54 सूरह अल-कमर हिंदी में

54 सूरह अल-क़मर | Surah Al Qamar​

सूरत क़मर में 55 आयतें और 3 रुकू हैं। इस सूरह का नाम पहली ही आयत के वाक्य “और चाँद (कमर) फट गया” से लिया गया है। यह सूरह पारा 27 मे है।

सूरह अल-क़मर हिंदी में | Surah Al Qamar​ in Hindi

बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहिम
शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम वाला है

  1. इक़्त-र-बतिस्सा-अ़तु वन्शक़्क़ल्-क़मर्
    प्रलय समीप आ गयी तथा चाँद दो खण्ड हो गया।
  2. व इंय्यरौ आ-यतंय्-युअ्-रिज़ू व यक़ूलू सिह्-रूम्-मुस्तमिर्र
    और यदि वे कोई निशानी देखते हैं, तो मुँह फेर लेते हैं और कहते हैं ये तो जादू है, जो होता रहा है।
  3. व कज़्ज़बू वत्त- बअू अह्वा – अहुम् व कुल्लु अम्रिम् – मुस्तकिर्र
    और उन्होंने झुठलाया और अनुसरण किया अपनी आकांक्षाओं का और प्रत्येक कार्य का एक निश्चित समय है।
  4. व ल-क़द् जा-अहुम् मिनल्- अम्बा-इ मा फ़ीहि मुज़्- दजर्
    और निश्चय आ चुके हैं उनके पास कुछ ऐसे समाचार, जिनमें चेतावनी है।
  5. हिक्मतुम् बालि-ग़तुन् फ़मा तुग़्निन्-नुज़ुर
    ये (क़ुरान) पूर्ण ज्ञान है, फिर भी चेतावनियाँ उनके काम नहीं आयी।
  6. फ़-तवल्-ल अ़न्हुम्, यौ-म यद्अुद् दाअि इला शैइन्-नुकुर
    तो आप विमुख हो जायें उनसे, जिस दिन पुकारने वाला पुकारेगा एक अप्रिय चीज़ की(अर्थात प्रयल के दिन ह़िसाब के लिये) ओर।
  7. ख़ुश्श-अ़न् अब्सारुहुम् यख़्रुजू न मिनल्-अज्दासि क – अन्नहुम् जरादुम्-मुन्तशिर
    उनकी आँखें झुकी होंगी । वे समाधियों से निकल रहे होंगे जैसे कि वे बिखरे हुए टिड्डी दल हों।
  8. मुह्तिई न इलद्-दाइ, यक़ूलुल्- काफ़िरू-न हाज़ा यौमुन् अ़सिर
    तो उसने अपने पालनहार से प्रार्थना की कि मैं विवश हूँ, अत, मेरा बदला ले ले।
  9. कज़्ज़बत् क़ब्लहुम् क़ौमु नूहिन् फ़-कज़्ज़बू अ़ब्-दना व क़ालू मज्नूनुंव् वज़्दुजिर
    इनसे पहले नूह़ की जाति झुठलाया ने। तो उन्होंने हमारे भक्त को झुठलाया और कहा कि पागल है और (उसे) झिड़का गया।
  10. फ़- दआ़ रब्बहू अन्नी मग़्लूबुन् फ़न्तसिर
    तो उसने अपने पालनहार से प्रार्थना की कि मैं विवश हूँ, अतः मेरा बदला ले ले।
  11. फ़-फ़तह्ना अब्वाबस्- समा-इ बिमाइम्-मुन्हमिर
    तो हमने आकाश के द्वार धारा प्रवाह जल के साथ खोल दिये।
  12. व फ़ज्जर्नल्-अर्-ज़ अुयूनन् फ़ल्तक़ल्- मा-उ अ़ला अम्रिन् क़द् क़ुदिर
    तथा धरती के स्रोत फाड़ दिये, तो (आकाश और धरती का) जल उस कार्य के अनुसार जो निश्चित किया गया था मिल गया।
  13. व हमल्नाहु अ़ला ज़ाति अल्वाहिंव्-व दुसुर
    और हमने उसे (नूह़ को) तख़्तों तथा कीलों वाली (नाव) पर सवार कर दिया।
