सूरह बकरा हिंदी में (पेज 10)​

सूरह बकरा हिंदी में (पेज 10) Surah Al-Baqarah in Hindi

  1. फ़-मम् बद्-द लहू बअ्-द मा समि-अहू फ़-इन्नमा इस्मुहू अलल्लज़ी-न युबद्दिलूनहू, इन्नल्ला-ह समीअुन अलीम
    फिर जो सुन चुका उसके बाद उसे कुछ का कुछ कर दे तो उस का गुनाह उन्हीं लोगों की गरदन पर है जो उसे बदल डालें बेशक अल्लाह सब कुछ जानता और सुनता।
  2. फ़-मन् खा-फ़ मिम्-मूसिन् ज-नफ़न् औ इस्मन् फ़-अस्ल-ह बैनहुम् फला इस्-म अलैहि, इन्नल्ला-ह ग़फूरूर्रहीम○*
    (हाँ अलबत्ता) जो शख्स वसीयत करने वाले से बेजा तरफ़दारी या बे इन्साफी का ख़ौफ रखता है और उन वारिसों में सुलह करा दे तो उस पर बदलने का कुछ गुनाह नहीं है बेशक अल्लाह बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है।
  3. या अय्युहल्लज़ी-न आमनू कुति-ब अलैकुमुस्-सियामु कमा कुति-ब अलल्लज़ी-न मिन् क़ब्लिकुम् लअल्लकुम् तत्तक़ून
    ऐ ईमानदारों! रोज़ा रखना जिस तरह तुम से पहले के लोगों पर फर्ज था उसी तरफ तुम पर भी फर्ज़ किया गया ताकि तुम उस की वजह से बहुत से गुनाहों से बचो।
  4. अय्यामम्-मअदूदातिन्, फ़-मन् का-न मिन्कुम् मरीज़न् औ अला स-फ़रिन् फ-अिद्दतुम मिन् अय्यामिन् उ-ख़-र, व अलल्लज़ी-न युतीक़ूनहू फ़िदयतुन् तआमु मिस्कीनिन्, फ़-मन् त-तव्व-अ ख़ैरन फहु-व ख़ैरूल्लहू, व अन् तसूमू ख़ैरूल्लकुम् इन् कुन्तुम् तअ्लमून
    (वह भी हमेशा नहीं बल्कि) गिनती के चन्द रोज़ इस पर भी (रोज़े के दिनों में) जो शख्स तुम में से बीमार हो या सफर में हो तो और दिनों में जितने क़ज़ा हुए हो गिन के रख ले और जिन्हें रोज़ा रखने की कूवत है और न रखें तो उन पर उस का बदला एक मोहताज को खाना खिला देना है और जो शख्स अपनी ख़ुशी से भलाई करे तो ये उस के लिए ज्यादा बेहतर है और अगर तुम समझदार हो तो (समझ लो कि फिदये से) रोज़ा रखना तुम्हारे हक़ में बहरहाल अच्छा है।
  5. शह्-रू र-मज़ानल्लज़ी उन्ज़ि-ल फ़ीहिल्क़ुरआनु हुदल्लिन्नासि व बय्यिनातिम्-मिनल्हुदा वल्फुरक़ानि, फ़-मन् शहि-द मिन्कुमुश्शह्-र फ़ल्यसुम्हु, व मन् का-न मरीज़न औ अला स-फ़रिन् फ़अिद्दतुम् मिन् अय्यामिन उ-ख़-र, युरीदुल्लाहु बिकुमुल युस्-र व ला युरीदु बिकुमुल् उस्-र, व लितुक्मिलुल अिद्द-त व लितुकब्बिरूल्ला-ह अला मा हदाकुम् व लअल्लकुम् तश्कुरून
    (रोज़ों का) महीना रमज़ान है जिस में कुरान नाज़िल किया गया जो लोगों का रहनुमा है और उसमें रहनुमाई और (हक़ व बातिल के) तमीज़ की रौशन निशानियाँ हैं (मुसलमानों!) तुम में से जो शख्स इस महीने में अपनी जगह पर हो तो उसको चाहिए कि रोज़ा रखे और जो शख्स बीमार हो या फिर सफ़र में हो तो और दिनों में रोज़े की गिनती पूरी करे अल्लाह तुम्हारे साथ आसानी करना चाहता है और तुम्हारे साथ सख्ती करनी नहीं चाहता और (शुमार का हुक्म इस लिए दिया है)। ताकि तुम (रोज़ो की) गिनती पूरी करो और ताकि अल्लाह ने जो तुम को राह पर लगा दिया है उस नेअमत पर उस की बड़ाई करो और ताकि तुम शुक्र गुज़ार बनो।
