14 सूरह इब्राहीम हिंदी में पेज 2

सूरह इब्राहीम हिंदी में | Surat Ibrahim in Hindi

  1. युसब्बितुल्लाहुल्लज़ी – न आमनू बिल्कौलिस् – साबिति फिल्हयातिद्दुन्या व फिल् – आखिरति व युज़िल्लुल्लाहुज़्ज़ालिमी – न व यफ़्अ़लुल्लाहु मा-यशा-उ *
    जो लोग पक्की बात (कलमा तौहीद) पर (सदक़ दिल से इमान ला चुके उनको ख़ुदा दुनिया की जि़न्दगी में भी साबित क़दम रखता है और आखि़रत में भी साबित क़दम रखेगा (और) उन्हें सवाल व जवाब में कोई वक़्त न होगा और सरकशों को ख़ुदा गुमराही में छोड़ देता है और ख़ुदा जो चाहता है करता है (27)
  2. अलम् त- र इलल्लज़ी-न बद्दलू निअ् – मतल्लाहि कुफ्रंव – व अ – हल्लू कौमहुम् दारल् – बवार
    (ऐ रसूल) क्या तुमने उन लोगों के हाल पर ग़ौर नहीं किया जिन्होंने मेरे एहसान के बदले नाषुक्री की एख़्तियार की और अपनी क़ौम को हलाकत के घरवाहे (जहन्नुम) में झोंक दिया (28)
  3. जहन्न – म यस्लौनहा, व बिअ्सल्क़रार
    कि सबके सब जहन्नुम वासिल होगें और वह (क्या) बुरा ठिकाना है (29)
  4. व ज – अलू लिल्लाहि अन्दादल् – लियुज़िल्लू अन् सबीलिही, कुल त-मत्तअू फ़-इन्-न मसीरकुम् इलन्नार
    और वह लोग दूसरो को ख़ुदा का हमसर (बराबर) बनाने लगे ताकि (लोगों को) उसकी राह से बहका दे (ऐ रसूल) तुम कह दो कि (ख़ैर चन्द रोज़ तो) चैन कर लो फिर तो तुम्हें दोज़ख की तरफ लौट कर जाना ही है (30)
  5. कुल लिअिबादियल्लज़ी-न आमनू युकीमुस्सला-त व युन्फ़िकू मिम्मा रज़क्नाहुम् सिर्रंव-व अलानि यतम् मिन् क़ब्लि अंय्यअ्ति -य यौमुल् – ला बैअुन् फ़ीहि व ला खिलाल
    (ऐ रसूल) मेरे वह बन्दे जो इमान ला चुके उन से कह दो कि पाबन्दी से नमाज़ पढ़ा करें और जो कुछ हमने उन्हें रोज़ी दी है उसमें से (ख़ुदा की राह में) छिपाकर या दिखा कर ख़र्च किया करे उस दिन (क़यामत) के आने से पहल जिसमें न तो (ख़रीदो) फरोख़्त ही (काम आएगी) न दोस्ती मोहब्बत काम (आएगी) (31)
  6. अल्लाहुल्लज़ी ख़ – लक़स्समावाति वल्अर्-ज़ व अन्ज़ – ल मिनस्समा-इ मा – अन् फ़-अख्र-ज बिही मिनस्स – मराति – रिज़्कल्लकुम् व सख़्ख़-र लकुमुल्फुल् क लितज्रि – य फ़िल् -बह़रि बि अम्रिही व सख़्ख़-र लकुमुल् – अन्हार
    ख़ुदा ही ऐसा (क़ादिर तवाना) है जिसने सारे आसमान व ज़मीन पैदा कर डाले और आसमान से पानी बरसाया फिर उसके ज़रिए से (मुख़्तलिफ दरख़्तों से) तुम्हारी रोज़ा के वास्ते (तरह तरह) के फल पैदा किए और तुम्हारे वास्ते कश्तियाँ तुम्हारे बस में कर दी-ताकि उसके हुक्म से दरिया में चलें और तुम्हारे वास्ते नदियों को तुम्हारे एख़्तियार में कर दिया (32)
  7. व सख़्ख़-र लकुमुश्शम्-स वल्-क-म-र दाइबैनि व सख़्ख़-र लकुमुल – लै – ल वन्नहार
    और सूरज और चाँद को तुम्हारा ताबेदार बना दिया कि सदा फेरी किया करते हैं और रात और दिन को तुम्हारे क़ब्ज़े में कर दिया कि हमेशा हाजि़र रहते हैं (33)
  8. व आताकुम् मिन् कुल्लि मा स-अल्तुमूहु, व इन् तअुद्दू निअ् – मतल्लाहि ला तुह़्सूहा, इन्नल्-इन्सा-न ल-ज़लूमुन् कफ़्फ़ार *
    (और अपनी ज़रुरत के मुवाफिक) जो कुछ तुमने उससे माँगा उसमें से (तुम्हारी ज़रूरत भर) तुम्हे दिया और तुम ख़ुदा की नेमतो गिनती करना चाहते हो तो गिन नहीं सकते हो तू बड़ा बे इन्साफ नाशुक्रा है (34)
