68 सूरह अल कलम हिंदी में​

68 सूरह अल कलम | Surah Al Qalam

सूरह अल कलम में अरबी के 52 आयतें और 2 रुकू है। यह सूरह मक्की है। यह सूरह पारा 29 में है।

सूरह अल कलम हिंदी में | Surah Al Qalam in Hindi

बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहिम
शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम वाला है
  1. नून् वल्क़-लमि व मा यस्तुरून
    नून, क़लम की और उस चीज़ की जो लिखती हैं (अर्थात कुरान) क़सम है।
  2. मा अन्-त बिनिअ्-मति रब्बि-क बि- मज्-नून
    कि तुम अपने परवरदिगार की अनुकम्पा (व करम) से दीवाने नहीं हो।
  3. व इन्-न ल-क ल-अज्रन् ग़ै-र ममनून
    और तुम्हारे वास्ते यक़ीनन वह प्रतिफल है जो कभी ख़त्म न होगा।
  4. व इन्न-क ल-अ़ला ख़ुलुक़िन् अ़ज़ीम
    और निस्संदेह तुम एक महान नैतिकता के शिखर पर हो।
  5. फ़-सतुब्सिरु व युब्सिरून
    तो अनक़रीब ही तुम भी देखोगे और ये काफ़िर भी देख लेंगे।
  6. बि-अय्यिकुमुल्-मफ़्तून
    कि तुममें पागल कौन है।
  7. इन्-न रब्ब-क हु-व अअ्लमु बिमन् ज़ल्-ल अ़न् सबीलिही व हु-व अअ्लमु बिल्-मुह्तदीन
    बेशक तुम्हारा पालनहार इनसे ख़ूब वाकि़फ़ है जो उसकी राह से भटके हुए हैं। और वही सीधी राह पर चलने वाले लोगों को भी ख़ूब जानता है।
  8. फ़ला तुतिअिल्-मुकज़्ज़िबीन
    तो तुम झुठलाने वालों का कहना न मानना।
  9. वद्-दू लौ तुद्हिनु फ़युद्हिनून
    वह लोग ये चाहते हैं कि अगर तुम ढीले पड़ो तो वह भी ढीले हो जाएँ।
  10. व ला तुतिअ् कुल्-ल हल्लाफ़िम् – महीन
    और तुम (कहीं) ऐसे हीन व्यक्ति के कहने में न आना जो बहुत क़समें खाता हो।
  11. हम्माज़िम्-मश्शाइम् बि-नमीम
    जो आला दर्जे का चुग़लख़ोर, व्यंग करने वाला।
  12. मन्नाअिल्-लिल्ख़ैरि मुअ्-तदिन् असीम

    भलाई से रोकता है, सीमा का उल्लंघन करनेवाला, हक़ मारनेवाला है,

  13. अुतुल्लिम् बअ्-द ज़ालि-क ज़नीम
    और उसके अलावा हरमज़ादा भी है।
  14. अन् का-न ज़ा मालिंव्-व बनीन
    इसलिए कि वह धन तथा पुत्रों वाला है।
  15. इज़ा तुत्ला अ़लैहि आयातुना क़ा-ल असातीरुल्-अव्वलीन
    जब उसके सामने हमारी आयतें पढ़ी जाती हैं तो बोल उठता है कि ये तो पूर्वजों की कल्पित कथायें हैं।
  16. स-नसिमुहू अ़लल्-ख़ुर्-तूम
    हम अनक़रीब इसकी नाक पर दाग़ लगाएँगे।
  17. इन्ना बलौनाहुम् कमा बलौना अस्हाबल्-जन्नति इज़् अक़्समू ल- यस्रिमुन्नहा मुस्बिहीन
    जिस तरह हमने एक बाग़ वालों का इम्तेहान लिया था उसी तरह उनका इम्तेहान लिया जब उन्होने क़समें खा खाकर कहा कि सुबह होते हम उसका मेवा ज़रूर तोड़ डालेंगे।
  18. व ला यस्तस्नून
    और इंशाअल्लाह(यदि अल्लाह ने चाहा) न कहा।
  19. फ़ता-फ़ अ़लैहा ता-इफ़ुम्-मिर्रब्बि-क व हुम् ना- इमून
    तो फिर गया उस बाग़ पर एक कुचक्र, आपके पालनहार की ओर से और वे सोये हुए थे।
  20. फ – अस् – बहत् कस्सरीम
    तो वह (सारा बाग़ जलकर) ऐसा हो गया जैसे उजाड़ खेती हो।
  21. फ़-तनादौ मुस्बिहीन
    फिर प्रातःकाल होते ही उन्होंने एक-दूसरे को आवाज़ दी।
  22. अनिग़्दू अ़ला हर्सिकुम् इन् कुन्तुम् सारिमीन
    कि अगर तुमको फल तोड़ना है तो अपने बाग़ में सवेरे से चलो।
  23. फ़न्त-लक़ू व हुम् य-तख़ा-फ़तून

