27 सूरह अन नम्ल हिंदी में पेज 3

सूरह अन नम्ल हिंदी में | Surat An-Naml in Hindi

  1. फ़न्जुर् कै-फ़ का-न आकि-बतु मकरिहिम् अन्ना दम्मरनाहुम् व कौमहुम् अज्मईन
    तो (ऐ रसूल) तुम देखो उनकी तदबीर का क्या (बुरा) अन्जाम हुआ कि हमने उनको और सारी क़ौम को हलाक कर डाला (51)
  2. फ़-तिल्-क बुयूतुहुम् खावि-यतम् बिमा ज़-लमू, इन्-न फ़ी ज़ालि-कलआ-यतल् लिकौमिय्-यअ्लमून
    ये बस उनके घर हैं कि उनकी नाफ़रमानियों की वज़ह से ख़ाली वीरान पड़े हैं इसमे शक नही कि उस वाकि़ये में वाकि़फ कार लोगों के लिए बड़ी इबरत है (52)
  3. व अन्जैनल्लज़ी-न आमनू व कानू यत्तकून
    और हमने उन लोगों को जो इमान लाए थे और परहेज़गार थे बचा लिया(53)
  4. व लूतन् इज् का – ल लिकौमिही अ-तअ्तून फ़ाहि-श-त व अन्तुम् तुब्सिरून
    और (ऐ रसूल) लूत को (याद करो) जब उन्होंने अपनी क़ौम से कहा कि क्या तुम देखभाल कर (समझ बूझ कर) ऐसी बेहयाई करते हो (54)
  5. अ – इन्नकुम् ल – तअ्तूनर् रिजा-ल शह़्व-तम् मिन् दूनिन्निसा – इ, बल अन्तुम् कौमुन् तज्हलून
    क्या तुम औरतों को छोड़कर शहवत से मर्दों के आते हो (ये तुम अच्छा नहीं करते) बल्कि तुम लोग बड़ी जाहिल क़ौम हो तो लूत की क़ौम का इसके सिवा कुछ जवाब न था (55)
  6. फ़मा का न जवा-ब कौमिही इल्ला अन् क़ालू अख़रिजू आ – ल लूतिम – मिन् कर् – यतिकुम् इन्नहुम् उनासुंय्-य-त-तह्हरून
    कि वह लोग बोल उठे कि लूत के खानदान को अपनी बस्ती (सदूम) से निकाल बाहर करो ये लोग बड़े पाक साफ़ बनना चाहते हैं (56)
  7. फ़- अन्जैनाहु व अह़्लहू इल्लम्र – अ तहू कन्नर्नाहा मिनल्- ग़ाबिरीन
    ग़रज हमने लूत को और उनके ख़ानदान को बचा लिया मगर उनकी बीवी कि हमने उसकी तक़दीर में पीछे रह जाने वालों में लिख दिया था (57)
  8. व अम्तरना अ़लैहिम् म-तरन् फ़सा-अ म-तरुल्-मुन्ज़रीन*
    और (फिर तो) हमने उन लोगों पर (पत्थर का) मेंह बरसाया तो जो लोग डराए जा चुके थे उन पर क्या बुरा मेंह बरसा (58)
  9. कुलिल्हम्दु लिल्लाहि व सलामुन् अ़ला इबादिहिल्लज़ीनस् – तफ़ा, अल्लाहु ख़ैरुन् अम्मा युश्रिकून
    (ऐ रसूल) तुम कह दो (उनके हलाक़ होने पर) खु़दा का शुक्र और उसके बरगुज़ीदा बन्दों पर सलाम भला ख़ुदा बेहतर है या वह चीज़ जिसे ये लोग शरीके ख़ुदा कहते हैं (59)
  10. अम्मन् ख़-लक़स्समावाति वल्अर्-ज़ व अन्ज़ – ल लकुम् मिनस्समा – इ मा – अन् फ़- अम्बत्ना बिही हदाइ-क़ ज़ा-त बह्जतिन् मा का-न लकुम् अन् तुम्बितू श-ज-रहा अ- इलाहुम् – मअ़ल्लाहि, बल् हुम् कौमुंय्-यअ्दिलून
    भला वह कौन है जिसने आसमान और ज़मीन को पैदा किया और तुम्हारे वास्ते आसमान से पानी बरसाया फिर हम ही ने पानी से दिल चस्प (ख़ुशनुमा) बाग़ उठाए तुम्हारे तो ये बस की बात न थी कि तुम उनके दरख़्तों को उगा सकते तो क्या ख़ुदा के साथ कोई और माबूद भी है (हरगिज़ नहीं) बल्कि ये लोग खुद अपने जी से गढ़ के बुतो को उसके बराबर बनाते हैं (60)
  11. अम्मन् ज-अ़लल् – अर् ज़ क़रारंव्-व ज-अ-ल ख़िला – लहा अन्हारंव् – व ज-अ़-ल लहा रवासि-य व ज-अ़-ल बैनल्-बहरैनि हाजिज़न्, अ- इलाहुम्-मअ़ल्लाहि, बल् अक्सरुहुम् ला यअ्लमून
    भला वह कौन है जिसने ज़मीन को (लोगों के) ठहरने की जगह बनाया और उसके दरम्यिान जा बजा नहरें दौड़ायी और उसकी मज़बूती के वास्ते पहाड़ बनाए और (मीठे खारी) दरियाओं के दरम्यिान हदे फ़ासिल बनाया तो क्या ख़ुदा के साथ कोई और माबूद भी है (हरगिज़ नहीं) बल्कि उनमें के अकसर कुछ जानते ही नहीं (61)
