11 सूरह हूद हिंदी में पेज 1

11 सूरह हूद | Surah Hud

सूरह हूद में 123 आयतें हैं। यह सूरह पारा 11, पारा 12 में है। यह सूरह मक्का में नाजिल हुई।

इस सूरह का नाम आयत 50 में पैग़म्बर हज़रत हूद (अलै.) का उल्लेख हुआ है, उसी से इस सूरह का नाम दे दिया है।

सूरह हूद हिंदी में | Surat Hud in Hindi

बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहिम
शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम वाला है
  1. अलिफ्-लाम्-रा, किताबुन् उहकिमत् आयातुहू सुम् – म फुस्सिलत् मिल्लदुन् हकीमिन् ख़बीर
    अलिफ़ लाम रा – ये (क़़ुरान) वह किताब है जिसकी आयते एक वाकिफ़कार हकीम की तरफ से (दलाएल से) खूब मुस्तहकिम (मज़बूत) कर दी गयीं (1)
  2. अल – ला तअ्बुदू इल्लल्ला-ह, इन्ननी लकुम् मिन्हु नज़ीरूंव् – व बशीर
    फिर तफ़सीलदार बयान कर दी गयी हैं ये कि ख़ुदा के सिवा किसी की परसतिश न करो मै तो उसकी तरफ से तुम्हें (अज़ाब से) डराने वाला और (बहिश्त) ख़ुशख़बरी देने वाला (रसूल) हूँ (2)
  3. व अनिस्तग्फिरू रब्बकुम् सुम् – म तूबू इलैहि युमत्तिअ्कुम् मताअ़न् ह-सनन् इला अ-जलिम् मुसम्मंव् व युअ्ति कुल-ल ज़ी फ़ज़्लिन् फ़ज़्लहू, व इन् तवल्लौ फ़ – इन्नी अख़ाफु अ़लैकुम् अ़ज़ा – ब यौमिन् कबीर
    और ये भी कि अपने परवरदिगार से मग़फिरत की दुआ माँगों फिर उसकी बारगाह में (गुनाहों से) तौबा करो वही तुम्हें एक मुकर्रर मुद्दत तक अच्छे नुत्फ के फायदे उठाने देगा और वही हर साहबे बुज़ुर्ग को उसकी बुज़ुर्गी (की दाद) अता फरमाएगा और अगर तुमने (उसके हुक्म से) मुँह मोड़ा तो मुझे तुम्हारे बारे में एक बड़े (ख़ौफनाक) दिन के अज़ाब का डर है (3)
  4. इलल्लाहि मर्जिअुकुम् व हु-व अला कुल्लि शैइन् क़दीर
    (याद रखो) तुम सब को (आखि़रकार) ख़़ुदा ही की तरफ लौटना है और वह हर चीज़ पर (अच्छी तरह) क़ादिर है (4)
  5. अला इन्नहुम् यस्नू-न सुदू – रहुम् लियस्तख्फू मिन्हु, अला ही-न यस्त़ग्शू – न सियाबहुम् यअ्लमु मा युसिर्रू-न व मा युअ्लिनू – न इन्नहू अ़लीमुम् – बिज़ातिस्सुदूर
    (ऐ रसूल) देखो ये कुफ्फ़ार (तुम्हारी अदावत में) अपने सीनों को (गोया) दोहरा किए डालते हैं ताकि ख़़ुदा से (अपनी बातों को) छिपाए रहें (मगर) देखो जब ये लोग अपने कपड़े ख़ूब लपेटते हैं (तब भी तो) ख़़ुदा (उनकी बातों को) जानता है जो छिपाकर करते हैं और खुल्लम खुल्ला करते हैं इसमें शक नहीं कि वह सीनों के भेद तक को खूब जानता है (5)
  6. व मा मिन् दाब्बतिन् फ़िल्अर्जि इल्ला अ़लल्लाहि रिज़्कुहा व यअ्लमु मुस्तक़र्रहा व मुस्तौद – अ़हा, कुल्लुन् फ़ी किताबिम् मुबीन
    और ज़मीन पर चलने वालों में कोई ऐसा नहीं जिसकी रोज़ी ख़ुदा के जि़म्मे न हो और ख़ुदा उनके ठिकाने और (मरने के बाद) उनके सौपे जाने की जगह (क़ब्र) को भी जानता है सब कुछ रौशन किताब (लौहे महफूज़) में मौजूद है (6)
  7. व हुवल्लज़ी ख-लक़स् – समावाति वल्अर्-ज़ फ़ी सित्तति अय्यामिंव् -व का-न अरशुहू अलल्मा-इ लि-यब्लुवकुम् अय्युकुम् अह्सनु अ – मलन्, व ल-इन् कुल-त इन्नकुम् मब्अूसू-न मिम् -बअ्दिल्-मौति ल-यकूलन्नल्लज़ी-न क-फरू इन् हाज़ा इल्ला सिहरूम्-मुबीन
