40 सूरह अल-मोमिन(अल-गाफिर) हिंदी में पेज 1

40 सूरह अल मोमिन(सूरह अल-गाफिर) | Surah Al-Momin(Surah Ghafir)

सूरह अल मोमिन(सूरह अल-गाफिर) में 85 आयतें और 9  रुकु हैं। यह सूरह पारा 24 में है। यह सूरह मक्के में नाजिल हुई।

इस सूरह का नाम आयत 28 के वाक्यांश – “फिरऔन के लोगों में से एक ईमान रखने वाला (अल-मोमिन) व्यक्ति बोल उठा” से लिया गया है।

सूरह अल मोमिन(सूरह अल-गाफिर) हिंदी में | Surah Al-Momin(Surah Ghafir) in Hindi

बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहिम
शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम वाला है

  1. हा-मीम्
    हा मीम।
  2. तन्ज़ीलुल्-किताबि मिनल्लाहिल् अज़ीज़ल्-अ़लीम
    (इस) किताब (क़ुरआन) का नाजि़ल करना (ख़ास बारगाहे) अल्लाह से है जो (सबसे) ग़ालिब बड़ा वाकि़फ़कार है।
  3. ग़ाफ़िरिज़्-ज़म्बि व क़ाबिलित्तौबि शदीदिल्-अिक़ाबि ज़ित्तौलि, ला इला-ह इल्ला हु-व, इलैहिल्-मसीर
    गुनाहों का बख़्शने वाला और तौबा का क़ुबूल करने वाला सख़्त अज़ाब देने वाला साहिबे फज़ल व करम है उसके सिवा कोई माबूद नहीं उसी की तरफ (सबको) लौट कर जाना है।
  4. मा युजादिलु फ़ी आयातिल्लाहि इल्लल्लज़ी-न क-फ़रू फ़ला यग़्-रुर् क त-क़ल्लुबुहुम् फिल्-बिलाद
    अल्लाह की आयतों में बस वही लोग झगड़े पैदा करते हैं जो काफिर हैं तो (ऐ रसूल) उन लोगों का शहरों घूमना फिरना और माल हासिल करना।
  5. कज़्ज़बत् क़ब्लहुम् क़ौमु नूहिंव्वल्-अह्ज़ाबु मिम्बअ्दिहिम् व हम्मत् कुल्लु उम्म-तिम्-बि-रसूलिहिम् लियअ्ख़ुज़ूहु व जादलू बिल्बातिल लियुद्हिज़ू बिहिल्हक़्-क़ फ़-अख़ज़्तुहुम् फ़कै-फ़ का-न अिक़ाब
    तुम्हें इस धोखे में न डाले (कि उन पर आज़ाब न होगा) इन के पहले नूह की क़ौम ने और उन के बाद और उम्मतों ने (अपने पैग़म्बरों को) झुठलाया और हर उम्मत ने अपने पैग़म्बरों के बारे में यही ठान लिया कि उन्हें गिरफ़्तार कर (के क़त्ल कर डालें) और बेहूदा बातों की आड़ पकड़ कर लड़ने लगें। ताकि उसके ज़रिए से हक़ बात को उखाड़ फेंकें तो मैंने, उन्हें गिरफ्तार कर लिया फिर देखा कि उन पर (मेरा अज़ाब कैसा (सख़्त हुआ)।
  6. व कज़ालि-क हक़्क़त् कलि-मतु रब्बि-क अ़लल्लज़ी-न क- फ़रू अन्नहुम् अस्हाबुन्-नार
    और इसी तरह तुम्हारे परवरदिगार का अज़ाब का हुक्म (उन) काफि़रों पर पूरा हो चुका है कि यह लोग यक़ीनी जहन्नुमी हैं।
  7. अल्लज़ी-न यह्मिलूनल्-अ़र्-श व मन् हौलहू युसब्बिहू-न बिहन्दि-रब्बिहिम् व युअ्मिनू-न बिही व यस्तग़्फ़िरू-न लिल्लज़ी-न आमनू रब्बना वसिअ्-त कुल्-ल शैइर्रह्म-तंव्-व अिल्मन् फ़ग़्फ़िर् लिल्लज़ी – न ताबू वत्त-बअू सबील-क वक़िहिम् अ़ज़ाबल्-जहीम
