04 सूरह अन-निसा हिंदी में पेज 5

सूरह अन-निसा हिंदी में | Surah An-Nisa in Hindi

  1. व यक़ूलू-न ताअतुन, फ़-इज़ा ब-रज़ू मिन् अिन्दि-क बय्य-त ता-इ-फतुम् मिन्हुम् ग़ैरल्लज़ी तक़ूलु, वल्लाहु यक्तुबु मा युबय्यितू-न, फ़-अअ्-रिज़ अन्हुम् व तवक्कल अलल्लाहि, व कफ़ा बिल्लाहि वकीला
    (ये लोग तुम्हारे सामने) तो कह देते हैं कि हम (आपके) फ़रमाबरदार हैं लेकिन जब तुम्हारे पास से बाहर निकले तो उनमें से कुछ लोग जो कुछ तुमसे कह चुके थे उसके खिलाफ रातों को मशवरा करते हैं हालांकि (ये नहीं समझते) ये लोग रातों को जो कुछ भी मशवरा करते हैं उसे अल्लाह लिखता जाता है बस तुम उन लोगों की कुछ परवाह न करो और अल्लाह पर भरोसा रखो और अल्लाह कारसाज़ी के लिए काफ़ी है।
  2. अ-फला य-तदब्बरूनल् क़ुरआ-न, व लौ का-न मिन् अिन्दि ग़ैरिल्लाहि ल-व जदू फीहिख़्तिलाफ़न् कसीरा
    तो क्या ये लोग क़ुरान में भी ग़ौर नहीं करते और (ये नहीं ख़्याल करते कि) अगर अल्लाह के सिवा किसी और की तरफ़ से (आया) होता तो ज़रूर उसमें बड़ा इख़्तेलाफ़ पाते।
  3. व इज़ा जा-अहुम् अम्रूम् मिनल्-अम्नि अविल्ख़ौफि अज़ाअू बिही, व लौ रद्दूहु इलर्रसूलि व इला उलिल्-अमरि मिन्हुम् ल-अलि-महुल्लज़ी-न यस्तम्बितूनहू मिन्हुम्, व लौ ला फज़्लुल्लाहि अलैकुम्व रह़्मतुहू लत्त-बअ्तुमुश्शैता-न इल्ला क़लीला
    और जब उनके (मुसलमानों के) पास अमन या ख़ौफ़ की ख़बर आयी तो उसे फ़ौरन मशहूर कर देते हैं हालांकि अगर वह उसकी ख़बर को रसूल (या) और ईमानदारो में से जो साहबाने हुकूमत तक पहुँचाते तो बेशक जो लोग उनमें से उसकी तहक़ीक़ करने वाले हैं (पैग़म्बर या वली) उसको समझ लेते कि (मशहूर करने की ज़रूरत है या नहीं)। और (मुसलमानों) अगर तुम पर अल्लाह का फ़ज़ल (व करम) और उसकी मेहरबानी न होती तो चन्द आदमियों के सिवा तुम सबके सब शैतान की पैरवी करने लगते।
  4. फक़ातिल् फ़ी सबीलिल्लाहि, ला तुकल्लफु इल्ला नफ्स-क व हर्रिज़िल-मुअ्मिनी-न, असल्लाहु अंय्यकुफ्-फ़ बअ्सल्लज़ी-न क-फरू, वल्लाहु अशद्दु बअ्संव् व अशद्दु तन्कीला
    बस (ऐ रसूल!) तुम अल्लाह की राह में जिहाद करो और तुम अपनी ज़ात के सिवा किसी और के ज़िम्मेदार नहीं हो और ईमानदारों को (जिहाद की) तरग़ीब दो और अनक़रीब अल्लाह काफ़िरों का भय रोक देगा और अल्लाह का भय सबसे ज़्यादा है और उसकी सज़ा बहुत सख़्त है।
  5. मंय्यश्फअ् शफ़ा-अतन् हस नतंय्यकुल्लहू नसीबुम् मिन्हा, व मंय्यश्फअ् शफा-अतन् सय्यि-अतंय्यकुल्लहू किफ्लुम् मिन्हा, व कानल्लाहु अला कुल्लि शैइम्-मुक़ीता
