53 सूरत- नज्म हिंदी में

53 सूरह-नज्म | Surah An-Najm

सूरत-नज्म में 62 आयतें और 3 रुकू हैं। सूरह अन-नज्म मक्का में नाजिल हुई। इस सूरह का नाम पहले ही शब्द ‘अन-नज्म’ (कसम है तारे की) से लिया गया है। यह पारा 27 मे है।

पहली सूरह जिसमें सजदे की आयत नाज़िल हुई है वह अन-नज्म है। यह कुरान का पहली सूरह है जिसे अल्लाह के रसूल ने कुरैश की सभा में (और इब्न मर्दोया के अनुसार हरम में) पढ़ा था। जन समूह में काफिर और ईमान वाले सब मौजूद थे। अन्त में में जब आपने सज्दा की आयत पढ़कर सज्दा किया तो सभी उपस्थित लोग आपके साथ सज्दे मे गिर गए और मूर्तीपूजको के बड़े-बड़े सरदार तक जो विरोध में आगे थे, सज्दा किए बिना न रह सके।

53 सूरह- नज्म हिंदी में | Surah An-Najm in Hindi

बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहिम
शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम वाला है
  1. वन्नज्मि इज़ा हवा
    शपथ है तारे की, जब वह डूबने लगे!
  2. मा ज़ल्-ल साहिबुकुम् व मा ग़वा
    तुम्हारा साथी (मुहम्मद सल्ल०) न गुमराह हुआ और न बहका;
  3. व मा यन्तिक़ु अ़निलू- हवा
    और वह अपनी मर्जी से बात नहीं करता।
  4. इन् हु-व इल्ला वह्ह्य्यूहा
    वह तो बस वह़्यी है। जो (उसकी ओर) की जाती है।
  5. अ़ल्ल – महू शदीदुल्क़ुवा
    जिसे उन्हें शक्तिवान ने सिखाया है। (इस से अभिप्राय जिब्रील (अलैहिस्सलाम) हैं जो वह़्यी लाते थे।)
  6. ज़ू मिर्रतिन् फ़स्तवा
    जो बड़ा बलशाली है। फिर वह बुलंद हुआ (अपने असली रूप में प्रकट हुआ)
  7. व हु-व बिल्-उफ़ुफ़िल्-अअ्ला
    तथा वह आकाश के ऊपरी किनारे पर था।
  8. सुम् – म दना फ़-तदल्ला
    फिर समीप हुआ और फिर लटक गया।
  9. फ़का- न क़ा-ब क़ौसैनि औ अद्ना
    फिर वह दो धनुषों की दूरी पर या उससे भी निकट था।
  10. फ़-औहा इला अ़ब्दिही मा औहा
    फिर उसने जो भी वह़्यी की उस (अल्लाह) के भक्त(मुहम्मद {सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम})की ओर की।
  11. मा क-ज़बल् – फ़ुआदु मा रआ
    नहीं झुठलाया उनके दिल ने, जो कुछ उन्होंने देखा।
  12. अ-फ़तुमारूनहू अ़ला मा यरा
    तो क्या तुम उनसे झगड़ते हो उसपर, जिसे वे देखते हैं?
  13. व ल-क़द् रआहु नज़्ल-तन् उख़्रा
    बेशक, उन्होंने उसे एक बार फिर नीचे उतरते देखा।
  14. अिन्द सिद्-रतिल्-मुन्तहा
    सिद्-रतुल मुन्हा {सिद्-रतुल मुन्तहा यह छठे या सातवें आकाश पर बैरी का एक वृक्ष है। जिस तक धरती की चीज़ पहुँचती है। तथा ऊपर की चीज़ उतरती है। (सह़ीह़ मुस्लिमः 173)} के पास।
  15. अिन्-दहा जन्नतुल्-मअ्वा
    जिसके पास जन्नतुल(यह आठ स्वर्गों में से एक का नाम है) मावा है।
  16. इज़् यग़् स् – सिद्र-त यग़्शा
    जब सिद्-रह पर छा रहा था, जो कुछ छा रहा था।[ह़दीस में है कि वह सोने के पतिंगे थे। (सह़ीह़ मुस्लिमः 173)]
  17. मा ज़ाग़ल्-ब-सरु व मा तग़ा
    न तो निगाह चुंधियाई और न सीमा से आगे हुई।
  18. ल – क़द् रआ मिन् आयाति रब्बिहिल् – कुबरा
    निश्चय आपने अपने पालनहार की बड़ी निशानियाँ देखीं।[इस में मेराज की रात आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के आकाशों में अल्लाह की निशानियाँ देखने का वर्णन है।]
  19. अ-फ़ – रऐतुमुल्ला – त वल्अुज़्ज़ा 
    तो (हे मुश्रिको!) क्या तुमने देख लिया लात तथा उज़्ज़ा को।
  20. व मनातस्सालि -सतल् – उख़् -रा 
    तथा एक तीसरे मनात को?[लात, उज़्ज़ा और मनात यह तीनों मक्का के मुश्रिकों की देवियों के नाम हैं। और अर्थ यह है कि क्या इन की भी कोई वास्तविक्ता है?]