    जो (फ़रिश्ते) अर्श को उठाए हुए हैं और जो उस के गिर्दा गिर्द (तैनात) हैं (सब) अपने परवरदिगार की तारीफ़ के साथ तसबीह करते हैं और उस पर ईमान रखते हैं। और मोमिनों के लिए बख़शिश की दुआएं माँगा करते हैं कि परवरदिगार तेरी रहमत और तेरा इल्म हर चीज़ पर अहाता किए हुए हैं, तो जिन लोगों ने (सच्चे) दिल से तौबा कर ली और तेरे रास्ते पर चले उनको बक्श दे और उनको जहन्नुम के अज़ाब से बचा ले।
  8. रब्बना व अद्ख़िल्हुम् जन्नाति अ़द्नि-निल्लती वअ़त्त-हुम् व मन् स-ल-ह मिन् आबाइहिम् व अज़्वाजिहिम् व ज़ुर्रिय्यातिहिम्, इन्न-क अन्तल्-अ़ज़ीज़ुल् हकीम
    ऐ हमारे पालने वाले इन को सदाबहार बाग़ों में जिनका तूने उन से वायदा किया है दाखि़ल कर और उनके बाप दादाओं और उनकी बीवीयों और उनकी औलाद में से जो लोग नेक हो उनको (भी बख़्श दें) बेशक तू ही ज़बरदस्त (और) हिकमत वाला है।
  9. वक़िहिमुस्सय्यिआति, व मन् तक़िस्सय्यिआति यौमइज़िन् फ़-क़द् रहिम्-तहू, व ज़ालि-क हुवल् फ़ौज़ुल्- अ़ज़ीम
    और उनको हर किस्म की बुराइयों से महफूज़ रख और जिसको तूने उस दिन ( कयामत ) के अज़ाबों से बचा लिया उस पर तूने बड़ा रहम किया और यही तो बड़ी कामयाबी है।
  10. इन्नल्लज़ी-न क-फ़रू युनादौ-न ल-मक़्तुल्लाहि अक्बरु मिम्मक़्तिकुम् अन्फ़ु सकुम् इज़् तुद्औ़-न इलल्-ईमानि फ़-तक्फ़ुरून
    (हाँ) जिन लोगों ने कुफ़्र एख़्तेयार किया उनसे पुकार कर कह दिया जाएगा कि जितना तुम (आज) अपनी जान से बेज़ार हो उससे बढ़कर अल्लाह तुमसे बेज़ार था जब तुम ईमान की तरफ बुलाए जाते थे तो कुफ्र करते थे।
  11. क़ालू रब्बना अ-मत्त-नस्नतैनि व अह्यै -तनस्नतैनि फ़अ्-तरफ़्ना बिज़ुनूबिना फ़-हल् इला ख़ुरूजिम् मिन् सबील
    वह लोग कहेंगे कि ऐ हमारे परवरदिगार तू हमको दो बार मार चुका और दो बार जि़न्दा कर चुका तो अब हम अपने गुनाहों का एक़रार करते हैं तो क्या (यहाँ से) निकलने की भी कोई सबील है।
  12. ज़ालिकुम् बिअन्नहू इज़ा दुअि – यल्लाहु वह्दहू क-फ़र्तुम् व इंय्युश्-रक् बिही तुअ्मिनू, फ़ल्- हुक्मु लिल्लाहिल् अ़लिय्यिल् – कबीर
    ये इसलिए कि जब तन्हा अल्लाह पुकारा जाता था तो तुम ईन्कार करते थे और अगर उसके साथ शिर्क किया जाता था तो तुम मान लेते थे तो (आज) अल्लाह की हुकूमत है जो आलीशान (और) बुज़ुर्ग है।
  13. हुवल्लज़ी युरीकुम् आयातिही व युनज़्ज़िलु लकुम् मिनस्समा – इ रिज़्क़न्, व मा य-तज़क्करु इल्ला मंय्युनीब
    वही तो है जो तुमको (अपनी क़ुदरत की) निशानियाँ दिखाता है और तुम्हारे लिए आसमान से रोज़ी नाजि़ल करता है और नसीहत तो बस वही हासिल करता है जो (उसकी तरफ़) रूझू करता है।
  14. फ़द्अुल्ला-ह मुख़्लिसी-न लहुद्दी-न व लौ करिहल्- काफ़िरून
    पस तुम लोग अल्लाह की इबादत को ख़ालिस करके उसी को पुकारो अगरचे कुफ़्फ़ार बुरा मानें।
  15. रफ़ीअुद्-द-रजाति ज़ुल्अर्शि युल्क़िर्-रू-ह मिन् अम्रिही अ़ला मंय्यशा- उ मिन् अिबादिही लि-युन्ज़ि-र यौमत्तलाक़
