04 सूरह अन-निसा हिंदी में पेज 6

सूरह अन-निसा हिंदी में | Surah An-Nisa in Hindi

  1. व इज़ा ज़रब्तुम् फ़िल् अर्ज़ि फ़्लै-स अलैकुम् जुनाहुन् अन् तक़्सुरू मिनस्सलाति, इन् ख़िफ्तुम् अंय्यफ्ति नकुमुल्लज़ी-न क-फरू, इन्नल्-काफिरी-न कानू लकुम अदुव्वम-मुबीना
    (मुसलमानों! जब तुम धरती पर सफ़र करो) और तुमको इस चीज का ख़ौफ़ हो कि कुफ़्फ़ार (नमाज़ में) तुमसे फ़साद करेंगे तो उसमें तुम्हारे वास्ते कुछ दोष नहीं कि नमाज़ में कुछ कम कर दिया करो बेशक कुफ़्फ़ार तो तुम्हारे ख़ुल्लम ख़ुल्ला दुश्मन हैं।
  2. व इज़ा कुन् त फ़ीहिम् फ़-अक़म्-त लहुमुस्सला-त फ़ल्तक़ुम् ताइ-फतुम् मिन्हुम् म-अ-क वल्यअ्ख़ुज़ू अस्लि-ह तहुम्, फ़-इज़ा स-जदू फ़ल्यकूनू मिंव्वरा-इकुम्, वल्तअ्ति ताइ-फतुन् उख़्रा लम् युसल्लू फ़्ल्युसल्लू म-अ-क वल्यअ्ख़ुज़ू हिज़्रहुम् व अस्लि-ह-तहुम्, वद्दल्लज़ी-न क-फरू लौ तग़्फुलू-न अन् अस्लि-हतिकुम् व अम्ति-अतिकुम फ़-यमीलू-न अलैकुम् मै-लतंव्वाहि-दतन्, व ला जुना-ह अलैकुम् इन् का-न बिकुम् अज़म्-मिम्-म-तरिन् औ कुन्तुम मरज़ा अन् त-ज़अू अस्लि-ह-तकुम्, व ख़ुज़ू हिज़्रकुम्, इन्नल्ला-ह-अ-अद्-द लिल्काफ़िरी-न अज़ाबम् मुहीना
    और (ऐ रसूल!) तुम मुसलमानों में मौजूद हो और (लड़ाई हो रही हो) कि तुम उनको नमाज़ पढ़ाने लगो तो (दो गिरोह करके) एक को लड़ाई के वास्ते छोड़ दो (और) उनमें से एक जमाअत तुम्हारे साथ नमाज़ पढ़े और अपने हथियार अपने साथ लिए रहे फिर जब (पहली रकात के) सजदे कर (दूसरी रकात फुरादा पढ़) ले तो तुम्हारे पीछे पुश्त पनाह बनें और दूसरी जमाअत जो (लड़ रही थी और) जब तक नमाज़ नहीं पढ़ने पायी है और (तुम्हारी दूसरी रकात में) तुम्हारे साथ नमाज़ पढ़े और अपनी हिफ़ाज़त की चीजे़ और अपने हथियार (नमाज़ में साथ) लिए रहे कुफ़्फ़ार तो ये चाहते ही हैं कि काश अपने हथियारों और अपने साज़ व सामान से ज़रा भी ग़फ़लत करो तो एक बारगी सबके सब तुम पर टूट पड़ें, हाँ अलबत्ता उसमें कुछ मुज़ाएक़ा नहीं कि (इत्तेफ़ाक़न) तुमको बारिश के सबब से कुछ तकलीफ़ पहुचे या तुम बीमार हो तो अपने हथियार (नमाज़ में) उतार के रख दो और अपनी हिफ़ाज़त करते रहो और अल्लाह ने तो काफ़िरों के लिए अपमानकारी यातना तैयार कर रखा है।
  3. फ-इज़ा क़ज़ैतुमुस्सला-त फ़ज़्कुरूल्ला-ह क़ियामंव्-व क़ुअूदंव्-व अला जुनूबिकुम्, फ-इज़त्मअ्नन्तुम् फ-अक़ीमुस्सला-त, इन्नस्सला-त कानत् अलल् मुअ्मिनी-न किताबम् मौक़ूता
