30 सूरह अर रूम हिंदी में पेज 2

सूरह अर रूम हिंदी में | Surat Ar-Rum in Hindi

  1. व मिन् आयातिही अन् ख़-ल-क़ लकुम् मिन् अन्फुसिकुम् अज़्वाजल् – लितस्कुनू इलैहा व ज-अ़-ल बैनकुम् मवद्द-तंव्-व रह़्म-तन्, इन्-न फ़ी ज़ालि-क लआयातिल् – लिकौमिंय् – य – तफ़क्करून
    और उसी की (क़़ुदरत) की निशानियों में से एक ये (भी) है कि उसने तुम्हारे वास्ते तुम्हारी ही जिन्स की बीवियाँ पैदा की ताकि तुम उनके साथ रहकर चैन करो और तुम लोगों के दरमेयान प्यार और उलफ़त पैदा कर दी इसमें शक नहीं कि इसमें ग़ौर करने वालों के वास्ते (क़ु़दरते अल्लाह की) यक़ीनी बहुत सी निशानियाँ हैं।
  2. व मिन् आयातिही ख़ल्कुस्समावाति वलअर्ज़ि वख़्तिलाफु – अल्सि नतिकुम् व अल्वानिकुम्, इन् – न फ़ी ज़ालि – क लआयातिल् – लिल् – आलिमीन
    और उस (की क़़ुदरत) की निशानियों में आसमानो और ज़मीन का पैदा करना और तुम्हारी ज़बानो और रंगतो का एख़तेलाफ भी है यकी़नन इसमें वाकि़फकारों के लिए बहुत सी निशानियाँ हैं।
  3. व मिन् आयातिही मनामुकुम् बिल्लैलि वन्नहारि वब्तिग़ा उकुम् मिन् फ़ज़्लिही, इन् – न फ़ी ज़ालि-क ल-आयातिल्-लिकौमिंय्यस् – मअून
    और रात और दिन को तुम्हारा सोना और उसके फज़ल व करम (रोज़ी) की तलाश करना भी उसकी (क़़ुदरत की) निशानियों से है बेशक जो लोग सुनते हैं उनके लिए इसमें (क़़ुदरते अल्लाह की) बहुत सी निशानियाँ हैं।
  4. व मिन् आयातिही युरीकुमुल् – बर् – क़ खौफंव् वत – मअंव् – व युनज्जिलु मिनस्- समा-इ मा-अन् फ्युह्यी बिहिल् – अर्-ज़ बअ्-द मौतिहा, इन् – न फ़ी ज़ालि – क लआयातिल् लिकौमिंय्यअ्किलून
    और उसी की (क़़ुदरत की) निशानियों में से एक ये भी है कि वह तुमको डराने वाला उम्मीद लाने के वास्ते बिजली दिखाता है और आसमान से पानी बरसाता है और उसके ज़रिए से ज़मीन को उसके परती होने के बाद आबाद करता है बेशक अक़्लमंदों के वास्ते इसमें (क़ुदरते अल्लाह की) बहुत सी दलीलें हैं।
  5. व मिन् आयातही अन् तकूमस्समा उ वल् अर्जु बिअम्रिही, सुम्-म इज़ा दआ़कुम् दअ्-वतम्-मिनल् अर्ज़ि इज़ा अन्तुम् तख़्रुजून
    और उसी की (क़़ुदरत की) निशानियों में से एक ये भी है कि आसमान और ज़मीन उसके हुक्म से क़ायम हैं फिर (मरने के बाद) जिस वक़्त तुमको एक बार बुलाएगा तो तुम सबके सब ज़मीन से (जि़न्दा हो होकर) निकल पड़ोगे।
  6. व लहू मन् फ़िस्समावाति वल्अर्जि, कुल्लुल् – लहू कानितून
    और जो लोग आसमानों में है सब उसी के है और सब उसी के ताबेए फरमान हैं।
  7. व हुवल्लज़ी यब्दउल् – ख़ल्क़ सुम् – म युईदुहू व हु-व अह़्वनु अ़लैहि, व लहुल्-म-सलुल्-अअ्ला फिस्समावाति वलअर्जि व हुवल् अ़ज़ीजुल हकीम*
