36 सूरह यासीन​ हिन्दी में पेज 4

सूरह यासीन शरीफ़ हिन्दी में | Surah Yasin in Hindi

  1. अलम अअ’हद इलैकुम या बनी आदम अल्ला तअ’बुदुश शैतान इन्नहू लकुम अदुववुम मुबीन
    ऐ आदम की औलाद! क्या मैंने तुम्हारे पास ये हुक्म नहीं भेजा था कि (ख़बरदार) शैतान की परसतिश न करना वह यक़ीनी तुम्हारा खुल्लम खुल्ला दुश्मन है।
  2. व अनिअ बुदूनी हाज़ा सिरातुम मुस्तक़ीम
    और ये कि (देखो) सिर्फ मेरी इबादत करना यही (नजात की) सीधी राह है।
  3. व लक़द अज़ल्ला मिन्कुम जिबिल्लन कसीरा अफलम तकूनू तअकिलून
    और (बावजूद इसके) उसने तुममें से बहुतेरों को गुमराह कर छोड़ा तो क्या तुम (इतना भी) नहीं समझते थे।
  4. हाज़िही जहन्नमुल लती कुन्तुम तूअदून
    ये वही जहन्नुम है जिसका तुमसे वायदा किया गया था।
  5. इस्लौहल यौमा बिमा कुन्तुम तक्फुरून
    तो अब चूँकि तुम कुफ्र करते थे इस वजह से आज इसमें (चुपके से) चले जाओ।
  6. अल यौमा नाख्तिमु अला अफ्वा हिहिम व तुकल लिमुना अयदीहिम व तशहदू अरजु लुहुम बिमा कानू यक्सिबून
    आज हम उनके मुँह पर मुहर लगा देगें और (जो) कारसतानियाँ ये लोग दुनिया में कर रहे थे खु़द उनके हाथ हमको बता देगें और उनके पाँव गवाही देगें।
  7. व लौ नशाउ लता मसना अला अअ’युनिहिम फ़स तबकुस सिराता फ अन्ना युबसिरून
    और अगर हम चाहें तो उनकी आँखों पर झाडू फेर दें तो ये लोग राह को पड़े चक्कर लगाते ढूँढते फिरें मगर कहाँ देख पाँएगे।
  8. व लौ नशाउ ल मसखना हुम अला मका नतिहिम फमस तताऊ मुजिय यौ वला यर जिऊन
    और अगर हम चाहे तो जहाँ ये हैं (वहीं) उनकी सूरतें बदल (करके) (पत्थर मिट्टी बना) दें फिर न तो उनमें आगे जाने का क़ाबू रहे और न (घर) लौट सकें।
  9. वमन नुअम मिरहु नुनक किसहु फिल खल्क अफला यअ’ किलून
    और हम जिस शख़्स को (बहुत) ज़्यादा उम्र देते हैं तो उसे खि़लक़त में उलट (कर बच्चों की तरह मजबूर कर) देते हैं तो क्या वह लोग समझते नहीं।
  10. वमा अल्लम नाहुश शिअ’रा वमा यम्बगी लह इन हुवा इल्ला जिक रुव वकुर आनुम मुबीन
    और हमने न उस (पैग़म्बर) को शेर की तालीम दी है और न शायरी उसकी शान के लायक़ है ये (किताब) तो बस (निरी) नसीहत और साफ-साफ कु़रान है।
  11. लियुन जिरा मन काना हय्यव व यहिक क़ल कौलु अलल काफ़िरीन
    ताकि जो ज़िन्दा (दिल आकि़ल) हों उसे (अज़ाब से) डराए और काफि़रों पर (अज़ाब का) क़ौल साबित हो जाए (और हुज्जत बाक़ी न रहे)।
  12. अव लम यरव अन्ना खलक्ना लहुम मिम्मा अमिलत अय्दीना अन आमन फहुम लहा मालिकून
    क्या उन लोगों ने इस पर भी ग़ौर नहीं किया कि हमने उनके फायदे के लिए चारपाए उस चीज़ से पैदा किए जिसे हमारी ही क़ुदरत ने बनाया तो ये लोग (ख्वाहमाख्वाह) उनके मालिक बन गए।
  13. व ज़ल लल नाहा लहुम फ मिन्हा रकू बुहुम व मिन्हा यअ’कुलून