    और वह तो वही (क़ादिरे मुतलक़) है जिसने आसमानों और ज़मीन को 6 दिन में पैदा किया और (उस वक़्त) उसका अर्श (फलक नहुम) पानी पर था (उसने आसमान व ज़मीन) इस ग़रज़ से बनाया ताकि तुम लोगों को आज़माए कि तुममे ज़्यादा अच्छी कार गुज़ारी वाला कौन है और (ऐ रसूल) अगर तुम (उनसे) कहोगे कि मरने के बाद तुम सबके सब दोबारा (क़ब्रों से) उठाए जाओगे तो काफि़र लोग ज़रुर कह बैठेगें कि ये तो बस खुला हुआ जादू है (7)
  8. व ल-इन् अख्खरना अन्हुमुल् -अ़ज़ा-ब इला उम्मतिम् मअ्दूदतिल् – ल यकूलुन् – न मा यह़्बिसुहू, अला यौ – म यअ्तीहिम् लै-स मस्रूफन् अन्हुम् व हा-क बिहिम् मा कानू बिही यस्तह्ज़िऊन *
    और अगर हम गिनती के चन्द रोज़ो तक उन पर अज़ाब करने में देर भी करें तो ये लोग (अपनी शरारत से) बेताम्मुल ज़रुर कहने लगेगें कि (हाए) अज़ाब को कौन सी चीज़ रोक रही है सुन रखो जिस दिन इन पर अज़ाब आ पडे़ तो (फिर) उनके टाले न टलेगा और जिस (अज़ाब) की ये लोग हँसी उड़ाया करते थे वह उनको हर तरह से घेर लेगा (8)
  9. व ल-इन् अज़क़्नल इन्सा-न मिन्ना रह्म – तन् सुम् – म न- ज़अ्नाहा मिन्हु इन्नहू ल-यऊसुन् कफूर
    और अगर हम इन्सान को अपनी रहमत का मज़ा चखायें फिर उसको हम उससे छीन लें तो (उस वक़्त) यक़ीनन बड़ा बेआस और नाशुक्रा हो जाता है (9)
  10. व ल – इन् अज़क़्नाहु नअ्मा-अ बअ्द ज़र्रा – अ मस्सत्हु ल-यकूलन् – न ज़-हबस्सय्यिआतु अ़न्नी इन्नहू ल – फ़रिहुन् फ़खूर
    (और हमारी शिकायत करने लगता है) और अगर हम तकलीफ के बाद जो उसे पहुँचती थी राहत व आराम का जाएक़ा चखाए तो ज़रुर कहने लगता है कि अब तो सब सख़्तियाँ मुझसे दफा हो गई इसमें शक नहीं कि वह बड़ा (जल्दी खुश होने शेख़ी बाज़ है (10)
  11. इल्लल्लज़ी-न स-बरू व अमिलुस्सालिहाति, उलाइ-क लहुम् मग्फि – रतुंव्-व अज्रुन् कबीर
    मगर जिन लोगों ने सब्र किया और अच्छे (अच्छे) काम किए (वह ऐसे नहीं) ये वह लोग हैं जिनके वास्ते (ख़ुदा की) बखशिश और बहुत बड़ी (खरी) मज़दूरी है (11)
  12. फ़- लअल्ल – क तारिकुम् बअ् – ज़ मा यूहा इलै – क व ज़ाइकुम बिही सद्रू – क अंय्यकूलू लौ ला उन्ज़ि – ल अलैहि कन्जुन औ जा – अ म- अ़हू म लकुन्, इन्नमा अन्-त नज़ीरून्, वल्लाहु अला कुल्लि शैइंव् – वकील
    तो जो चीज़ तुम्हारे पास ‘वही’ के ज़रिए से भेजी है उनमें से बाज़ को (सुनाने के वक़्त) शायद तुम फक़त इस ख़्याल से छोड़ देने वाले हो और तुम तंग दिल हो कि मुबादा ये लोग कह बैंठें कि उन पर खज़ाना क्यों नहीं नाजि़ल किया गया या (उनके तसदीक के लिए) उनके साथ कोई फरिशता क्यों न आया तो तुम सिर्फ (अज़ाब से) डराने वाले हो (12)
  13. अम् यकूलूनफ़्तराहु, कुल् फ़अतू बिअ़शरि सु-वरिम् – मिस्लिही मुफ़्त रयातिंव्वद्अू मनिस्त -तअ्तुम् मिन् दूनिल्लाहि इन् कुन्तुम्
    सादिक़ीन
    तुम्हें उनका ख़्याल न करना चाहिए और ख़ुदा हर चीज़ का जि़म्मेदार है क्या ये लोग कहते हैं कि उस शख़्स (तुम) ने इस क़ुरान) को अपनी तरफ से गढ़ लिया है तो तुम (उनसे साफ साफ) कह दो कि अगर तुम (अपने दावे में) सच्चे हो तो (ज़्यादा नहीं) ऐसे दस सूरे अपनी तरफ से गढ़ के ले आओं (13)
  14. फ – इल्लम् यस्तजीबू लकुम् फअ्लमू अन्नमा उन्ज़ि – ल बिअिल्मिल्लाहि व अल्ला इला – ह इल्ला हु-व फ़-हल् अन्तुम् मुस्लिमून
