07 सूरह अल-आराफ़ हिंदी में पेज 2

सूरह अल-आराफ़ हिंदी में | Surat Al-Araf in Hindi

  1. या बनी आद-म क़द् अन्ज़ल्ना अ़लैकुम् लिबासंय्युवारी सौआतिकुम् वरीशन्, व लिबासुत्तक़्वा, ज़ालि-क खैरून, ज़ालि-क मिन् आयातिल्लाहि लअल्लहुम यज़्ज़क्करून
    और उसी में से (और) उसी में से फिर दोबारा तुम ज़िन्दा करके निकाले जाओगे ऐ आदम की औलाद हमने तुम्हारे लिए पोशाक नाजि़ल की जो तुम्हारे शर्मगाहों को छिपाती है और ज़ीनत के लिए कपड़े और इसके अलावा परहेज़गारी का लिबास है और ये सब (लिबासों) से बेहतर है ये (लिबास) भी अल्लाह (की कुदरत) की निशानियों से है।
  2. या बनी आद-म ला यक्तिनन्नकुमुश्शैतानु कमा अख़्र-ज अ-बवैकुम् मिनल्जन्नति यन्ज़िअु अन्हुमा लिबा- सहुमा लियुरि-यहुमा सौआतिहिमा, इन्नहू यराकुम् हु- व वक़बीलुहू मिन्हैसु ला तरौनहुम्, इन्ना जअ़ल्नश्शयाती-न औलिया-अ लिल्लज़ी-न ला युअ्मिनून
    ताकि लोग नसीहत व इबरत हासिल करें ऐ औलादे आदम! (होशियार रहो) कहीं तुम्हें शैतान बहका न दे जिस तरह उसने तुम्हारे बाप माँ आदम व हव्वा को बेहशत से निकलवा छोड़ा उसी ने उन दोनों से (बहश्ती) पोशाक उतरवाई ताकि उन दोनों को उनकी शर्मगाहें दिखा दे वह और उसका क़ुनबा ज़रूर तुम्हें इस तरह देखता रहता है कि तुम उन्हे नहीं देखने पाते हमने शैतानों को उन्हीं लोगों का रफीक़ क़रार दिया है।
  3. व इज़ा फ़-अलू फ़ाहि-शतन् क़ालू वजद्-ना अ़लैहा आबा-अना वल्लाहु अ-म-रना बिहा, क़ुल इन्नल्ला-ह ला यअ्मुरू बिल्फह़्शा-इ, अ-तक़ूलू-न अलल्लाहि मा ला तअ्लमून
    जो ईमान नही रखते और वह लोग जब कोई बुरा काम करते हैं कि हमने उस तरीके पर अपने बाप दादाओं को पाया और अल्लाह ने (भी) यही हुक्म दिया है (ऐ रसूल) तुम साफ कह दो कि अल्लाह ने (भी) यही हुक्म दिया है (ऐ रसूल) तुम (साफ) कह दो कि अल्लाह हरगिज़ बुरे काम का हुक्म नहीं देता क्या तुम लोग अल्लाह पर (इफ्तिरा करके) वह बातें कहते हो जो तुम नहीं जानते।
  4. क़ुल् अ-म-र रब्बी बिल्क़िस्ति, व अक़ीमू वुजूहकुम् अिन्-द कुल्लि मस्जिदिंव-वद्अुहु मुख़्लिसी-न लहुद्दी-न, कमा ब-द-अकुम् तअूदून
    (ऐ रसूल) तुम कह दो कि मेरे परवरदिगार ने तो इन्साफ का हुक्म दिया है और (ये भी क़रार दिया है कि) हर नमाज़ के वक्त अपने अपने मुँह (कि़बले की तरफ़) सीधे कर लिया करो और इसके लिए निरी खरी इबादत करके उससे दुआ मांगो जिस तरह उसने तुम्हें शुरू शुरू पैदा किया था।
  5. फ़रीक़न् हदा व फ़रीक़न् हक़्-क़ अलैहिमुज़्ज़लालतु, इन्नहुमुत्त ख़ज़ुश्शयाती-न औलिया-अ मिन् दूनिल्लाहि व यह़्सबू-न अन्नहुम् मुह़्तदून