  14. तज्री बि-अअ्युनिना जज़ाअल्-लिमन् का-न कुफ़िर
    जो हमारी रक्षा में चल रही थी, उसका बदला लेने के लिए, जिसके साथ कुफ़्र किया गया था।
  15. व लकृत्त-रक्नाहा आ-यतन् फ़-हल् मिम्- मुद्दकिर
    और हमने इसे एक शिक्षा बनाकर छोड़ दिया। तो क्या कोई शिक्षा ग्रहण करने वाला है?
  16. फ़कै -फ़ का-न अ़ज़ाबी व नुज़ुर
    फिर (देख लो!) मेरी यातना तथा मेरी चेतावनियाँ कैसी रही ?
  17. व ल-क़द् यस्सर्नल्- क़ुर्आ-न लिज़्ज़िकिर फ़-हल् मिम्- मुद्दकिर
    और हमने क़ुरान को शिक्षा के लिए सरल कर दिया है। तो क्या, कोई शिक्षा ग्रहण करने वाला है?
  18. कज़्ज़बत् आ़दुन् फ़कै-फ़ का-न अ़ज़ाबी व नुज़ुर
    आद ने झुठलाया, तो मेरी यातना तथा मेरी चेतावनियाँ कैसी रही?
  19. इन्ना अर्सल्ना अ़लैहिम् रीहन् सर्- सरन् फ़ी यौमि नह्सिम्-मुस्तमिर्र
    हमने उन पर एक निरन्तर अशुभ दिन में कड़ी आँधी भेज दी।
  20. तन्ज़िअुन्ना-स क-अन्नहुम् अअ्जाजु नख़्लिम् – मुन्क़अिर
    जो लोगों को उखाड़ रही थी, जैसे वे खजूर के खोखले तने हों।
  21. फ़कै-फ़ का-न अ़ज़ाबी व नुजुर
    तो मेरी यातना तथा मेरी चेतावनियाँ कैसी रही?
  22. व ल-क़द् यस्सर्नल-क़ुर्आ-न लिज़्ज़िक्रि फ़-हल् मिम्-मुद्दकिर*
    और हमने क़ुरान को शिक्षा के लिए सरल कर दिया है । तो क्या कोई शिक्षा ग्रहण करने वाला है?
  23. कज़्ज़बत् समूदु बिन्नुजुर
    समूद ने चेतावनियों को झुठला दिया। (यह सालेह अलैहिस्सलाम की जाति थी। उन्हों ने उन से चमत्कार की माँग की तो अल्लाह ने पर्वत से एक ऊँटनी निकाल दी। फिर भी वह ईमान नहीं लाये। क्यों कि उन के विचार से अल्लाह का रसूल कोई मनुष्य नहीं फ़रिश्ता होना चाहिये था। जैसा कि मक्का के मुश्रिकों का विचार था।)
  24. फ़क़ालू अ-ब-शरम् मिन्ना वाहिदन् नत्तबिअुहू इन्ना इज़ल्-लफ़ी ज़लालिंव्-व सुअुर
    और क्या अपने ही में से एक मनुष्य का हम अनुसरण करें कहा? वास्तव में, तब तो हम निश्चय बड़े कुपथ तथा पागलपन में हैं।
  25. अ–उल्क़ि यज़्ज़िक्रू अ़लैहि मिम्बैनिना बल् हु-व कज़्ज़ाबुन् अशिर
    क्या शिक्षा उसी पर हमारे बीच में से उतारी गयी है? (नहीं) बल्कि वह बड़ा झूठा अहंकारी है।
  26. स-यअ्लमू-न ग़दम् – मनिल्-कज़्ज़ाबुल्-अशिर
    उन्हें कल ही ज्ञान हो जायेगा कि कौन बड़ा झूठा अहंकारी है?
  27. इन्ना मुर्सिलुन्ना- क़ति फ़ित्न- तल्-लहुम् फ़र्तक़िब्हुम् वस्तबिर
    वास्तव में, हम उनकी परीक्षा के लिए ऊँटनी भेजने वाले हैं। अतः, (हे सालेह!) तुम उनके (परिणाम की) प्रतीक्षा करो तथा धैर्य रखो।
  28. व नब्बिअहुम् अन्नल्-मा-अ क़िस्मतुम्-बैनहुम् कुल्लु शिर्बिम् – मुह्त-ज़र
