05 सूरह मायदा हिंदी में पेज 2

सूरह मायदा हिंदी में | Surah Al-Maidah in Hindi

  1. या क़ौमिद्ख़ुलुल् अर्ज़ल मुक़द्द-सतल्लती क-तबल्लाहु लकुम् व ला तर्तद्दू अला अदबारिकुम् फ़-तन्क़लिबू ख़ासिरीन
    ऐ मेरी क़ौम! (शाम) की उस पवित्र भूमि में जाओ जहाँ अल्लाह ने तुम्हारे भाग्य में (हुकूमत) लिख दी है। और दुश्मन के मुक़ाबले पीठ न फेरो अन्यथा, इसमें तो तुम ख़ुद उलटा घाटा उठाओगे।
  2. क़ालू या मूसा इन्-न फ़ीहा क़ौमन् जब्बारी-न, व इन्ना लन् नद्ख़ु-लहा हत्ता यख़्रूजू मिन्हा, फ़-इंय्यख़्रूजू मिन्हा फ़-इन्ना दाख़िलून
    वह लोग कहने लगे कि ऐ मूसा! इस मुल्क में तो बड़े ज़बरदस्त (बलवान) लोग रहते हैं और जब तक वह लोग इसमें से निकल न जाए हम तो उसमें कभी पॉव भी न रखेंगे। हाँ! अगर वह लोग ख़ुद इसमें से निकल जाए तो हालाँकि हम ज़रूर जाएगे।
  3. क़ा-ल रजुलानि मिनल्लज़ी-न यख़ाफू-न अन् अमल्लाहु अलैहिमद्ख़ुलू अलैहिमुल्बा-ब, फ़-इज़ा दख़ल्तुमूहु फ़-इन्नकुम् ग़ालिबू-न, व अलल्लाहि फ़- तवक्कलू इन् कुन्तुम् मुअ्मिनीन
    उन डरनेवालों में से ही दो व्यक्ति ऐसे भी थे और जिनपर अल्लाह ने ख़ास अपना अनुग्रह किया था। बेधड़क बोल उठे कि (अरे) उनपर हमला करके (बैतुल मुक़दस के फाटक में तो घुस पड़ो फिर देखो तो यह ऐसे दुर्बल हैं कि) इधर तुम फाटक में घुसे और (ये सब भाग खड़े हुए और) तुम्हारी जीत हो गयी। और अगर सच्चे ईमानदार हो तो अल्लाह ही पर भरोसा रखो।
  4. क़ालू या मूसा इन्ना लन् नद्ख़ु-लहा अ-बदम् मा दामू फ़ीहा फज़्हब् अन्-त व रब्बु-क फ़क़ातिला इन्ना हाहुना क़ाअिदून
    वह कहने लगे एक मूसा (चाहे जो कुछ हो) जब तक वह लोग इसमें हैं हम तो उसमें कदापि (लाख बरस) पॉव न रखेंगे। हाँ तुम जाओ और तुम्हारा अल्लाह जाए ओर दोनों (जाकर) लड़ो हम तो यहीं जमे बैठे रहेंगे।
  5. क़ा-ल रब्बि इन्नी ला अम्लिकु इल्ला नफ्सी व अख़ी फ्फरूक़् बैनना व बैनल् क़ौमिल फ़ासिक़ीन
    तब मूसा ने कहा, मेरे रब! तू ख़ूब अवगत है कि अपनी ज़ाते ख़ास और अपने भाई के सिवा किसी पर मेरा क़ाबू नहीं। बस अब हमारे और उन नाफ़रमान लोगों के बीच अलगाव डाल दे।
  6. क़ा-ल फ़-इन्नहा मुहर्र-मतुन् अलैहिम् अरबई-न स-नतन्, यतीहू-न फ़िल्अर्जि, फ़ला तअ्-स अलल् क़ौमिल्-फ़ासिक़ीन *
    हमारा उनका साथ नहीं हो सकता (अल्लाह ने कहा) (अच्छा) तो उनकी सज़ा यह है कि उनको चालीस वर्ष तक की हुकूमत नसीब न होगा। (और उस समय तक) यह लोग (मिस्र के) जंगल में फिरते रहेंगे तो फिर तुम इन अवज्ञाकारी बन्दों पर तरस न करना।
  7. वत्लु अलैहिम् न-बअब्नै आद-म बिल्हक़्क़ि • इज़् क़र्रबा क़ुर्बानन् फतुक़ुब्बि-ल मिन् अ-हदिहिमा व लम् यु-तक़ब्बल् मिनल् आख़रि, क़ा-ल ल-अक़्तुलन्न-क, क़ा-ल इन्नमा य-तक़ब्बलुल्लाहु मिनल् मुत्तक़ीन •
    (ऐ रसूल!) तुम इन लोगों से आदम के दो बेटों (हाबील, क़ाबील) का सच्चा वृत्तान्त सुना दो। कि जब उन दोनों ने अल्लाह के लिए क़ुर्बानी प्रस्तुत की तो (उनमें से) एक (हाबील) की (क़ुर्बानी तो) क़ुबूल हुयी और दूसरे (क़ाबील) की क़ुर्बानी न क़ुबूल हुयी। तो (मारे जलन के) हाबील से कहने लगा मैं तुझे ज़रूर मार डालूंगा। उसने जवाब दिया कि (भाई इसमें अपना क्या बस है) अल्लाह तो सिर्फ आज्ञाकारों की क़ुर्बानी स्वीकार करता है।
