- व यकूलू-न ताअतुन फ़-इज़ा ब-रजू मिन् अिन्दि-क बय्य-त ता-इ- फतुम् मिन्हुम् गैरल्लज़ी तकूलु, वल्लाहु यक्तुबु मा युबय्यितू-न फ़-अअ्-रिजू अन्हुम् व तवक्कल अलल्लाहि व कफ़ा बिल्लाहि वकीला
(ये लोग तुम्हारे सामने) तो कह देते हैं कि हम (आपके) फ़रमाबरदार हैं लेकिन जब तुम्हारे पास से बाहर निकले तो उनमें से कुछ लोग जो कुछ तुमसे कह चुके थे उसके खि़लाफ़ रातों को मशवरा करते हैं हालांकि (ये नहीं समझते) ये लोग रातों को जो कुछ भी मशवरा करते हैं उसे ख़ुदा लिखता जाता है पास तुम उन लोगों की कुछ परवाह न करो और ख़ुदा पर भरोसा रखो और ख़ुदा कारसाज़ी के लिए काफ़ी है (81) - अ-फला य-तदब्बरूनल कुरआ-न व लौ का-न मिन् अिन्दि गैरिल्लाहि ल-व जदू फीहिख़्तिलाफ़न् कसीरा
तो क्या ये लोग क़ुरान में भी ग़ौर नहीं करते और (ये नहीं ख़्याल करते कि) अगर ख़ुदा के सिवा किसी और की तरफ़ से (आया) होता तो ज़रूर उसमें बड़ा इख़्तेलाफ़ पाते (82) - व इज़ा जा-अहुम् अम्रूम् मिनल-अम्नि अविल्खौफि अज़ाअू बिही, व लौ रद्दूहु इलर्रसूलि व इला उलिल्-अमरि मिन्हुम् ल-अलि-महुल्लज़ी – न यस्तम्बितूनहू मिन्हुम्, व लौ ला फज्लुल्लाहि अलैकुम्व रह़्मतुहू लत्त-बअ्तुमुश्शैता-न इल्ला कलीला
और जब उनके (मुसलमानों के) पास अमन या ख़ौफ़ की ख़बर आयी तो उसे फ़ौरन मशहूर कर देते हैं हालांकि अगर वह उसकी ख़बर को रसूल (या) और ईमानदारो में से जो साहबाने हुकूमत तक पहुँचाते तो बेशक जो लोग उनमें से उसकी तहक़ीक़ करने वाले हैं (पैग़म्बर या वली) उसको समझ लेते कि (मशहूर करने की ज़रूरत है या नहीं) और (मुसलमानों) अगर तुमपर ख़ुदा का फ़ज़ल (व करम) और उसकी मेहरबानी न होती तो चन्द आदमियों के सिवा तुम सबके सब शैतान की पैरवी करने लगते (83) - फकातिल् फ़ी सबीलिल्लाहि ला तुकल्लफु इल्ला नफ्स – क व हर्रिज़िल -मुअ्मिनी -न असल्लाहु अंय्यकुफ्-फ़ बअ्सल्लज़ी-न क-फरू, वल्लाहु अशद्दु बअ्संव व अशद्दु तन्कीला
बस (ऐ रसूल) तुम ख़ुदा की राह में जिहाद करो और तुम अपनी ज़ात के सिवा किसी और के ज़िम्मेदार नहीं हो और ईमानदारों को (जिहाद की) तरग़ीब दो और अनक़रीब ख़ुदा काफि़रों की हैबत रोक देगा और ख़ुदा की हैबत सबसे ज़्यादा है और उसकी सज़ा बहुत सख़्त है (84) - मंय्यश्फअ् शफ़ा-अतन् हस नतंय्यकुल्लहू नसीबुम् मिन्हा व मंय्यश्फअ् शफा-अतन् सय्यि-अतंय्यकुल्लहू किफ्लुम् मिन्हा, व कानल्लाहु अला कुल्लि शैइम्-मुकीता
