सूरह बकरा हिंदी में (पेज 11)​

सूरह बकरा हिंदी में (पेज 11) Surah Al-Baqarah in Hindi

  1. व मिन्हुम् मंय्यक़ूलु रब्बना आतिना फिद्दुन्या ह-स-नतंव् व फ़िल्-आख़ि-रति ह-स-नतंव् व क़िना अज़ाबन्नार
    और कुछ बन्दे ऐसे हैं कि जो दुआ करते हैं कि ऐ मेरे पालने! वाले मुझे दुनिया में नेअमत दे। और आख़िरत में सवाब दे और दोज़ख़ की आग से बचा।
  2. उलाइ-क लहुम् नसीबुम् मिम्मा क-सबू, वल्लाहु सरीअुल हिसाब
    यही वह लोग हैं जिनके लिए अपनी कमाई का हिस्सा चैन है।
  3. वज़्कुरूल्ला-ह फी अय्यामिम् मअ्दूदातिन्, फ़-मन् त-अज़्ज़-ल फ़ी यौमैनि फला इस्-म अलैहि, व मन् त-अख़्ख़-र फ़ला इस्-म अलैहि, लि-मनित्तक़ा, वत्तक़ुल्ला-ह वअ्लमू अन्नकुम् इलैहि तुह्शरून
    और अल्लाह बहुत जल्द हिसाब लेने वाला है (निस्फ़) और इन गिनती के चन्द दिनों तक (तो) अल्लाह का ज़िक्र करो फिर जो शख्स जल्दी कर बैठे और (मिना) से और दो ही दिन में चल ख़ड़ा हो तो उस पर भी गुनाह नहीं है और जो (तीसरे दिन तक) ठहरा रहे उस पर भी कुछ गुनाह नही लेकिन यह रियायत उसके वास्ते है जो परहेज़गार हो, और अल्लाह से डरते रहो और यक़ीन जानो कि एक दिन तुम सब के सब उसकी तरफ क़ब्रों से उठाए जाओगे।
  4. व मिनन्नासि मंय्युअ्जिबु-क क़ौलुहू फ़िल्हयातिद्दुन्या व युश्हिदुल्ला-ह अला मा फी कल्बिही, व हु-व अलद्दुल्-ख़िसाम
    ऐ रसूल! कुछ लोग मुनाफिक़ीन से ऐसे भी हैं जिनकी चिकनी चुपड़ी बातें (इस ज़रा सी) दुनयावी ज़िन्दगी में तुम्हें बहुत भाती है और वह अपनी दिली मोहब्बत पर अल्लाह को गवाह मुक़र्रर करते हैं हालांकि वह तुम्हारे दुश्मनों में सबसे ज्यादा झगड़ालू हैं।
  5. व इज़ा तवल्ला सआ़ फ़िल्अर्ज़ि लियुफ्सि-द फ़ीहा व युह्-लिकल हर्-स वन्-नस्-ल, वल्लाहु ला युहिब्बुल फ़साद○
    और जहाँ तुम्हारी मोहब्बत से मुँह फेरा तो इधर उधर दौड़ धूप करने लगा ताकि मुल्क में फ़साद फैलाए और ज़राअत (खेती बाड़ी) और मवेशी का सत्यानास करे और अल्लाह फसाद को अच्छा नहीं समझता।
  6. व इज़ा क़ी-ल लहुत्तक़िल्ला-ह अ-ख़ज़त्हुल्-अिज़्ज़तु बिल्-इस्मि फ़-हस्बुहू जहन्नमु, व लबिअ्सल्-मिहाद○
    और जब कहा जाता है कि अल्लाह से डरो तो उसे गुरुर गुनाह पर उभारता है। बस ऐसे कम्बख्त के लिए जहन्नुम ही काफ़ी है और बहुत ही बुरा ठिकाना है।
  7. व मिनन्नासि मंय्यशरी नफ़्सहुब्तिग़ा-अ मर्ज़ातिल्लाहि, वल्लाहु रऊफुम् बिल-अिबाद○
    और लोगों में से अल्लाह के बन्दे कुछ ऐसे हैं जो अल्लाह की प्रसन्नता की खोज में अपनी जान तक बेच डालते हैं और अल्लाह ऐसे बन्दों पर बड़ा ही अति करुणामय है।
  8. या अय्युहल्लज़ी-न आमनुद्ख़ुलू फिस्सिल्मि काफ्फ़तंव् व ला तत्तबिअू ख़ुतुवातिश्शैतानि, इन्नहू लकुम अदुव्वुम्-मुबीन
