44 सुरह अद दुख़ान हिंदी में पेज 1

44 सुरह अद दुख़ान | Surah Ad-Dukhan

(मक्की) इस सूर में 59 आयतें और 3 रुकू हैं। सूरह का नाम दुखान शब्द से लिया गया है जो 10 वी आयत में आता है। यह सूरह पारा २5 में है।

सूरह-दुख़ान हिंदी में | Surah Ad-Dukhan in Hindi

बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहिम
शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम वाला है
  1. हा-मीम्
    हा मीम।
  2. वल्-किताबिल् – मुबीन
    वाज़ेए व रौशन किताब (कु़रआन) की क़सम।
  3. इन्ना अन्ज़ल्नाहु फ़ी लै – लतिम् मुबा – र कतिन् इन्ना कुन्ना मुन्ज़िरीन
    हमने इसको मुबारक रात (शबे क़द्र) में नाजि़ल किया बेशक हम (अज़ाब से) डराने वाले थे।
  4. फ़ीहा यफ़रक़ु कुल्लु अम्रिन् हकीम
    इसी रात को तमाम दुनिया के हिक़मत व मसलेहत के (साल भर के) काम फ़ैसले किये जाते हैं।
  5. अम्रम् मिन् अिन्दिना, इन्ना कुन्ना मुर्सिलीन
    यानि हमारे यहाँ से हुक्म होकर (बेशक) हम ही (पैग़म्बरों के) भेजने वाले हैं।
  6. रह्म-तम् मिर्रब्बि-क इन्नहू हुवस्समी अुल्- अ़लीम
    ये तुम्हारे परवरदिगार की मेहरबानी है, वह बेशक बड़ा सुनने वाला वाकि़फ़कार है।
  7. रब्बिस्समावाति वल्अर्ज़ि व मा बैनहुमा इन् कुन्तुम् मूक़िनीन
    सारे आसमान व ज़मीन और जो कुछ इन दोनों के दरमियान है सबका मालिक।
  8. ला इला-ह इल्ला हु-व युह्यी व युमीतु, रब्बुकुम् व रब्बु आबा-इकुमुल्-अव्वलीन
    अगर तुममें यक़ीन करने की सलाहियत है (तो करो) उसके सिवा कोई माबूद नहीं – वही जिलाता है वही मारता है तुम्हारा मालिक और तुम्हारे (अगले) बाप दादाओं का भी मालिक है।
  9. बल् हुम् फ़ी शक्किंय्-यल्-अ़बून
    लेकिन ये लोग तो शक में पड़े खेल रहे हैं।
  10. फ़र्तकिब् यौ-म तअ्तिस्समा-उ बिदुख़ानिम् – मुबीन
    तो तुम उस दिन का इन्तेज़ार करो कि आसमान से ज़ाहिर ब ज़ाहिर धुआँ निकलेगा।
  11. यग़्शन्ना-स, हाज़ा अ़ज़ाबुन् अलीम
    (और) लोगों को ढाँक लेगा ये दर्दनाक अज़ाब है।
  12. रब्बनक्शिफ़् अ़न्नल्-अ़ज़ा-ब इन्ना मुअ्मिनून
    कुफ़्फ़ार भी घबराकर कहेंगे कि परवरदिगार हमसे अज़ाब को दूर दफ़ा कर दे हम भी ईमान लाते हैं।
  13. अन्ना लहुमुज़्ज़िक्-रा व क़द् जा- अहुम् रसूलुम् – मुबीन
    (उस वक़्त) भला क्या उनको नसीहत होगी जब उनके पास पैग़म्बर आ चुके जो साफ़ साफ़ बयान कर देते थे।
  14. सुम्-म तवल्लौ अ़न्हु व क़ालू मु- अ़ल्लमुम् – मज्नून
    इस पर भी उन लोगों ने उससे मुँह फेरा और कहने लगे ये तो (सिखाया) पढ़ाया हुआ दीवाना है।