    जो शख़्स अच्छे काम की सिफ़ारिश करे तो उसको भी उस काम के सवाब से कुछ हिस्सा मिलेगा। और जो बुरे काम की सिफ़ारिश करे तो उसको भी उसी काम की सज़ा का कुछ हिस्सा मिलेगा। और अल्लाह तो हर चीज़ पर निगेहबान है।
  6. व इज़ा हुय्यीतुम बि-तहिय्यतिन् फहय्यू बि-अह्स-न मिन्हा औ रूद्दूहा, इन्नल्ला-ह का-न अला कुल्लि शैइन् हसीबा •
    और जब कोई शख़्स सलाम करे तो तुम भी उसके जवाब में उससे बेहतर तरीक़े से सलाम करो या वही लफ़्ज़ जवाब में कह दो। बेशक! अल्लाह हर चीज़ का हिसाब करने वाला है।
  7. अल्लाहु ला इला-ह इल्ला हु-व, ल-यज्म अन्नकुम् इला यौमिल् क़ियामति ला रै-ब फ़ीहि, व मन् अस्दक़ु मिनल्लाहि हदीसा *
    अल्लाह तो वही परवरदिगार है जिसके सिवा कोई क़ाबिले परस्तिश नहीं। वह तुमको क़यामत के दिन जिसमें ज़रा भी शक नहीं ज़रूर इकट्ठा करेगा। और अल्लाह से बढ़कर बात में सच्चा कौन होगा।
  8. फमा लकुम् फिल्मुनाफिक़ी-न फि-अतैनि वल्लाहु अर्क-सहुम् बिमा क-सबू, अतुरीदू-न अन् तह़्दू मन् अज़ल्लल्लाहु, व मंय्युज़्लिलिल्लाहु फ-लन् तजि-द लहू सबीला
    (मुसलमानों!) फिर तुमको क्या हो गया है कि तुम मुनाफ़िक़ों के बारे में दो पक्ष हो गए हो (एक मुवाफि़क़ एक मुख़ालिफ़) हालांकि ख़ुद अल्लाह ने उनके
    करतूतों की बदौलत उनकी अक़्लों को उलट पुलट दिया है। क्या तुम ये चाहते हो कि जिसको अल्लाह ने गुमराही में छोड़ दिया है तुम उसे राहे रास्त पर ले आओ? हालांकि अल्लाह ने जिसको गुमराही में छोड़ दिया है उसके लिए तुममें से कोई शख़्स रास्ता निकाल ही नहीं सकता।
  9. वद्-दू लौ तक्फुरू-न कमा क-फरू फ़-तकूनू-न सवा-अन् फला तत्तख़िज़ू मिन्हुम् औलिया-अ हत्ता युहाजिरू फी सबीलिल्लाहि, फ़-इन् तवल्लौ फख़ुज़ू-हुम् वक़्तुलू-हुम् हैसु वजत्तुमू-हुम्, व ला तत्तख़िज़ू मिन्हुम् वलिय्यंव्-व ला नसीरा
    उन लोगों की ख़्वाहिश तो ये है कि जिस तरह वह काफिर हो गए तुम भी काफिर हो जाओ ताकि तुम उनके बराबर हो जाओ बस जब तक वह अल्लाह की राह में हिजरत न करें तो उनमें से किसी को दोस्त न बनाओ। फिर अगर वह उससे भी मुँह मोड़ें तो उन्हें गिरफ़्तार करो। और जहाँ पाओ उनको क़त्ल करो और उनमें से किसी को न अपना दोस्त बनाओ न मददगार।
  10. इल्लल्लज़ी-न यसिलू-न इला क़ौमिम् बैनकुम् व बैनहुम् मीसाक़ुन् औ जाऊकुम् हसिरत् सुदूरूहुम् अंय्युक़ातिलूकुम् औ युक़ातिलू क़ौमहुम्, व लौ शा-अल्लाहु ल-सल्ल-तहुम् अलैकुम् फ़-लक़ातलूकुम, फ़- इनिअ्-त ज़लूकुम् फ-लम् युक़ातिलूकुम् व अल्क़ौ इलैकुमुस्स-ल-म, फमा ज-अलल्लाहु लकुम् अलैहिम् सबीला
