18 सूरा अल कहफ़ हिंदी में पेज 2

सूरा अल कहफ़ हिंदी में | Surah Al-Kahf in Hindi

  1. व कज़ालि – क अअ्सरना अ़लैहिम् लि – यअ्लमू अन् – न वअ्दल्लाहि हक़्कुंव – व अन्नस्साअ़ – त ला रै – ब फ़ीहा , इज् य – तना – ज़अू – न बैनहुम् अम्रहुम् फ़क़ालुब्नू अलैहिम् बुन्यानन् , रब्बुहुम् अअ्लमु बिहिम् , कालल्लज़ी – न ग – लबू अ़ला अम्रिहिम् ल – नत्तख़िज़न् – न अ़लैहिम् मस्जिदा
    और हमने यूँ उनकी क़ौम के लोगों को उनकी हालत पर इत्तेलाअ (ख़बर) कराई ताकि वह लोग देख लें कि ख़ुदा को वायदा यक़ीनन सच्चा है और ये (भी समझ लें) कि क़यामत (के आने) में कुछ भी शुबहा नहीं अब (इत्तिलाआ होने के बाद) उनके बारे में लोग बाहम झगड़ने लगे तो कुछ लोगों ने कहा कि उनके (ग़ार) पर (बतौर यादगार) कोई इमारत बना दो उनका परवरदिगार तो उनके हाल से खूब वाक़िफ है ही और उनके बारे में जिन (मोमिनीन) की राए ग़ालिब रही उन्होंने कहा कि हम तो उन (के ग़ार) पर एक मस्जिद बनाएँगें
  2. स – यकूलू – न सला – सतुर् – राबिअुहुम् कल्बुहुम् व यकूलू – न ख़म्सतुन् सादिसुहुम् कल्बुहुम् रज्मम् – बिल्गै़बि व यकूलू – न सब्अ़तुंव – व सामिनुहुम् कल्बुहुम् , कुर्रब्बी अअ्लमु बिअिद्दतिहिम् मा यअ्लमुहुम् इल्ला क़लीलुन् , फ़ला तुमारि फ़ीहिम् इल्ला मिराअन् ज़ाहिरंव् – व ला तस्तफ्ति फ़ीहिम् मिन्हुम् अ – हदा *
    क़रीब है कि लोग (नुसैरे नज़रान) कहेगें कि वह तीन आदमी थे चौथा उनका कुत्ताा (क़तमीर) है और कुछ लोग (आक़िब वग़ैरह) कहते हैं कि वह पाँच आदमी थे छठा उनका कुत्ताा है (ये सब) ग़ैब में अटकल लगाते हैं और कुछ लोग कहते हैं कि सात आदमी हैं और आठवाँ उनका कुत्ताा है (ऐ रसूल) तुम कह दो की उनका सुमार मेरा परवरदिगार ही ख़ब जानता है उन (की गिनती) के थोडे ही लोग जानते हैं तो (ऐ रसूल) तुम (उन लोगों से) असहाब कहफ के बारे में सरसरी गुफ्तगू के सिवा (ज्यादा) न झगड़ों और उनके बारे में उन लोगों से किसी से कुछ पूछ गछ नहीं
  3. व ला तकूलन् – न लिशैइन् इन्नी फ़ाअिलुन् ज़ालि – क ग़दा
    और किसी काम की निस्बत न कहा करो कि मै इसको कल करुँगा
  4. इल्ला अंय्यशा – अल्लाहु , वज्कुर – रब्ब – क इज़ा नसी – त व कुल अ़सा अंय्यह्दि – यनि रब्बी लिअक्र – ब मिन् हाज़ा र – शदा
    मगर इन्शा अल्लाह कह कर और अगर (इन्शा अल्लाह कहना) भूल जाओ तो (जब याद आए) अपने परवरदिगार को याद कर लो (इन्शा अल्लाह कह लो) और कहो कि उम्मीद है कि मेरा परवरदिगार मुझे ऐसी बात की हिदायत फरमाए जो रहनुमाई में उससे भी ज्यादा क़रीब हो
  5. व लबिसू फ़ी कह्फ़िहिम् सला – स मि – अतिन् सिनी – न वज़्दादू तिस्आ़
    और असहाब कहफ अपने ग़ार में नौ ऊपर तीन सौ बरस रहे
  6. कुलिल्लाहु अअ्लमु बिमा लबिसू लहू गै़बुस्समावाति वल्अर्जि अब्सिर् बिही व अस्मिअ् , मा लहुम् मिन् दूनिही मिंव्वलिय्यिंव – व ला युश्रिकु फ़ी हुक्मिही अ – हदा
    (ऐ रसूल) अगर वह लोग इस पर भी न मानें तो तुम कह दो कि ख़ुदा उनके ठहरने की मुद्दत से बखूबी वाक़िफ है सारे आसमान और ज़मीन का ग़ैब उसी के वास्ते ख़ास है (अल्लाह हो अकबर) वो कैसा देखने वाला क्या ही सुनने वाला है उसके सिवा उन लोगों का कोई सरपरस्त नहीं और वह अपने हुक्म में किसी को अपना दख़ील (शरीक) नहीं बनाता
