17 सूरह बनी इसराईल हिंदी में पेज 1

17 सूरह बनी इसराईल | सूरह अल इस्रा | Surah Al-Isra

सूरह बनी इसराईल (सूरह अल इस्रा) में 111 आयतें हैं। यह सूरह पारा 15 में है। यह सूरह मक्का में नाजिल हुई।

सूरह बनी इसराईल हिंदी में | Surah Al-Isra in Hindi

पारा 15 शुरू

बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहिम
शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम वाला है
  1. सुब्हानल्लज़ी अस्रा बिअ़ब्दिही लैलम्-मिनल्- मस्जिदिल्-हरामि इलल् मस्जिदिल्-अक़्सल्लज़ी बारक्ना हौलहू लिनुरियहू मिन् आयातिना, इन्नहू हुवस्समी अुल्-बसीर
    वह अल्लाह (हर ऐब से) पाक व पाकीज़ा है जिसने अपने बन्दों को रातों रात मस्जिदुल हराम (ख़ान ऐ काबा) से मस्जिदुल अक़सा (आसमानी मस्जिद) तक की सैर कराई जिसके चैगिर्द हमने हर किस्म की बरकत मुहय्या कर रखी हैं ताकि हम उसको (अपनी कुदरत की) निशानियाँ दिखाए इसमें शक नहीं कि (वह सब कुछ) सुनता (और) देखता है।
  2. व आतैना मूसल्-किता-ब व जअ़ल्नाहु हुदल् लि-बनी इस्राई-ल अल्ला तत्तख़िज़ू मिन् दूनी वकीला
    और हमने मूसा को किताब (तौरैत) अता की और उस को बनी इसराईल की रहनुमा क़रार दिया (और हुक्म दे दिया) कि ऐ उन लोगों की औलाद जिन्हें हम ने नूह के साथ कश्ती में सवार किया था।
  3. ज़ुर्रिय्य-त मन् हमल्ना म-अ़ नूहिन् इन्नहू का-न अब्दन् शकूरा
    मेरे सिवा किसी को अपना कारसाज़ न बनाना बेशक नूह बड़ा शुक्र गुज़ार बन्दा था।
  4. व क़ज़ैना इला बनी इस्राईल फिल्-किताबि लतुफ्सिदुन्-न फिल्अर्ज़ि मर्रतैनि व ल-तअ्लुन्-न अलुव्वन् कबीरा
    और हमने बनी इसराईल से इसी किताब (तौरैत) में साफ साफ बयान कर दिया था कि तुम लोग रुए ज़मीन पर दो मरतबा ज़रुर फसाद फैलाओगे और बड़ी सरकशी करोगे।
  5. फ़-इज़ा जा-अ वअ्दु ऊलाहुमा बअ़स्-ना अ़लैकुम् अिबादल्-लना उली बअ्सिन् शदीदिन् फ़जासू ख़िलालद् दियारि, व का-न वअ्दम्-मफ़अूला
    फिर जब उन दो फसादों में पहले का वक़्त आ पहुँचा तो हमने तुम पर कुछ अपने बन्दों (नजतुलनस्र) और उसकी फौज को मुसल्लत {ग़ालिब} कर दिया जो बड़े सख़्त लड़ने वाले थे तो वह लोग तुम्हारे घरों के अन्दर घुसे (और खूब क़त्ल व ग़ारत किया) और अल्लाह के अज़ाब का वायदा जो पूरा होकर रहा।
  6. सुम्-म रदद्-ना लकुमुल्कर्र-त अलैहिम् व अम्दद्-ना कुम् बिअम्वालिंव्-व बनी-न व जअ़ल्नाकुम् अक्स-र नफ़ीरा
    फिर हमने तुमको दोबारा उन पर ग़लबा देकर तुम्हारे दिन फेरे और माल से और बेटों से तुम्हारी मदद की और तुमको बड़े जत्थे वाला बना दिया।
  7. इन् अह्सन्तुम् अह्सन्तुम् लिअन्फुसिकुम, व इन् अ- सअ्तुम् फ़-लहा, फ़-इज़ा जा-अ वअ्दुल्-आख़िरति लि-यसूऊ वुजू- हकुम् व लियद्ख़ुलुल्-मस्जि-द कमा द-ख़लूहु अव्व-ल मर्रतिंव्-व लियुतब्बिरू मा अ़लौ तत्बीरा
