40 सूरह अल मोमिन(अल-गाफिर) हिंदी में पेज 2

सूरह अल मोमिन(सूरह अल-गाफिर) हिंदी में | Surah Al-Momin(Surah Ghafir) in Hindi

  1. व ल-क़द् अर्सल्ना मूसा बिआयातिना व सुल्तानिम् मुबीन
    और हमने मूसा को अपनी निशानियाँ और रौशन दलीलें देकर।
  2. इला फ़िर्-औं-न व हामा-न व क़ारू-न फ़क़ालू साहिरुन् कज़्ज़ाब
    फिरौन और हामान और क़ारून के पास भेजा तो वह लोग कहने लगे कि (ये तो) एक बड़ा झूठा (और) जादूगर है।
  3. फ़-लम्मा जा-अहुम् बिल्हक़्क़ि मिन् अिन्दिना क़ालुक़्तुलू अब्नाअल्लज़ी-न आमनू म-अ़हू वस्तह्यू निसा-अहुम्, व मा कैदुल्-काफ़िरी-न इल्ला फ़ी ज़लाल
    ग़रज़ जब मूसा उन लोगों के पास हमारी तरफ से सच्चा दीन ले कर आये तो वह बोले कि जो लोग उनके साथ ईमान लाए हैं उनके बेटों को तो मार डालों और उनकी औरतों को (लौन्डिया बनाने के लिए) जि़न्दा रहने दो और काफि़रों की तद्बीरें तो बे ठिकाना होती हैं।
  4. व क़ा-ल फ़िर्औनु ज़रूनी अक़्तुल मूसा वल्यद्अु रब्बहू इन्नी अख़ाफ़ु अंय्यु-बद्दि-ल दी-नकुम् औ अंय्युज़्हि-र फ़िल्अर्ज़िल्-फ़साद
    और फिरौन कहने लगा मुझे छोड़ दो कि मैं मूसा को तो क़त्ल कर डालूँ, और ( मैं देखूँ ) अपने परवरदिगार को तो अपनी मदद के लिए बुलालें (भाईयों) मुझे अन्देशा है कि (मुबादा) तुम्हारे दीन को उलट पुलट कर डाले या मुल्क में फ़साद पैदा कर दें।
  5. व क़ा-ल मूसा इन्नी उज़्तु बिरब्बी व रब्बिकुम् मिन् कुल्लि मु-तकब्बिरिल्-ला युअ्मिनु बियौमिल्-हिसाब
    और मूसा ने कहा कि मैं तो हर मुताकब्बिर से जो हिसाब के दिन (क़यामत पर ईमान नहीं लाता) अपने और तुम्हारे परवरदिगार की पनाह ले चुका हूँ।
  6. व क़ा-ल रजुलुम्-मुअ्मिनुम्-मिन् आलि फ़िर्-औ़-न यक्तुमु ईमानहू अ-तक़्तुलू-न रजुलन् अंय्यक़ू-ल रब्बियल्लाहु व क़द् जा-अकुम् बिल्- बय्यिनाति मिर्रब्बिकुम्, व इंय्यकु काज़िबन् फ़-अ़लैहि कज़िबुहू व इंय्यकु सादिक़ंय्-युसिब्कुम् बअ्ज़ुल्लज़ी यअिदुकुम्, इन्नल्ला-ह ला यह्दी मन् हु-व मुस्-रिफ़ुन् कज़्ज़ाब
    और फिरौन के लोगों में एक ईमानदार शख़्स (हिज़कील) ने जो अपने ईमान को छिपाए रहता था (लोगों से कहा) कि क्या तुम लोग ऐसे शख़्स के क़त्ल के दरपै हो जो (सिर्फ़) ये कहता है कि मेरा परवरदिगार अल्लाह है) हालाँकि वह तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से तुम्हारे पास मौजिज़े लेकर आया। और अगर (बिल ग़रज़) ये शख़्स झूठा है तो इसके झूठ का बवाल इसी पर पड़ेगा और अगर यह कहीं सच्चा हुआ तो जिस (अज़ाब की) तुम्हें ये धमकी देता है उसमें से कुछ तो तुम लोगों पर ज़रूर वाके़ए होकर रहेगा। बेशक अल्लाह उस शख़्स की हिदायत नहीं करता जो हद से गुज़रने वाला (और) झूठा हो।