  21. अ-लकुमुज़्-ज़-करु व लहुल् – उन्सा 
    क्या तुम्हारे लिए पुत्र हैं और उस अल्लाह के लिए पुत्रियाँ?
  22. तिल्-क इज़न् क़िस्मतुन् ज़ीज़ा 
    ये तो बड़ा भोंडा विभाजन है।
  23. इन् हि-य इल्ला अस्माउन् सम्मैतुमूहा अन्तुम् व आबाउकुम् मा अन्ज़ – लल्लाहु बिहा मिन् सुल्तानिन्, इंय्यत्तबिअू न इल्लज़्ज़न-न व मा तह्वल् -अन्फ़ुसु व ल-क़द् जा-अहुम् मिर्रब्बि-हिमुल्-हुदा 
    वास्तव में, ये कुछ केवल नाम हैं, जो तुमने तथा तुम्हारे पूर्वजों ने रख लिये हैं। नहीं उतारा है अल्लाह ने उनका कोई प्रमाण। वे केवल अनुमान[मुश्रिक अपनी मूर्तियों को अल्लाह की पुत्रियाँ कह कर उन की पूजा करते थे। जिस का यहाँ खण्डन किया जा रहा है।] पर चल रहे हैं तथा अपनी मनमानी पर। जबकि आ चुका है उनके पालनहार की ओर से मार्गदर्शन।
  24. अम् लिल्-इन्सानि मा तमन्ना 
    क्या मनुष्य को वही मिल जायेगा, जिसकी वह कामना करे?
  25. फ़-लिल्लाहिल्- आख़िरतु वल्-ऊला
    (नहीं, ये बात नहीं है) क्योंकि अल्लाह के अधिकार में है परलोक तथा संसार।
  26. व कम् मिम्म-लकिन् फ़िस्समावाति ला तुग़्नी शफ़ा – अ़तुहुम् शैअन् इल्ला मिम्बअ्दि अंय्यअ्-ज़नल्लाहु लिमंय्यशा-उ व यर्जा 
    और आकाशों में बहुत-से फ़रिश्ते हैं, जिनकी अनुशंसा कुछ लाभ नहीं देती, परन्तु इसके पश्चात् कि अनुमति दे अल्लाह जिसके लिए चाहे तथा उससे प्रसन्न हो।[अरब के मुश्रिक यह समझते थे कि यदि हम फ़रिश्तों की पूजा करेंगे तो वह अल्लाह से सिफ़ारिश कर के हमें यातना से मुक्त करा देंगे। इसी का खण्डन यहाँ किया जा रहा है।]
  27. इन्नल्लज़ी – न ला युअ्मिनू-न बिल्-आख़िरति ल-युसम्मूनल् -मलाइ-क-त तस्मि-यतल् – उन्सा
    वास्तव में, जो ईमान नहीं लाते परलोक पर, वे नाम देते हैं फ़रिश्तों के, स्त्रियों के नाम।
  28. व मा लहुम् बिही मिन् अिल्मिन्, इंय्यत्तबिअू-न इल्लज़्ज़न-न व इन्नज़्- ज़न्-न ला युग़्नी मिनल्–हक़्क़ि शैआ 
    उन्हें इसका कोई ज्ञान नहीं। वे अनुसरण कर रहे हैं मात्र गुमान का और वस्तुतः गुमान नहीं लाभप्रद होता सत्य के सामने कुछ भी।