जो शख़्स अच्छे काम की सिफ़ारिश करे तो उसको भी उस काम के सवाब से कुछ हिस्सा मिलेगा और जो बुरे काम की सिफ़ारिश करे तो उसको भी उसी काम की सज़ा का कुछ हिस्सा मिलेगा और ख़ुदा तो हर चीज़ पर निगेहबान है (85) - व इज़ा हुय्यीतुम बि-तहिय्यतिन् फहय्यू बि-अहस-न मिन्हा औ रूद्दूहा, इन्नल्ला-ह का-न अला कुल्लि शैइन् हसीबा •
और जब कोई शख़्स सलाम करे तो तुम भी उसके जवाब में उससे बेहतर तरीक़े से सलाम करो या वही लफ़्ज़ जवाब में कह दो बेशक ख़ुदा हर चीज़ का हिसाब करने वाला है (86) - अल्लाहु ला इला -ह इल्ला हु -व ल -यज्म अन्नकुम् इला यौमिल् कियामति ला रै-ब फ़ीहि, व मन् अस्दकु मिनल्लाहि हदीसा *
अल्लाह तो वही परवरदिगार है जिसके सिवा कोई क़ाबिले परस्तिश नहीं वह तुमको क़यामत के दिन जिसमें ज़रा भी शक नहीं ज़रूर इकट्ठा करेगा और ख़ुदा से बढ़कर बात में सच्चा कौन होगा (87) - फमा लकुम् फिल्मुनाफिकी-न फि-अतैनि वल्लाहु अर्क-सहुम् बिमा क-सबू, अतुरीदू-न अन् तह़्दू मन् अज़ल्लल्लाहु, व मंय्युज्लिलिल्लाहु फ-लन् तजि-द लहू सबीला
(मुसलमानों) फिर तुमको क्या हो गया है कि तुम मुनाफि़क़ों के बारे में दो फ़रीक़ हो गए हो (एक मुवाफि़क़ एक मुख़ालिफ़) हालांकि ख़ुद ख़ुदा ने उनके
करतूतों की बदौलत उनकी अक़्लों को उलट पुलट दिया है क्या तुम ये चाहते हो कि जिसको ख़ुदा ने गुमराही में छोड़ दिया है तुम उसे राहे रास्त पर ले आओ हालांकि ख़ुदा ने जिसको गुमराही में छोड़ दिया है उसके लिए तुममें से कोई शख़्स रास्ता निकाल ही नहीं सकता (88) - वहू लौ तक्फुरू-न कमा क-फरू फ़-तकूनू-न सवा-अन् फला तत्तखिजू मिन्हुम् औलिया-अ हत्ता युहाजिरू फी सबीलिल्लाहि, फ़- इन् तवल्लौ फखुजूहम् वक्तुलूहम् हैसु वजत्तुमूहम् व ला तत्तखिजू मिन्हुम् वलिय्यंव -व ला नसीरा
उन लोगों की ख़्वाहिश तो ये है कि जिस तरह वह काफि़र हो गए तुम भी काफि़र हो जाओ ताकि तुम उनके बराबर हो जाओ बस जब तक वह ख़ुदा की राह में हिजरत न करें तो उनमें से किसी को दोस्त न बनाओ फिर अगर वह उससे भी मुँह मोड़ें तो उन्हें गिरफ़्तार करो और जहाँ पाओ उनको क़त्ल करो और उनमें से किसी को न अपना दोस्त बनाओ न मददगार (89) - इल्लल्लज़ी-न यसिलू -न इला कौमिम् बैनकुम् व बैनहुम् मीसाकुन् औ जाऊकुम् हसिरत् सुदूरूहुम् अंय्युक़ातिलूकुम् औ युक़ातिलू कौमहुम्, व लौ शा-अल्लाहु ल-सल्ल-तहुम् अलैकुम् फ़- लकातलूकुम फ़- इनिअ्-त ज़लूकुम् फ-लम् युक़ातिलूकुम् व अल्को इलैकुमुस्स-ल -म फमा ज-अलल्लाहु लकुम् अलैहिम् सबीला