  7. या क़ौमि लकुमुल्-मुल्कुल्-यौ-म ज़ाहिरी-न फ़िल्अर्ज़ि फ़- मंय्यन्सुरुना मिम्बअ्सिल्लाहि इन् जा-अना, क़ा-ल फ़िर्औनु मा उरीकुम् इल्ला मा अरा व मा अह्दीकुम् इल्ला सबीलर्-रशाद
    ऐ मेरी क़ौम आज तो (बेशक) तुम्हारी बादशाहत है (और) मुल्क में तुम्हारा ही बोल बाला है लेकिन (कल) अगर अल्लाह का अज़ाब हम पर आ जाए तो हमारी कौन मदद करेगा फिरौन ने कहा मैं तो वही बात समझाता हूँ जो मैं ख़़ुद समझता हूँ और वही राह दिखाता हूँ जिसमें भलाई है।
  8. व क़ालल्लज़ी आम-न या क़ौमि इन्नी अख़ाफ़ु अ़लैकुम् मिस्-ल यौमिल्-अह्ज़ाब
    तो जो शख़्स (दर पर्दा) ईमान ला चुका था कहने लगा, भाईयों मुझे तो तुम्हारी निस्बत भी और उम्मतों की तरह रोज़ (बद) का अन्देशा है।
  9. मिस्-ल दअ्बि क़ौमि नूहिंव्-व आ़दिंव्-व समू-द वल्लज़ी-न मिम्बअ्दिहिम्, व मल्लाहु युरीदु ज़ुल्मल् – लिल्अिबाद
    (कहीं तुम्हारा भी वही हाल न हो) जैसा कि नूह की क़ौम और आद समूद और उनके बाद वाले लोगों का हाल हुआ और अल्लाह तो बन्दों पर ज़़ुल्म करना चाहता ही नहीं।
  10. व या क़ौमि इन्नी अख़ाफ़ु अ़लैकुम् यौमत्तनाद
    और ऐ हमारी क़ौम! मुझे तो तुम्हारी निस्बत कयामत के दिन का अन्देशा है।
  11. यौ-म तुवल्लू-न मुद्बिरी-न मा लकुम् मिनल्लाहि मिन् आ़सिमिन् व मंय्युज़्लिलिल्लाहु फ़मा लहू मिन् हाद
    जिस दिन तुम पीठ फेर कर (जहन्नुम) की तरफ चल खड़े होगे तो अल्लाह के (अज़ाब) से तुम्हारा बचाने वाला न होगा, और जिसको अल्लाह गुमराही में छोड़ दे तो उसका कोई रूबराह करने वाला नहीं।
  12. व ल-क़द् जा-अकुम् यूसुफ़ु मिन् क़ब्लु बिल्बय्यिनाति फ़मा ज़िल्तुम् फ़ी शक्किम् मिम्मा जा- अकुम् बिही, हत्ता इज़ा ह-ल- क क़ुल्तुम् लंय्यब्-अ़सल्लाहु मिम्बअ्दिही रसूलन्, कज़ालि-क युज़िल्लुल्लाहु मन् हु-व मुस्रिफ़ुम्-मुर्ताब
    और (इससे) पहले यूसुफ़ भी तुम्हारे पास मौजिज़े लेकर आए थे तो जो जो लाए थे तुम लोग उसमें बराबर षक ही करते रहे यहाँ तक कि जब उन्होने वफ़ात पायी तो तुम कहने लगे कि अब उनके बाद अल्लाह हरगिज़ कोई रसूल नहीं भेजेगा जो हद से गुज़रने वाला और शक करने वाला है अल्लाह उसे यू हीं गुमराही में छोड़ देता है।
  13. अल्लज़ी-न युजादिलू-न फ़ी आयातिल्लाहि बिग़ैरि सुल्तानिन् अताहुम्, कबु-र मक़्तन् अिन्दल्लाहि व अिन्दल्लज़ी-न आमनू, कज़ालि-क यत्बअुल्लाहु अ़ला कुल्लि क़ल्बि मु-तकब्बिरिन् जब्बार
    जो लोग बगै़र इसके कि उनके पास कोई दलील आई हो अल्लाह की आयतों में (ख़्वाहमाख़्वाह) झगड़े किया करते हैं वह अल्लाह के नज़दीक और इमानदारों के नज़दीक सख़्त नफरत खेज़ हैं, यूँ अल्लाह हर मुतकब्बिर सरकश के दिल पर अलामत मुक़र्रर कर देता है।
  14. व क़ा-ल फ़िर्-औ़नु या हामानुब्नि-ली सर्हल्-लअ़ल्ली अब्लुग़ुल्-अस्बाब
    और फिरौन ने कहा ऐ हामान हमारे लिए एक महल बनवा दे ताकि (उस पर चढ़ कर) रसतों पर पहुँच जाऊ।