    अगर तुम अच्छे काम करोगे तो अपने फायदे के लिए अच्छे काम करोगे और अगर तुम बुरे काम करोगे तो (भी) अपने ही लिए फिर जब दूसरे वक़्त का वायदा आ पहुँचा तो (हमने तैतूस रोगी को तुम पर मुसल्लत किया) ताकि वह लोग (मारते मारते) तुम्हारे चेहरे बिगाड़ दें (कि पहचाने न जाओ) और जिस तरह पहली दफा मस्जिद बैतुल मुक़द्दस में घुस गये थे उसी तरह फिर घुस पड़ें और जिस चीज़ पर क़ाबू पाए खूब अच्छी तरह बरबाद कर दी।
  8. अ़सा रब्बुकुम् अंय्यर्ह-मकुम् व इन् अुत्तुम् उद्-ना • व जअ़ल्ना जहन्न-म लिल्काफ़िरी-न हसीरा
    (अब भी अगर तुम चैन से रहो तो) उम्मीद है कि तुम्हारा परवरदिगार तुम पर तरस खाए और अगर (कहीं) वही शरारत करोगे तो हम भी फिर पकड़ेंगे और हमने तो काफिरों के लिए जहन्नुम को क़ैद खाना बना ही रखा है।
  9. इन्-न हाज़ल्क़ुरआ-न यह्दी लिल्लती हि-य अक़्वमु व युबश्शिरूल्-मुअ्मिनीनल्लज़ी-न यअ्मलूनस्सालिहाति अन्-न लहुम् अज्रन् कबीरा
    इसमें शक नहीं कि ये क़ुरान उस राह की हिदायत करता है जो सबसे ज़्यादा सीधी है और जो इमानदार अच्छे अच्छे काम करते हैं उनको ये खुशख़बरी देता है कि उनके लिए बहुत बड़ा अज्र और सवाब (मौजूद) है।
  10. व अन्नल्लज़ी-न ला युअ्मिनू-न बिल्आख़िरति अअ्तद्-ना लहुम् अ़ज़ाबन अलीमा*
    और ये भी कि बेशक जो लोग आखि़रत पर इमान नहीं रखते हैं उनके लिए हमने दर्दनाक अज़ाब तैयार कर रखा है।
  11. व यद्अुल-इन्सानु बिश्शर्रि दुआ़-अहू बिल्ख़ैरि, व कानल्-इन्सानु अ़जूला
    और आदमी कभी (आजिज़ होकर अपने हक़ में) बुराई (अज़ाब वग़ैरह की दुआ) इस तरह माँगता है जिस तरह अपने लिए भलाई की दुआ करता है और आदमी तो बड़ा जल्दबाज़ है।
  12. व जअ़ल्नल्लै-ल वन्नहा-र आयतैनि फ़-महौना आयतल्लैलि व जअ़ल्ना आयतन्नहारि मुब्सि-रतल्- लितब्तग़ू फ़ज़्लम् मिर्रब्बिकुम् व लितअ्-लमू अ़-ददस्सिनी-न वल्-हिसा-ब, व कुल्-ल शैइन् फ़स्सल्नाहु तफ़्सीला
    और हमने रात और दिन को (अपनी क़ुदरत की) दो निशानियाँ क़रार दिया फिर हमने रात की निशानी (चाँद) को धुँधला बनाया और दिन की निशानी (सूरज) को रौशन बनाया (कि सब चीज़े दिखाई दें) ताकि तुम लोग अपने परवरदिगार का फज़ल ढूँढते फिरों और ताकि तुम बरसों की गिनती और हिसाब को जानो (बूझों) और हमने हर चीज़ को खूब अच्छी तरह तफसील से बयान कर दिया है।
  13. व कुल्-ल इन्सानिन् अल्ज़म्-नाहु ताइ-रहू फी अुनुक़िही, व नुख़्रिजु लहू यौमल्-क़ियामति किताबंय्-यल्क़ाहु मन्शूरा
    और हमने हर आदमी के नामए अमल को उसके गले का हार बना दिया है (कि उसकी किस्मत उसके साथ रहे) और क़यामत के दिन हम उसे उसके सामने निकल के रख देगें कि वह उसको एक खुली हुयी किताब अपने रुबरु पाएगा।
  14. इक़रअ् किता-ब क, कफ़ा बिनफ्सिकल्-यौ-म अ़लै-क हसीबा
    और हम उससे कहेंगें कि अपना नामए अमल पढ़ ले और आज अपने हिसाब के लिए तू आप ही काफी हैं।