    फिर जब तुम नमाज़ अदा कर चुको तो उठते बैठते लेटते (ग़रज़ हर हाल में) अल्लाह को याद करो फिर जब तुम (दुश्मनों से) मुतमईन हो जाओ तो (अपने मअमूल) के मुताबिक़ नमाज़ पढ़ा करो क्योंकि नमाज़ तो इमानदारों पर वक़्त मुय्यन करके फ़र्ज़ की गयी है।
  4. व ला तहिनू फिब्तिग़ा-इल्-क़ौमि, इन् तकूनू तअ्लमू-न फ़-इन्नहुम् यअ्लमू-न कमा तअ्लमू-न, व तरजू-न मिनल्लाहि मा ला यरजू-न, व कानल्लाहु अ़लीमन् हकीमा*
    और (मुसलमानों) दुश्मनों के पीछा करने में सुस्ती न करो अगर लड़ाई में तुमको तकलीफ़ पहुँचती है तो जैसी तुमको तकलीफ़ पहुँचती है उनको भी वैसी ही अज़ीयत होती है और (तुमको) ये भी (उम्मीद है कि) तुम अल्लाह से वह वह उम्मीदें रखते हो जो (उनको) नसीब नहीं और अल्लाह तो सबसे वाकिफ़ (और) हिकमत वाला है।
  5. इन्ना अन्ज़ल्ना इलैकल्-किता-ब बिल्-हक़्क़ि लि-तह़्कु-म बैनन्नासि बिमा अराकल्लाहु, व ला तकुल लिल-खाइनी-न खसीमा
    (ऐ रसूल!) हमने तुम पर बरहक़ किताब इसलिए नाज़िल की है कि अल्लाह ने तुम्हारी हिदायत की है उसी तरह लोगों के दरमियान फ़ैसला करो और ख़्यानत करने वालों के तरफ़दार न बनो।
  6. वस्तग़्फिरिल्ला-ह, इन्नल्ला-ह का-न ग़फूरर्रहीमा
    और (अपनी उम्मत के लिये) अल्लाह से मग़फ़िरत की दुआ, माँगों बेशक अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है।
  7. व ला तुजादिल् अनिल्लज़ी-न यख़्तानू-न अन्फु-सहुम, इन्नल्ला-ह ला युहिब्बु मन् का-न ख़व्वानन् असीमा
    और (ऐ रसूल!) तुम (उन बदमाशों) की तरफ़ होकर (लोगों से) न लड़ो जो अपने ही (लोगों) से दग़ाबाज़ी करते हैं बेशक अल्लाह ऐसे शख़्स को दोस्त नहीं रखता जो दग़ाबाज़ गुनाहगार हो।
  8. यस्तख़्फू-न मिनन्नासि व ला यस्तख़्फू-न मिनल्लाहि व हु-व म-अहुम् इज़् युबय्यितू-न मा ला यरज़ा मिनल्क़ौलि, व कानल्लाहु बिमा यअ्मलू-न मुहीता
    लोगों से तो अपनी शरारत छुपाते हैं और (अल्लाह से नहीं छुपा सकते) हालांकि वह तो उस वक़्त भी उनके साथ साथ है जब वह लोग रातों को (बैठकर) उन बातों के मशवरे करते हैं जिनसे अल्लाह राज़ी नहीं और अल्लाह तो उनकी सब करतूतों को (इल्म के अहाते में) घेरे हुए है।
  9. हा-अन्तुम् हा-उला-इ जादल्तुम अन्हुम् फिल्हयातिद्दुन्या, फ-मंय्युजादिलुल्ला-ह अन्हुम् यौमल-क़ियामति अम्-मंय्यकूनु अलैहिम् वकीला