  6. व इज़ा स-अ-ल-क अिबादी अन्नी फ़-इन्नी क़रीबुन्, उजीबु दअ्-वतद्दाअि इज़ा दआ़नि, फ़ल्यस्तजीबू ली वल्युअ्मिनू बी लअल्लहुम् यरशुदून
    (ऐ रसूल!) जब मेरे बन्दे मेरा हाल तुमसे पूछे तो (कह दो कि) मै उन के पास ही हूँ और जब मुझसे कोई दुआ माँगता है तो मै हर दुआ करने वालों की दुआ (सुन लेता हूँ और जो मुनासिब हो तो) कुबूल करता हूँ फ़िर उन्हें चाहिए कि मेरा भी कहना माने और मुझ पर ईमान लाएँ।
  7. उहिल्-ल लकुम् लै-लतस्सियामिर्र-फसु इला निसा-इकुम, हुन्-न लिबासुल्लकुम् व अन्तुम् लिबासुल् -लहुन्-न, अलिमल्लाहु अन्नकुम् कुन्तुम् तख़्तानू-न अन्फु-सकुम् फ़ता-ब अलैकुम् व अफ़ा अन्कुम्, फल्आ-न बाशिरूहुन्-न वब्तग़ू मा क-तबल्लाहु लकुम्, व कुलू वश्रबू हत्ता य-तबय्यन लकुमुल्ख़ैतुल् अब्यजु़ मिनल्ख़ैतिल् अस्वदि मिनल्-फ़ज्रि, सुम्-म अतिम्मुस् सिया-म इलल्लैलि, व ला तुबाशिरूहुन्-न व अन्तुम् आकिफू-न फिल्-मसाजिदि, तिल-क हुदूदुल्लाहि फ़ला तक़रबूहा, कज़ालि-क युबय्यिनुल्लाहु आयातिही लिन्नासि लअल्लहुम् यत्तक़ून
    ताकि वह सीधी राह पर आ जाए (मुसलमानों!) तुम्हारे वास्ते रोज़ों की रातों में अपनी बीवियों के पास जाना हलाल कर दिया गया औरतें (गोया) तुम्हारी चोली हैं और तुम (गोया उन के दामन हो) अल्लाह ने देखा कि तुम (गुनाह) करके अपना नुकसान करते (कि आँख बचा के अपनी बीबी के पास चले जाते थे) तो उसने तुम्हारी तौबा कुबूल की और तुम्हारी ख़ता से दर गुज़र किया फ़िर तुम अब उनसे हम बिस्तरी करो और (औलाद) जो कुछ अल्लाह ने तुम्हारे लिए (तक़दीर में) लिख दिया है उसे माँगों और खाओ और पियो यहाँ तक कि सुबह की सफेद धारी (रात की) काली धारी से आसमान पर पूरब की तरफ़ तक तुम्हें साफ नज़र आने लगे फिर रात तक रोज़ा पूरा करो और हाँ जब तुम मस्जिदों में एतेकाफ़ करने बैठो तो उन से (रात को भी) हम बिस्तरी न करो। ये अल्लाह की (मुअय्युन की हुई) हदे हैं तो तुम उनके पास भी न जाना। यूँ खुल्लम खुल्ला अल्लाह अपने एहकाम लोगों के सामने बयान करता है ताकि वह लोग (नाफ़रमानी से) बचें।
  8. व ला तअ्कुलू अम्वा-लकुम् बैनकुम् बिल्बातिलि व तुद् लू बिहा इलल्-हुक्कामि लितअ्कुलू फरीक़म् मिन् अम्वालिन्नासि बिल्इस्मि व अन्तुम् तअ्लमून○*
    और आपस में एक दूसरे का माल नाहक़ न खाओ , और न उन्हें हाकिमों के आगे ले जाओ कि (हक़ मारकर) लोगों के कुछ माल जानते-बूझते हड़प सको। हालाकि तुम जानते हो।
  9. यस्अलून-क अनिल-अहिल्लति, क़ुल हि-य मवाक़ीतु लिन्नासि वल्-हज्जि, व लैसल्बिर्रू बि-अन्तअ्तुल-बुयू-त मिन् ज़ुहूरिहा व ला किन्नल्बिर्-र मनित्तक़ा, वअ्तुल्-बुयू-त मिन् अब्वाबिहा, वत्तक़ुल्ला-ह लअल्लकुम् तुफ़्लिहून
    (ऐ रसूल!) तुम से लोग चाँद के बारे में पूछते हैं (कि क्यो घटता बढ़ता है) तो आप कह दें, इससे लोगों को तिथियों के निर्धारण तथा ह़ज के समय का ज्ञान होता है और ये कोई भलाई नहीं है कि घरों में उनके पीछे से प्रवेश करो, परन्तु भलाई तो अल्लाह की अवज्ञा से बचने में है। घरों में उनके द्वारों से आओ तथा अल्लाह से डरते रहो, ताकि तुम सफल हो जाओ।