  29. फ़- अअ्-रिज़् अ़म्-मन् तवल्ला अ़न् ज़िक्रिना व लम् युरिद् इल्लल्- हयातद्-दुन्या 
    अतः, आप विमुख हो जायें उससे, जिसने मुँह फेर लिया है हमारी शिक्षा से तथा वह सांसारिक जीवन ही चाहता है।
  30. ज़ालि-क मब्लग़ुहुम् मिनल्-अिल्मि, इन्-न रब्ब क हु-व अअ्लमु बिमन् ज़ल्-ल अ़न् सबीलिही व हु-व अअ्लमु बि मनिह्तदा 
    यही उनके ज्ञान की पहुँच है। वास्तव में, आपका पालनहार ही अधिक जानता है उसे, जो कुपथ हो गया उसके मार्ग से तथा उसे, जिसने संमार्ग अपना लिया।
  31. व लिल्लाहि मा फ़िस्समावाति व मा फ़िल्अर्ज़ि लि-यज्ज़ि – यल्लज़ी न असाऊ बिमा अ़मिलू व यज्ज़ि -यल्लज़ी-न अह्सनू बिल्हुस्ना 
    तथा अल्लाह ही का है जो आकाशों तथा धरती में है, ताकि वह बदला दे उसे, जिसने बुराई की उसके कुकर्म का और बदला दे उसे, जिसने सुकर्म किया अच्छा बदला।
  32. अल्लज़ी – न यज्तनिबू-न कबाइरल्-इस्मि वल्-फ़वाहि-श इल्लल्-ल-मम्, इन्- न रब्ब-क वासिअुल्-मग़्फ़ि – रति, हु-व अअ्लमु बिकुम् इज़् अन्श-अकुम् मिनल्-अर्ज़ि व इज़् अन्तुम् अजिन्नतुन् फ़ी बुतूनि उम्म- हातिकुम् फ़ला तुज़क्कू अन्फ़ु -सकुम्, हु-व अअ्लमु बि मनित्तक़ा 
    उन लोगों को जो बचते हैं महा पापों तथा निर्लज्जा[निर्लज्जा से अभिप्राय निर्लज्जा पर आधारित कुकर्म हैं।] से, कुछ चूक के सिवा। वास्तव में, आपका पालनहार उदार, क्षमाशील है। वह भली-भाँति जानता है तुम्हें, जबकि उसने पैदा किया तुम्हें धरती[अर्थात तुम्हारे मूल आदम (अलैहिस्सलाम) को] से तथा जब तुम भ्रुण थे अपनी माताओं के गर्भ में। अतः, अपने में पवित्र न बनो। वही भली-भाँति जानता है उसे, जिसने सदाचार किया है।
  33. अ-फ़-रऐतल्लज़ी तवल्ला 
    तो क्या आपने उसे देखा जिसने मुँह फेर लिया?
  34. व अअ्ता क़लीलंव् व अक्दा
    और तनिक दान किया फिर रुक गया।
  35. अ – ज़िन्दहू अिल्मुल्- ग़ैबि फ़हु-व यरा 
    क्या उसके पास परोक्ष का ज्ञान है कि वह (सब कुछ) देख रहा है?
  36. अम् लम् युनब्बअ् बिमा फ़ी सुहुफ़ि मूसा 
    क्या उसे सूचना नहीं हुई उन बातों की, जो मूसा के ग्रन्थों में हैं?
