28 सूरह अल क़सस हिंदी में पेज 3

सूरह अल क़सस हिंदी में | Surat Al-Qasas in Hindi

  1. व लाकिन्ना अन्शअ्ना कुरुनन् फ़-तता-व-ल अ़लैहिमुल्-अुमुरु व मा कुन् त सावि – यन् फी अह्लि मद्य-न तल्लू अ़लैहिम् आयातिना व लाकिन्ना कुन्ना मुर्सिलीन
    मगर हमने (मूसा के बाद) बहुतेरी उम्मतें पैदा की फिर उन पर एक ज़माना दराज़ गुज़र गया और न तुम मदैन के लोगों में रहे थे कि उनके सामने हमारी आयते पढ़ते (और न तुम को उन के हालात मालूम होते) मगर हम तो (तुमको) पैग़म्बर बनाकर भेजने वाले थे।
  2. व मा कुन् – त बिजानिबित्तूरि इज् नादैना व लाकिर् – रह़्म – तम् मिर्रब्बि – क लितुन्ज़ि-र क़ौमम् मा अताहुम् मिन् नज़ीरिम् मिन् कब्लि-क लअ़ल्लहुम् य तज़क्करून
    और न तुम तूर की किसी जानिब उस वक़्त मौजूद थे जब हमने (मूसा को) आवाज़ दी थी (ताकि तुम देखते) मगर ये तुम्हारे परवरदिगार की मेहरबानी है ताकि तुम उन लोगों को जिनके पास तुमसे पहले कोई डराने वाला आया ही नहीं डराओ ताकि ये लोग नसीहत हासिल करें।
  3. व लौ ला अन् तुसी – बहुम् मुसीबतुम् बिमा क़द्दमत् ऐदीहिम् फ़- यकूलू रब्बना लौ ला अर्सल् त इलैना रसूलन् फ नत्तबि-अ़ आयाति-क व नकू-न मिनल्-मुअ्मिनीन
    और अगर ये नही होता कि जब उन पर उनकी अगली करतूतों की बदौलत कोई मुसीबत पड़ती तो बेसाख़्ता कह बैठते कि परवरदिगार तूने हमारे पास कोई पैग़म्बर क्यों न भेजा कि हम तेरे हुक्मों पर चलते और इमानदारों में होते (तो हम तुमको न भेजते)।
  4. फ़-लम्मा जा- अहुमुल् – हक़्कु मिन् अिन्दिना क़ालू लौ ला ऊति – य मिस् – ल मा ऊति य मूसा, अ-व लम् यक्फुरु बिमा ऊति – य मूसा मिन् क़ब्लु कालू सिहरानि तज़ा – हरा, व कालू इन्ना बिकुल्लिन् काफिरून
    मगर फिर जब हमारी बारगाह से (दीन) हक़ उनके पास पहुँचा तो कहने लगे जैसे (मौजिज़े) मूसा को अता हुए थे वैसे ही इस रसूल (मोहम्मद) को क्यों नही दिए गए क्या जो मौजिज़े इससे पहले मूसा को अता हुए थे उनसे इन लोगों ने इन्कार न किया था कुफ़्फ़ार तो ये भी कह गुज़रे कि ये दोनों के दोनों (तौरैत व कु़रआन) जादू हैं कि बाहम एक दूसरे के मददगार हो गए हैं।
  5. कुल फअ्तू बिकिताबिम् मिन् अिन्दिल्लाहि हु-व अह्दा मिन्हुमा अत्तबिअ्हु इन् कुन्तुम् सादिक़ीन
    और ये भी कह चुके कि हम एब के मुन्किर हैं (ऐ रसूल) तुम (इन लोगों से) कह दो कि अगर सच्चे हो तो अल्लाह की तरफ से एक ऐसी किताब जो इन दोनों से हिदायत में बेहतर हो ले आओ।
  6. फ़-इल्लम् यस्तजीबू ल-क फ़अलम् अन्नमा यत्तबिअू-न अहवा-अहुम्, व मन् अज़ल्लु मिम्-मनित्त ब अ़ हवाहु बिग़ैरि हुदम्-मिनल्लाहि, इन्नल्ला-ह ला यह्दिल कौमज़्ज़ालिमीन *
    कि मै भी उस पर चलूँ फिर अगर ये लोग (इस पर भी) न मानें तो समझ लो कि ये लोग बस अपनी हवा व हवस की पैरवी करते है और जो शख़्स अल्लाह की हिदायत को छोड़ कर अपनी हवा व हवस की पैरवी करते है उससे ज़्यादा गुमराह कौन होगा बेशक अल्लाह सरकश लोगों को मंजि़ले मक़सूद तक नहीं पहुँचाया करता।