  15. अस्बाबस्समावाति फ़- अत्तलि-अ़ इला इलाहि मूसा व इन्नी ल-अज़ुन्नुहू काज़िबन्, व कज़ालि-क ज़ुय्यि-न लिफ़िर्-औ़-न सू-उ अ़ं-मलिही व सुद्-द अ़निस्सबीलि, व मा कैदु फ़िर्-औ़-न इल्ला फ़ी तबाब
    (यानि) आसमानों के रसतों पर फिर मूसा के अल्लाह को झांक कर (देख) लूँ और मैं तो उसे यक़ीनी झूठा समझता हूँ, और इसी तरह फिरौन की बदकिरदारयाँ उसको भली करके दिखा दी गयीं थीं और वह राहे रास्ता से रोक दिया गया था, और फिरौन की तदबीर तो बस बिल्कुल ग़ारत गुल ही थीं।
  16. व क़ालल्लज़ी आम-न या क़ौमित्तबिअूनि अह्दिकुम् सबीलर्रशाद
    और जो शख़्स (दर पर्दा) ईमानदार था कहने लगा भाईयों मेरा कहना मानों मैं तुम्हें हिदायत के रास्ते दिख दूंगा।
  17. या क़ौमि इन्नमा हाज़िहिल्-हयातुद्-दुन्या मताअुं-व इन्नल् – आख़िर-त हि-य दारुल्-क़रार
    भाईयों ये दुनियावी जि़न्दगी तो बस (चन्द रोज़ा) फ़ायदा है और आखे़रत ही हमेशा रहने का घर है।
  18. मन् अ़मि-ल सय्यि-अतन् फ़ला युज्ज़ा इल्ला मिस्लहा व मन् अ़मि-ल सालिहम् – मिन् ज़-करिन् औ अुन्सा व हु-व मुअ्मिनून् फ़-उलाइ-क यद्खुलूनल्-जन्न-त युर्ज़क़ू न फ़ीहा बिग़ैरि हिसाब
    जो बुरा काम करेगा तो उसे बदला भी वैसा ही मिलेगा, और जो नेक काम करेगा मर्द हो या औरत मगर ईमानदार हो तो ऐसे लोग बहिश्त में दाखि़ल होंगे वहाँ उन्हें बेहिसाब रोज़ी मिलेगी।
  19. व या क़ौमि मा ली अद्अूकुम् इलन्नजाति व तद्अूननी इलन्नार
    और ऐ मेरी क़ौम मुझे क्या हुआ है कि मैं तुमको नजाद की तरफ बुलाता हूँ और तुम मुझे दोज़ख़ की तरफ बुलाते हो।
  20. तद्अूननी लि-अक्फ़ु-र बिल्लाहि व उशिर-क बिही मा लै-स ली बिही अिल्मुंव्-व अ-न अद्अूकुम् इलल् अ़ज़ीज़िल्-ग़फ़्फ़ार
    तुम मुझे बुलाते हो कि मै अल्लाह के साथ कुफ़्र करूं और उस चीज़ को उसका शरीक बनाऊ जिसका मुझे इल्म में भी नहीं, और मैं तुम्हें ग़ालिब (और) बड़े बख़्शने वाले अल्लाह की तरफ बुलाता हूँ।
  21. ला ज-र-म अन्नमा तद्अूननी इलैहि लै-स लहू दअ्-वतुन् फ़िद्-दुन्या व ला फ़िल्-आख़िरति व अन्- न मरद्-दना इलल्लाहि व नल्-मुस्रिफ़ी-न हुम् अस्हाबुन्नार
    बेशक तुम जिस चीज़ की तरफ़ मुझे बुलाते हो वह न तो दुनिया ही में पुकारे जाने के क़ाबिल है और न आखि़रत में और आखि़र में हम सबको अल्लाह ही की तरफ़ लौट कर जाना है और इसमें तो शक ही नहीं कि हद से बढ़ जाने वाले जहन्नुमी हैं।
  22. फ़-सतज़्कुरू- न मा अक़ूलु लकुम् व उफ़व्विज़ु अम्री इलल्लाहि, इन्नल्ला-ह बसीरुम्-बिल्अिबाद
    तो जो मैं तुमसे कहता हूँ अनक़रीब ही उसे याद करोगे और मैं तो अपना काम अल्लाह ही को सौंपे देता हूँ कुछ शक नहीं की अल्लाह बन्दों ( के हाल ) को ख़ूब देख रहा है।

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