  15. मनिह्तदा फ़-इन्नमा यह्तदी लिनफ़्सिही व मन् ज़ल-ल फ़-इन्नमा यज़िल्लु अ़लैहा, व ला तज़िरू वाज़ि-रतुंव् -विज़्-र उख्रा, व मा कुन्ना मुअ़ज़्ज़िबी-न हत्ता नब्अ़ स रसूला
    जो शख़्स रुबरु होता है तो बस अपने फायदे के लिए शह पर आता है और जो शख़्स गुमराह होता है तो उसने भटक कर अपना आप बिगाड़ा और कोई शख़्स किसी दूसरे (के गुनाह) का बोझ अपने सर नहीं लेगा और हम तो जब तक रसूल को भेजकर तमाम हुज्जत न कर लें किसी पर अज़ाब नहीं किया करते।
  16. व इज़ा अरद्-ना अन्नुह़्लि-क क़र्यतन् अमर्ना मुत्-रफ़ीहा फ़-फ़-सक़ू फ़ीहा फ़-हक़् क़ अ़लैहल्क़ौ लु फ़-दम्मरनाहा तदमीरा
    और हमको जब किसी बस्ती का वीरान करना मंज़ूर होता है तो हम वहाँ के खुशहालों को (इताअत का) हुक्म देते हैं तो वह लोग उसमें नाफरमानियाँ करने लगे तब वह बस्ती अज़ाब की मुस्तहक़ होगी उस वक़्त हमने उसे अच्छी तरह तबाह व बरबाद कर दिया।
  17. व कम् अह़्लक्ना मिनल्क़ुरूनि मिम्-बअ्दि नूहिन्, व कफ़ा बिरब्बि-क बिज़ुनूबि अिबादिही ख़बीरम्-बसीरा
    और नूह के बाद से (उस वक़्त तक) हमने कितनी उम्मतों को हलाक कर मारा और (ऐ रसूल) तुम्हारा परवरदिगार अपने बन्दों के गुनाहों को जानने और देखने के लिए काफी है।
  18. मन् का-न युरीदुल-आ़जि-ल त अ़ज्जल्ना लहू फ़ीहा मा नशा-उ लिमन् नुरीदु सुम्म जअ़ल्ना लहू जहन्न-म, यस्लाहा मज़्मूमम् मद्हूरा
    (और गवाह शाहिद की ज़रुरत नहीं) और जो शख़्स दुनिया का ख़्वाहाँ हो तो हम जिसे चाहते और जो चाहते हैं उसी दुनिया में सिरदस्त {फ़ौरन} उसे अता करते हैं (मगर) फिर हमने उसके लिए तो जहन्नुम ठहरा ही रखा है कि वह उसमें बुरी हालत से रौंदा हुआ दाखि़ल होगा।
  19. व मन् अरादल्-आख़िर-त व सआ़ लहा सअ्-यहा व हु-व मुअ्मिनुन् फ़-उलाइ-क का-न सअ्युहुम् मश्कूरा
    और जो शख़्स आखि़र का मुतमइनी हो और उसके लिए खूब जैसी चाहिए कोशिश भी की और वह इमानदार भी है तो यही वह लोग हैं जिनकी कोशिश मक़बूल होगी।
  20. कुल्लन-नुमिद्दु हाउला-इ व हाउला-इ मिन् अ़ता-इ रब्बि-क, व मा का-न अ़ता-उ रब्बि-क मह्ज़ूरा 
    (ऐ रसूल!) उनको (ग़रज़ सबको) हम ही तुम्हारे परवरदिगार की (अपनी) बख़्शिश से मदद देते हैं और तुम्हारे परवरदिगार की बख़्शिश तो (आम है) किसी पर बन्द नहीं।
  21. उन्ज़ुर् कै-फ़ फ़ज़्ज़ल्ना बअ्-ज़हुम् अ़ला बअ्ज़िन्, व लल्आख़िरतु अक्बरू द-रजातिंव्-व अक्बरू तफ़्ज़ीला
    (ऐ रसूल!) ज़रा देखो तो कि हमने बाज़ लोगों को बाज़ पर कैसी फज़ीलत दी है और आखि़रत के दर्जे तो यक़ीनन (यहाँ से) कहीं बढ़के है और वहाँ की फज़ीलत भी तो कैसी बढ़ कर है।
  22. ला तज्अ़ल् मअ़ल्लाहि इलाहन् आ-ख-र फ़-तक़अु-द मज़्मूमम्-मख़्ज़ूला *
    और देखो कहीं अल्लाह के साथ दूसरे को (उसका) शरीक न बनाना वरना तुम बुरे हाल में ज़लील रुसवा बैठै के बैठें रह जाओगे।

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