    और उन्हें सूचित कर दो कि जल विभाजित होगा उनके बीच और प्रत्येक अपनी बारी के दिन उपस्थित होगा।
    अर्थात एक दिन जल स्रोत का पानी ऊँटनी पियेगी और एक दिन तुम सब।
  29. फ़नादौ साहि-बहुम् फ़-तआ़ता फ़-अ़क़र
    तो उन्होंने अपने साथी को पुकारा। तो उसने आक्रमण किया और उसे वध कर दिया।
  30. फ़कै-फ़ का-न अ़ज़ाबी व नुजुर
    फिर मेरी यातना और मेरी चेतावनियाँ कैसी रही?
  31. इन्ना अर्सल्ना अ़लैहिम् सै-हतंव्-वाहि-दतन् फ़कानू क-हशीमिल्-मुह्तज़िर
    हमने उनपर कर्कश ध्वनि भेज दी, तो वे बाड़ा बनाने वाले की रौंदी हुई बाढ़ के समान (चूर-चूर) हो गये।
  32. व-ल-क़द् यस्सर्नल्-क़ुर्आ-न लिज़्ज़िक्रि फ़-हल् मिम्-मुद्दकिर
    और हमने क़ुरान को शिक्षा के लिए सरल कर दिया है । तो क्या, कोई शिक्षा ग्रहण करने वाला है?
  33. कज़्ज़बत् क़ौमु लूतिम् – बिन्नुज़ुर
    लूत की जाति ने चेतावनियों को झुठला दिया।
  34. इन्ना अर्सल्ना अ़लैहिम् हासिबन् इल्ला आ-ल लूतिन्, नज्जैनाहुम् बि स हर
    तो हमने उनपर लूत के परिजनों के सिवा पत्थर भेज दिये, हमने उन्हें रात्रि के पिछले पहर बचा लिया।
  35. निअ् मतम् – मिन् अिन्दिना, कज़ालि क नज़्ज़ी मन् शकर्
    अपने विशेष अनुग्रह से। इसी प्रकार हम उसको जो कृतज्ञ हो बदला देते हैं।
  36. व ल-क़द् अन्ज़-रहुम् बत्श-तना फ़-तमारौ बिन्नुज़ुर
    और निःसंदेह, लूत ने उनको हमारी पकड़ से सावधान किया। परन्तु, उन्होंने चेतावनियों के विषय में संदेह किया।
  37. व ल-क़द् रा-वदूहु अ़न् ज़ैफ़िही फ़-तमस्ना अअ्यु-नहुम् फ़ज़ूक़ू अ़ज़ाबी व नुज़ुर
    और उस (लूत) को उसके अतिथियों[1] से बहलाना चाहा तो हमने उनकी आँखें अंधी कर दी कि मेरी यातना तथा मेरी चेतावनियों चखो।
    1. अर्थात उन्हों ने अपने दुराचार के लिये फ़रिश्तों को जो सुन्दर युवकों के रूप में आये थे, उन को लूत (अलैहिस्सलाम) से अपने सुपुर्द करने की माँग की।
  38. व ल-क़द् सब्ब-हहुम् बुक्र-तन् अ़ज़ाबुम् मुस्तकिर्र
    और प्रातः भोर ही में उनपर स्थायी यातना आ पहुँची।
  39. फ़ज़ूक़ू अ़ज़ाबी व नुज़ुर
    तो मेरी यातना तथा मेरी चेतावनियाँ चखो।
  40. व ल-क़द् यस्सर्नल्-क़ुर्आ-न लिज़्ज़िक्रि फ़-हल् मिम्-मुद्दकिर
    और हमने क़ुरान को शिक्षा के लिए सरल कर दिया है। तो क्या कोई शिक्षा ग्रहण करने वाला है?
  41. व ल-क़द् जा अ आ-ल फ़िर्औनन्-नुज़ुर
    तथा फ़िरऔनियों के पास भी चेतावनियाँ आयी।
  42. कज़्ज़बू बिआयातिना कुल्लिहा फ़-अख़ज़् नाहुम् अख़् -ज़ अ़ज़ीज़िम् – मुक़्तदिर
    उन्होंने हमारी प्रत्येक निशानी को झुठलाया तो हमने उन्हें अति प्रभावी आधिपति के पकड़ने के समान पकड़ लिया।
  43. अ-कुफ़्फ़ारुकुम् ख़ैरुम्-मिन् उलाइकुम् अम् लक़ुम् बरा-अतुन् फ़िज़्ज़ुबुर