  7. व ल – क़द् वस्सल्ना लहुमुल्-क़ौ-ल लअ़ल्लहुम् य-तज़क्करून
    और हम यक़ीनन लगातार (अपने एहकाम भेजकर) उनकी नसीहत करते रहे ताकि वह लोग नसीहत हासिल करें।
  8. अल्लज़ी-न आतैनाहुमुल् – किता – ब मिन् कब्लिही हुम् बिही युअ्मिनून
    जिन लोगों को हमने इससे पहले किताब अता की है वह उस (क़़ुरआन) पर इमान लाते हैं।
  9. व इज़ा युत्ला अ़लैहिम् कालू आमन्ना बिही इन्नहुल् – हक़्कु मिर्रब्बिना इन्ना कुन्ना मिन् क़ब्लिही मुस्लिमीन
    और जब उनके सामने ये पढ़ा जाता है तो बोल उठते हैं कि हम तो इस पर इमान ला चुके बेशक ये ठीक है (और) हमारे परवरदिगार की तरफ़ से है हम तो इसको पहले ही मानते थे।
  10. उलाइ-क युअ्तौ-न अज्-रहुम् मर्रतैनि बिमा स – बरू व यदरऊ-न बिल्ह – स नतिस्- सय्यि-अ-त व मिम्मा रज़क़्नाहुम् युन्फ़िकून
    यही वह लोग हैं जिन्हें (इनके आमाले ख़ैर की) दोहरी जज़ा दी जाएगी-चूँकि उन लोगों ने सब्र किया और बदी को नेकी से दफ़ा करते हैं और जो कुछ हमने उन्हें अता किया है उसमें से (हमारी राह में) ख़र्च करते हैं।
  11. उलाइ-क युअ्तौ – न अज् – रहुम् मर्रतैनि बिमा स – बरू व यदरऊ-न बिल्ह – स नतिस्- सय्यि-अ-त व मिम्मा रज़क़्नाहुम् युन्फ़िकून
    और जब किसी से कोई बुरी बात सुनी तो उससे किनारा कश रहे और साफ कह दिया कि हमारे वास्ते हमारी कारगुज़ारियाँ हैं और तुम्हारे वास्ते तुम्हारी कारस्तानियाँ (बस दूर ही से) तुम्हें सलाम है हम जाहिलो (की सोहबत) के ख़्वाहा नहीं।
  12. इन्न-क ला तह्दी मन् अहबब् त व लाकिन्नल्ला ह यह्दी मंय्यशा-उ वहु-व अअ्लमू बिल्मुह्-तदीन
    (ऐ रसूल) बेशक तुम जिसे चाहो मंजि़ले मक़सूद तक नहीं पहुँचा सकते मगर हाँ जिसे अल्लाह चाहे मंजि़ल मक़सूद तक पहुचाए और वही हिदायत याफ़ता लोगों से ख़ूब वाकि़फ़ है।
  13. व कालू इन् नत्तबिअिल् हुदा म-अ-क नु-तख़त्तफ् मिन् अरजिना, अ-व लम् नुमक्किल् लहुम् ह-रमन् आमिनंय्-युज्बा इलैहि स-मरातु कुल्लि शैइर्-रिज्क़म मिल्लदुन्ना व लाकिन्-न अक्स-रहुम् ला यअ्लमून
    (ऐ रसूल!) कुफ़्फ़ारे (मक्का) तुमसे कहते हैं कि अगर हम तुम्हारे साथ दीन हक़ की पैरवी करें तो हम अपने मुल्क से उचक लिए जाएँ (ये क्या बकते है) क्या हमने उन्हें हरम- ऐ- (मक्का) में जहाँ हर तरह का अमन है जगह नहीं दी वहाँ हर किस्म के फल रोज़ी के वास्ते हमारी बारगाह से खिंचे चले जाते हैं मगर बहुतेरे लोग नहीं जाते।
  14. व कम् अह़्लक्ना मिन् कर्-यतिम् बतिरत् मई-श-तहा फ़तिल्-क मसाकिनुहुम् लम् तुस्कम् मिम् – बअ्दिहिम् इल्ला क़लीलन्, व कुन्ना नह्नुल-वारिसीन
    और हमने तो बहुतेरी बस्तियाँ बरबाद कर दी जो अपनी मइष्त (रोज़ी) में बहुत इतराहट से (जि़न्दगी) बसर किया करती थीं-(तो देखो) ये उन ही के (उजड़े हुए) घर हैं जो उनके बाद फिर आबाद नहीं हुए मगर बहुत कम और (आखि़र) हम ही उनके (माल व असबाब के) वारिस हुए।