    मगर जो लोग किसी ऐसी क़ौम से जा मिलें कि तुममें और उनमें (सुलह का) एहद व पैमान हो चुका है या तुमसे जंग करने या अपनी क़ौम के साथ लड़ने से दिलतंग होकर तुम्हारे पास आए हों (तो उन्हें आज़ार न पहुँचाओ) और अगर अल्लाह चाहता तो उनको तुमपर ग़लबा देता तो वह तुमसे ज़रूर लड़ पड़ते बस अगर वह तुमसे किनारा कशी करे और तुमसे न लड़े और तुम्हारे पास सुलाह का पैग़ाम दे तो उनके विरुध्द अल्लाह ने तुम्हारे लिए कोई (युद्ध करने की) राह नहीं बनाई है।
  11. स-तजिदू-न आ-ख़री-न युरीदू-न अंय्य अ्मनूकुम व यअ्मनू क़ौमहुम, कुल्लमा रूद्दू इलल-फित्नति उर्किसू फ़ीहा, फ-इल्लम् यअ्-तज़िलूकुम् व युल्क़ू इलैकुमुस्स-ल-म व यकुफ्फू ऐदि-यहुम् फख़ुज़ूहुम् वक़्तुलूहुम् हैसु सक़िफ़्तुमूहुम, व उला-इकुम् जअल्ना लकुम् अलैहिम् सुल्तानम् मुबीना *
    अनक़रीब तुम कुछ ऐसे और लोगों को भी पाओगे जो चाहते हैं कि तुमसे भी अमन में रहें और अपनी क़ौम से भी अमन मे रहें (मगर) जब कभी झगड़े की तरफ़ बुलाए गए तो उसमें औंधे मुँह के बल गिर पड़े बस अगर वह तुमसे न किनारा कशी करें और न तुम्हें सुलह का पैग़ाम दें और न लड़ाई से अपने हाथ रोकें बस उनको पकड़ों और जहाँ पाओ उनको क़त्ल करो और यही वह लोग हैं जिनपर हमने तुम्हें सरीही ग़लबा अता फ़रमाया।
  12. व मा का-न लिमुअ्मिनिन् अंय्यक़्तु-ल मुअ्मिनन् इल्ला ख़-तअन्, व मन् क़-त-ल मुअ्मिनन् ख़-तअन् फ़-तह़रीरू र-क़-बतिम् मुअ्मिनतिंव्-व दि-यतुम् मुसल्ल-मतुन् इला अह्-लिही इल्ला अंय्यस्सदक़ू, फ़ इन् का-न मिन् क़ौमिन् अदुविल्लकुम् व हु-व मुअ्मिनुन् फ़-तहरीरू र-क़-बतिम् मुअ्मि-नतिन्, व इन् का-न मिन् क़ौमिम् बैनकुम् व बैनहुम् मिसाक़ुन् फ-दि-यतुम् मुसल्ल-मतुन् इला अह़्लिही व तहरीरू र-क़-बतिम् मुअ्मि-नतिन्, फ़-मल्लम् यजिद् फ़सियामु शह्-रैनि मु-तताबिऐनि, तौब-तम् मिनल्लाहि, व कानल्लाहु अलीमन् हकीमा
    और किसी ईमानदार को ये जायज़ नहीं कि किसी मोमिन को जान से मार डाले मगर धोखे से (क़त्ल किया हो तो दूसरी बात है) और जो शख़्स किसी मोमिन को धोखे से (भी) मार डाले तो (उसपर) एक ईमानदार गु़लाम का आज़ाद करना और मक़तूल के क़राबतदारों को खूंन बहा देना (लाजि़म) है मगर जब वह लोग माफ़ करें फिर अगर मक़तूल उन लोगों में से हो वह जो तुम्हारे दुश्मन (काफिर हरबी) हैं और ख़ुद क़ातिल मोमिन है तो (सिर्फ) एक मुसलमान ग़ुलाम का आज़ाद करना और अगर मक़तूल उन (काफिर) लोगों में का हो जिनसे तुम से एहद व पैमान हो चुका है तो (क़ातिल पर) वारिसे मक़तूल को अर्थदण्ड देना और एक ईमान वाला दास का आज़ाद करना (वाजिब) है फिर जो शख़्स (ग़ुलाम आज़ाद करने को) न पाये तो उसका कुफ़्फ़ारा अल्लाह की तरफ़ से लगातार दो महीने के रोज़े हैं और अल्लाह ख़ूब वाकिफ़कार (और) हिकमत वाला है।