    और वह ऐसा (क़ादिरे मुत्तलिक़ है जो मख़लूकात को पहली बार पैदा करता है फिर दोबारा (क़यामत के दिन) पैदा करेगा और ये उस पर बहुत आसान है और सारे आसमान व जमीन सबसे बालातर उसी की शान है और वही (सब पर) ग़ालिब हिकमत वाला है।
  8. ज – र – ब लकुम् म- सलम् मिन् अन्फुसिकुम्, हल् – लकुम् मिम्मा म – लकत् ऐमानुकुम् मिन् शु-रका – अ फ़ी मा रज़क्नाकुम् फ़ अन्तुम् फ़ीहि सवाउन् तख़ाफूनहुम् कखी फ़तिकुम् अन्फु सकुम्, कज़ालि-क नुफस्सिलुल् – आयाति लिकौमिंय-यअ्किलून
    और हमने (तुम्हारे समझाने के वास्ते) तुम्हारी ही एक मिसाल बयान की है हमने जो कुछ तुम्हे अता किया है क्या उसमें तुम्हारी लौन्डी गु़लामों में से कोई (भी) तुम्हारा शरीक है कि (वह और) तुम उसमें बराबर हो जाओ (और क्या) तुम उनसे ऐसा ही ख़ौफ रखते हो जितना तुम्हें अपने लोगों का (हक़ हिस्सा न देने में) ख़ौफ होता है फिर बन्दों को अल्लाह का शरीक क्यों बनाते हो) अक़्ल मन्दों के वास्ते हम यूँ अपनी आयतों को तफ़सीलदार बयान करते हैं।
  9. बलित्-त-बअ़ल्लज़ी-न ज़-लमू अह़्वा-अहुम् बिग़ैरि अिल्मिन् फ़ – मंय्यह्दी मन् अज़ल्लल्लाहु, व मा लहुम् मिन्-नासिरीन
    मगर सरकशों ने तो बगै़र समझे बूझे अपनी नफ़सियानी ख़्वाहिशों की पैरवी कर ली (और अल्लाह का शरीक ठहरा दिया) ग़रज़ अल्लाह जिसे गुमराही में छोड़ दे (फिर) उसे कौन राहे रास्त पर ला सकता है और उनका कोई मददगार (भी) नहीं।
  10. फ़- अकिम् वज्ह – क लिद्दीनि हनीफ़न्, फित्- रतल्लाहिल्लती फ़ -तरन्ना – स अ़लैहा, ला तब्दी-ल लिख़ल्किल्लाहि, जालिकद् – दीनुल् कय्यिमु व लाकिन्-न अक्सरन्नासि ला यअ्लमून
    तो (ऐ रसूल) तुम बातिल से कतरा के अपना रुख़ दीन की तरफ़ किए रहो यही अल्लाह की बनावट है जिस पर उसने लोगों को पैदा किया है अल्लाह की (दुरुस्त की हुयी) बनावट में तग़य्युर तबद्दुल {उलट फेर} नहीं हो सकता यही मज़बूत और (बिल्कुल सीधा) दीन है मगर बहुत से लोग नहीं जानते हैं।
  11. मुनीबी – न इलैहि वत्तकूहु व अकीमुस्- सला-त व ला तकूनू मिनल्- मुश्रिकीन
    उसी की तरफ़ रुजू होकर (अल्लाह की इबादत करो) और उसी से डरते रहो और पाबन्दी से नमाज़ पढ़ो और मुशरेकीन से न हो जाना।
  12. मिनल्लज़ी – न फ़र्रकू दीनहुम् व कानू शि-यअ़न्, कुल्लु हिज़्बिम् बिमा लदैहिम् फ़रिहून
    जिन्होंने अपने (असली) दीन में तफरेक़ा परवाज़ी की और मुख़्तलिफ़ फिरके़ के बन गए जो (दीन) जिस फिरके़ के पास है उसी में निहाल है।
  13. व इज़ा मस्सन्ना-स जुर्रुन् दऔ रब्बहुम् मुनीबी – न इलैहि सुम – म इज़ा अज़ाकहुम मिन्हु रह्म तन् इज़ा फ़रीकुम् मिन्हुम् बिरब्बिहिम् युश्रिकून
    और जब लोगों को कोई मुसीबत छू भी गयी तो उसी की तरफ़ रुजू होकर अपने परवरदिगार को पुकारने लगते हैं फिर जब वह अपनी रहमत की लज़्ज़त चखा देता है तो उन्हीं में से कुछ लोग अपने परवरदिगार के साथ शिर्क करने लगते हैं।
