18 सूरा अल कहफ़ हिंदी में पेज 1

18 सूरा अल कहफ़ | Surah Al-Kahf

सूरह कहफ कुरान की एक बड़ी अजमत और फ़जीलत वाली सूरह है। यह कुरान मजीद के पारा नंबर 1516 में मौजूद 18वीं सूरह है। इसमें कुल 110 आयतें हैं। 

इस सूरह को ज्यादातर लोग जुम्मा के दिन पढ़ते हैं। जुम्मे की दिन इस सूरह को पढ़ने से इसकी फ़जीलत कई गुना बढ़ जाती है।

सूरा अल कहफ़ हिंदी में | Surah Al-Kahf in Hindi

बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहिम
शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम वाला है
  1. अल्हम्दु लिल्लाहिल्लज़ी अन्ज़-ल अला अब्दिहिल्-किता-ब व लम् यज्अ़ल्-लहू अि-वजा
    हर तरह की तारीफ अल्लाह ही को (सज़ावार) है जिसने अपने बन्दे (मोहम्मद) पर किताब (क़ुरान) नाज़िल की और उसमें किसी तरह की कज़ी (ख़राबी) न रखी।
  2. क़य्यिमल् लियुन्ज़ि-र बअ्सन् शदीदम्-मिल्लदुन्हु व युबश्शिरल् मुअ्मिनीनल्लज़ी-न यअ्मलू नस्सालिहाति अन्-न लहुम् अज्रन् ह-सना
    बल्कि हर तरह से सधा ताकि जो सख्त अज़ाब अल्लाह की बारगाह से काफिरों पर नाज़िल होने वाला है उससे लोगों को डराए और जिन मोमिनीन ने अच्छे अच्छे काम किए हैं उनको इस बात की खुशख़बरी दे की उनके लिए बहुत अच्छा अज्र (व सवाब) मौजूद है।
  3. माकिसी-न फीहि अ-बदा
    जिसमें वह हमेशा (बाइत्मेनान) तमाम रहेगें।
  4. व युन्ज़िरल्लज़ी-न क़ालुत्त-ख़ज़ल्लाहु व-लदा
    और जो लोग इसके क़ाएल हैं कि अल्लाह औलाद रखता है उनको (अज़ाब से) डराओ।
  5. मा लहुम् बिही मिन् अिल्मिंव्-व ला लि-आबाइहिम् , कबुरत् कलि-मतन् तख़्रुजु मिन् अफ्वाहिहिम् , इंय्यक़ूलू-न इल्ला कज़िबा
    न तो उन्हीं को उसकी कुछ खबर है और न उनके बाप दादाओं ही को थी (ये) बड़ी सख्त बात है जो उनके मुँह से निकलती है ये लोग झूठ मूठ के सिवा (कुछ और) बोलते ही नहीं।
  6. फ़-लअ़ल्ल-क बाख़िअुन्-नफ़्स-क अ़ला आसारिहिम् इल्लम् युअ्मिनू बिहाज़ल्-हदीसि अ-सफ़ा
    तो (ऐ रसूल) अगर ये लोग इस बात को न माने तो यायद तुम मारे अफसोस के उनके पीछे अपनी जान दे डालोगे।
  7. इन्ना जअ़ल्ना मा अ़लल्-अर्ज़ि ज़ी-नतल्-लहा लिनब्लु-वहुम् अय्युहुम् अह्सनु अ़-मला
    और जो कुछ रुए ज़मीन पर है हमने उसकी ज़ीनत (रौनक़) क़रार दी ताकि हम लोगों का इम्तिहान लें कि उनमें से कौन सबसे अच्छा चलन का है।
  8. व इन्ना लजाअ़िलू-न मा अ़लैहा सअ़ीदन् जुरूज़ा
    और (फिर) हम एक न एक दिन जो कुछ भी इस पर है (सबको मिटा करके) चटियल मैदान बना देगें।
  9. अम् हसिब्-त अन्-न अस्हाबल्-कह्फ़ि वर्रक़ीमि कानू मिन् आयातिना अ़-जबा
    (ऐ रसूल) क्या तुम ये ख्याल करते हो कि असहाब कहफ व रक़ीम (खोह) और (तख्ती वाले) हमारी (क़ुदरत की) निशानियों में से एक अजीब (निशानी) थे।
