सूरह बकरा कुरान का अध्याय (सूरा) नंबर दो है, यह सूरह मदनी है, इस में 286 आयतें हैं। यह सूरह कुरान की सब से बड़ी सूरह है। इस के एक स्थान पर “बकरह“ यानी (गाय) कि चर्चा आई है जिस कारण इसे यह नाम दिया गाया है।
यह सूरह कुरान की सब से बडी सूरह है। पूरे सूरा को याद करने वाले व्यक्ति को तेज गति से इसे पढ़ने में एक घंटे का समय लगता है। इस प्रकार कुरान के औसत पाठक को पूरी पढ़ने मे दो घंटे लगता है।
सूरह बकरा हिंदी में | Surah Baqarah in Hindi
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
(अल्लाह के नाम से जो रहमान व रहीम है)
- अलिफ्-लाम्-मीम् ○
अलीफ़, लाम, मीम। - जालिकल्-किताबु ला रै-ब फ़ीहि हुदल्लिल्-मुत्तकीन ○
ये वह किताब है । जिस (के किताबे खुदा होने) में कुछ भी शक नहीं, उन्हें सीधी डगर दिखाने के लिए है, जो (अल्लाह से) डरते हैं। - अल्लज़ी-न युअमिनू-न बिल-गैबि व युक़ीमूनस्सला-त व मिम्मा र-ज़क़्नाहुम् युन्फिकून ○
जो ग़ैब[1] पर ईमान लाते हैं और (पाबन्दी से) नमाज़ अदा करते हैं और जो कुछ हमने उनको दिया है उसमें से (राहे खुदा में) ख़र्च करते हैं। - वल्लज़ी-न युअ्मिनू-न बिमा उन्ज़ि-ल इलै-क वमा उन्ज़ि-ल मिन् कब्लि-क व बिल्-आखि-रति हुम् यूकिनून ○
तथा जो आप (हे नबी!) पर उतारी गयी (पुस्तक क़ुर्आन) तथा आपसे पूर्व उतारी गयी (पुस्तकों)[2] पर ईमान रखते हैं तथा आख़िरत (परलोक)[3] पर भी विश्वास रखते हैं। - उलाइ-क अला हुदम्-मिर्रब्बिहिम् व उलाइ-क हुमुल्-मुफ़लिहून ○
यही लोग अपने पालनहार की बताई सीधी डगर पर हैं और यही लोग अपनी दिली मुरादें पाएँगे। - इन्नल्लज़ी-न क-फरू सवाउन् अलैहिम् अ-अन्ज़र-तहुम् अम् लम् तुन्जिरहुम ला युअमिनून ○
बेशक जिन लोगों ने कुफ्र इख़तेयार किया उनके लिए बराबर है ( ऐ रसूल ) ख्वाह ( चाहे ) तुम उन्हें डराओ या न डराओ वह ईमान न लाएंगे। - ख-तमल्लाहु अला कुलूबिहिम् व अला सम्अिहिम् व अला अब्सारिहिम् गिशा-वतुंव-व लहुम् अज़ाबुन् अज़ीम ○ *
अल्लाह ने उनके दिलों पर और कानों पर मुहर लगा दी है और उनकी आँखों पर परदा पड़ा है, और उनके लिए बड़ी यातना है। - व मिनन्नासि मंय्यकूलु आमन्ना बिल्लाहि व बिल्यौमिल्-आखिरि व मा हुम् बिमुअमिनीन ○ •
और बाज़ लोग ऐसे भी हैं जो (ज़बान से तो) कहते हैं कि हम खुदा पर और क़यामत पर ईमान लाए हालाँकि वह दिल से ईमान नहीं लाए। - युख़ादिअूनल्ला-ह वल्लज़ी-न आमनू , व मा यख्दअू-न इल्ला अन्फुसहुम् व मा यश्अुरून ○
खुदा को और उन लोगों को जो ईमान लाए धोखा देते हैं हालाँकि वह अपने आपको धोखा देते हैं और कुछ शऊर नहीं रखते हैं। - फ़ी कुलू बिहिम् म-र-जुन् फ़ज़ा – दहुमुल्लाहु म-र-जन् व लहुम् अज़ाबुन् अलीमुम् बिमा कानू यक्ज़िबून ○
उनके दिलों में मर्ज़ था ही अब खुदा ने उनके मर्ज़ को और बढ़ा दिया और चूँकि वह लोग झूठ बोला करते थे इसलिए उन पर तकलीफ देह अज़ाब है। - व इज़ा की-ल लहुम् ला तुफ्सिदू फिलअर्ज़ि कालू इन्नमा नहनु मुस्लिहून ○
और जब उनसे कहा जाता है कि मुल्क में फसाद न करते फिरो (तो) कहते हैं कि हम तो केवल सुधार करने वाले हैं। - अला इन्नहुम् हुमुल-मुफ्सिदू-न व ला किल्ला यश्अुरून ○