    अल्लाह तो बड़ा आली मरतबा अर्श का मालिक है, वह अपने बन्दों में से जिस पर चाहता है अपने हुक्म से ‘वही’ नाजि़ल करता है ताकि (लोगों को) मुलाकात (क़यामत) के दिन से डराएं।
  16. यौ-म हुम् बारिज़ू-न, ला यख़्फ़ा अ़लल्लाहि मिन्हुम् शैउन्, लि-मनिल्-मुल्कुल्-यौ-म, लिल्लाहिल्-वाहिदिल्-क़ह्हार
    जिस दिन वह लोग (क़ब्रों) से निकल पड़ेंगे (और) उनको कोई चीज़ अल्लाह से पोषीदा नहीं रहेगी (और निदा आएगी) आज किसकी बादशाहत है ( फिर अल्लाह ख़़ुद कहेगा ) ख़ास अल्लाह की जो अकेला (और) ग़ालिब है।
  17. अल्यौ-म तुज्ज़ा कुल्लु नफ़्सिम्- बिमा क-सबत्, ला ज़ुल्मल्- यौ-म, इन्नल्ला-ह सरीअुल्-हिसाब
    आज हर शख़्स को उसके किए का बदला दिया जाएगा, आज किसी पर कुछ भी ज़़ुल्म न किया जाएगा बेशक अल्लाह बहुत जल्द हिसाब लेने वाला है।
  18. व अन्ज़िर्हुम् यौमल-आज़ि-फ़ति इज़िल्-क़ुलूबु ल-दलू- हनाजिरि काज़िमी-न, मा लिज़्ज़ालिमी – न मिन् हमीमिंव्-व ला शफ़ीअिंय्-युता- अु
    (ऐ रसूल!) तुम उन लोगों को उस दिन से डराओ जो अनक़रीब आने वाला है जब लोगों के कलेजे घुट घुट के (मारे डर के) मुँह को आ जाएंगें (उस वक़्त) न तो सरकशों का कोई सच्चा दोस्त होगा और न कोई ऐसा सिफारिशी जिसकी बात मान ली जाए।
  19. यअ्लमु ख़ाइ-नतल्-अअ्युनि व मा तुख़्फ़िस्सुदूर
    अल्लाह तो आँखों की दुज़दीदा निगाह को भी जानता है और उन बातों को भी जो (लोगों के) सीनों में पोशीदा है।
  20. वल्लाहु यक़्ज़ी बिल्हक्कि वल्लज़ी-न यद्अू-न मिन् दूनिही ला यक्ज़ू-न बिशैइन्, इन्नल्ला-ह हुवस्समीअुल्-बसीर
    और अल्लाह ठीक ठीक हुक्म देता है, और उसके सिवा जिनकी ये लोग इबादत करते हैं वह तो कुछ भी हुक्म नहीं दे सकते, इसमें शक नहीं कि अल्लाह सुनने वाला देखने वाला है।
  21. अ-व लम् यसीरू फ़िल्अर्ज़ि फ़-यन्ज़ुरू कै-फ़ का-न आ़क़ि- बतुल्लज़ी-न कानू मिन् क़ब्लिहिम्, कानू हुम् अशद्-द मिन्हुम् क़ुव्व-तंव्-व आसारन् फ़िल्अर्ज़ि फ़-अ-ख़- ज़हुमुल्लाहु बिज़ुनुबिहिम्, व मा का-न लहुम् मिनल्लाहि मिंव्वाक़
    क्या उन लोगों ने रूए ज़मीन पर चल फिर कर नहीं देखा कि जो लोग उनसे पहले थे उनका अन्जाम क्या हुआ (हालाँकि) वह लोग कुवत (शान और उम्र सब) में और ज़मीन पर अपनी निशानियाँ (यादगारें इमारतें) वग़ैरह छोड़ जाने में भी उनसे कहीं बढ़ चढ़ के थे। तो अल्लाह ने उनके गुनाहों की वजह से उनकी ले दे की, और अल्लाह (के ग़ज़ब से) उनका कोई बचाने वाला भी न था।
  22. ज़ालि – क बि-अन्नहुम् कानत् तअ्तीहिम् रुसुलुहुम् बिल्बय्यिनाति फ़-क-फ़रू फ़-अ-ख़-ज़हुमुल्लाहु, इन्नहू क़विय्युन् शदीदुल्-अिक़ाब
    ये इस सबब से कि उनके पैग़म्बरान उनके पास वाज़ेए व रौशन मौजिज़े ले कर आए इस पर भी उन लोगों ने न माना तो अल्लाह ने उन्हें ले डाला इसमें तो शक ही नहीं कि वह क़वी (और) सख़्त अज़ाब वाला है।

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