तव्वाबर्रहीमा
    और तुम लोगों में से जिनसे बदकारी सरज़द हुयी हो उनको मारो पीटो फिर अगर वह दोनों (अपनी हरकत से) तौबा करें और सुधार कर लें तो उनको छोड़ दो बेशक अल्लाह बड़ा क्षमाशील, दयावान है।
  17. इन्नमत्तौबतु अलल्लाहि लिल्लज़ी-न यअ् मलूनस्सू-अ बि-जहालतिन् सुम्-म यतूबू-न मिन् क़रीबिन् फ़-उलाइ-क यतूबुल्लाहु अलैहिम्, व कानल्लाहु अलीमन् हकीमा
    अल्लाह के पास उन्हीं की क्षमा याचना स्वीकार्य है, जो अनजाने में बुराई कर जाते हैं, (और) फिर जल्दी से क्षमा याचना ले तो अल्लाह भी ऐसे लोगों की क्षमा याचना स्वीकार कर लेता है और अल्लाह तो बड़ा ज्ञानी गुणी है।
  18. व लै सतित्तौबतु लिल्लज़ी-न यअ्मलूनस्सय्यिआति हत्ता इज़ा ह-ज़-र अ-ह-दहुमुल्मौतु क़ा-ल इन्नी तुब्तुल-आ-न व लल्लज़ी-न यमूतू-न व हुम् कुफ्फारून्, उलाइ-क अअ्तद्ना लहुम् अज़ाबन् अलीमा
    और क्षमा याचना उन लोगों के लिये (स्वीकार्य) नहीं है जो (उम्र भर) तो बुरे काम करते रहे। यहाँ तक कि जब उनमें से किसी के सर पर मौत आ खड़ी हुयी तो कहने लगे अब मैंने क्षमा की और (इसी तरह) उन लोगों के लिए (भी तौबा) स्वीकार्य नहीं है जो कुफ़्र ही की हालत में मर गये। ऐसे ही लोगों के वास्ते हमने दुःखदायी यातना तैयार कर रखा है।
  19. या अय्युहल्लज़ी-न आमनू ला यहिल्लु लकुम् अन् तरिसुन्निसा-अ करहन्, व ला तअ्ज़ुलूहुन्-न लि- तज़्हबू बि-बअ्ज़ि मा आतैतुमूहुन्-न इल्ला अंय्यअ्ती-न बिफ़ाहि-शतिम् मुबय्यिनतिन्, व आशिरूहुन्-न बिल्-मअ्-रूफि, फ़-इन् करिह़्तुमूहुन्-न फ़-असा अन् तक् रहू शैअंव्-व यज् अ़लल्लाहु फ़ीहि ख़ैरन् कसीरा
    ऐ ईमान वालो! तुमको ये वैध नहीं कि औरतों से (निकाह कर) के (ख़्वाह मा ख़्वाह) ज़बरदस्ती वारिस बन जाओ और जो कुछ तुमने उन्हें (शौहर के हिस्से से) दिया है उसमें से कुछ (वापस लेने की नीयत से) उन्हें दूसरे के साथ (निकाह करने से) न रोको हाँ जब वह खुल्लम खुल्ला कोई अशिष्ट कर्म करें तो अलबत्ता रोकने में (हर्ज नहीं) और बीवियों के साथ अच्छा सुलूक करते रहो और अगर तुम किसी वजह से उन्हें नापसन्द करो (तो भी सब्र करो क्योंकि) अजब नहीं कि किसी चीज़ को तुम नापसन्द करते हो और अल्लाह तुम्हारे लिए उसमें बहुत बेहतरी कर दे।
  20. व इन् अरत्तुमुस्तिब्दा-ल ज़ौजिम् मका-न जौजिंव व आतैतुम् इह़्दाहुन्-न क़िन्तारन् फला तअ्ख़ुज़ु मिन्हु शैअन्, अ-तअ्ख़ुज़ूनहू बुह्तानंव् व इस्मम् मुबीना
    और अगर तुम एक बीवी (को तलाक़ देकर उस) की जगह दूसरी बीवी (निकाह करके) तबदील करना चाहो तो यद्यपि तुम उनमें से एक को (जिसे तलाक़ देना चहाते हो) बहुत सा माल दे चुके हो तो तुम उनमें से कुछ (वापस न लो)। क्या तुम्हारी यही गै़रत है कि (ख़्वाह मा ख़्वाह) बोहतान बाॅधकर या सरीही जुर्म लगाकर वापस ले लो।

Surah An-Nisa Video

Share this:

Leave a Comment

error: Content is protected !!