11 सूरह हूद हिंदी में पेज 2

सूरह हूद हिंदी में | Surat Hud in Hindi

  1. उलाइ-कल्लज़ी-न ख़सिरू अन्फु-सहुम् व ज़ल्-ल अन्हुम् मा कानू यफ़्तरून
    ये वह लोग हैं जिन्होंने कुछ अपना ही घाटा किया और जो इफ़्तेरा परदाजि़याँ (झूठी बातें) ये लोग करते थे (क़यामत में सब) उन्हें छोड़ के चल होगी।
  2. ला ज-र-म अन्नहुम् फिल-आख़िरति हुमुल्-अख़्सरून
    इसमें शक नहीं कि यही लोग आखि़रत में बड़े घाटा उठाने वाले होगें।
  3. इन्नल्लज़ी-न आमनू व अ़मिलुस्सालिहाति व अख़्बतू इला रब्बिहिम्, उलाइ-क अस्हाबुल्-जन्नति, हुम् फ़ीहा ख़ालिदून
    बेशक जिन लोगों ने ईमान क़ुबूल किया और अच्छे अच्छे काम किए और अपने परवरदिगार के सामने आजज़ी से झुके यही लोग जन्नती हैं कि ये बेहिश्त में हमेशा रहेगें।
  4. म-सलुल्-फ़रीक़ैनि कल् अअ्मा वल्-असम्मि वल्बसीरि वस्समीअि, हल् यस्तवियानि म-सलन्, अ-फ़ला तज़क्करून *
    (काफिर,मुसलमान) दोनों फरीक़ की मसल अन्धे और बहरे और देखने वाले और सुनने वाले की सी है क्या ये दोनो मसल में बराबर हो सकते हैं तो क्या तुम लोग ग़ौर नहीं करते और हमने नूह को ज़रुर उन की क़ौम के पास भेजा।
  5. व ल-क़द् अरसल्ना नूहन् इला क़ौमिही, इन्नी लकुम् नज़ीरूम् मुबीन
    (और उन्होने अपनी क़ौम से कहा कि) मैं तो तुम्हारा (अज़ाबे अल्लाह से) सरीही धमकाने वाला हूँ।
  6. अल्ला तअ्बुदू इल्लल्ला-ह, इन्नी अख़ाफु अ़लैकुम् अ़ज़ा-ब यौमिन् अलीम
    (और) ये (समझता हूँ) कि तुम अल्लाह के सिवा किसी की परसतिश न करो मैं तुम पर एक दर्दनाक दिन (क़यामत) के अज़ाब से डराता हूँ।
  7. फ़क़ालल् म-लउल्लज़ी-न क-फरू मिन् क़ौमिही मा नरा-क इल्ला ब-शरम् मिस्-लना वमा नराकत्त-ब-अ-क इल्लल्लज़ी-न हुम् अराज़िलुना बादियर्-रअ्यि, व मा नरा लकुम् अ़लैना मिन फ़ज्लिम-बल् नज़ुन्नुकुम् काज़िबीन
    तो उनके सरदार जो काफि़र थे कहने लगे कि हम तो तुम्हें अपना ही सा एक आदमी समझते हैं और हम तो देखते हैं कि तुम्हारे पैरोकार हुए भी हैं तो बस सिर्फ हमारे चन्द रज़ील (नीच) लोग (और वह भी बे सोचे समझे सरसरी नज़र में) और हम तो अपने ऊपर तुम लोगों की कोई फज़ीलत नहीं देखते बल्कि तुम को झूठा समझते हैं।
  8. क़ा-ल या क़ौमि अ-रऐतुम् इन् कुन्तु अला बय्यिनतिम्-मिर्रब्बी व आतानी रह्-म-तिन् अिन्दिही फ़-अुम्मियत् अलैकुम, अनुल्ज़िमुकुमूहा व अन्तुम् लहा कारिहून
    (नूह ने) कहा ऐ मेरी क़ौम क्या तुमने ये समझा है कि अगर मैं अपने परवरदिगार की तरफ से एक रौशन दलील पर हूँ और उसने अपनी सरकार से रहमत (नुबूवत) अता फरमाई और वह तुम्हें सुझाई नहीं देती तो क्या मैं उसको (ज़बरदस्ती) तुम्हारे गले मंढ़ सकता हूँ।