  13. व मंय्यक़्तुल मुअ्मिनम् मु-तअम्मिदन फ-जज़ा-उहू जहन्नमु ख़ालिदन फ़ीहा व ग़ज़िबल्लाहु अलैहि व ल -अ-नहू व अ-अद्-द लहू अज़ाबन् अज़ीमा
    और जो शख़्स किसी मोमिन को जानबूझ के मार डाले (ग़ुलाम की आज़ादी वगैरह उसका कुफ़्फ़ारा नहीं बल्कि) उसकी सज़ा दोज़ख़ है और वह उसमें हमेशा रहेगा उस पर अल्लाह ने (अपना) ग़ज़ब ढाया है और उसपर लानत की है और उसके लिए बड़ा सख़्त अज़ाब तैयार कर रखा है।
  14. या अय्युहल्लज़ी-न आमनू इज़ा ज़रब्तुम फ़ी सबीलिल्लाहि फ़-तबय्यनू व ला तक़ूलू लिमन् अल्क़ा इलैकुमुस्सला-म लस्-त मुअ्मिनन्, तब्तग़ू-न अ-रज़ल् हयातिदुन्या, फ-अिन्दल्लाहि मग़ानिमु कसीरतुन्, कज़ालि-क कुन्तुम् मिन् क़ब्लु फ़-मन्नल्लाहु अलैकुम् फ़-तबय्यनू, इन्नल्ला-ह का-न बिमा तअ्मलू-न ख़बीरा
    ऐ ईमानदारों! जब तुम अल्लाह की राह में (जेहाद करने को) सफ़र करो तो (किसी के क़त्ल करने में जल्दी न करो बल्कि) अच्छी तरह जाच कर लिया करो और जो शख़्स (इज़हारे इस्लाम की ग़रज़ से) तुम्हे सलाम करे तो तुम बे सोचे समझे न कह दिया करो कि तू ईमानदार नहीं है (इससे ज़ाहिर होता है) कि तुम (फ़क़्त) दुनियावी आसाइश की तमन्ना रखते हो मगर इसी बहाने क़त्ल करके लूट लो और ये नहीं समझते कि (अगर यही है) तो अल्लाह के यहाँ बहुत से ग़नीमतें हैं (मुसलमानों!) पहले तुम ख़़ुद भी तो ऐसे ही थे फिर अल्लाह ने तुमपर एहसान किया (कि बेखटके मुसलमान हो गए) ग़रज़ ख़ूब छानबीन कर लिया करो बेशक अल्लाह तुम्हारे हर काम से ख़बरदार है।
  15. ला यस्तविल् क़ाअिदू-न मिनल मुअ्मिनी-न ग़ैरू उलिज़्ज़ररि वल्मुजाहिदू-न फ़ी सबीलिल्लाहि बि-अम्वालिहिम् व अन्फुसिहिम्, फ़ज़्ज़-लल्लाहुल मुजाहिदी-न बि-अम्वालिहिम् व अन्फुसिहिम् अलल्-क़ाअिदी-न द-र-जतन्, व कुल्लंव्-व-अदल्लाहुल-हुस्ना, व फज़्ज़-लल्लाहुल मुजाहिदी-न अलल्-क़ाअिदी-न अज्रन् अज़ीमा
    माज़ूर लोगों के सिवा जेहाद से मुँह छिपा के घर में बैठने वाले और अल्लाह की राह में अपने जान व माल से जिहाद करने वाले हरगिज़ बराबर नहीं हो सकते (बल्कि) अपने जान व माल से जिहाद करने वालों को घर बैठे रहने वालें पर अल्लाह ने दरजे के एतबार से बड़ी फ़ज़ीलत दी है (अगरचे) अल्लाह ने सब इमानदारों से (चाहे जिहाद करें या न करें) भलाई का वायदा कर लिया है मगर ग़ाज़ियों को खाना नशीनों पर अज़ीम सवाब के एतबार से अल्लाह ने बड़ी फ़ज़ीलत दी है।