    (हे मक्का वासियों!)
    क्या उनसे तुम्हारे काफ़िर उत्तम हैं अथवा आकाशीय पुस्तकों में तुम्हारी मुक्ति लिखी हुई है?
  44. अम् यक़ूलू-न नह्नु जमीअुम्-मुन्तसिर
    अथवा वे कहते हैं कि हम विजेता समूह हैं।
  45. सयुह्ज़ – मुल् जम्अु व युवल्लूनद् – दुबुर
    शीघ्र ही वह जत्था पराजित होकर रहेगा और वे पीठ दिखा जाएँगे।
  46. बलिस्सा-अ़तु मौअिदुहुम् वस्सा-अ़तु अद्हा व अमर्र
    बल्कि क़यामत उसकी बात कहने का समय है और क़यामत उससे भी कड़ी और तीखी है।
  47. इन्नल् – मुज्रिमी-न फ़ी ज़लालिंव्-व सुअुर
    वास्तव में, वे पापी, पथभ्रष्ट और आग में हैं।
  48. यौ-म युस्हबू-न फ़िन्नारि अ़ला वुजूहिहिम्, ज़ूक़ू मस्- स सक़र्
    जिस दिन वे यातना में अपने मुखों के बल घसीटे जायेंगे (उनसे कहा जायेगा कि) चखो नरक की यातना का स्वाद।
  49. इन्ना कुल्-ल शैइन् ख़लक्नाहु बि-क़-दर
    बेशक हमने हर चीज़ को एक सोच से पैदा किया है।
  50. व मा अम्रुना इल्ला वाहि – दतुन् क- लम्हिम् – बिल्ब – सर
    और हमारा आदेश बस एक ही बार होता है आँख झपकने के समान।[अर्थात प्रलय होने में देर नहीं होगी। अल्लाह का आदेश होते ही तत्क्षण प्रलय आ जायेगी।]
  51. व ल-क़द् अह्लक्ना अश्या-अ़कुम् फ़-हल् मिम् – मुद्दकिर

    और हम तबाह कर चुके हैं तुम्हारे जैसे बहुत-से समुदायों को।

  52. व कुल्लु शैइन् फ़-अ़लूहु फ़िज़्ज़ुबुर
    जो कुछ उन्होंने किया है कर्मपत्र में है।[जिसे उन फ़रिश्तों ने जो दायें तथा बायें रहते हैं लिख रखा है।]
  53. व कुल्लु सग़ीरिंव् व कबीरिम् – मुस्त – तर
    और हर छोटी तथा बड़ी बात अंकित है।
  54. इन्नल् – मुत्तक़ी – न फ़ी जन्नातिंव्-व न-हर
    बेशक नेक लोग आसमानों और नहरों में होंगे।
  55. फ़ी मक़्अ़दि सिद्क़िन् अिन्- द मलीकिम् – मुक़्तदिर
    सत्य के स्थान पर, परम शक्तिशाली स्वामी के पास।

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