  15. व मा का-न रब्बु-क मुह़्लिकल् कुरा हत्ता यब् – अ़-स फ़ी उम्मिहा रसूलंय् – यत्लू अ़लैहिम् आयातिना व मा कुन्ना मुह़्लिकल् – कुरा इल्ला – व अह्लुहा ज़ालिमून
    और तुम्हारा परवरदिगार जब तक उन गाँव के सदर मक़ाम पर अपना पैग़म्बर न भेज ले और वह उनके सामने हमारी आयतें न पढ़ दे (उस वक़्त तक) बस्तियों को बरबाद नहीं कर दिया करता-और हम तो बस्तियों को बरबाद करते ही नहीं जब तक वहाँ के लोग ज़ालिम न हों।
  16. व मा ऊतीतुम् मिन् शैइन् फ- मताअुल- हयातिद्दुन्या व जी- नतुहा व मा अिन्दल्लाहि ख़ैरुंव व अब्का, अ-फला तअ्किलून *
    और तुम लोगों को जो कुछ अता हुआ है तो दुनिया की (ज़रा सी) जि़न्दगी का फ़ायदा और उसकी आराइष है और जो कुछ अल्लाह के पास है वह उससे कही बेहतर और पाएदार है तो क्या तुम इतना भी नहीं समझते।
  17. अ-फ़मंव्-वअ़द्नाहु वअ्दन् ह-सनन् फ़हु-व लाक़ीहि कमम्-मत्तअ्नाहु मताअल् – हयातिद्दुन्या सुम्-म हु-व यौमल्-कियामति मिनल- मुह्ज़रीन
    तो क्या वह शख़्स जिससे हमने (बहिश्त का) अच्छा वायदा किया है और वह उसे पाकर रहेगा उस शख़्स के बराबर हो सकता है जिसे हमने दुनियावी जि़न्दगी के (चन्द रोज़ा) फायदे अता किए हैं और फिर क़यामत के दिन (जवाब देही के वास्ते हमारे सामने) हाजि़र किए जाएँगें।
  18. व यौ-म युनादीहिम्फ़-यकूलु ऐ-न शु-रकाइ-यल्लज़ी-न कुन्तुम् तज्अुमून
    और जिस दिन अल्लाह उन कुफ़्फ़ार को पुकारेगा और पूछेगा कि जिनको तुम हमारा शरीक ख़्याल करते थे वह (आज) कहाँ हैं (ग़रज़ वह शरीक भी बुलाँए जाएँगे)।
  19. कालल्लज़ी – न हक्क़ अलैहिमुल-क़ौलु रब्बना हा – उलाइल्लज़ी न अ़ग्वैना अ़ग्वैनाहुम् कमा ग़वैना तबर्रअ्ना इलै-क मा कानू इय्याना अअ्बुदून
    वह लोग जो हमारे अज़ाब के मुस्ताजिब हो चुके हैं कह देगे कि परवरदिगार यही वह लोग हैं जिन्हें हमने गुमराह किया था जिस तरह हम ख़़ुद गुमराह हुए उसी तरह हमने इनको गुमराह किया-अब हम तेरी बारगाह में (उनसे) दस्तबरदार होते है-ये लोग हमारी इबादत नहीं करते थे।
  20. व कीलद्अू शु-रका-अकुम् फ़-दऔ़हुम् फ़-लम् यस्तजीबू लहुम् वर-अवुल्-अ़ज़ा-ब लौ अन्नहुम् कानू यह्तदून
    और कहा जाएगा कि भला अपने उन शरीको को (जिन्हें तुम अल्लाह समझते थे) बुलाओ तो ग़रज़ वह लोग उन्हें बुलाएँगे तो वह उन्हें जवाब तक नही देगें और (अपनी आँखों से) अज़ाब को देखेंगें काश ये लोग (दुनिया में) राह पर आए होते।
  21. व यौ-म युनादीहिम् फ़-यकूलु माज़ा अ जब्तुमुल- मुर्सलीन
    और (वह दिन याद करो) जिस दिन अल्लाह लोगों को पुकार कर पूछेगा कि तुम लोगों ने पैग़म्बरों को (उनके समझाने पर) क्या जवाब दिया।
  22. फ़-अ़मियत् अ़लैहिमुल्-अम्बा-उ यौमइजिन् फ़हुम् ला य-तसाअलून
    तब उस दिन उन्हें बातें न सूझ पडे़गी (और) फिर बाहम एक दूसरे से पूछ भी न सकेगें।

Surah Al-Qasas Video

Share this:

Leave a Comment

error: Content is protected !!