27 सूरह अन नम्ल हिंदी में पेज 2

सूरह अन नम्ल हिंदी में | Surat An-Naml in Hindi

  1. अल्लाहु ला इला-ह इल्ला हु-व रब्बुल-अ़र्शिल्-अ़ज़ीम *सज़्दा*
    अल्लाह वह है जिससे सिवा कोई माबूद नहीं वही (इतने) बड़े अर्श का मालिक है।
  2. का-ल सनन्जुरु अ-सदक् त अम् कुन् त मिनल् – काज़िबीन
    (ग़रज़) सुलेमान ने कहा हम अभी देखते हैं कि तूने सच सच कहा या तू झूठा है।
  3. इज़्हब् – बिकिताबी हाज़ा फ़ – अल्किह् इलैहिम् सुम्-म तवल्-ल अ़न्हुम् फ़न्जुर् माज़ा यर्जिअून
    (अच्छा) हमारा ये ख़त लेकर जा और उसको उन लोगों के सामने डाल दे फिर उन के पास से जाना फिर देखते रहना कि वह लोग अखि़र क्या जवाब देते हैं।
  4. क़ालत् या अय्युहल्म – लउ इन्नी उल्कि – य इलय् – य किताबुन करीम
    (ग़रज़) हुद हुद ने मलका के पास ख़त पहुँचा दिया तो मलका बोली ऐ (मेरे दरबार के) सरदारों ये एक वाजिबुल एहतराम ख़त मेरे पास डाल दिया गया है।
  5. इन्नहू मिन् सुलैमा-न व इन्नहू बिस्मिल्लाहिर्रह्मानिर्रहीम
    सुलेमान की तरफ से है (ये उसका सरनामा) है बिस्मिल्लाहिररहमानिरहीम।
  6. अल्ला तअलू अ़लय्-य वअ्तूनी मुस्लिमीन*
    (और मज़मून) यह है कि मुझ से सरकशी न करो और मेरे सामने फरमाबरदार बन कर हाजि़र हो।
  7. क़ालत या अय्युहल् म लउ अफ़्तूनी फ़ी अम्री मा कुन्तु काति – अ़तन् अमरन् हत्ता तश्हदून
    तब मलका (बिलक़ीस) बोली ऐ मेरे दरबार के सरदारों तुम मेरे इस मामले में मुझे राय दो (क्योंकि मेरा तो ये क़ायदा है कि) जब तक तुम लोग मेरे सामने मौजूद न हो (मशवरा न दे दो) मैं किसी अम्र में क़तई फैसला न किया करती।
  8. कालू नह्नु उलू कुव्वतिंव्-व उलू बअ्सिन् शदीदिंव् – वल्- अम्रु इलैकि फ़न्जुरी माज़ा तअ्मुरीन
    उन लोगों ने अर्ज़ की हम बड़े ज़ोरावर बडे़ लड़ने वाले हैं और (आइन्दा) हर अम्र का आप को एख़्तियार है तो जो हुक्म दे आप (खुद अच्छी) तरह इसके अन्जाम पर ग़ौर कर ले।
  9. कालत् इन्नल- मुलू-क इज़ा द – ख़लू कर् – यतन् अफ़्सदूहा व ज – अ़लू अअिज़्ज़-त अह़्लिहा अज़िल्ल-तन् व कज़ालि- क यफ़अ़लून
    मलका ने कहा बादशाहों का क़ायदा है कि जब किसी बस्ती में (बज़ोरे फ़तेह) दाखि़ल हो जाते हैं तो उसको उजाड़ देते हैं और वहाँ के मुअजि़ज़ लोगों को ज़लील व रुसवा कर देते हैं और ये लोग भी ऐसा ही करेंगे।
  10. व इन्नी मुर्सि-लतुन् इलैहिम् बि – हदिय्यतिन् फ़नाज़ि – रतुम् बि- म यर्जिअुल-मुर्सलून
    और मैं उनके पास (एलचियों की माअरफ़त कुछ तोहफा भेजकर देखती हूँ कि एलची लोग क्या जवाब लाते हैं) ग़रज़ जब बिलक़ीस का एलची (तोहफा लेकर) सुलेमान के पास आया।
  11. फ़-लम्मा जा-अ सुलैमा-न का-ल अतुमिद्दू-ननि बिमालिन् फ़मा आतानि यल्लाहु ख़ैरुम् मिम्मा आताकुम् बल् अन्तुम् बि- हदिय्यतिकुम् तफ़रहून
    तो सुलेमान ने कहा क्या तुम लोग मुझे माल की मदद देते हो तो अल्लाह ने जो (माल दुनिया) मुझे अता किया है वह (माल) उससे जो तुम्हें बख्शा है कहीं बेहतर है (मैं तो नही) बल्कि तुम्ही लोग अपने तोहफे़ तहायफ़ से ख़ुश हुआ करो।