    और ख़ुदा के सिवा जिस जिस के तुम्हे बुलाते बन पड़े मदद के वास्ते बुला लो उस पर अगर वह तुम्हारी न सुने तो समझ ले कि (ये क़़ुरान) सिर्फ ख़़ुदा के इल्म से नाजि़ल किया गया है और ये कि ख़़ुदा के सिवा कोई माबूद नहीं तो क्या तुम अब भी इस्लाम लाओगे (या नहीं) (14)
  15. मन् का-न युरीदुल् हयातद्दुन्या व जीन-तहा नुवफ्फ़ि इलैहिम् अअ्मालहुम् फ़ीहा व हुम् फ़ीहा ला युब्ख़सून
    नेकी करने वालों में से जो शख़्स दुनिया की जि़न्दगी और उसके रिज़क़ का तालिब हो तो हम उन्हें उनकी कारगुज़ारियों का बदला दुनिया ही में पूरा पूरा भर देते हैं और ये लोग दुनिया में घाटे में नहीं रहेगें (15)
  16. उलाइ-कल्लज़ी-न लै-स लहुम् फिल् – आख़िरति इल्लन्नारू व हबि- त मा स – नअू फ़ीहा व बातिलुम्- मा कानू यअ्मलून
    मगर (हाँ) ये वह लोग हैं जिनके लिए आखि़रत में (जहन्नुम की) आग के सिवा कुछ नहीं और जो कुछ दुनिया में उन लोगों ने किया धरा था सब अकारत (बर्बाद) हो गया और जो कुछ ये लोग करते थे सब मलियामेट हो गया (16)
  17. अ – फ – मन् का- न अला बय्यिनतिम् मिर्रब्बिही व यत्लूहु शाहिदुम् मिन्हु व मिन् क़ब्लिही किताबु मूसा इमामंव् – व रह्मतन्, उलाइ – क युअ्मिनू – न बिही, व मंय्यक्फुर बिही मिनल् अह़्ज़ाबि फन्नारू मौअिदुहू फला तकु फी मिर यतिम् मिन्हु, इन्नहुल – हक़्कु मिर्रब्बि – क व लाकिन् – न अक्सरन्नासि ला युअ्मिनून
    तो क्या जो शख़्स अपने परवरदिगार की तरफ से रौशन दलील पर हो और उसके पीछे ही पीछे उनका एक गवाह हो और उसके क़बल मूसा की किताब (तौरैत) जो (लोगों के लिए) पेशवा और रहमत थी (उसकी तसदीक़ करती हो वह बेहतर है या कोई दूसरा) यही लोग सच्चे इमान लाने वाले और तमाम फिरक़ों में से जो शख़्स भी उसका इन्कार करे तो उसका ठिकाना बस आतिश (जहन्नुम) है तो फिर तुम कहीं उसकी तरफ से शक में न पड़े रहना, बेशक ये क़़ुरान तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से बरहक़ है मगर बहुतेरे लोग इमान नही लाते (17)
  18. व मन् अज़्लमु मिम् – मनिफ़्तरा अ़लल्लाहि कज़िबन्, उलाइ – क युअ्रजू – न अ़ला रब्बिहिम् व यकूलुल् – अश्हादु हा – उलाइल्लज़ी न क- ज़बू अ़ला रब्बिहिम् अला लअ्नतुल्लाहि अ़लज़्ज़ालिमीन
    और ये जो शख़्स ख़ुदा पर झूठ मूठ बोहतान बांधे उससे ज़्यादा ज़ालिम कौन होगा ऐसे लोग अपने परवरदिगार के हुज़ूर में पेश किए जाएगें और गवाह इज़हार करेगें कि यही वह लोग हैं जिन्होंने अपने परवरदिगार पर झूट (बोहतान)बांधा था सुन रखो कि ज़ालिमों पर ख़ुदा की फिटकार है (18)
  19. अल्लज़ी – न यसुद्दू – न अन् सबीलिल्लाहि व यब्गूनहा अि – वजन्, व हुम् बिल्आख़िरति हुम् काफ़िरून
    जो ख़़ुदा के रास्ते से लोगों को रोकते हैं और उसमें कज़ी (टेढ़ा पन) निकालना चाहते हैं और यही लोग आखि़रत के भी मुन्किर है (19)
  20. उलाइ – क लम् यकूनू मुअ्जिज़ी-न फ़िल्अर्ज़ि व मा का-न लहुम् मिन् दूनिल्लाहि मिन् औलिया-अ• युज़ा अ़फु लहुमुल अ़ज़ाबु, मा कानू यस्ततीअूनस्सम्-अ वमा कानू युब्सिरून
    ये लोग रुए ज़मीन में न ख़़ुदा को हरा सकते है और न ख़़ुदा के सिवा उनका कोई सरपरस्त होगा उनका अज़ाब दूना कर दिया जाएगा ये लोग (हसद के मारे) न तो (हक़ बात) सुन सकते थे न देख सकते थे (20)

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