मगर जो लोग किसी ऐसी क़ौम से जा मिलें कि तुममें और उनमें (सुलह का) एहद व पैमान हो चुका है या तुमसे जंग करने या अपनी क़ौम के साथ लड़ने से दिलतंग होकर तुम्हारे पास आए हों (तो उन्हें आज़ार न पहुँचाओ) और अगर ख़ुदा चाहता तो उनको तुमपर ग़लबा देता तो वह तुमसे ज़रूर लड़ पड़ते बस अगर वह तुमसे किनारा कशी करे और तुमसे न लड़े और तुम्हारे पास सुलाह का पैग़ाम दे तो तुम्हारे लिए उन लोगों पर आज़ार पहुँचाने की ख़ुदा ने कोई सबील नहीं निकाली (90) - स-तजिदू-न आ-खरी-न युरीदू-न अंय्य अ्मनूकुम व यअ्मनू कौमहुम, कुल्लमा रूद्दू इलल-फित्नति उर्किसू फ़ीहा फ-इल्लम् यअ – तज़िलूकुम् व युल्कू इलैकुमुस्स-ल-म व यकुफ्फू ऐदि-यहुम् फखुजूहुम् वक़्तुलूहुम् हैसु सकिफ़्तुमूहुम, व उला-इकुम् जअल्ना लकुम् अलैहिम् सुल्तानम् मुबीना *
अनक़रीब तुम कुछ ऐसे और लोगों को भी पाओगे जो चाहते हैं कि तुमसे भी अमन में रहें और अपनी क़ौम से भी अमन मे रहें (मगर) जब कभी झगड़े की तरफ़ बुलाए गए तो उसमें औंधे मुँह के बल गिर पड़े बस अगर वह तुमसे न किनारा कशी करें और न तुम्हें सुलह का पैग़ाम दें और न लड़ाई से अपने हाथ रोकें बस उनको पकड़ों और जहाँ पाओ उनको क़त्ल करो और यही वह लोग हैं जिनपर हमने तुम्हें सरीही ग़लबा अता फ़रमाया (91) - व मा का-न लिमुअ्मिनिन् अंय्यक्तु-ल मुअ्मिनन् इल्ला ख-तअन् व मन् क़-त-ल मुअ्मिनन् ख-तअन् फ़-तह़रीरू र-क – बतिम् मुअ्मिनतिंव्-व दि-यतुम् मुसल्ल-मतुन् इला अहलिही इल्ला अंय्यस्सदकू, फ़ इन् का-न मिन् कौमिन् अदुविल्लकुम् व हु-व मुअमिनुन् फ़-तहरीरू र-क-बतिम् मुअ्मि-नतिन्, व इन् का-न मिन् कौमिम् बैनकुम् व बैनहुम् मिसाकुन् फ-दि-यतुम् मुसल्ल-मतुन् इला अह़्लिही व तहरीरू र-क- बतिम् मुअमि-नतिन् फ़-मल्लम् यजिद् फ़सियामु शहरैनि मु-तताबिऐनि तौब-तम् मिनल्लाहि, व कानल्लाहु अलीमन् हकीमा
और किसी ईमानदार को ये जायज़ नहीं कि किसी मोमिन को जान से मार डाले मगर धोखे से (क़त्ल किया हो तो दूसरी बात है) और जो शख़्स किसी मोमिन को धोखे से (भी) मार डाले तो (उसपर) एक ईमानदार गु़लाम का आज़ाद करना और मक़तूल के क़राबतदारों को खूंन बहा देना (लाजि़म) है मगर जब वह लोग माफ़ करें फिर अगर मक़तूल उन लोगों में से हो वह जो तुम्हारे दुश्मन (काफि़र हरबी) हैं और ख़ुद क़ातिल मोमिन है तो (सिर्फ) एक मुसलमान ग़ुलाम का आज़ाद करना और अगर मक़तूल उन (काफि़र) लोगों में का हो जिनसे तुम से एहद व पैमान हो चुका है तो (क़ातिल पर) वारिसे