  12. इर्जिअ् इलैहिम् फ़ – लनअ्ति – यन्नहुम् बिजुनूदिल् ला कि-ब-ल लहुम् बिहा व लनुख़्रिजन्नहुम् मिन्हा अज़िल्ल-तंव्-व हुम् साग़िरून
    (फिर तोहफ़ा लाने वाले ने कहा) तो उन्हीं लोगों के पास जा हम यक़ीनन ऐसे लशकर से उन पर चढ़ाई करेंगे जिसका उससे मुक़ाबला न हो सकेगा और हम ज़रुर उन्हें वहाँ से ज़लील व रुसवा करके निकाल बाहर करेंगे।
  13. का-ल या अय्युहल्- म-लउ अय्युकुम् यअ्तीनी बिअ़र्शिहा क़ब् – ल अंय्यअ्नूनी मुस्लिमीन
    (जब वह जा चुका) तो सुलेमान ने अपने एहले दरबार से कहा ऐ मेरे दरबार के सरदारो तुममें से कौन ऐसा है कि क़ब्ल इसके वह लोग मेरे सामने फरमाबरदार बनकर आयें।
  14. का – ल अिफ्रीतुम मिनल् जिन्नि अ-न आती – क बिही कब् – ल अन् तकू – म मिम् – मकामि – क व इन्नी अ़लैहि ल – कविय्युन् अमीन
    मलिका का तख़्त मेरे पास ले आए (इस पर) जिनों में से एक दियो बोल उठा कि क़ब्ल इसके कि हुज़ूर (दरबार बरख़ास्त करके) अपनी जगह से उठे मै तख़्त आपके पास ले आऊँगा और यक़ीनन उस पर क़ाबू रखता हूँ (और) जि़म्मेदार हूँ।
  15. क़ालल्लज़ी अिन्दहू अिल्मुम् मिनल्- किताबि अ-न आती-क बिही कब् – ल अंय्यर् – तद् – द इलै – क तरफु-क, फ़-लम्मा रआहु मुस्तकिर्रन् अिन्दहू का-ल हाज़ा मिन् फ़ज़्लि रब्बी, लि- यब्लु – वनी अ- अश्कुरु अम् अक़्फुरु, व मन् श क-र फ़- इन्नमा यश्कुरु लिनफ्सिही व मन् क-फ़-र फ़-इन्-न रब्बी ग़निय्युन् करीम
    इस पर अभी सुलेमान कुछ कहने न पाए थे कि वह शख़्स (आसिफ़ बिन बरखि़या) जिसके पास किताबे (अल्लाह) का किस कदर इल्म था बोला कि मै आप की पलक झपकने से पहले तख़्त को आप के पास हाजि़र किए देता हूँ (बस इतने ही में आ गया) तो जब सुलेमान ने उसे अपने पास मौजूद पाया तो कहने लगे ये महज़ मेरे परवरदिगार का फज़ल व करम है ताकि वह मेरा इम्तेहान ले कि मै उसका शुक्र करता हूँ या नाशुक्री करता हूँ और जो कोई शुक्र करता है वह अपनी ही भलाई के लिए शुक्र करता है और जो शख़्स नाशुक्री करता है तो (याद रखिए) मेरा परवरदिगार यक़ीनन बेपरवा और सख़ी है।
  16. का – ल नक्किरू लहा अ़र् – शहा नन्जुर् अ तह्तदी अम् तकूनु मिनल्लज़ी – न ला यह्तदून
    (उसके बाद) सुलेमान ने कहा कि उसके तख़्त में (उसकी अक़्ल के इम्तिहान के लिए) तग़य्युर तबददुल कर दो ताकि हम देखें कि फिर भी वह समझ रखती है या उन लोगों में है जो कुछ समझ नहीं रखते।
  17. फ़ – लम्मा जाअत् की – ल अहा- कज़ा अरशुकि, कालत् क अन्नहू हु-व व ऊतीनल् – अिल्-म मिन् क़ब्लिहा व कुन्ना मुस्लिमीन
    (चुनान्चे ऐसा ही किया गया) फिर जब बिलक़ीस (सुलेमान के पास) आयी तो पूछा गया कि तुम्हारा तख़्त भी ऐसा ही है वह बोली गोया ये वही है (फिर कहने लगी) हमको तो उससे पहले ही (आपकी नुबूवत) मालूम हो गयी थी और हम तो आपके फ़रमाबरदार थे ही।