    (मुसलमानों!) ख़बरदार हो जाओ भला दुनिया की (ज़रा सी) ज़िन्दगी में तो तुम उनकी तरफ़ होकर लड़ने खड़े हो गए (मगर ये तो बताओ) फिर क़यामत के दिन उनका तरफ़दार बनकर अल्लाह से कौन लड़ेगा या कौन उनका वकील होगा।
  10. व मंय्यअ्मल सूअन् औ यज़्लिम् नफ्सहू सुम्-म यस्तग़्फिरिल्ला-ह यजिदिल्ला-ह ग़फूरर्रहीमा
    और जो शख़्स कोई बुरा काम करे या (किसी तरह) अपने नफ़्स पर ज़ुल्म करे उसके बाद अल्लाह से अपनी मग़फ़िरत की दुआ माँगे तो अल्लाह को बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान पाएगा।
  11. व मंय्यकसिब इस्मन् फ-इन्नम यकसिबुहू अला नफ्सिही, व कानल्लाहु अलीमन् हकीमा
    और जो शख़्स कोई गुनाह करता है तो उससे कुछ अपना ही नुक़सान करता है और अल्लाह तो (हर चीज़ से) वाकिफ़ (और) बड़ी तदबीर वाला है।
  12. व मंय्यक्सिब ख़ती-अतन् औ इस्मन् सुम-म् यर्मि बिही बरीअन् फ-क़दिह़्त-म-ल बुह्तानंव्-व इस्मम्-मुबीना*
    और जो शख़्स कोई ख़ता या गुनाह करे फिर उसे किसी बेक़सूर के सर थोपे तो उसने एक बड़े (इफ़तेरा) और सरीही गुनाह को अपने ऊपर लाद लिया।
  13. व लौ ला फज़्लुल्लाहि अलै-क व रह्-मतुहू ल-हम्मत्ता-इ-फतुम् मिन्हुम् अंय्युज़िल्लू-क, व मा युज़िल्लू-न इल्ला’ अन्फु-सहुम् व मा यज़िर्रून-क मिन शैइन्, व अन्ज़लल्लाहु अलैकल्-किता-ब वल्हिक्म-त व अल्ल-म-क मालम् तकुन् तअ्लमु, व का-न फज़्लुल्लाहि अलै-क अज़ीमा •
    और (ऐ रसूल!) अगर तुमपर अल्लाह का फ़ज़ल (व करम) और उसकी मेहरबानी न होती तो उन (बदमाशों) में से एक गिरोह तुमको गुमराह करने का ज़रूर क़सद करता हालाँकि वह लोग बस अपने आप को गुमराह कर रहे हैं और यह लोग तुम्हें कुछ भी ज़रर नहीं पहुँचा सकते और अल्लाह ही ने तो (मेहरबानी की कि) तुमपर अपनी किताब और हिकमत नाज़िल की और जो बातें तुम नहीं जानते थे तुम्हें सिखा दी और तुम पर तो अल्लाह का बड़ा फ़ज़ल है।
  14. ला ख़ै-र फी कसीरिम् मिन्नज्वाहुम् इल्ला मन् अ-म-र बि-स-द-क़तिन् औ मअ्-रूफिन् औ इस्लाहिम् बैनन्नासि, व मंय्यफ्अल ज़ालिकब् तिग़ा-अ मरज़ातिल्लाहि फ़सौ-फ़ नुअ्तीहि अज्रन् अज़ीमा
    (ऐ रसूल!) उनके राज़ की बातों में अक्सर में भलाई (का तो नाम तक) नहीं मगर (हाँ) जो शख़्स किसी को सदक़ा देने या अच्छे काम करने या लोगों के दरमियान मेल मिलाप कराने का हुक्म दे (तो अलबत्ता एक बात है) और जो शख़्स (महज़) अल्लाह की ख़ुशनूदी की ख़्वाहिश में ऐसे काम करेगा तो हम अनक़रीब ही उसे बड़ा अच्छा बदला अता फरमाएंगे।