मक़तूल को ख़ून बहा देना और एक बन्दए मोमिन का आज़ाद करना (वाजिब) है फि़र जो शख़्स (ग़ुलाम आज़ाद करने को) न पाये तो उसका कुफ़्फ़ारा ख़ुदा की तरफ़ से लगातार दो महीने के रोज़े हैं और ख़ुदा ख़ूब वाकिफ़कार (और) हिकमत वाला है (92) - व मंय्यक़्तुल मुअ्मिनम् मु-तअम्मिदन फ-जज़ा – उहू जहन्नमु खालिदन फ़ीहा व ग़ज़िबल्लाहु अलैहि व ल -अ-नहू व अ-अद्-द लहू अज़ाबन् अज़ीमा
और जो शख़्स किसी मोमिन को जानबूझ के मार डाले (ग़ुलाम की आज़ादी वगैरह उसका कुफ़्फ़ारा नहीं बल्कि) उसकी सज़ा दोज़ख़ है और वह उसमें हमेशा रहेगा उसपर ख़ुदा ने (अपना) ग़ज़ब ढाया है और उसपर लानत की है और उसके लिए बड़ा सख़्त अज़ाब तैयार कर रखा है (93) - या अय्युहल्लज़ी-न आमनू इज़ा ज़रब्तुम फ़ी सबीलिल्लाहि फ़- तबय्यनू व ला तकूलू लिमन् अल्का इलैकुमुस्सला-म लस्-त मुअ्मिनन् तब्तगू-न अ-रजल् हयातिदुन्या फ -अिन्दल्लाहि मगानिमु कसीरतुन्, कज़ालि-क कुन्तुम् मिन् क़ब्लु फ़-मन्नल्लाहु अलैकुम् फ़-तबय्यनू, इन्नल्ला-ह का-न बिमा तअ्मलू-न ख़बीरा
ऐ ईमानदारों जब तुम ख़ुदा की राह में (जेहाद करने को) सफ़र करो तो (किसी के क़त्ल करने में जल्दी न करो बल्कि) अच्छी तरह जाच कर लिया करो और जो शख़्स (इज़हारे इस्लाम की ग़रज़ से) तुम्हे सलाम करे तो तुम बे सोचे समझे न कह दिया करो कि तू ईमानदार नहीं है (इससे ज़ाहिर होता है) कि तुम (फ़क़्त) दुनियावी आसाइश की तमन्ना रखते हो मगर इसी बहाने क़त्ल करके लूट लो और ये नहीं समझते कि (अगर यही है) तो ख़ुदा के यहाँ बहुत से ग़नीमतें हैं (मुसलमानों) पहले तुम ख़़ुद भी तो ऐसे ही थे फिर ख़ुदा ने तुमपर एहसान किया (कि बेखटके मुसलमान हो गए) ग़रज़ ख़ूब छानबीन कर लिया करो बेशक ख़ुदा तुम्हारे हर काम से ख़बरदार है (94) - ला यस्तविल् काअिदू – न मिनल मुअ्मिनी-न गैरू उलिज्ज़ररि वल्मुजाहिदू-न फ़ी सबीलिल्लाहि बि-अम्वालिहिम् व अन्फुसिहिम्, फ़ज्ज़ – लल्लाहुल मुजाहिदी-न बि-अम्वालिहिम् व अन्फुसिहिम् अलल्-काअिदी-न द-र-जतन्, व कुल्लंव -व -अदल्लाहुल-हुस्ना, व फज्ज़-लल्लाहुल मुजाहिदी-न अलल्-काअिदी-न अज्रन् अज़ीमा
माज़ूर लोगों के सिवा जेहाद से मुँह छिपा के घर में बैठने वाले और ख़ुदा की राह में अपने जान व माल से जिहाद करने वाले हरगिज़ बराबर नहीं हो सकते (बल्कि) अपने जान व माल से जिहाद करने वालों को घर बैठे रहने वालें पर ख़ुदा ने दरजे के एतबार से बड़ी फ़ज़ीलत दी है (अगरचे) ख़ुदा ने सब इमानदारों से (ख़्वाह जिहाद करें या न करें) भलाई का वायदा कर लिया है मगर ग़ाजि़यों को खाना नशीनों पर अज़ीम सवाब के एतबार से ख़ुदा ने बड़ी फ़ज़ीलत दी है (95) - द- रजातिम् मिन्हु व मग्फि – रतंव व रह्- मतन्, व कानल्लाहु गफूरर्रहीमा *