  9. व इज् का-ल इब्राहीमु रब्बिज्अल् हाज़ल-ब-ल-द आमिनंव् – वज्नुब्नी व बनिय्-य अन् नअ्बुदल्-अस्नाम
    और (वह वक़्त याद करो) जब इबराहीम ने (ख़ुदा से) अजऱ् की थी कि परवरदिगार इस शहर (मक्के) को अमन व अमान की जगह बना दे और मुझे और मेरी औलाद को इस बात को बचा ले कि बुतों की परसतिश करने लगे (35)
  10. रब्बि इन्नहुन् – न अज़्लल् – न कसीरम् – मिनन्नासि फ़- मन् तबि- अ़नी फ़ -इन्नहू मिन्नी व मन् अ़सानी फ़इन्न – क गफूरूर रहीम
    ऐ मेरे पालने वाले इसमें शक नहीं कि इन बुतों ने बहुतेरे लोगों को गुमराह बना छोड़ा तो जो शख़्स मेरी पैरवी करे तो वह मुझ से है और जिसने मेरी नाफ़रमानी की (तो तुझे एख़्तेयार है) तू तो बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है) (36)
  11. रब्बना इन्नी अस्कन्तु मिन् जुर्रिय्यती बिवादिन् गैरि जी – जरअिन् अिन् द बैतिकल मुहर्रम रब्बना लियुकीमुस्सला – त फ़ज्अल् अफ्इ – दतम् मिनन्नासि तह़्वी इलैहिम् वर्ज़ुक्हुम् मिनस्स-मराति लअ़ल्लहुम् यश्कुरून
    ऐ हमारे पालने वाले मैने तेरे मुअजि़ज़ (इज़्ज़त वाले) घर (काबे) के पास एक बेखेती के (वीरान) बियाबान (मक्का) में अपनी कुछ औलाद को (लाकर) बसाया है ताकि ऐ हमारे पालने वाले ये लोग बराबर यहाँ नमाज़ पढ़ा करें तो तू कुछ लोगों के दिलों को उनकी तरफ माएल कर (ताकि वह यहाँ आकर आबाद हों) और उन्हें तरह तरह के फलों से रोज़ी अता कर ताकि ये लोग (तेरा) शुक्र करें (37)
  12. रब्बना इन्न-क तअ्लमु मा नुख्फी व मा नुअ्लिनु, व मा यख़्फा अ़लल्लाहि मिन् शैइन् फिल् अर्जि व ला फिस्समा-इ
    ऐ हमारे पालने वाले जो कुछ हम छिपाते हैं और जो कुछ ज़ाहिर करते हैं तू (सबसे) खूब वाकि़फ है और ख़ुदा से तो कोई चीज़ छिपी नहीं (न) ज़मीन में और न आसमान में उस ख़ुदा का (लाख लाख) शुक्र है (38)
  13. अल्हम्दु लिल्लाहिल्लज़ी व-ह-ब ली अलल्-कि-बरि इस्माई – ल व इस्हा-क, इन् – न रब्बी ल- समीअुद्-दुआ इ
    जिसने मुझे बुढ़ापा आने पर इस्माईल व इसहाक़ (दो फरज़न्द) अता किए इसमें तो शक नहीं कि मेरा परवरदिगार दुआ का सुनने वाला है (39)
  14. रब्बिज्अ़ल्नी मुक़ीमस्सलाति व मिन् जुर्रिय्यती रब्बना व तक़ब्बल् दुआ-इ
    (ऐ मेरे पालने वाले मुझे और मेरी औलाद को (भी) नमाज़ का पाबन्द बना दे और ऐ मेरे पालने वाले मेरी दुआ क़ुबूल फरमा (40)
  15. रब्बनग्फिर् ली व लिवालिदय् – य व लिल्मुअ्मिनी न यौ-म यकूमुल्-हिसाब *
    ऐ हमारे पालने वाले जिस दिन (आमाल का) हिसाब होने लगे मुझको और मेरे माँ बाप को और सारे इमानदारों को तू बख़्श दे (41)
  16. व ला तह्स बन्नल्ला – ह ग़ाफ़िलन् अ़म्मा यअ्मलुज़्ज़ालिमू-न, इन्नमा युअख़्ख़िरूहुम् लियौमिन् तश्ख़सु फ़ीहिल् – अब्सार
    और जो कुछ ये कुफ़्फ़ार (कुफ़्फ़ारे मक्का) किया करते हैं उनसे ख़ुदा को ग़ाफिल न समझना (और उन पर फौरन अज़ाब न करने की) सिर्फ ये वजह है कि उस दिन तक की मोहलत देता है जिस दिन लोगों की आँखों के ढेले (ख़ौफ के मारे) पथरा जाएँगें (42)
  17. मुस्तिईन मुक्निई रूऊसिहिम् ला यरतद्दु इलैहिम् तरफुहुम् व अफ्इ – दतुहुम् हवा-अ
    (और अपने अपने सर उठाए भागे चले जा रहे हैं (टकटकी बँधी है कि) उनकी तरफ उनकी नज़र नहीं लौटती (जिधर देख रहे हैं) और उनके दिल हवा हवा हो रहे हैं (43)