  12. अम् – मंय्युजीबुल मुज्तर्-र इज़ा दआ़हु व यक्शिफुस्सू – अ व यज् – अ़लुकुम खु – लफाअल्- अर्जि, अ- इलाहुम् मअ़ल्लाहि, क़लीलम् मा तज़क्करून
    भला वह कौन है कि जब मुज़तर उसे पुकारे तो दुआ क़ुबूल करता है और मुसीबत को दूर करता है और तुम लोगों को ज़मीन में (अपना) नायब बनाता है तो क्या ख़ुदा के साथ कोई और माबूद है (हरगिज़ नहीं) उस पर भी तुम लोग बहुत कम नसीहत व इबरत हासिल करते हो (62)
  13. अम् – मंय्यह्दीकुम् फ़ी जुलुमातिल्-बर्रि वल्बहरि व मंय्युर्सिलुर् – रिया-ह बुश्रम्-बै-न यदै रह्मतिही, अ-इलाहुम्-मअ़ल्लाहि, तआ़लल्लाहु अ़म्मा युश्रिकून
    भला वह कौन है जो तुम लोगों की ख़़ुशकी और तरी की तारिकि़यों में राह दिखाता है और कौन उसकी बाराने रहमत के आगे आगे (बारिश की) ख़ुशखबरी लेकर हवाओं को भेजता है-क्या ख़ुदा के साथ कोई और माबूद भी है (हरगिज़ नहीं) ये लोग जिन चीज़ों को ख़ुदा का शरीक ठहराते हैं ख़ुदा उससे बालातर है (63)
  14. अम्-मंय्यब्दउल् – ख़ल्क़ सुम्म युईदुहू व मंय्यरजुकुकुम् मिनस्समा – इ वलअर्ज़ि, अ- इलाहुम् मअ़ल्लाहि, कुल् हातू बुरहा – नकुम् इन् कुन्तुम् सादिक़ीन
    भला वह कौन हैं जो खि़लक़त को नए सिरे से पैदा करता है फिर उसे दोबारा (मरने के बाद) पैदा करेगा और कौन है जो तुम लोगों को आसमान व ज़मीन से रिज़क़ देता है- तो क्या ख़ुदा के साथ कोई और माबूद भी है (हरगि़ज़ नहीं) (ऐ रसूल) तुम (इन मुशरेकीन से) कहा दो कि अगर तुम सच्चे हो तो अपनी दलील पेश करो (64)
  15. कुल् ला यअ्लमु मन् फ़िस् – समावाति वल् अर्जि ल्ग़ै – ब इल्लल्लाहु, व मा यश्अरू-न अय्या-न युब्अ़सून
    (ऐ रसूल इन से) कह दो कि जितने लोग आसमान व ज़मीन में हैं उनमे से कोई भी गै़ब की बात के सिवा नहीं जानता और वह भी तो नहीं समझते कि क़ब्र से दोबारा कब जि़न्दा उठ खडे़ किए जाएँगें (65)
  16. बलिद्दार – क अिल्मुहुम फिल् – आख़िरति, बल् हुम् फी शक्किम् मिन्हा, बल् हुम् मिन्हा अ़मून*
    बल्कि (असल ये है कि) आखि़रत के बारे में उनके इल्म का ख़ात्मा हो गया है बल्कि उसकी तरफ़ से शक में पड़ें हैं बल्कि (सच ये है कि) इससे ये लोग अँधे बने हुए हैं (66)
  17. व क़ालल्लज़ी-न क-फ़रू अ इज़ा कुन्ना तुराबंव् – व आबाउना अ – इन्ना ल – मुख़रजून
    और कुफ़्फ़ार कहने लगे कि क्या जब हम और हमारे बाप दादा (सड़ गल कर) मिट्टी हो जाएँगं तो क्या हम फिर निकाले जाएँगें (67)
  18. ल – क़द् वुअिद्ना हाज़ा नह्नु व आबाउना मिन् क़ब्लु इन् हाज़ा इल्ला असातीरुल् – अव्वलीन
    उसका तो पहले भी हम से और हमारे बाप दादाओं से वायदा किया गया था (कहाँ का उठना और कैसी क़यामत) ये तो हो न हो अगले लोगों के ढकोसले हैं (68)
  19. कुल् सीरू फ़िल्अर्जि फ़न्जुरू कै-फ़ का-न आ़कि-बतुल्-मुज्रिमीन
    (ऐ रसूल) लोगों से कह दो कि रुए ज़मीन पर ज़रा चल फिर कर देखो तो गुनाहगारों का अन्जाम क्या हुआ (69)
  20. व ला तह्ज़न अ़लैहिम् व ला तकुन् फी ज़ैकिम् – मिम्मा यम्कुरून
    (ऐ रसूल) तुम उनके हाल पर कुछ अफ़सोस न करो और जो चालें ये लोग (तुम्हारे खि़लाफ़) चल रहे हैं उससे तंग दिल न हो (70)
  21. व यकूलू – न मता हाज़ल् – वअ्दु इन् कुन्तुम् सादिक़ीन
    और ये (कुफ़्फ़ार मुसलमानों से) पूछते हैं कि अगर तुम सच्चे हो तो (आखि़र) ये (क़यामत या अज़ाब का) वायदा कब पूरा होगा (71)
  22. कुल अ़सा अंय्यकू – न रदि-फ़ लकुम् बअ्जुल्लज़ी तस्तअ्जिलून
    (ऐ रसूल) तुम कह दो कि जिस (अज़ाब) की तुम लोग जल्दी मचा रहे हो क्या अजब है इसमे से कुछ करीब आ गया हो (72)

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