(यानी उन्हें) अपनी तरफ़ से बड़े बड़े दरजे और बखि़्शश और रहमत (अता फ़रमाएगा) और ख़ुदा तो बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है (96) - इन्नल्लज़ी – न तवफ्फाहुमुल् मलाइ-कतु ज़ालिमी अन्फुसिहिम् कालू फ़ी-म कुन्तुम, कालू कुन्ना मुस्तज्अफ़ी – न फ़िल्अर्जि, कालू अलम् तकुन् अर्जुल्लाहि वासि-अ़तन् फतुहाजिरू फ़ीहा, फ़- उलाइ-क मअ्वाहुम् जहन्नमु, व साअत् मसीरा
बेशक जिन लोगों की क़ब्जे़ रूह फ़रिश्ते ने उस वक़त की है कि (दारूल हरब में पड़े) अपनी जानों पर ज़ुल्म कर रहे थे और फ़रिश्ते कब्जे़ रूह के बाद हैरत से कहते हैं तुम किस (हालत) ग़फ़लत में थे तो वह (माज़ेरत के लहजे में) कहते है कि हम तो रूए ज़मीन में बेकस थे तो फ़रिश्ते कहते हैं कि ख़ुदा की (ऐसी लम्बी चौड़ी) ज़मीन में इतनी सी गुन्जाइश न थी कि तुम (कहीं) हिजरत करके चले जाते बस ऐसे लोगों का ठिकाना जहन्नुम है और वह बुरा ठिकाना है (97) - इल्लल – मुस्तज् अफी – न मिनर्रिजालि वन्निसा – इ वल् विल्दानि ला यस्ततीअू-न ही लतंव-व ला यह़्तदू-न सबीला
मगर जो मर्द और औरतें और बच्चे इस क़दर बेबस हैं कि न तो (दारूल हरब से निकलने की) काई तदबीर कर सकते हैं और उनको अपनी रिहाई की कोई राह दिखाई देती है (98) - फ-उलाइ-क असल्लाहू अंय्यअ्फु व अन्हुम्, व कानल्लाहु अफुव्वन् ग़फूरा
तो उम्मीद है कि ख़ुदा ऐसे लोगों से दरगुज़रे करे और ख़ुदा तो बड़ा माफ़ करने वाला और बख्शने वाला है (99) - व मंय्युहाजिर् फी सबीलिल्लाहि यजिद् फ़िल्अर्ज़ि मुरा – गमन् कसीरंव-व स-अतन्, व मंय्यख्रूज् मिम् – बैतिही मुहाजिरन् इलल्लाहि व रसूलिही सुम्-म युद्रिक्हुल् मौतु फ़-क़द् व्- क-अ अज्रूहू अलल्लाहि, व कानल्लाहु गफूरर्रहीमा *
और जो शख़्स ख़ुदा की राह में हिजरत करेगा तो वह रूए ज़मीन में बा फ़राग़त (चैन से रहने सहने के) बहुत से कुशादा मक़ाम पाएगा और जो शख़्स अपने घर से जिलावतन होकर ख़ुदा और उसके रसूल की तरफ़ निकल ख़ड़ा हुआ फिर उसे (मंजि़ले मक़सूद) तक पहुँचने से पहले मौत आ जाए तो ख़ुदा पर उसका सवाब लाजि़म हो गया और ख़ुदा तो बड़ा बख़्श ने वाला मेहरबान है ही (100)
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