  15. इन्ना काशिफ़ुल्-अ़ज़ाबि क़लीलन् इन्नकुम् आ़-इदून
    (अच्छा ख़ैर) हम थोड़े दिन के लिए अज़ाब को टाल देते हैं मगर हम जानते हैं तुम ज़रूर फिर कुफ्र करोगे।
  16. यौ-म नब्तिशुल् बत्-शतल-कुब्रा इन्ना मुन्तक़िमून 
    हम बेशक (उनसे) पूरा बदला तो बस उस दिन लेगें जिस दिन सख़्त पकड़ पकड़ेंगे।
  17. व ल-क़द् फ़तन्ना क़ब्लहुम् क़ौ-म फ़िर्-औ़-न व जा – अहुम् रसूलुन् करीम 
    और उनसे पहले हमने क़ौमे फिरौन की आज़माइश की और उनके पास एक आली क़दर पैग़म्बर (मूसा) आए।
  18. अन् अद्-दू इलय्-य अिबादल्लाहि, इन्नी लकुम् रसूलुन् अमीन 
    (और कहा) कि अल्लाह के बन्दों (बनी इसराईल) को मेरे हवाले कर दो मैं (अल्लाह की तरफ़ से) तुम्हारा एक अमानतदार पैग़म्बर हूँ।
  19. व अल्-ला तअ्लू अ़लल्लाहि, इन्नी आतीकुम् बिसुल्तानिम्- मुबीन 
    और अल्लाह के सामने सरकशी न करो मैं तुम्हारे पास वाज़ेए व रौशन दलीलें ले कर आया हूँ।
  20. व इन्नी अुज़्तु बिरब्बी व रब्बिकुम् अन् तर्जुमून 
    और इस बात से कि तुम मुझे संगसार करो मैं अपने और तुम्हारे परवरदिगार (अल्लाह) की पनाह मांगता हूँ।
  21. व इल्लम् तुअ्मनू ली फ़अ्तज़िलून 
    और अगर तुम मुझ पर ईमान नहीं लाए तो तुम मुझसे अलग हो जाओ।
  22. फ़-दआ़ रब्बहू अन्-न हाउला-इ क़ौमुम् – मुज्रिमून 
    (मगर वह सुनाने लगे) तब मूसा ने अपने परवरदिगार से दुआ की कि ये बड़े शरीर लोग हैं।
  23. फ़- अस्रि बिअिबादी लैलन् इन्नकुम् मुत्त- बअून
    तो अल्लाह ने हुक्म दिया कि तुम मेरे बन्दों (बनी इसराईल) को रातों रात लेकर चले जाओ और तुम्हारा पीछा भी ज़रूर किया जाएगा।
  24. वत् रूकिल्-बह्-र रह्वन्, इन्नहुम् जुन्दुम् मुग़्-रक़ून 
    और दरिया को अपनी हालत पर ठहरा हुआ छोड़ कर (पार हो) जाओ (तुम्हारे बाद) उनका सारा लशकर डुबो दिया जाएगा।
  25. कम् त रकू मिन् जन्नातिंव्-व अुयून 
    वह लोग (अल्लाह जाने) कितने बाग़ और चश्में और खेतियाँ।
  26. व ज़ुरूअिंव् व मक़ामिन् करीम 
    और नफ़ीस मकानात और आराम की चीज़ें।
  27. व नअ्-मतिन् कानू फ़ीहा फ़ाकिहीन 
    जिनमें वह ऐश और चैन किया करते थे छोड़ गये यूँ ही हुआ।
  28. कज़ालि-क, व औरस्नाहा क़ौमन् आ-ख़रीन 
    और उन तमाम चीज़ों का दूसरे लोगों को मालिक बना दिया।
  29. फ़मा ब-कत् अ़लैहिमुस्समा-उ वल्अर्जु व मा कानू मुन्ज़रीन 
    तो उन लोगों पर आसमान व ज़मीन को भी रोना न आया और न उन्हें मोहलत ही दी गयी।

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