  14. लियक्फूरू बिमा आतैनाहुम्, फ़- तमत्तअू, फ़सौ-फ़ तअ्लमून
    ताकि जो (नेअमत) हमने उन्हें दी है उसकी नाशुक्री करें ख़ैर (दुनिया में चन्दरोज़ चैन कर लो) फिर तो बहुत जल्द (अपने किए का मज़ा) तुम्हे मालूम ही होगा।
  15. अम् अन्ज़ल्ना अ़लैहिम् सुल्तानन् फ़हु व य-तकल्लमु बिमा कानू बिही युश्रिकून
    क्या हमने उन लोगों पर कोई दलील नाजि़ल की है जो उस (के हक़ होने) को बयान करती है जिसे ये लोग अल्लाह का शरीक ठहराते हैं (हरगि़ज नहीं)।
  16. व इज़ा अज़क़्नन्ना-स रहम तन् फ़रिहू बिहा, व इन् तुसिब्हुम् सय्यि-अतुम्-बिमा क़द्द-मत् ऐदीहिम् इज़ा हुम् यक़्नतून
    और जब हमने लोगों को (अपनी रहमत की लज़्ज़त) चखा दी तो वह उससे खुश हो गए और जब उन्हें अपने हाथों की अगली कारसतानियो की बदौलत कोई मुसीबत पहुँची तो यकबारगी मायूस होकर बैठे रहते हैं।
  17. अ-व लम् यरौ अन्नल्ला ह यब्सुतुर्रिज्-क़ लिमंय्यशा-उ व यक्दिरु, इन्-न फ़ी ज़ालि-क लआयातिल् लिकौमिंय् – युअ्मिनून
    क्या उन लोगों ने (इतना भी) ग़ौर नहीं किया कि अल्लाह ही जिसकी रोज़ी चाहता है कुशादा कर देता है और (जिसकी चाहता है) तंग करता है-कुछ शक नहीं कि इसमें इमानरदार लोगों के वास्ते (कुदरत अल्लाह की) बहुत सी निशानियाँ हैं।
  18. फ़-आति ज़ल्कुरबा हक़्क़हू वल्मिस्की – न वब्नस्सबीलि, ज़ालि-क ख़ैरुल्-लिल्लज़ी-न युरीदू न वज्हल्लाहि व उलाइ-क हुमुल्-मुफ्लिहून
    (तो ऐ रसूल अपनी) क़राबतदार (फातिमा ज़हरा) का हक़ फिदक़ दे दो और मोहताज व परदेसियों का (भी) जो लोग अल्लाह की ख़ुशनूदी के ख़्वाहाँ हैं उन के हक़ में सब से बेहतर यही है और ऐसे ही लोग आख़ेरत में दिली मुरादे पाएँगें।
  19. व मा आतैतुम् मिर्रिबल्-लि-यरबु-व फ़ी अम्वालिन्नासि फ़ला यरबू अिन्दल्लाहि व मा आतैतुम् मिन् ज़कातिन् तुरीदू-न वज्हल्लाहि फ़-उलाइ-क हुमुल्-मुज्अिफून
    और तुम लोग जो सूद देते हो ताकि लोगों के माल (दौलत) में तरक्क़ी हो तो (याद रहे कि ऐसा माल) अल्लाह के यहाँ फूलता फलता नही और तुम लोग जो अल्लाह की ख़ुशनूदी के इरादे से ज़कात देते हो तो ऐसे ही लोग (अल्लाह की बारगाह से) दूना दून लेने वाले हैं।
  20. अल्लाहुल्लज़ी ख़-ल-क़कुम् सुम्-म र-ज़-क़कुम् सुम्-म युमीतुकुम् सुम-म युह्यीकुम्, हल् मिन् शु-रकाइकुम् मंय्यफ्अ़लु मिन् ज़ालिकुम् मिन् शैइन्, सुब्हानहू व तआला अ़म्मा युश्रिकून*
    अल्लाह वह (क़ादिर तवाना है) जिसने तुमको पैदा किया फिर उसी ने रोज़ी दी फिर वही तुमको मार डालेगा फिर वही तुमको (दोबारा) जि़न्दा करेगा भला तुम्हारे (बनाए हुए अल्लाह के) शरीकों में से कोई भी ऐसा है जो इन कामों में से कुछ भी कर सके जिसे ये लोग (उसका) शरीक बनाते हैं।

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