ख़बरदार हो जाओ बेशक यही लोग उपद्रवी हैं लेकिन समझते नहीं। - व इज़ा की-ल लहुम् आमिनू कमा आ-मनन्नासु कालू अनुअ्मिनु कमा आ-मनस् सुफ़-हा-उ , अला इन्नहुम् हुमुस्-सुफ़-हा-उ वला किल्ला यअलमून ○
और जब उनसे कहा जाता है कि जिस तरह और लोग ईमान लाए हैं तुम भी ईमान लाओ तो कहते हैं क्या हम भी उसी तरह ईमान लाएँ जिस तरह और बेवकूफ़ लोग ईमान लाएँ, सावधान! वही लोग बेवकूफ़ हैं लेकिन नहीं जानते। - व इज़ा लकुल्लज़ी-न आमनू कालू आमन्ना व इज़ा खलौ इला शयातीनिहिम् कालू इन्ना म-अकुम् इन्नमा नहनु मुस्तहज़िऊन ○
और जब उन लोगों से मिलते हैं जो ईमान ला चुके तो कहते हैं हम तो ईमान ला चुके और जब अपने शैतानों के साथ तनहा रह जाते हैं तो कहते हैं हम तुम्हारे साथ हैं और यह तो हम केवल परिहास कर रहे हैं। - अल्लाहु यस्तहज़िउ बिहिम् व यमुद्दुहुम फ़ी तुगयानिहिम् यअमहून ○
(वह क्या परिहास करेंगे) खुदा उनके साथ परिहास कर रहा है और उनको ढील देता है कि वे अपनी सरकशी में भटकते फिर रहे हैं। - उलाइ-कल्लज़ी-नश्त-र वुज़ ज़ला-ल-त बिल्हुदा फ़मा रबिहत्-तिजारतुहुम् व मा कानू मुह्तदीन ○
यही वह लोग हैं जिन्होंने मार्गदर्शन के बदले गुमराही ख़रीद ली, फिर न उनकी व्यापार ही ने कुछ लाभ दिया और न ही वे सीधा मार्ग पा सके। - म-स-लुहुम् क-म-सलिल्-लज़िस्तौ-कद नारन् फ़-लम्मा अज़ा-अत् मा हौ-लहू ज़-हबल्लाहु बिनूरिहिम् व त-र-कहुम् फ़ी जुलुमातिल्ला युब्सिरून ○
उन लोगों की मिसाल (तो) उस शख्स की सी है जिसने (रात के वक्त मजमे में) भड़कती हुईआग रौशन की फिर जब आग (के शोले) ने उसके गिर्दो पेश (चारों ओर) खूब उजाला कर दिया तो खुदा ने उनकी रौशनी ही छीन लिया और उनको घटाटोप अंधेरे में छोड़ दिया जिससे उन्हें कुछ सुझाई नहीं दे रहा। - सुम्मुम्-बुक्मुन अुम्युन् फहुम् ला यर्जिअून ○
कि अब उन्हें कुछ सुझाई नहीं देता ये लोग बहरे, गूंगे, अन्धे हैं कि फिर अपनी गुमराही से बाज़ नहीं आ सकते। - औ क-सय्यिबिम-मिनस्समा-इ फ़ीहि जुलुमातुंव व-रअदुंव व-बरकुन , यज्अलू-न असाबि-अहुम् फ़ी आज़ानिहिम् मिनस्सवाअिकि ह-जरल्मौति वल्लाहु मुहीतुम्-बिल्काफिरीन ○
या उनकी मिसाल ऐसी है जैसे आसमानी बारिश जिसमें तारिकियाँ ग़र्ज़ बिजली हो मौत के खौफ से कड़क के मारे अपने कानों में ऊँगलियाँ दे लेते हैं हालाँकि खुदा काफ़िरों को घेरे हुए है। - यकादुल-बरकु यख्तफु अब्सा-रहुम् , कुल्लमा अज़ा-अ लहुम् मशौ फीहि व इज़ा अज्ल-म अलैहिम् कामू वलौ शा-अल्लाहु ल-ज़-ह-ब बिसम्अिहिम् व अब्सारिहिम, इन्नल्ला-ह अला कुल्लि शैइन कदीर ○ *
क़रीब है कि बिजली उनकी आँखों को चौन्धिया दे जब उनके आगे बिजली चमकी तो उस रौशनी में चल खड़े हुए और जब उन पर अंधेरा छा गया तो (ठिठक के) खड़े हो गए और खुदा चाहता तो यूँ भी उनके देखने और सुनने की शक्ति छीन लेता निश्चय अल्लाह जो चाहे, कर सकता है।
1. इस्लाम की परिभाषा में, अल्लाह, उस के फ़रिश्तों, उस की पुस्तकों, उस के रसूलों तथा अन्तदिवस (प्रलय) और अच्छे-बुरे भाग्य पर ईमान (विश्वास) को ‘ईमान बिल ग़ैब’ कहा गया है। (इब्ने कसीर)
2. अर्थात तौरात, इंजील तथा अन्य आकाशीय पुस्तकों पर।
3.आख़िरत पर ईमान का अर्थ हैः प्रलय तथा उस के पश्चात् फिर जीवित किये जाने तथा कर्मों के ह़िसाब एवं स्वर्ग तथा नरक पर विश्वास करना।