  18. व सन्नहा मा कानत् तअबुदु मिन् दूनिल्लाहि, इन्नहा कानत् मिन् कौमिन् काफ़िरीन
    और अल्लाह के सिवा जिसे वह पूजती थी सुलेमान ने उससे उसे रोक दिया क्योंकि वह काफिर क़ौम की थी (और आफ़ताब को पूजती थी)।
  19. की-ल ल-हद्ख़ुलिस्सर-ह फ़-लम्मा र अत्हु हसि-बत्हु लुज्जतंव् – व क – शफ़त् अ़न् साकैहा, का – ल इन्नहू सरहुम् – मुमर्रदुम मिन् क़वारी र क़ालत् रब्बि इन्नी ज़लम्तु नफ़्सी व असलम्तु म – अ़ सुलैमा-न लिल्लाहि रब्बिल्-आ़लमीन*
    फिर उससे कहा गया कि आप अब महल मे चलिए तो जब उसने महल (में शीशे के फ़र्श) को देखा तो उसको गहरा पानी समझी (और गुज़रने के लिए इस तरह अपने पाएचे उठा लिए कि) अपनी दोनों पिन्डलियाँ खोल दी सुलेमान ने कहा (तुम डरो नहीं) ये (पानी नहीं है) महल है जो शीशे से मढ़ा हुआ है (उस वक़्त तम्बीह हुयी और) अर्ज़ की परवरदिगार मैने (आफ़ताब को पूजा कर) यक़ीनन अपने ऊपर ज़ुल्म किया।
  20. व ल-क़द् अरसल्ना इला समू-द अख़ाहुम् सालिहन् अनि अ्बुदुल्ला-ह फ़ – इज़ा हुम् फ़रीकानि यख़्तसिमून
    और अब मैं सुलेमान के साथ सारे जहाँ के पालने वाले अल्लाह पर ईमान लाती हूँ और हम ही ने क़ौम समूद के पास उनके भाई सालेह को पैग़म्बर बनाकर भेजा कि तुम लोग अल्लाह की इबादत करो तो वह सालेह के आते ही (मोमिन व काफ़िर) दो फरीक़ बनकर बाहम झगड़ने लगे।
  21. का-ल या क़ौमि लि-म तस्तअ्जिलू न बिस्सय्यि-अति क़ब्लल्-ह-स-नति लौ ला तस्तग्फिरूनल्ला – ह लअ़ल्लकुम् तुरहमून
    सालेह ने कहा ऐ मेरी क़ौम (आखि़र) तुम लोग भलाई से पहल बुराई के वास्ते जल्दी क्यों कर रहे हो तुम लोग अल्लाह की बारगाह में तौबा व अस्तग़फार क्यों नही करते ताकि तुम पर रहम किया जाए।
  22. कालुत्तय्यर्ना बि-क व बि-मम्-म-अ-क, का-ल ताइरुकुम् अिन्दल्लाहि बल अन्तुम् कौमुन् तुफ़्तनून
    वह लोग बोले हमने तो तुम से और तुम्हारे साथियों से बुरा शगुन पाया सालेह ने कहा तुम्हारी बदकिस्मती अल्लाह के पास है (ये सब कुछ नहीं) बल्कि तुम लोगों की आज़माइश की जा रही है।
  23. व का-न फिल्मदी-नति तिस्अतु रहितंय्-युफ्सिदू-न फिल्अर्जि व ला युस्लिहून
    और शहर में नौ आदमी थे जो मुल्क के बानीये फ़साद थे और इसलाह की फिक्र न करते थे-उन लोगों ने (आपस में) कहा कि बाहम अल्लाह की क़सम खाते जाओ।
  24. कालू तक़ा-समू बिल्लाहि लनुबय्यितन्नहू व अह़्लहू सुम्-म ल-नकूलन्-न लि-वलिय्यिही मा शहिद्ना मह़्लि-क अह़्लिही व इन्ना ल-सादिकून
    कि हम लोग सालेह और उसके लड़के बालो पर सब खून करे उसके बाद उसके वाली वारिस से कह देगें कि हम लोग उनके घर वालों को हलाक़ होते वक़्त मौजूद ही न थे और हम लोग तो यक़ीनन सच्चे हैं।
  25. वम-करू मकरंव्-व मकरना मकरंव् व हुम् ला यश्अुरून
    और उन लोगों ने एक तदबीर की और हमने भी एक तदबीर की और (हमारी तदबीर की) उनको ख़बर भी न हुयी।

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