    ईमान वालों! तुम सबके सब एक बार इस्लाम में (पूरी तरह) दाख़िल हो जाओ और शैतान के क़दम ब क़दम न चलो वह तुम्हारा यक़ीनी ज़ाहिर ब ज़ाहिर दुश्मन है।
  9. फ़-इन् ज़लल्तुम मिम्-बअ्दि मा जा अत्कुमुल्-बय्यिनातु फअ्लमू अन्नल्ला-ह अज़ीजु़न् हकीम
    फिर जब तुम्हारे पास रौशन दलीले आ चुकी उसके बाद भी डगमगा गए तो अच्छी तरह समझ लो कि अल्लाह (हर तरह) ग़ालिब और तत्वदर्शी है।
  10. हल यन्ज़ुरू-न इल्ला अंय्यअ्ति-यहुमुल्लाहु फ़ी ज़ु-ल-लिम् मिनल्-ग़मामि वल्-मलाइ-कतु व क़ुज़ियल्-अम्रू , व इलल्लाहि तुरजअुल-उमूर○ *
    क्या वे (इसराईल की सन्तान) बस इसकी प्रतीक्षा कर रहे हैं कि अल्लाह स्वयं बादलों की छायों में उनके सामने आ जाए और फ़रिश्ते भी, और सब झगड़े चुक ही जाते। हालांकि आख़िर कुल मामले अल्लाह ही की तरफ रुजू किए जाएँगे।
  11. सल् बनी इस्राई-ल कम् आतैनाहुम् मिन् आयतिम् बय्यि-नतिन्, व मंय्युबद्दिल निअ्-मतल्लाहि मिम्-बअ्दि मा जाअत् हु फ-इन्नल्ला-ह शदीदुल अिक़ात
    (ऐ रसूल!) बनी इसराइल से पूछो कि हम ने उन को कैसी कैसी रौशन निशानियाँ दी और जब किसी शख्स के पास अल्लाह की नेअमत (किताब) आ चुकी उस के बाद भी उस को बदल डाले तो बेशक़ अल्लाह सख्त अज़ाब वाला है।
  12. ज़ुय्यि-न लिल्लज़ी-न क-फरूल् हयातुद्दुन्या व यस्ख़रू-न मिनल्लज़ी-न आमनू • वल्लज़ीनत्तक़व् फौ-क़ हुम् यौमल-क़ियामति, वल्लाहु यर्जुक़ु मंय्यशा-उ बिग़ैरि हिसाब
    जिन लोगों ने कुफ्र इख्तेयार किया उन के लिये दुनिया की ज़रा सी ज़िन्दगी ख़ूब अच्छी दिखायी गयी है और ईमानदारों से मसखरापन करते हैं हालॉकि क़यामत के दिन परहेज़गारों का दरजा उनसे (कहीं) बढ़ चढ़ के होगा और अल्लाह जिस को चाहता है बे हिसाब रोज़ी अता फरमाता है।
  13. कानन्नासु उम्म-तंव्-वाहि-दतन, फ-ब अ सल्लाहुन्नबिय्यी-न मुबश्शिरी-न व मुन्ज़िरी-न, व अन्ज़-ल म-अहुमुल् किता-ब बिल्हक़्क़ि लियह्कु-म बैनन्नासि फ़ी मख़्त-लफू फ़ीहि, व मख़्त-ल-फ़ फ़ीहि इल्लल्लज़ी-न ऊतूहु मिम्-बअ्दि मा जाअत्हुमुल बय्यिनातु बग़्यम्-बैनहुम्, फ़हदल्लाहुल्लज़ी-न आमनू लिमख़्त-लफू फ़ीहि मिनल-हक़्क़ि बि-इज़्निही, वल्लाहु यह्दी मंय्यशा-उ इला सिरातिम्-मुस्तक़ीम
    (पहले) सब लोग एक ही दीन रखते थे (फिर आपस में झगड़ने लगे तब) अल्लाह ने नजात से ख़ुश ख़बरी देने वाले और अज़ाब से डराने वाले पैग़म्बरों को भेजा और इन पैग़म्बरों के साथ बरहक़ किताब भी नाज़िल की ताकि जिन बातों में लोग झगड़ते थे किताबे अल्लाह (उसका) फ़ैसला कर दे और फिर अफ़सोस तो ये है कि इस हुक्म से इख्तेलाफ किया भी तो उन्हीं लोगों ने जिन को किताब दी गयी थी और वह भी जब उन के पास अल्लाह के साफ एहकाम आ चुके उसके बाद और वह भी आपस की शरारत से तब अल्लाह ने अपनी मेहरबानी से (ख़ालिस) ईमानदारों को वह राहे हक़ दिखा दी जिस में उन लोगों ने इख्तेलाफ डाल रखा था और अल्लाह जिस को चाहे राहे रास्त की हिदायत करता है।