  37. व इब्राहीमल्लज़ी वफ़्फ़ा 
    और इब्राहीम की, जिसने (अपना वचन) पूरा कर दिया।
  38. अल्ला तज़िरु वाज़ि-रतुंव्-विज़्-र उख़्रा 
    कि कोई दूसरे का भार नहीं लादेगा।
  39. व अल्लै-स लिल्-इन्सानि इल्ला मा सआ़ 
    और ये कि मनुष्य के लिए वही है, जो उसने प्रयास किया।
  40. व अन्न सअ्-यहू सौ-फ़ युरा 
    और ये कि उसका प्रयास शीघ्र देखा जायेगा।
  41. सुम्-म युज्ज़ाहुल्-जज़ाअल्-औफ़ा 
    फिर प्रतिफल दिया जाएगा उसे पूरा प्रतिफल।
  42. व अन्- न इला रब्बिकल् – मुन्तहा 
    और ये कि आपके पालनहार की ओर ही (सबको) पहुँचना है।
  43. व अन्नहू हु-व अज़्ह-क व अब्का 
    तथा वही है, जिसने (संसार में) हँसाया तथा रुलाया।
  44. व अन्नहू हु-व अमा-त व अह्या 
    तथा उसीने मारा और जिलाया।
  45. व अन्नहू ख़-लक़ज़्ज़ौजैनिज़्ज़-क-र वल्-उन्सा 
    तथा उसीने दोनों प्रकार उत्पन्न किये; पुरुष और महिला।
  46. मिन्-नुत्फ़्तिन् इज़ा तुम्ना 
    वीर्य से, जब (गर्भाशय में) गिरा।
  47. व अन्-न अ़लैहिन्-नश-अतल्-उख़्रा 
    तथा उसी के ऊपर दूसरी बार[अर्थात प्रलय के दिन प्रतिफल प्रदान करने के लिये] उत्पन्न करना है।
  48. व अन्नहू हु व अ़ग्ना व अक़्ना
    तथा उसीने धनी बनाया और धन दिया।
  49. व अन्नहू हु-व रब्बुश्- शिअ्-रा
    और वही शेअरा का स्वामी है।
    (शेअरा एक तारे का नाम है। जिस की पूजा कुछ अरब के लोग किया करते थे। अर्थ यह है कि यह तारा पूज्य नहीं, वास्तविक पूज्य उस का स्वामी अल्लाह है।)
  50. व अन्नहू अह्ल-क आ़-द- निल्ऊला 
    तथा उसीने ध्वस्त किया प्रथम आद[यह हूद (अलैहिस्सलाम) की जाति] को।
  51. व समू-द फ़मा अब्का 
    तथा समूद[अर्थात सालेह अलैहिस्सलाम की जाति] को। किसी को शेष नहीं रखा।
  52. व क़ौ-म नूहिम्-मिन् क़ब्लु इन्नहुम् कानू हुम् अज़्ल-म व अत्ग़ा 
    तथा नूह़ की जाति को इससे पहले, वस्तुतः, वे बड़े अत्याचारी, अवज्ञाकारी थे।
  53. वल्-मुअ्तफ़ि-क-त अह्वा 
    तथा औंधी की हुई बस्ती[अर्थात लूत अलैहिस्सलमा की जाति कि बस्तियों को] को उसने गिरा दिया।
  54. फ़-ग़श्शाहा मा ग़श्शा 
    फिर उसपर छा दिया, जो छा दिया। अर्थात पत्थरों की वर्षा कर के उन की बस्ती को ढाँक दिया।
  55. फ़बिअय्यि आला-इ रब्बि-क त-तमारा 
    तो (हे मनुष्य!) तू अपने पालनहार के किन किन पुरस्कारों में संदेह करता रहेगा?
  56. हाज़ा नज़ीरुम् मिनन्-नुज़ुरिल्-ऊला 
    ये [मुह़म्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम)] सचेतकर्ता है, प्रथम सचेतकर्ताओं में से। अर्थात एक रसूल हैं पहले के रसूलों के समान।
  57. अज़ि-फ़तिल्-आज़िफ़ह् 
    समीप आ लगी समीप आने वाली।
  58. लै-स लहा मिन् दूनिल्लाहि काशिफ़ह् 
    नहीं है अल्लाह के सिवा उसे कोई दूर करने वाला।
  59. अ-फ़- मिन् हाज़ल्-हदीसि तअ्जबून
    तो क्या तुम इस कुरान पर आश्चर्य करते हो?
  60. व तज़्हकू-न व ला तब्कून
    तथा हँसते हो और रोते नहीं।
  61. व अन्तुम् सामिदून
    तथा विमुख हो रहे हो।
  62. फ़स्जुदू लिल्लाहि वअ्बुदू *सज्दा*
    तो अल्लाह को सज्दा करो और उसी की इबादत करो।

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