  9. व या क़ौमि ला अस् अलुकुम् अ़लैहि मालन्, इन् अज्रि-य इल्ला अ़लल्लाहि व मा अ-ना बितारिदिल्लज़ी-न आमनू, इन्नहुम् मुलाक़ू रब्बिहिम् व लाकिन्नी अराकुम् क़ौमन् तज्हलून
    और तुम हो कि उसको नापसन्द किए जाते हो और ऐ मेरी क़ौम मैं तो तुमसे इसके सिले में कुछ माल का तालिब नहीं मेरी मज़दूरी तो सिर्फ अल्लाह के जि़म्मे है और मै तो तुम्हारे कहने से उन लोगों को जो इमान ला चुके हैं निकाल नहीं सकता (क्योंकि) ये लोग भी ज़रुर अपने परवरदिगार के हुज़ूर में हाजि़र होगें मगर मै तो देखता हूँ कि कुछ तुम ही लोग (नाहक़) जिहालत करते हो।
  10. व या क़ौमि मंय्यन्सुरूनी मिनल्लाहि इन् तरत्तुहुम्, अ-फला तज़क्करून
    और मेरी क़ौम अगर मै इन (बेचारे ग़रीब) (ईमानदारों) को निकाल दूँ तो अल्लाह (के अज़ाब) से (बचाने में) मेरी मदद कौन करेगा तो क्या तुम इतना भी ग़ौर नहीं करते।
  11. व ला अक़ूलु लकुम् अिन्दी ख़ज़ाइनुल्लाहि व ला अअ्लमुल-ग़ै-ब वला अक़ूलु इन्नी म-लकुंव्-वला अक़ूलु लिल्लज़ी-न तज़्दरी अअ्युनुकुम् लंय्युअ्ति-यहुमुल्लाहु खैरन्, अल्लाहु अअ्लमु बिमा फी अन्फुसिहिम्, इन्नी इज़ल्-लमिनज़्ज़ालिमीन
    और मै तो तुमसे ये नहीं कहता कि मेरे पास खुदाई ख़ज़ाने हैं और न (ये कहता हूँ कि) मै ग़ैब दां हूँ (गै़ब का जानने वाला) और ये कहता हूँ कि मै फरिश्ता हूँ और जो लोग तुम्हारी नज़रों में ज़लील हैं उन्हें मैं ये नहीं कहता कि अल्लाह उनके साथ हरगिज़ भलाई नहीं करेगा उन लोगों के दिलों की बात अल्लाह ही खूब जानता है और अगर मै ऐसा कहूँ तो मै भी यक़ीनन ज़ालिम हूँ।
  12. क़ालू या नूहु क़द् जादल्तना फ़-अक्सर् त जिदालना फ़अतिना बिमा तअिदुना इन् कुन् त मिनस्सादिक़ीन
    वह लोग कहने लगे ऐ नूह तुम हम से यक़ीनन झगड़े और बहुत झगड़े फिर तुम सच्चे हो तो जिस (अज़ाब) की तुम हमें धमकी देते थे हम पर ला चुको।
  13. क़ा-ल इन्नमा यअ्तीकुम् बिहिल्लाहु इन् शा-अ व मा अन्तुम् बिमुअ्जिज़ीन
    नूह ने कहा अगर चाहेगा तो बस अल्लाह ही तुम पर अज़ाब लाएगा और तुम लोग किसी तरह उसे हरा नहीं सकते और अगर मै चाहूँ तो तुम्हारी (कितनी ही) ख़ैर ख़्वाही (भलाई) करुँ।
  14. व ला यन्फ़अुकुम् नुस्ही इन् अरत्तु अन् अन्स-ह लकुम् इन् कानल्लाहु युरीदु अंय्युग़्वि-यकुम, हु-व रब्बुकुम्, व इलैहि तुर्जअून
    अगर अल्लाह को तुम्हारा बहकाना मंज़ूर है तो मेरी ख़ैर ख़्वाही कुछ भी तुम्हारे काम नहीं आ सकती वही तुम्हारा परवरदिगार है और उसी की तरफ तुम को लौट जाना है।