  10. इज़् अवल्-फ़ित्यतु इलल्-कह्फि फ़क़ालू रब्बना आतिना मिल्लदुन्-क रह्-म-तंव्-व हय्यिअ् लना मिन् अम्रिना र-शदा
    कि एक बारगी कुछ जवान ग़ार में आ पहुँचे और दुआ की-ऐ हमारे परवरदिगार हमें अपनी बारगाह से रहमत अता फरमा-और हमारे वास्ते हमारे काम में कामयाबी इनायत कर।
  1. फ़-ज़रब्-ना अ़ला आज़ानिहिम् फ़िल्-कह्फि सिनी-न अ़-ददा
    तब हमने कई बरस तक ग़ार में उनके कानों पर पर्दे डाल दिए (उन्हें सुला दिया)। 
  2. सुम्-म बअ़स्-ना-हुम् लि-नअ्ल-म अय्युल्-हिज़्बैनि अह्सा लिमा लबिसू अ-मदा *
    फिर हमने उन्हें चौकाया ताकि हम देखें कि दो गिरोहों में से किसी को (ग़ार में) ठहरने की मुद्दत खूब याद है।
  3. नह़्नु नक़ुस्सु अ़लै-क न-ब-अहुम् बिल्हक़्क़ि , इन्नहुम् फ़ित्यतुन् आमनू बिरब्बिहिम् व ज़िद्-ना-हुम् हुदा
    (ऐ रसूल) अब हम उनका हाल तुमसे बिल्कुल ठीक तहक़ीक़ातन (यक़ीन के साथ) बयान करते हैं वह चन्द जवान थे कि अपने (सच्चे) परवरदिगार पर ईमान लाए थे और हम ने उनकी सोच समझ और ज्यादा कर दी है।
  4. व रबत्-ना अ़ला क़ुलूबिहिम् इज़् क़ामू फ़क़ालू रब्बुना रब्बुस्समावाति वल्अर्ज़ि लन्-नद्अु-व मिन् दूनिही इलाहल्-ल क़द् क़ुल्ना इज़न् श-तता
    और हमने उनकी दिलों पर (सब्र व इस्तेक़लाल की) गिराह लगा दी (कि जब दक़ियानूस बादशाह ने कुफ्र पर मजबूर किया) तो उठ खड़े हुए (और बे ताम्मुल (खटके)) कहने लगे हमारा परवरदिगार तो बस सारे आसमान व ज़मीन का मालिक है हम तो उसके सिवा किसी माबूद की हरगिज़ इबादत न करेगें।
  5. हाउला-इ क़ौमुनत्त-ख़ज़ू मिन् दूनिही आलि-हतन् , लौ ला यअतू-न अ़लैहिम् बिसुल्तानिम्-बय्यिनिन् , फ़-मन् अज़्लमु मिम्-मनिफ़्तरा अ़लल्लाहि कज़िबा
    अगर हम ऐसा करे तो यक़ीनन हमने अक़ल से दूर की बात कही (अफसोस एक) ये हमारी क़ौम के लोग हैं कि जिन्होनें अल्लाह को छोड़कर (दूसरे) माबूद बनाए हैं (फिर) ये लोग उनके (माबूद होने) की कोई सरीही (खुली) दलील क्यों नहीं पेश करते और जो शख़्श अल्लाह पर झूट बोहतान बाँधे उससे ज्यादा ज़ालिम और कौन होगा।
  6. व इज़िअ्-तज़ल्तुमूहुम् व मा यअ्बुदू-न इल्लल्ला-ह फ़अ्वू इलल्-कह्फ़ि यन्शुर् लकुम् रब्बुकुम् मिर्रह़्मतिही व युहय्यिअ् लकुम् मिन् अम्रिकुम् मिर् फ़क़ा
    (फिर बाहम कहने लगे कि) जब तुमने उन लोगों से और अल्लाह के सिवा जिन माबूदों की ये लोग परसतिश करते हैं उनसे किनारा कशी करली तो चलो (फलॉ) ग़ार में जा बैठो और तुम्हारा परवरदिगार अपनी रहमत तुम पर वसीह कर देगा और तुम्हारा काम में तुम्हारे लिए आसानी के सामान मुहय्या करेगा।
  7. व-तरश्शम्-स इज़ा त-लअ़त्तज़ा-वरू अ़न् कह्फ़िहिम् ज़ातल्-यमीनि व इज़ा ग़-रबत् तक़्रिज़ुहुम् ज़ातश्शिमालि व हुम् फी फ़ज़्वतिम् मिन्हु, ज़ालि-क मिन् आयातिल्लाहि , मंय्यह्दिल्लाहु फ़हुवल्मुह्तदि, व मंय्युज़्लिल फ़-लन् तजि-द लहू वलिय्यम्-मुर्शिदा *