    फिर वे चल दिये आपस में चुपके-चुपके बातें करते हुए।

  24. अल्-ला यद्खुलन्न- हल्यौ – म अ़लैकुम् – मिस्कीन
    कि आज यहाँ तुम्हारे पास कोई फ़क़ीर न आने पाए।
  25. व ग़दौ अ़ला हर्दिन् क़ादिरीन
    और प्रातः ही पहुँच गये कि वे फल तोड़ सकेंगे।
  26. फ़-लम्मा रऔहा क़ालू इन्ना ल-ज़ाल्लून
    फिर जब उसे (जला हुआ सियाह) देखा तो कहने लगे हम लोग राह भटक गए।
  27. बलू नह्नु मह्-रूमून
    (ये हमारा बाग़ नहीं फिर ये सोचकर बोले) बात ये है कि हम लोग बड़े बदनसीब हैं।
  28. क़ा-ल औसतुहुम् अलम् अक़ुल्-लकुम् लौ ला तुसब्बिहून
    जो उनमें से जो सबसे अच्छा था कहने लगा क्यों मैंने तुमसे नहीं कहा था कि तुम लोग (अल्लाह की) पवित्रता का वर्णन क्यों नहीं करते।
  29. क़ालू सुब्हान रब्बिना इन्ना कुन्ना ज़ालिमीन
    वह बोले हमारा पालनहार पवित्र है वास्तव में, हम ही अत्याचारी हैं।
  30. फ़- अ क़्ब-ल ब अ्ज़ुहुम् अ़ला ब अ्ज़िय्- य-तला-वमून
    फिर सम्मुख हो गये, एक-दूसरे की निन्दा करते हुए।
  31. क़ालू या वैलना इन्ना कुन्ना ताग़ीन

    (आखि़र) सबने इक़रार किया कि हाए अफ़सोस बेशक हम ही ख़ुद विद्रोही थे।

  32. अ़सा रब्बुना अ़य्युब्दि लना ख़ैरम्-मिन्हा इन्ना इला रब्बिना राग़िबून
    उम्मीद है कि हमारा पालनहार हमें इससे बेहतर बाग़ प्रदान करे हम अपने पालनहार की तरफ़ रूचि रखते हैं।
  33. कजालिकल्- अ़ज़ाबु, व ल-अ़ज़ाबुल् – आख़िरति अक्बरु लौ कानू यअ्लमून
    ऐसे ही यातना होती है और परलोक का यातना तो इससे कहीं बढ़ कर है अगर ये लोग समझते हों।
  34. इन्-न लिल्-मुत्तक़ी-न अिन्-द रब्बिहिम् जन्नातिन् – नईम
    निःसंदेह, सदाचारियों के लिए अपने परवरदिगार के यहाँ ऐशो आराम के बाग़ों में होंगे।
  35. अ-फ़-नज्-अ़लुल्-मुस्लिमी-न कल्- मुज्-रिमीन
    तो क्या हम आज्ञाकारियों को पापियों के बराबर कर देंगे।
  36. मा लकुम्, कै-फ़ तह्कुमून
    (हरगिज़ नहीं) तुम्हें क्या हो गया है तुम कैसा निर्णय कर रहे हो?
  37. अम् लकुम् किताबुन् फ़ीहि तद्रुसून
    या तुम्हारे पास कोई ईमानी किताब है जिसमें तुम पढ़ लेते हो।
  38. इन्-न लकुम् फ़ीहि लमा त-ख़य्यरून
    कि जो चीज़ पसन्द करोगे तुम को वहाँ ज़रूर मिलेगी।
  39. अम् लकुम् ऐमानुन् अ़लैना बालि-ग़तुन् इला यौमिल्-क़ियामति इन्-न लकुम् लमा तह्कुमून
    या तुमने हमसे क़समें ले रखी हैं जो प्रलय तक चली जाएगी कि जो कुछ तुम हुक्म दोगे वही तुम्हारे लिए ज़रूर हाजिर होगा।
  40. सल्हुम् अय्युहुम् बिज़ालि-क ज़ईम
    उनसे पूछो तो कि उनमें इसका कौन जिम्मेदार है।
  41. अम् लहुम् शु-रका-उ फ़ल्यअ्तू बिशु-रका-इहिम् इन् कानू सादिक़ीन
    या उनके ठहराए हुए कुछ साझीदार हैं? फिर तो यह चाहिए कि वे अपने साझीदारों को ले आएँ, यदि वे सच्चे हैं।
  42. यौ-म युक्शफ़ु अ़न् साकिंव् व युद्-औ़-न इलस्सुजूदि फ़ला यस्ततीऊन
    जिस दिन पिंडली खोल दी जाए और (काफि़र) लोग सजदे के लिए बुलाए जाएँगे तो (सज्दा) न कर सकेंगे।
  43. ख़ाशि-अ़तन् अब्सारुहुम् तर्-हक़ुहुम् ज़िल्लतुन्, व क़द् कानू युद्औ – न इलस्सुजूदि व हुम् सालिमून