  14. अम् हसिब्तुम् अन् तद्ख़ुलुल्-जन्न-त व लम्मा यअ्तिकुम् म-स-लुल्लज़ी-न ख़लौ मिन् क़ब्लिकुम, मस्सत्हुमुल् बअ्सा-उ वज़्ज़र्रा-उ व ज़ुल्ज़िलू हत्ता यक़ूलर्-रसूलु वल्लज़ी-न आमनू म-अ़हू मता नस्-रूल्लाहि, अला इन्-न नस्-रल्लाहि क़रीब
    क्या तुम ये ख्याल करते हो कि स्वर्ग में पहुँच ही जाओगे हालांकि अभी तक तुम्हे अगले ज़माने वालों की सी हालत नहीं पेश आयी कि उन्हें तरह तरह की तक़लीफों (फाक़ा कशी मोहताजी) और बीमारी ने घेर लिया था और ज़लज़ले में इस क़दर झिंझोडे ग़ए कि आख़िर (आज़िज़ हो के) पैग़म्बर और ईमान वाले जो उन के साथ थे कहने लगे देखिए अल्लाह की मदद कब (होती) है देखो (घबराओ नहीं) अल्लाह की मदद यक़ीनन बहुत क़रीब है।
  15. यस्अलून-क माज़ा युन्फ़िक़ू-न, क़ुल मा अन्फ़क़्तुम् मिन् ख़ैरिन् फ़-लिल्वालिदैनि वल्-अक़्रबी-न वल यतामा वल्मसाकीनि वब्निस्सबीलि, व मा तफ्अलू मिन् ख़ैरिन् फ़-इन्नल्ला-ह बिही अलीम
    (ऐ रसूल!) तुमसे लोग पूछते हैं कि हम अल्लाह की राह में क्या खर्च करें (तो तुम उन्हें) जवाब दो कि तुम अपनी नेक कमाई से जो कुछ खर्च करो तो वह तुम्हारे माँ बाप और क़राबतदारों और यतीमों और मोहताजो और परदेसियों का हक़ है और तुम कोई नेक सा काम करो अल्लाह उसको ज़रुर जानता है
  16. कुति-ब अलैकुमुल्-क़ितालु व हु-व कुर्-हुल्लकुम्, व असा अन् तक्रहू शैअंव-व हु-व खैरूल्लकुम्, व असा अन् तुहिब्बू शैअंव्-व हु-व शर्रूल्लकुम, वल्लाहु यअ्लमु व अन्तुम् ला तअ्लमून○ *
    (मुसलमानों!) तुम पर जिहाद फर्ज क़िया गया हालांकि वह तुम्हें अप्रिय है। और अजब नहीं कि तुम किसी चीज़ (जिहाद) को नापसन्द करो हालॉकि वह तुम्हारे हक़ में बेहतर हो और अजब नहीं कि तुम किसी चीज़ को पसन्द करो हालांकि वह तुम्हारे हक़ में बुरी हो और अल्लाह (तो) जानता ही है मगर तुम नही जानते हो।
  17. यसअलून-क अनिश्शहरिल्-हरामि क़ितालिन् फ़ीहि, क़ुल क़ितालुन फ़ीहि कबीरून, व सद्दुन अन् सबीलिल्लाहि व कुफ्रूम् बिही वल्मस्जिदिल्-हरामि, व इख़राजु अह्-लिही मिन्हु अक्बरू अिन्दल्लाहि, वल्-फ़ित्नतु अक्बरू मिनल्-क़त्लि, व ला यज़ालू-न युक़ातिलू-नकुम् हत्ता यरूद्दूकुम् अन् दीनिकुम् इनिस्तताअू , व मंय्यर्-तदिद् मिन्कुम् अन् दीनिही फ़-यमुत् व हु-व काफिरून् फ़-उलाइ-क हबितत् अअ्मालुहुम् फिद्दुन्या वल् आख़ि-रति, व उलाइ-क अस्हाबुन्नारि, हुम् फ़ीहा ख़ालिदून