  15. अम् यक़ूलूनफ्तराहु, क़ुल इनिफ्तरैतुहू फ़-अलय्-य इजरामी व अ-ना बरीउम्-मिम्मा तुज्रिमून *
    (ऐ रसूल) क्या (कुफ़्फ़ारे मक्का भी) कहते हैं कि क़ुरान को उस (तुम) ने गढ़ लिया है तुम कह दो कि अगर मैने उसको गढ़ा है तो मेरे गुनाह का वबाल मुझ पर होगा और तुम लोग जो (गुनाह करके) मुजरिम होते हो उससे मै बरीउल जि़म्मा (अलग) हूँ।
  16. व ऊहि-य इला नूहिन् अन्नहू लंय्युअ्मि-न मिन् क़ौमि-क इल्ला मन् क़द् आम-न फ़ला तब्तइस् बिमा कानू यफअ़लून
    और नूह के पास ये ‘वही’ भेज दी गई कि जो ईमान ला चुका उनके सिवा अब कोई शख़्स तुम्हारी क़ौम से हरगिज़ ईमान न लाएगा तो तुम ख्वाहमा ख़्वाह उनकी कारस्तानियों का (कुछ) ग़म न खाओ।
  17. वस्-नअिल-फुल्-क बिअअ्युनिना व वह़्यिना व ला तुख़ातिब्-नि फ़िल्लज़ी-न ज़-लमू, इन्नहुम् मुग्रक़ून
    और (बिस्मिल्लाह करके) हमारे रुबरु और हमारे हुक्म से कशती बना डालो और जिन लोगों ने ज़ुल्म किया है उनके बारे में मुझसे सिफारिश न करना क्योंकि ये लोग ज़रुर डुबा दिए जाएँगें।
  18. व यस्-नअुल्फुल्-क, व कुल्लमा मर्र अ़लैहि म लउम्मिन् क़ौमिही सख़िरू मिन्हु, क़ा-ल इन् तस्ख़रू मिन्ना फ़-इन्ना नस्ख़रू मिन्कुम् कमा तस्ख़रून
    और नूह कशती बनाने लगे और जब कभी उनकी क़ौम के सरबर आवुरदा लोग उनके पास से गुज़रते थे तो उनसे मसख़रापन करते नूह (जवाब में) कहते कि अगर इस वक़्त तुम हमसे मसखरापन करते हो तो जिस तरह तुम हम पर हँसते हो हम तुम पर एक वक़्त हँसेगें।
  19. फ़सौ-फ़ तअ्लमू-न, मंय्यअ्तीहि अज़ाबुंय्युख़्ज़ीहि व यहिल्लु अलैहि अ़ज़ाबुम् मुक़ीम
    और तुम्हें अनक़रीब ही मालूम हो जाएगा कि किस पर अज़ाब नाजि़ल होता है कि (दुनिया में) उसे रुसवा कर दे और किस पर (क़यामत में) दाइमी अज़ाब नाजि़ल होता है।
  20. हत्ता इज़ा जा-अ अम्रुना व फ़ारत्तन्नूरू, क़ुल्नह् मिल् फ़ीहा मिन् कुल्लिन् ज़ौजैनिस्-नैनि व अह़्ल-क इल्ला मन् स-ब-क़ अ़लैहिल् क़ौलु व मन् आम-न, व मा आम-न म-अ़हू इल्ला क़लील 
    यहाँ तक कि जब हमारा हुक्म (अज़ाब) आ पहुँचा और तन्नूर से जोश मारने लगा तो हमने हुक्म दिया (ऐ नूह) हर किस्म के जानदारों में से (नर मादा का) जोड़ा (यानि) दो दो ले लो और जिस (की) हलाकत (तबाही) का हुक्म पहले ही हो चुका हो उसके सिवा अपने सब घर वाले और जो लोग ईमान ला चुके उन सबको कश्ती (नाँव) में बैठा लो और उनके साथ ईमान भी थोड़े ही लोग लाए थे।

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