  10. व क़ातिलू फी सबीलिल्लाहिल्लज़ी-न युक़ातिलू-नकुम् व ला तअ्तदू, इन्नल्ला-ह ला युहिब्बुल-मुअ्तदीन
    और जो लोग तुम से लड़े तुम (भी) अल्लाह की राह में उनसे लड़ो और ज्यादती न करो (क्योंकि) अल्लाह ज्यादती करने वालों को हरगिज़ दोस्त नहीं रखता।
  11. वक़्तुलूहुम् हैसू सक़िफ़्तुमूहुम् व अख़्रिजूहुम मिन् हैसु अख़्रजूकुम वल्फ़ित्नतु अशद्दु मिनल्-क़त्लि, व ला तुक़ातिलूहुम् अिन्दल-मस्जिदिल्-हरामि हत्ता युक़ातिलूकुम फ़ीहि, फ़-इन् क़ा तलूकुम् फ़क़्तुलूहुम्, कज़ालि-क जजा़उल्-काफिरीन
    और तुम उन (मुशरिकों) को जहाँ पाओ मार ही डालो और उन लोगों ने जहाँ (मक्का) से तुम्हें शहर बदर किया है तुम भी उन्हें निकाल बाहर करो, इसलिए कि उपद्रव क़त्ल से भी बढ़कर गम्भीर है। और जब तक वह लोग कुफ्फ़ार मस्ज़िद हराम (काबा) के पास तुम से न लडे तुम भी उन से उस जगह न लड़ों। फ़िर अगर वह तुम से लड़े तो बेखटके तुम भी उन को क़त्ल करो काफ़िरों की यही सज़ा है।
  12. फ-इनिन्-तहौ फ़-इन्नल्ला-ह ग़फूरूर्रहीम
    फिर अगर वह लोग रुक जायें तो बेशक अल्लाह बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है।
  13. व क़ातिलूहुम् हत्ता ला तकू-न फ़ित्नतुंव व यकूनद्दीनु लिल्लाहि, फ-इनिन्-तहौ फला अुद् वा-न इल्ला अलज़्-ज़ालिमीन
    और उन से लड़े जाओ यहाँ तक कि फ़साद बाक़ी न रहे और सिर्फ अल्लाह ही का दीन रह जाए फिर अगर वह लोग रुक जाये तो उन पर ज्यादती न करो क्योंकि ज़ालिमों के सिवा किसी पर ज्यादती (अच्छी) नहीं।
  14. अश्शहरूल्-हरामु बिश्शह् रिल्-हरामि वल्-हुरूमातु क़िसासुन्, फ़-मनिअ्तदा अलैकुम् फअ्तदू अलैहि बिमिस्लि मअ्तदा अलैकुम्, वत्तकुल्ला-ह वअ्लमू अन्नल्ला-ह म-अल्मुत्तक़ीन
    प्रतिष्ठित महीना प्रतिष्ठित महीने के बराबर है (और कुछ महीने की खुसूसियत नहीं) सब हुरमत वाली चीजे एक दूसरे के बराबर हैं फ़िर जो शख्स तुम पर ज्यादती करे तो जैसी ज्यादती उसने तुम पर की है वैसी ही ज्यादती तुम भी उस पर करो और अल्लाह से डरते रहो और खूब समझ लो कि अल्लाह परहेज़गारों का साथी है।
  15. व अन्फ़िक़ू फ़ी सबीलिल्लाहि व ला तुल्क़ू बिऐदीकुम् इलत्तह्लु-कति, व अह्-सिनू, इन्नल्ला-ह युहिब्बुल-मुह्सिनीन
    और अल्लाह की राह में ख़र्च करो और अपने हाथ जान हलाकत मे न डालो और नेकी करो बेशक अल्लाह नेकी करने वालों को दोस्त रखता है।
  16. व अतिम्मुल्-हज्-ज वल्-अुमर-त लिल्लाहि, फ़-इन् उहसिर्तुम् फ़-मस्तै-स-र मिनल्-हद्-यि, व ला तह्-लिकू़ रूऊ-सकुम् हत्ता यब्लुग़ल-हद्-यु महिल्लहू, फ़-मन् का-न मिन्कुम् मरीज़न औ बिही अज़म्-मिर्रअ्सिही फ़-फिद्-यतुम्-मिन् सियामिन् औ स-द-क़तिन् औ नुसुकिन्, फ़-इज़ा अमिन्तुम फ़-मन् तमत्त-अ बिल्-उम्रति इलल्-हज्जि फ़-मस्तै-स-र मिनल्-हद्-यि, फ़-मल्लम् यजिद् फ़सियामु सलासति अय्यामिन् फिल्-हज्जि व सब्-अतिन् इज़ा रजअ्तुम, तिल्-क अ-श-रतुन् कामि-लतुन्, ज़ालि-क लिमल्-लम् यकुन् अहलुहू हाज़िरिल्-मस्जिदिल हरामि, वत्तक़ुल्ला-ह वअ्लमू अन्नल्ला-ह शदीदुल-अिक़ाब○ *