    और हम ही ने चार पायों को उनका मुतीय बना दिया तो बाज़ उनकी सवारियां हैं और बाज़ को खाते हैं।
  14. व लहुम फ़ीहा मनाफ़िउ व मशारिबु अफला यश्कुरून
    और चार पायों में उनके (और) बहुत से फायदे हैं और पीने की चीज़ (दूध) तो क्या ये लोग (इस पर भी) शुक्र नहीं करते।
  15. वत तखजू मिन दूनिल लाहि आलिहतल लअल्लहुम युन्सरून
    और लोगों ने अल्लाह को छोड़कर (फ़र्ज़ी माबूद बनाए हैं ताकि उन्हें उनसे कुछ मद्द मिले हालाँकि वह लोग उनकी किसी तरह मद्द कर ही नहीं सकते।
  16. ला यस्ता तीऊना नस रहुम वहुम लहुम जुन्दुम मुह्ज़रून
    और ये कुफ़्फ़ार उन माबूदों के लशकर हैं (और क़यामत में) उन सबकी हाजि़री ली जाएगी।
  17. फला यह्ज़ुन्का क़व्लुहुम इन्ना नअ’लमु मा युसिर रूना वमा युअ’लिनून
    तो (ऐ रसूल!) तुम इनकी बातों से आज़ुरदा ख़ातिर (पेरशान) न हो जो कुछ ये लोग छिपा कर करते हैं और जो कुछ खुल्लम खुल्ला करते हैं-हम सबको यक़ीनी जानते हैं।
  18. अव लम यरल इंसानु अन्ना खलक्नाहू मिन नुत्फ़तिन फ़ इज़ा हुवा खसीमुम मुबीन
    क्या आदमी ने इस पर भी ग़ौर नहीं किया कि हम ही ने इसको एक ज़लील नुत्फे़ से पैदा किया फिर वह यकायक (हमारा ही) खुल्लम खुल्ला मुक़ाबिल (बना) है।
  19. व ज़रबा लना मसलव व नसिया खल्कह काला मय युहयिल इजामा व हिय रमीम
    और हमारी निसबत बातें बनाने लगा और अपनी खि़लक़त (की हालत) भूल गया और कहने लगा कि भला जब ये हड्डियाँ (सड़गल कर) ख़ाक हो जाएँगी तो (फिर) कौन (दोबारा) जि़न्दा कर सकता है।
  20. कुल युहयीहल लज़ी अनश अहा अव्वला मर्रह वहुवा बिकुलली खल किन अलीम
    (ऐ रसूल!) तुम कह दो कि उसको वही जि़न्दा करेगा जिसने उनको (जब ये कुछ न थे) पहली बार जि़न्दा कर (रखा)।
  21. अल्लज़ी जअला लकुम मिनश शजरिल अख्ज़रि नारन फ़ इज़ा अन्तुम मिन्हु तूकिदून
    और वह हर तरह की पैदाइश से वाकि़फ है जिसने तुम्हारे वास्ते (मिखऱ् और अफ़ार के) हरे दरख़्त से आग पैदा कर दी फिर तुम उससे (और) आग सुलगा लेते हो।
  22. अवा लैसल लज़ी खलक़स समावाती वल अरज़ा बिक़ादिरिन अला अंय यख्लुक़ा मिस्लहुम बला वहुवल खल्लाकुल अलीम
    (भला) जिस (अल्लाह) ने सारे आसमान और ज़मीन पैदा किए क्या वह इस पर क़ाबू नहीं रखता कि उनके मिस्ल (दोबारा) पैदा कर दे हाँ (ज़रूर क़ाबू रखता है) और वह तो पैदा करने वाला वाकि़फ़कार है।
  23. इन्नमा अमरुहू इज़ा अरादा शय अन अंय यकूला लहू कुन फयकून
    उसकी शान तो ये है कि जब किसी चीज़ को (पैदा करना) चाहता है तो वह कह देता है कि “हो जा” तो (फौरन) हो जाती है।
  24. फसुब हानल लज़ी बियदिही मलकूतु कुल्ली शय इव व इलैहि तुरज ऊन
    तो वह ख़ुद (हर नफ़्स से) पाक साफ़ है जिसके क़ब्ज़े कु़दरत में हर चीज़ की हिकमत है और तुम लोग उसी की तरफ लौट कर जाओगे।

सवाल - जवाब

सवाल: क्या सूरह यासीन को रोजाना पढ़ना चाहिए?