  15. व मंय्युशाक़िक़िर्रसू-ल मिम्-बअ्दि मा तबय्य-न लहुल्हुदा व यत्तबिअ् ग़ै-र सबीलिल् मुअ्मिनी-न नुवल्लिही मा तवल्ला व नुस्लिही जहन्न-म, व साअत् मसीरा *
    और जो शख़्स राहे रास्त के ज़ाहिर होने के बाद रसूल से सरकशी करे और मोमिनीन के तरीक़े के सिवा किसी और राह पर चले तो जिधर वह फिर गया है हम भी उधर ही फेर देंगे और (आखि़र) उसे जहन्नुम में झोंक देंगे और वह तो बहुत ही बुरा ठिकाना है।
  16. इन्नल्ला-ह ल यग़्फिरू अंय्युश्र-क बिही व यग़्फिरू मा दू-न ज़ालि-क लि-मंय्यशा-उ, व मय्युश्रिक् बिल्लाहि फ़-क़द् ज़ल-ल ज़लालम् बईदा
    अल्लाह बेशक उसको तो नहीं बख़्शता कि उसका कोई और शरीक बनाया जाए हाँ उसके सिवा जो गुनाह हो जिसको चाहे बख़्श दे और (माज़ अल्लाह) जिसने किसी को अल्लाह का शरीक बनाया तो वह बस भटक के बहुत दूर जा पड़ा।
  17. इंय्यद्अू-न मिन् दूनिही इल्ला इनासन् व इंय्यद्अू-न इल्ला शैतानम् मरीदा
    मुशरिकीन अल्लाह को छोड़कर बस औरतों ही की परसतिश करते हैं (यानी बुतों की जो उनके) ख़्याल में औरतें हैं (दर हक़ीक़त) ये लोग सरकश शैतान की परसतिश करते हैं।
  18. ल-अ-नहुल्लाहु • व का-ल ल-अत्तखिज़न्-न मिन् अिबादि-क नसीबम् मफ्रूज़ा
    जिसपर अल्लाह ने लानत की है और जिसने (इब्तिदा ही में) कहा था कि (ख़ुदावन्दा) मैं तेरे बन्दों में से कुछ ख़ास लोगों को (अपनी तरफ) ज़रूर लूँगा।
  19. व ल-उज़िल्लन्नहुम् व ल-उमन्नियन्नहुम् व ल-आमुरन्नहुम फ-ल युबत्ति कुन-न आज़ानल-अन् आमि व ला-आमुरन्नहुम् फ़-लयुग़य्यिरून्-न ख़ल्कल्लाहि, व मंय्यत्तखिज़िश्शैता-न वलिय्यम् मिन् दूनिल्लाहि फ़-क़द् ख़सि-र ख़ुसरानम् मुबीना
    और फिर उन्हें ज़रूर गुमराह करूंगा और उन्हें बड़ी बड़ी उम्मीदें भी ज़रूर दिलाऊंगा और यक़ीनन उन्हें सिखा दूंगा फिर वो (बुतों के वास्ते) जानवरों के काम ज़रूर चीर फाड़ करेंगे और अलबत्ता उनसे कह दूंगा बस फिर वो (मेरी तालीम के मुवाफ़िक़) अल्लाह की बनाई हुयी सूरत को ज़रूर बदल डालेंगे और (ये याद रहे कि) जिसने अल्लाह को छोड़कर शैतान को अपना सरपरस्त बनाया तो उसने खुल्लम खुल्ला सख़्त घाटा उठाया।
  20. यअिदुहुम् व युमन्नीहिम्, व मा यअिदुहुमुश्शैतानु इल्ला ग़ुरूरा
    शैतान उनसे अच्छे अच्छे वायदे भी करता है (और बड़ी बड़ी) उम्मीदें भी दिलाता है और शैतान उनसे जो कुछ वायदे भी करता है वह बस निरा धोखा (ही धोखा) है।

Surah An-Nisa Video

Share this:

Leave a Comment

error: Content is protected !!