    उनकी आँखें झुकी हुयी होंगी अपमान उन पर छाई होगी और (दुनिया में) ये लोग सजदे के लिए बुलाए जाते और स्वस्थ थे।

  44. फ-ज़र्नी व मंय्युकज्ज़िबु बिहाज़ल्-हदीसि, स-नस्तद्-रिजुहुम् मिन् हैसु ला यअ्लमून
    तो मुझे उस कलाम के झुठलाने वाले से समझ लेने दो हम उनको आहिस्ता आहिस्ता इस तरह पकड़ लेंगे कि उनको ख़बर भी न होगी।
  45. व उम्ली लहुम्, इन्-न कैदी मतीन
    और मैं उनको अवसर दिये जाता हूँ बेशक मेरा उपाय मज़बूत है।
  46. अम् तस् – अलुहुम् अज्रन् फ़हुम् मिम्-म़ग्-रमिम् मुस्क़लून
    (ऐ रसूल!) तो क्या आप माँग कर रहे हैं किसी पारिश्रमिक की, तो वे बोझ से दबे जा रहे हैं। अर्थात धर्म के प्रचार पर।
  47. अम् ज़िन्दहुमुल् – ग़ैबु फ़हुम् यक्तुबून
    या उनके इस ग़ैब (की ख़बर) है कि ये लोग लिख लिया करते हैं।
  48. फ़स्बिर् लिहुक्मि रब्बि-क व ला तकुन् क- साहिबिल्-हूति इज़् नादा व हु-व मक्ज़ूम
    तो तुम अपने परवरदिगार के हुक्म के इन्तेज़ार में सब्र करो और मछली (का निवाला होने) वाले (यूनुस) के ऐसे न हो जाओ कि जब वह ग़ुस्से में भरे हुए थे और अपने पालनहार को पुकारा।
  49. लौ ला अन् तदा-र-कहू निअ्मतुम्- मिर्रब्बिही लनुबि-ज़ बिल् अरा-इ व हु-व मज़्मूम
    अगर तुम्हारे परवरदिगार की मेहरबानी उसके साथ न हो जाती तो बंजर में डाल दिए जाते और उनका बुरा हाल होता।
  50. फ़ज्तबाहु रब्बुहू फ़-ज-अ-लहू मिनस्सालिहीन
    तो उसके रब ने उसे चुन लिया और उसे अच्छे लोगों में सम्मिलित कर दिया।
  51. व इंयू – यकादुल्लज़ी-न क- फ़रू ल – युज़्लिक़ून – क बि- अब्सारिहिम् लम्मा समिउज़्ज़िक्-र व यक़ूलू-न इन्नहू ल-मज्नून
    और कुफ़्फ़ार जब क़ुरआन को सुनते हैं तो मालूम होता है कि ये लोग तुम्हें घूर घूर कर (सही रास्ते से) ज़रूर फिसला देंगे।
  52. व मा हु-व इल्ला ज़िक्रूल्- लिल्-आलमीन
    और कहते हैं कि ये तो पागल हैं और ये (क़ुरान) तो सारे जहाँन के लिए नसीहत है।

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