जवाब: हां, सूरह यासीन को रोजाना पढ़ने से कई तरह की बरकतें, कई बालाओ से छुटकारा और दिल की इच्छा पूरी होती है।
सवाल: सूरह यासीन मरने वाले के पास पढ़ना से क्या होगा?
जवाब: जब कोई शख्स आखिरी सांस लेते समय या जिंदगी के आखिरी दिनों में जब तबियत खराब हो तब सूरह यासीन को पढ़ा जाता है। और इसे पढ़ना सुन्नत है। सूरह यासीन को पढ़ने से जान निकलने की तकलीफ आसान हो जाती है।
सवाल: सूरह यासीन को पढ़ने में कितना समय लगता है?
जवाब: यह आयत बहुत लंबी नहीं है, आयत को समझना और याद रखना अपेक्षाकृत आसान है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि व्यक्ति कितना प्रेरित है, और वह कितना प्रयास करने को तैयार है।  इस सूरह को याद करने में 6 से 10 दिन लग सकते हैं।
सवाल: सूरह यासीन का क्या अर्थ है?
जवाब: सूरह कुरान को एक दिव्य स्रोत के रूप में स्थापित करने पर केंद्रित है, और यह उन लोगों के भाग्य की चेतावनी देता है जो भगवान के रहस्योद्घाटन का मजाक उड़ाते हैं और जिद्दी हैं। सूरह उन दंडों के बारे में बताती है जो अविश्वासियों की पिछली पीढ़ियों को वर्तमान और आने वाली पीढ़ियों के लिए चेतावनी के रूप में चित्रित करती है।
सवाल: हिंदी में कुरान शरीफ कैसे पढ़ा जाता है?
जवाब: कुरान शरीफ अच्छी आवाज़ से पढ़ना चाहिए- लेकिन गाने की तरह नहीं पढ़ना चाहिए क्योंकि इस तरह पढ़ना नाजाइज है। कुरान शरीफ देखकर पढ़ना, बिना देखे पढ़ने से बेहतर है। अच्छा य है कि वजू करके किबला रुख साफ़ कपड़े पहनकर तिलावत करें और तिलावत के शुरू में अऊजो बिल्लाही पढ़ना वाजिब है और सूरह के शुरू में बिस्मिल्लाह पढ़ना सुन्नत है।
सवाल: सूरह यासीन कौन से पेज पर है?
जवाब: सूरह यासीन क़ुरआन की 36 वीं सूरह है। यह पारा नंबर 22 और 23 में है।
सवाल: सूरह यासीन के बारे में क्या खास है?
जवाब: सूरह अल्लाह की संप्रभुता और पुनरुत्थान के अस्तित्व को दोहराता है। इसे मक्का सूरा के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जिसका मुख्य विषय इस्लाम की कुछ बुनियादी मान्यताओं, विशेष रूप से मृत्यु के बाद जीवन में विश्वास की व्याख्या करना है।
सवाल: सूरह यासीन कुरान का दिल क्यों है?
जवाब: ‘यासीन’- पैगम्बरों का मुखिया है, मुहम्मद, साथ ही यह सूरह, जो विशेष रूप से मुहम्मद से संबंधित है, कुरान का दिल बन जाता है जैसे मुहम्मद स्वयं अस्तित्व की दुनिया का दिल है। इसके सभी छंदों में से, इस सूरह की पहली सूरह मुहम्मद को सभी दिव्य दूतों के प्रमुख के रूप में संबोधित करती है।
सवाल: सूरह यासीन को पढ़ने का सही समय क्या है?
जवाब: कुरान की किसी भी सूरह या कुरान की किसी भी आयत को पढ़ने का कोई तय वक़्त नहीं लेकिन फजर नमाज़ या ईशा नमाज़ के बाद सूरह यासीन की तिलावत करना अच्छा मना जाता है।
सवाल: बच्चे की पैदायश के वक़्त सूरह यासीन पढ़ना कैसा है?
जवाब: जब बच्चे की पैदाइश हो यानी बच्चे के पैदा होने के वक़्त दर्द के मौके पर इस सूरह को पढ़ा जाता है । सूरह यासीन को पानी पर 3 बार दम करके पिलाने से विलादत में आसानी होती है।
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