  7. वत्लु मा ऊहि – य इलै – क मिन् किताबि रब्बि – क ला मुबद्दि – ल लि – कलिमातिही , व लन् तजि – द मिन् दुनिही मुल्त – हदा
    और (ऐ रसूल) जो किताब तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से वही के ज़रिए से नाज़िल हुईहै उसको पढ़ा करो उसकी बातों को कोई बदल नहीं सकता और तुम उसके सिवा कहीं कोई हरगिज़ पनाह की जगह (भी) न पाओगे
  8. वस्बिर् नफ़्स – क मअ़ल्लज़ी – न यद्अू – न रब्बहुम् बिल्ग़दाति वल्अ़शिय्यि युरीदू – न वज्हहू व ला तअ्दु अै़ना – क अ़न्हुम तुरीदु ज़ी – नतल् – हयातिद्दुन्या व ला तुतिअ् मन् अग्फ़ल्ना क़ल्बहू अन् जिक्रिना वत्त – ब – अ हवाहु व का – न अम्रुहू फुरूता •
    और (ऐ रसूल) जो लोग अपने परवरदिगार को सुबह सवेरे और झटपट वक्त शाम को याद करते हैं और उसकी खुशनूदी के ख्वाहाँ हैं उनके उनके साथ तुम खुद (भी) अपने नफस पर जब्र करो और उनकी तरफ से अपनी नज़र (तवज्जो) न फेरो कि तुम दुनिया में ज़िन्दगी की आराइश चाहने लगो और जिसके दिल को हमने (गोया खुद) अपने ज़िक्र से ग़ाफिल कर दिया है और वह अपनी ख्वाहिशे नफसानी के पीछे पड़ा है और उसका काम सरासर ज्यादती है उसका कहना हरगिज़ न मानना
  9. व कुलिल् – हक़्कु मिर्रब्बिकुम् , फ़ – मन् शा – अ फ़ल्युअ्मिंव् – व मन् शा – अ फल्यक्फुर इन्ना अअ्तद्ना लिज़्जा़लिमी – न नारन् अहा – त बिहिम् सुरादिकुहा , व इंय्यस्तगी़सू युगा़सू बिमाइन् कल्मुह़्लि यश्विल् – वुजू – ह , बिअ्सश्शराबु , व साअत् मुर् – त – फका
    और (ऐ रसूल) तुम कह दों कि सच्ची बात (कलमए तौहीद) तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से (नाज़िल हो चुकी है) बस जो चाहे माने और जो चाहे न माने (मगर) हमने ज़ालिमों के लिए वह आग (दहका के) तैयार कर रखी है जिसकी क़नातें उन्हें घेर लेगी और अगर वह लोग दोहाई करेगें तो उनकी फरियाद रसी खौलते हुए पानी से की जाएगी जो मसलन पिघले हुए ताबें की तरह होगा (और) वह मुँह को भून डालेगा क्या बुरा पानी है और (जहन्नुम भी) क्या बुरी जगह है
  10. इन्नल्लज़ी – न आमनू व अमिलुस्सालिहाति इन्ना ला नुज़ीअु अज् – र मन् अह्स – न अ – मला
    इसमें शक़ नहीं कि जिन लोगों ने ईमान कुबूल किया और अच्छे अच्छे काम करते रहे तो हम हरगिज़ अच्छे काम वालो के अज्र को अकारत नहीं करते
  1. उलाइ – क लहुम् जन्नातु अद्निन् तज्री मिन् तह्तिहिमुल – अन्हारू युहल्लौ – न फ़ीहा मिन् असावि – र मिन् ज़ – हबिंव् – व यल्बसू – न सियाबन् खु़ज्रम् – मिन् सुन्दुसिंव् – व इस्तब्रक़िम् – मुत्तकिई – न फ़ीहा अ़लल् अराइकि , निअ्मस्सवाबु , व हसुनत् मुर् – त – फ़क़ा * ये वही लोग हैं जिनके (रहने सहने के) लिए सदाबहार (बेहश्त के) बाग़ात हैं उनके (मकानात के) नीचे नहरें जारी होगीं वह उन बाग़ात में दमकते हुए कुन्दन के कंगन से सँवारे जाँएगें और उन्हें बारीक रेशम (क्रेब) और दबीज़ रेश्म (वाफते)के धानी जोड़े पहनाए जाएँगें और तख्तों पर तकिए लगाए (बैठे) होगें क्या ही अच्छा बदला है और (बेहश्त भी आसाइश की) कैसी अच्छी जगह है