  18. व अन्ज़िरिन्ना-स यौ-म यअ्तीहिमुल अ़ज़ाबु फ़- यकूलुल्लज़ी – न ज़-लमू रब्बना अख़्ख़िरना इला अ-जलिन् क़रीबिन् नुजिब् दअ्व-त-क व नत्तबिअिर्रूसु-ल, अ-व-लम् तकूनू अक़्सम्तुम् मिन् क़ब्लु मा लकुम् मिन् ज़वाल
    और (ऐ रसूल) लोगों को उस दिन से डराओ (जिस दिन) उन पर अज़ाब नाजि़ल होगा तो जिन लोगों ने नाफरमानी की थी (गिड़गिड़ा कर) अज्र करेगें कि ऐ हमारे पालने वाले हम को थोड़ी सी मोहलत और दे दे (अबकी बार) हम तेरे बुलाने पर ज़रुर उठ खड़े होगें और सब रसूलों की पैरवी करेगें (तो उनको जवाब मिलेगा) क्या तुम वह लोग नहीं हो जो उसके पहले (उस पर) क़समें खाया करते थे कि तुम को किसी तरह का ज़व्वाल (नुक्सान) नहीं (44)
  19. व सकन्तुम् फ़ी मसाकिनिल्लज़ी-न ज़-लमू अन्फु सहुम् व तबय्य – न लकुम् कै-फ़ फ़अ़ल्ना बिहिम् व ज़रब्ना लकुमुल् – अम्साल
    (और क्या तुम वह लोग नहीं कि) जिन लोगों ने (हमारी नाफ़रमानी करके) आप अपने ऊपर जुल्म किया उन्हीं के घरों में तुम भी रहे हालाँकि तुम पर ये भी ज़ाहिर हो चुका था कि हमने उनके साथ क्या (बरताओ) किया और हमने (तुम्हारे समझाने के वास्ते) मसले भी बयान कर दी थीं (45)
  20. व कद् म- करू मक्रुहुम् व अिन्दल्लाहि मक्रुहुम्, व इन् का – न मक्रुहुम् लि – तजू – ल मिन्हुल् – जिबाल
    और वह लोग अपनी चालें चलते हैं (और कभी बाज़ न आए) हालाँकि उनकी सब हालतें खुदा की नज़र में थी और अगरचे उनकी मक्कारियाँ (उस गज़ब की) थीं कि उन से पहाड़ (अपनी जगह से) हट जाये (46)
  21. फला तह़्स – बन्नल्ला – ह मुख़्लि – फ़ वअ्दिही रूसु – लहू, इन्नल्ला – ह अ़ज़ीज़ुन जुन्तिक़ाम
    तो तुम ये ख़्याल (भी) न करना कि ख़ुदा अपने रसूलों से खि़लाफ वायदा करेगा इसमें शक नहीं कि ख़ुदा (सबसे) ज़बरदस्त बदला लेने वाला है (47)
  22. यौ-म तुबद्दलुल् – अर्जु गैरल् – अर्ज़ि वस्समावातु व ब-रजू लिल्लाहिल वाहिदिल् – कह्हार
    (मगर कब) जिस दिन ये ज़मीन बदलकर दूसरी ज़मीन कर दी जाएगी और (इसी तरह) आसमान (भी बदल दिए जाएँगें) और सब लोग यकता क़हार (ज़बरदस्त) ख़ुदा के रुबरु (अपनी अपनी जगह से) निकल खड़े होगें (48)
  23. व तरल्मुज्रिमी -न यौ-मइज़िम् मुक़र्रनी-न फ़िल् – अस्फ़ाद
    और तुम उस दिन गुनेहगारों को देखोगे कि ज़ज़ीरों मे जकड़े हुए होगें (49)
  24. सराबीलुहुम् मिन् कतिरानिंव् – व तग्शा वुजू- हहुमुन्नार
    उनके (बदन के) कपड़े क़तरान (तारकोल) के होगे और उनके चेहरों को आग (हर तरफ से) ढाके होगी (50)
  25. लियज्ज़ियल्लाहु कुल् – ल नफ्सिम् मा – क – सबत्, इन्नल्ला – ह सरीअुल-हिसाब
    ताकि ख़ुदा हर शख़्स को उसके किए का बदला दे (अच्छा तो अच्छा बुरा तो बुरा) बेशक ख़ुदा बहुत जल्द हिसाब लेने वाला है (51)
  26. हाज़ा बलागुल् – लिन्नासि व लियुन्ज़रू बिही व लि – यअ्लमू अन्नमा हु-व इलाहुंव्वाहिदुव् – व लि – यज़्ज़क्क – र उलुल अल्बाब *
    ये (क़ुरान) लोगों के लिए एक कि़स्म की इत्तेला (जानकारी) है ताकि लोग उसके ज़रिये से (अज़ाबे ख़़ुदा से) डराए जाए और ताकि ये भी ये यक़ीन जान लें कि बस वही (ख़ुदा) एक माबूद है और ताकि जो लोग अक़्ल वाले हैं नसीहत व इबरत हासिल करें (52)

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