  8. ल-इम् बसत्-त इलय्-य य-द-क लितक़्तु-लनी मा अ-ना बिबासितिंय् यदि-य इलै-क लिअक़्तु ल-क, इन्नी अख़ाफुल्ला-ह रब्बल्-आलमीन
    अगर तुम मेरे हत्या के इरादे से मेरी तरफ़ अपना हाथ बढ़ाओगे (मगर) मैं तो तुम्हारे क़त्ल के ख़्याल से अपना हाथ बढ़ाने वाला नहीं। (क्योंकि) मैं तो उस अल्लाह से जो सारे संसार का पालने वाला है, ज़रूर डरता हू।
  9. इन्नी उरीदू अन् तबू-अ बि-इस्मी व इस्मि-क फ़-तकू-न मिन् अस्हाबिन्नारि, व ज़ालि-क जज़ाउज़्ज़ालिमीन
    मैं तो ज़रूर ये चाहता हॅू कि मेरे गुनाह और तेरे गुनाह दोनों तू ही अपने सिर ले ले। तो तू (अच्छा ख़ासा) जहन्नुमी बन जाए और अत्याचारियों की तो यही सज़ा है।
  10. फ़तव्व-अत् लहू नफ्सुहू क़त्-ल अख़ीहि फ़-क़-त-लहू फ़-अस्ब-ह मिनल् ख़ासिरीन
    फिर तो उसके जीवात्मा ने अपने भाई के क़त्ल पर उसे भड़का ही दिया। आखि़र उस (कम्बख़्त ने) उसको मार ही डाला तो घाटा उठाने वालों में से हो गया।
  11. फ़-ब-असल्लाहु ग़ुराबंय्यब्हसु फ़िल्अर्ज़ि लियुरि-यहू कै-फ़ युवारी सौअ-त अख़ीहि, क़ा-ल या वै-लता अ- अज़ज़्तु अन् अकू-न मिस्-ल हाज़ल्ग़ुराबि फ़-उवारि-य सौअ-त अख़ी, फ़ अस्ब-ह मिनन्नादिमीन
    (तब उसे फि़क्र हुयी कि लाश को क्या करे) तो अल्लाह ने एक कौवे को भेजा कि वह ज़मीन को कुरेदने लगा ताकि उसे (क़ाबील) को दिखा दे कि उसे अपने भाई की लाश कैसे छुपानी चाहिए। (ये देखकर) वह कहने लगा हाए अफ़सोस! क्या मैं उस से भी लाचार हॅू कि उस कौवे की बराबरी कर सकॅू तो अपने भाई की लाश छुपा देता। फिर वह (अपनी हरकत से) बहुत पछताया।
  12. मिन् अज्लि ज़ालि-क, कतब्ना अला बनी इस्राई-ल अन्नहू मन् क़-त-ल नफ़्सम् बिग़ैरि नफ्सिन् औ फ़सादिन् फिल्अर्ज़ि फ़-कअन्नमा क़-तलन्ना-स जमीअन्, व मन् अह़्याहा फ़-कअन्नमा अह़्यन्ना-स जमीअ़न्, व ल-क़द् जाअत्हुम् रूसुलुना बिल्बय्यिनाति, सुम्-म इन्-न कसीरम् मिन्हुम् बअ्-द ज़ालि-क फ़िल्अर्ज़ि ल मुस्रिफून
    इसी सबब से तो हमने बनी इसराईल पर नियम बना दिया था कि जो व्यक्ति किसी को न जान के बदले में और न मुल्क में फ़साद फैलाने की सज़ा में (बल्कि नाहक़) क़त्ल कर डालेगा। तो मानो उसने सब लोगों को क़त्ल कर डाला और जिसने एक आदमी को जीवन प्रदान दिया तो गोया उसने सब लोगों को जीवन प्रदान लिया। और उन (बनी इसराईल) के पास तो हमारे पैग़म्बर (कैसे कैसे) स्पष्ट प्रमाण लेकर आ चुके हैं। (मगर) फिर उसके बाद भी यक़ीनन उसमें से बहुत-से लोग ज़मीन पर ज़्यादतिया करते रहे।
  13. इन्नमा जज़ा-उल्लज़ी-न युहारिबूनल्ला-ह व रसूलहू व यस्औ-न फ़िल्अर्ज़ि फ़सादन् अंय्युक़त्तलू औ युसल्लबू औ तुक़त्त-अ ऐदीहिम् व अर्जुलुहुम मिन् ख़िलाफिन् औ युन्फौ मिनल अर्ज़ि, ज़ालि-क लहुम ख़िज़्युन फिद्दुन्या व लहुम् फिल्-आख़ि-रति अज़ाबुन अज़ीम