    और सिर्फ अल्लाह ही के वास्ते हज और उमरा को पूरा करो अगर तुम बीमारी वगैरह की वजह से मजबूर हो जाओ तो फिर जैसी कुर्बानी मयस्सर आये (कर दो) और जब तक कुर्बानी अपनी जगह पर न पहुँच जाये अपने सर न मुंडवाओ फिर जब तुम में से कोई बीमार हो या उसके सर में कोई तकलीफ हो तो (सर मुंडवाने का बदला) रोजे या खैरात या कुर्बानी है फ़िर जब मुतमइन रहों तो जो शख्स हज तमत्तो का उमरा करे तो उसको जो कुर्बानी मयस्सर आये करनी होगी और जिस से कुर्बानी ना मुमकिन हो तो तीन रोजे ज़माना ए हज में (रखने होंगे) और सात रोजे ज़ब तुम वापस आओ ये पूरा दहाई है ये हुक्म उस शख्स के वास्ते है जिस के लड़के बाले मस्ज़िदुल हराम (मक्का) के बाशिन्दे न हो और अल्लाह से डरो और समझ लो कि अल्लाह बड़ा सख्त अज़ाब वाला है।
  17. अल्हज्जु अश्हुरूम्-मअ्लूमातुन्, फ-मन् फ़-र-ज़ फ़ीहिन्नल-हज़्-ज फला र-फ-स व ला फु-सू-क़, व ला जिदा-ल फ़िल्-हज्जि, व मा तफ्अलू मिन् ख़ैरिय् यअ्लम्हुल्लाहु, व तज़व्वदू फ़-इन्-न ख़ैरज़्ज़ादित्तक़् वा वत्तक़ूनि या उलिल्-अल्बाब
    हज के महीने तो (अब सब को) मालूम हैं (शव्वाल , जीक़ादा, जिलहज) फ़िर जो शख्स उन महीनों में अपने ऊपर हज लाज़िम करे तो (एहराम से आख़िर हज तक) न औरत के पास जाए न कोई और गुनाह करे और न झगडे और नेकी का कोई सा काम भी करों तो अल्लाह उस को खूब जानता है और (रास्ते के लिए) ज़ाद राह मुहिय्या करो और सब मे बेहतर ज़ाद राह परहेज़गारी है और ऐ अक्लमन्दों मुझ से डरते रहो।
  18. लै-स अलैकुम् जुनाहुन् अन् तब्तग़ू फज़्लम्-मिर्रब्बिकुम, फ़-इज़ा अफज़्तुम् मिन् अ-रफ़ातिन् फज़्कुरूल्ला-ह अिन्दल-मश्अ़रिल् हरामि वज़्कुरुहू कमा हदाकुम्, व इन् कुन्तुम् मिन् क़ब्लिही ल-मिनज़्ज़ाल्लीन
    इस में कोई इल्ज़ाम नहीं है कि (हज के साथ) तुम अपने परवरदिगार के फज़ल (नफ़ा तिजारत) की ख्वाहिश करो और फिर जब तुम अरफात से चल खड़े हो तो मशअरुल हराम के पास अल्लाह का जिक्र करो और उस की याद भी करो तो जिस तरह तुम्हे बताया है अगरचे तुम इसके पहले तो गुमराहो से थे।
  19. सुम्-म अफ़ीज़ू मिन् हैसु अफ़ाज़न्नासु वस्तग़् फिरूल्ला-ह, इन्नल्ला-ह ग़फूरूर्रहीम
    फिर जहाँ से लोग चल खड़े हों वहीं से तुम भी चल खड़े हो और उससे मग़फिरत की दुआ माँगों बेशक अल्लाह बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है।
  20. फ़-इज़ा क़ज़ैतुम् मनासि-ककुम् फज़्कुरूल्ला-ह क-ज़िक्रिकुम् आबा-अकुम् औ अशद्-द ज़िक्रन्, फ़-मिनन्नासि मंय्यक़ूलू रब्बना आतिना फ़िद्दुन्या व मा लहू फिल-आख़ि-रति मिन् ख़लाक़
    फिर जब तुम अरक़ाने हज बजा ला चुको तो तुम इस तरह ज़िक्रे अल्लाह करो जिस तरह तुम अपने बाप दादाओं का ज़िक्र करते हो बल्कि उससे बढ़ कर के फिर कुछ लोग ऐसे हैं जो कहते हैं कि ऐ मेरे परवरदिगार! हमको जो (देना है) दुनिया ही में दे दे हालाकि (फिर) आख़िरत में उनका कुछ हिस्सा नहीं।

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