  2. वज्रिब् लहुम् म – सलर् – रजुलैनि जअ़ल्ना लि – अ – हदिहिमा जन्नतैनि मिन् अअ्नाबिंव् – व हफ़फ़्नाहुमा बिनख्लिंव् – व जअ़ल्ना बैनहुमा ज़रआ और (ऐ रसूल) इन लोगों से उन दो शख़्शों की मिसाल बयान करो कि उनमें से एक को हमने अंगूर के दो बाग़ दे रखे है और हमने चारो ओर खजूर के पेड़ लगा दिये है और उन दोनों बाग़ के दरमियान खेती भी लगाई है
  3. किल्तल् – जन्नतैनि आतत् उकु – लहा व लम् तज्लिम् मिन्हु शैअंव् – व फ़ज्जरना ख़िला – लहुमा न – हरा (33) वह दोनों बाग़ खूब फल लाए और फल लाने में कुछ कमी नहीं की और हमने उन दोनों बाग़ों के दरमियान नहर भी जारी कर दी है
  4. व का – न लहू स – मरून् फ़का – ल लिसाहिबिही व हु – व युहाविरूहू अ – न अक्सरू मिन् – क मालंव् – व अ – अ़ज़्जु़ न – फ़रा और उसे फल मिला तो अपने साथी से जो उससे बातें कर रहा था बोल उठा कि मै तो तुझसे माल में (भी) ज्यादा हूँ और जत्थे में भी बढ़ कर हूँ
  5. व द – ख़ – ल जन्नतहू व हु – व ज़ालिमुल लिनफ्सिही का – ल मा अजुन्नु अन् तबी – द हाज़िही अ – बदा और ये बातें करता हुआ अपने बाग़ मे भी जा पहुँचा हालॉकि उसकी आदत ये थी कि (कुफ्र की वजह से) अपने ऊपर आप ज़ुल्म कर रहा था (ग़रज़ वह कह बैठा) कि मुझे तो इसका गुमान नहीं तो कि कभी भी ये बाग़ उजड़ जाए
  6. व मा अजुन्नुस्सा – अ – त काइ – मतंव् – व ल – इर्रूदित्तु इला रब्बी ल – अजिदन् – न खै़रम् – मिन्हा मुन्क़ – लबा और मै तो ये भी नहीं ख्याल करता कि क़यामत क़ायम होगी और (बिलग़रज़ हुई भी तो) जब मै अपने परवरदिगार की तरफ लौटाया जाऊँगा तो यक़ीनन इससे कहीं अच्छी जगह पाऊँगा
  7. का़ – ल लहू साहिबुहू व हु – व युहाविरूहू अ – कफ़र् – त बिल्लज़ी ख़ – ल – क – क मिन् तुराबिन सुम् – म मिन् नुत्फ़तिन् सुम् – म सव्वा – क रजुला उसका साथी जो उससे बातें कर रहा था कहने लगा कि क्या तू उस परवरदिगार का मुन्किर है जिसने (पहले) तुझे मिट्टी से पैदा किया फिर नुत्फे से फिर तुझे बिल्कुल ठीक मर्द (आदमी) बना दिया
  8. लाकिन् – न हुवल्लाहु रब्बी व ला उशरिकु बिरब्बी अ – हदा  हम तो (कहते हैं कि) वही ख़ुदा मेरा परवरदिगार है और मै तो अपने परवरदिगार का किसी को शरीक नहीं बनाता
  9. व लौ ला इज् दख़ल् – त जन्न – त – क कुल् – त मा शा – अल्लाहु ला कुव्व – त इल्ला बिल्लाहि इन् तरनि अ – न अक़ल् – ल मिन् – क मालंव् – व व – लदा और जब तू अपने बाग़ में आया तो (ये) क्यों न कहा कि ये सब (माशा अल्लाह ख़ुदा ही के चाहने से हुआ है (मेरा कुछ भी नहीं क्योंकि) बग़ैर ख़ुदा की (मदद) के (किसी में) कुछ सकत नहीं अगर माल और औलाद की राह से तू मुझे कम समझता है
  10. फ़ – अ़सा रब्बी अंय्युअ्ति – यनि खै़रम् – मिन् जन्नति – क व युरसि – ल अ़लैहा हुस्बानम् – मिनस्समा – इ फतुस्बि – ह सअ़ीदन् ज़ – लका
    तो अनक़ीरब ही मेरा परवरदिगार मुझे वह बाग़ अता फरमाएगा जो तेरे बाग़ से कहीं बेहतर होगा और तेरे बाग़ पर कोई ऐसी आफत आसमान से नाजि़ल करे कि (ख़ाक सियाह) होकर चटियल चिकना सफ़ाचट मैदान हो जाए

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