    (ग़रज़ ये ठान कर ग़ार में जा पहुँचे) कि जब सूरज निकलता है तो देखेगा कि वह उनके ग़ार से दाहिनी तरफ झुक कर निकलता है और जब ग़ुरुब (डुबता) होता है तो उनसे बायीं तरफ कतरा जाता है और वह लोग (मजे से) ग़ार के अन्दर एक वसीइ (बड़ी) जगह में (लेटे) हैं ये अल्लाह (की कुदरत) की निशानियों में से (एक निशानी) है जिसको हिदायत करे वही हिदायत याफ्ता है और जिस को गुमराह करे तो फिर उसका कोई सरपरस्त रहनुमा हरगिज़ न पाओगे।
  8. व तह्सबुहुम् ऐक़ाजंव्-व हुम् रूक़ूदुंव-व नुक़ल्लिबुहुम् जा़तल-यमीनि व ज़ातश्शिमालि, व कल्बुहुम् बासितुन् ज़िराअै़हि बिल्-वसीदि, लवित्त-लअ्-त अ़लैहिम् लवल्लै-त मिन्हुम् फ़िरारंव्-व लमुलिअ्-त मिन्हुम् रूअ्बा
    तू उनको समझेगा कि वह जागते हैं हालॉकि वह (गहरी नींद में) सो रहे हैं और हम कभी दाहिनी तरफ और कभी बायीं तरफ उनकी करवट बदलवा देते हैं और उनका कुत्ताा अपने आगे के दोनो पाँव फैलाए चौखट पर डटा बैठा है (उनकी ये हालत है कि) अगर कहीं तू उनको झाक कर देखे तो उलटे पाँव ज़रुर भाग खड़े हो और तेरे दिल में दहशत समा जाए।
  9. व कज़ालि-क बअ़स्-ना हुम् लि-य-तसाअलू बैनहुम्, क़ा-ल क़ाइलुम्-मिन्हुम् कम् लबिस्तुम, क़ालू लबिस्-ना यौमन् औ बअ्-ज़ यौमिन्, का़लू रब्बुकुम् अअ्लमु बिमा लबिस्तुम्, फ़ब्अ़सू अ-ह-दकुम् बिवरिक़िकुम् हाज़िही इलल्-मदीनति फ़ल्यन्ज़ुर् अय्युहा अज़्का तआमन् फल्यअ्तिकुम् बिरिज़्क़िम्-मिन्हु वल्य-त  लत्तफ् व ला युश्अ़िरन्-न बिकुम् अ-हदा
    और (जिस तरह अपनी कुदरत से उनको सुलाया) उसी तरह (अपनी कुदरत से) उनको (जगा) उठाया ताकि आपस में कुछ पूछ गछ करें (ग़रज़) उनमें एक बोलने वाला बोल उठा कि (भई आख़िर इस ग़ार में) तुम कितनी मुद्दत ठहरे कहने लगे (अरे ठहरे क्या बस) एक दिन से भी कम उसके बाद कहने लगे कि जितनी देर तुम ग़ार में ठहरे उसको तुम्हारे परवरदिगार ही (कुछ तुम से) बेहतर जानता है (अच्छा) तो अब अपने में से किसी को अपना ये रुपया देकर शहर की तरफ भेजो तो वह (जाकर) देखभाल ले कि वहाँ कौन सा खाना बहुत अच्छा है फिर उसमें से (ज़रुरत भर) खाना तुम्हारे वास्ते ले आए और उसे चाहिए कि वह आहिस्ता चुपके से आ जाए और किसी को तुम्हारी ख़बर न होने दे।
  10. इन्नहुम् इंय्यज़्हरू अ़लैकुम् यर्जुमूकुम् औ युअ़ीदूकुम् फ़ी मिल्लतिहिम् व लन् तुफ़लिहू इज़न् अ-बदा
    इसमें शक़ नहीं कि अगर उन लोगों को तुम्हारी इत्तेलाअ हो गई तो बस फिर तुम को संगसार ही कर देंगें या फिर तुम को अपने दीन की तरफ फेर कर ले जाएँगे और अगर ऐसा हुआ तो फिर तुम कभी कामयाब न होगे।

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