    जो लोग अल्लाह और उसके रसूल से लड़ते भिड़ते हैं (और एहकाम को नहीं मानते) और धरती में बिगाड़ पैदा करने के लिए दौड़-धूप करते हैं, उनकी सज़ा बस यही है कि (चुन चुनकर) या तो मार डाले जाए या उन्हें सूली दे दी जाए या उनके हाथ पॉव हेर फेर कर एक तरफ़ का हाथ दूसरी तरफ़ का पॉव काट डाले जाए या उन्हें (अपने वतन की) सरज़मीन से शहर बदर कर दिया जाए। यह रूसवाई तो उनकी दुनिया में हुयी और फिर आख़ेरत में तो उनके लिए बहुत बड़ा अज़ाब ही है।
  14. इल्लल्लज़ी-न ताबू मिन् क़ब्लि अन् तक़्दिरू अलैहिम्, फअ्लमू अन्नल्ला-ह ग़फूरूर्रहीम*
    मगर (हाँ) जिन लोगों ने इससे पहले कि तुम इनपर क़ाबू पाओ, तौबा कर ली तो उनका गुनाह बख़्श दिया जाएगा। क्योंकि समझ लो कि अल्लाह बेशक बड़ा क्षमाशील, दयावान है।
  15. या अय्युहल्लज़ी-न आमनुत्तक़ुल्ला-ह वब्तग़ू इलैहिल वसी-ल त व जाहिदू फ़ी सबीलिही लअ़ल्लकुम् तुफ्लिहून
    ऐ ईमानदारों! अल्लाह से डरते रहो और उसका सामीप्य प्राप्त करो। और उसकी राह में जी-तोड़ संघर्ष करो ताकि तुम कामयाब हो जाओ।
  16. इन्नल्लज़ी-न क-फरू लौ अन्-न लहुम् मा फिल्अर्ज़ि जमीअंव्-व मिस्लहू म-अहू लियफ्तदू बिही मिन् अज़ाबि यौमिल्-क़ियामति मा तुक़ुब्बि-ल मिन्हुम्, व लहुम् अज़ाबुन् अलीम
    इसमें शक नहीं कि जिन लोगों ने इनकार किया अगर उनके पास ज़मीन में जो कुछ (माल ख़ज़ाना) है (वह) सब बल्कि उतना और भी उसके साथ हो कि क़ियामत के दिन की यातना का मुआवजा दे दे (और ख़ुद बच जाए) तब भी (उसका ये मुआवजा) कु़बूल न किया जाएगा और उनके लिए दर्दनाक यातना है।
  17. युरीदू-न अंय्यख़्रूजू मिनन्नारि व मा हुम् बिख़ारिजी-न मिन्हा, व लहुम् अज़ाबुम् मुक़ीम
    वह लोग तो चाहेंगे कि किसी तरह जहन्नुम की आग से निकल भागे, मगर वहाँ से तो वह निकल ही नहीं सकते और उनके लिए तो चिरस्थायी यातना है।
  18. वस्सारिक़ु वस्सारि-क़तु फ़क़्तअू ऐदि-यहुमा जज़ाअम् बिमा क-सबा नकालम् मिनल्लाहि, वल्लाहु अज़ीज़ुन हकीम
    और चोर चाहे मर्द हो या औरत तुम उनके करतूत की सज़ा में उनका (दाहिना) हाथ काट डालो। ये (उनकी सज़ा) अल्लाह की तरफ़ से है और अल्लाह (तो) बड़ा प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है।
  19. फ-मन् ता-ब मिम्-बअ्दि ज़ुल्मिही व अस्ल-ह फ़- इन्नल्ला-ह यतूबु अलैहि, इन्नल्ला-ह ग़फूरुर्रहीम
    हाँ! जो अपने गुनाह के बाद तौबा कर ले और अपने चाल चलन दुरूस्त कर लें तो बेशक अल्लाह भी तौबा कु़बूल कर लेता है। क्योंकि अल्लाह तो बड़ा क्षमाशील, दयावान है।
  20. अलम् तअ्लम् अन्नल्ला-ह लहू मुल्कुस्समावाति वल्अर्ज़ि, युअ़ज़्ज़िबु मंय्यशा-उ व यग़्फिरू लिमंय्यशा- उ, वल्लाहु अला कुल्लि शैइन क़दीर
    ऐ शख़्स! क्या तू नहीं जानता कि सारे आसमान व ज़मीन  में ख़ास अल्लाह की हुकूमत है। जिसे चाहे यातना करे और जिसे चाहे माफ़ कर दे और अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है।

Surah Al-Maidah Video

Share this:

Leave a Comment

error: Content is protected !!