    (ऐ रसूल!) तुमसे लोग हुरमत वाले महीनों की निस्बत पूछते हैं कि (आया) जिहाद उनमें जायज़ है तो तुम उन्हें जवाब दो कि इन महीनों में जेहाद बड़ा गुनाह है और ये भी याद रहे कि अल्लाह की राह से रोकना और अल्लाह से इन्कार और मस्जिदुल हराम (काबा) से रोकना और जो उस के अहल है उनका मस्जिद से निकाल बाहर करना (ये सब) अल्लाह के नज़दीक इस से भी बढ़कर गुनाह है और फ़ितना (उपद्रव), ख़़ून से भी बढ़ कर है और ये कुफ्फ़ार हमेशा तुम से लड़ते ही चले जाएँगें यहाँ तक कि अगर उन का बस चले तो तुम को तुम्हारे दीन से फिरा दे और तुम में जो शख्स अपने दीन से फिरा और कुफ़्र की हालत में मर गया तो ऐसों ही का किया कराया सब कुछ दुनिया और आखेरत (दोनों) में अकारत है और यही लोग जहन्नुमी हैं (और) वह उसी में हमेशा रहेंगें।
  18. इन्नल्लज़ी-न आमनू वल्लज़ी-न हाजरू व जाहदू फ़ी सबीलिल्लाहि, उलाइ-क यर्जू-न रहमतल्लाहि, वल्लाहु ग़फूरूर्रहीम
    बेशक जिन लोगों ने ईमान क़ुबूल किया और अल्लाह की राह में हिजरत की और जिहाद किया यही लोग रहमते अल्लाह के उम्मीदवार हैं और अल्लाह बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है।
  19. यस्अलून-क अनिल-ख़म्रि वल-मैसिरि, क़ुल फ़ीहिमा इस्मुन् कबीरूंव्-व मनाफ़िअु लिन्नासि, व इस्मुहुमा अक्बरू मिन्नफ्अिहिमा, व यस्अलून-क माज़ा युन्फ़िक़ू-न, क़ुलिल-अफ़-व, कज़ालि-क युबय्यिनुल्लाहु लकुमुल्-आयाति लअल्लकुम् त-तफ़क्करून
    तुमसे लोग शराब और जुए के बारे में पूछते हैं तो तुम उन से कह दो कि इन दोनो में बड़ा गुनाह है और कुछ फायदे भी हैं और उन के फायदे से उन का गुनाह बढ़ के है और तुम से लोग पूछते हैं कि अल्लाह की राह में क्या ख़र्च करे तुम उनसे कह दो कि जो तुम्हारे ज़रुरत से बचे, यूँ अल्लाह अपने एहकाम तुम से साफ़ साफ़ बयान करता है।
  20. फ़िद्दुन्या वल्-आख़ि-रति, व यस्अलून-क अनिल यतामा, क़ुल इस्लाहुल्लहुम् ख़ैरून्, व इन् तुख़ालितूहुम् फ़-इख़्वानुकुम, वल्लाहु, यअ्लमुल् मुफ्सि-द मिनल-मुस्लिहि, व लौ शाअल्लाहु ल-अअ्न-तकुम, इन्नल्ला-ह अज़ीज़ुन हकीम
    ताकि तुम दुनिया और आख़िरत (के मामलात) में ग़ौर करो और तुम से लोग यतीमों के बारे में पूछते हैं तुम (उन से) कह दो कि उनकी (इसलाह दुरुस्ती) बेहतर है और अगर तुम उन से मिलजुल कर रहो तो (कुछ हर्ज) नहीं आख़िर वह तुम्हारें भाई ही तो हैं और अल्लाह फ़सादी को ख़ैर ख्वाह से (अलग ख़ूब) जानता है और अगर अल्लाह चाहता तो तुम को मुसीबत में डाल देता बेशक अल्लाह ज़बरदस्त हिक़मत वाला है।

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