  16. द-रजातिम् मिन्हु व मग़्फि-रतंव् व रह्- मतन्, व कानल्लाहु ग़फूरर्रहीमा *
    (यानी उन्हें) अपनी तरफ़ से बड़े बड़े दरजे और बख़्शिश और रहमत (अता फ़रमाएगा) और अल्लाह तो बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है।
  17. इन्नल्लज़ी-न तवफ्फाहुमुल् मलाइ-कतु ज़ालिमी अन्फुसिहिम् क़ालू फ़ी-म कुन्तुम, क़ालू कुन्ना मुस्तज़्अफ़ी-न फ़िल्अर्जि, क़ालू अलम् तकुन् अर्ज़ुल्लाहि वासि-अ़तन् फतुहाजिरू फ़ीहा, फ़- उलाइ-क मअ्वाहुम् जहन्नमु, व साअत् मसीरा
    बेशक जिन लोगों की क़ब्जे़ रूह फ़रिश्ते ने उस वक़्त की है कि (दारूल हरब में पड़े) अपनी जानों पर ज़ुल्म कर रहे थे और फ़रिश्ते कब्जे़ रूह के बाद हैरत से कहते हैं तुम किस (हालत) ग़फ़लत में थे तो वह (माज़ेरत के लहजे में) कहते है कि हम तो रूए ज़मीन में बेकस थे तो फ़रिश्ते कहते हैं कि अल्लाह की (ऐसी लम्बी चौड़ी) ज़मीन में इतनी सी गुन्जाइश न थी कि तुम (कहीं) हिजरत करके चले जाते बस ऐसे लोगों का ठिकाना जहन्नुम है और वह बुरा ठिकाना है।
  18. इल्लल-मुस्तज़् अफी-न मिनर्रिजालि वन्निसा-इ वल् विल्दानि ला यस्ततीअू-न ही लतंव्-व ला यह़्तदू-न सबीला
    मगर जो मर्द और औरतें और बच्चे इस क़दर बेबस हैं कि न तो (दारूल हरब से निकलने की) कोई तदबीर कर सकते हैं और उनको अपनी रिहाई की कोई राह दिखाई देती है।
  19. फ-उलाइ-क असल्लाहू अंय्यअ्फु व अन्हुम्, व कानल्लाहु अफुव्वन् ग़फूरा
    तो उम्मीद है कि अल्लाह ऐसे लोगों से दरगुज़र करे और अल्लाह तो बड़ा माफ़ करने वाला और बख्शने वाला है।
  20. व मंय्युहाजिर् फी सबीलिल्लाहि यजिद् फ़िल्अर्ज़ि मुरा-ग़मन् कसीरंव्-व स-अतन्, व मंय्यख़्रूज् मिम्-बैतिही मुहाजिरन् इलल्लाहि व रसूलिही सुम्-म युद्रिक्हुल् मौतु फ़-क़द् व्-क़-अ अज्रूहू अलल्लाहि, व कानल्लाहु ग़फूरर्रहीमा *
    और जो शख़्स अल्लाह की राह में हिजरत करेगा तो वह रूए ज़मीन में चैन से रहने सहने के बहुत से कुशादा मक़ाम पाएगा और जो शख़्स अपने घर से जिलावतन होकर अल्लाह और उसके रसूल की तरफ़ निकल ख़ड़ा हुआ फिर उसे (मंजि़ले मक़सूद) तक पहुँचने से पहले मौत आ जाए तो अल्लाह पर उसका सवाब लाज़िम हो गया और लाज़िम तो बड़ा बख़्श ने वाला मेहरबान है ही।

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