    उसी तरह फिर (दोबारा) जि़न्दा किये जाओगे उसी ने एक फरीक़ की हिदायत की और एक गिरोह (के सर) पर गुमराही सवार हो गई उन लोगों ने अल्लाह को छोड़कर शैतानों को अपना सरपरस्त बना लिया और बावजूद उसके गुमराह करते हैं कि वह राह रास्ते पर है।
  6. या बनी आद-म ख़ुज़ू ज़ीन-तकुम् अिन्-द कुल्लि मस्जिदिंव्-व कुलू वश्रबू व ला तुस्रिफू, इन्नहू ला युहिब्बुल मुस्रिफीन*
    ऐ औलाद आदम हर नमाज़ के वक़्त बन सवर के निखर जाया करो और खाओ और पियो और फिज़ूल ख़र्ची मत करो (क्योंकि) अल्लाह फिज़ूल ख़र्च करने वालों को दोस्त नहीं रखता।
  7. क़ुल् मन् हर्र-म ज़ी-नतल्लाहिल्लती अख़्र-ज लिअिबादिही वत्तय्यिबाति मिनर्रिज़्क़ि, क़ुल् हि-य लिल्लज़ी-न आमनू फ़िल्हयातिद्दुन्या ख़ालि-सतंय्यौमल्-क़ियामति, कज़ालि-क नुफस्सिलुल् -आयाति लिकौमिंय्यअ्लमून
    (ऐ रसूल से) पूछो तो कि जो ज़ीनत (के साज़ों सामान) और खाने की साफ सुथरी चीज़ें अल्लाह ने अपने बन्दो के वास्ते पैदा की हैं किसने हराम कर दी तुम ख़ुद कह दो कि सब पाक़ीज़ा चीज़े क़यामत के दिन उन लोगों के लिए ख़ास हैं जो दुनिया की (ज़रा सी) जि़न्दगी में ईमान लाते थे हम यूँ अपनी आयतें समझदार लोगों के वास्ते तफसीलदार बयान करतें हैं।
  8. क़ुल इन्नमा हर्र-म रब्बियल्-फवाहि-श मा ज़-ह-र मिन्हा वमा ब-त-न वल्इस्-म वल्बग्-य बिग़ैरिल्हक़्कि व अन् तुश्रिकू बिल्लाहि मा लम् युनज़्ज़िल् बिही सुल्तानंव्-व अन् तक़ूलू अलल्लाहि मा ला तअ्लमून
    (ऐ रसूल) तुम साफ कह दो कि हमारे परवरदिगार ने तो तमाम बदकारियों को ख़्वाह (चाहे) ज़ाहिरी हो या बातिनी और गुनाह और नाहक़ ज़्यादती करने को हराम किया है और इस बात को कि तुम किसी को अल्लाह का शरीक बनाओ जिनकी उनसे कोई दलील न ही नाजि़ल फरमाई और ये भी कि बे समझे बूझे अल्लाह पर बोहतान बाधों।
  9. व लिकुल्लि उम्मतिन् अ-जलुन् फ़-इज़ा जा-अ अ-जलुहुम् ला यस्तअ्खिरू-न सा-अतंव् व ला यस्तक़्दिमून
    और हर गिरोह (के न पैदा होने) का एक ख़ास वक़्त है फिर जब उनका वक्त आ पहुंचता है तो न एक घड़ी पीछे रह सकते हैं और न आगे बढ़ सकते हैं।
  10. या बनी आद-म इम्मा यअ्तियन्नकुम् रूसुलुम्-मिन्कुम् यक़ुस्सू-न अलैकुम् आयाती, फ-मनित्तक़ा व अस्ल-ह फला ख़ौफुन् अलैहिम् व ला हुम् यह़्ज़नून
    ऐ औलादे आदम! जब तुम में के (हमारे) पैग़म्बर तुम्हारे पास आए और तुमसे हमारे एहकाम बयान करे तो (उनकी इताअत करना क्योंकि जो शख़्स परहेज़गारी और नेक काम करेगा तो ऐसे लोगों पर न तो (क़यामत में) कोई ख़ौफ़ होगा और न वह आजऱ्दा ख़ातिर (परेशान) होंगें।
  11. वल्लज़ी-न कज़्ज़बू बिआयातिना वस्तक्बरू अन्हा उलाइ-क अस्हाबुन्नारि, हुम् फ़ीहा ख़ालिदून
    और जिन लोगों ने हमारी आयतों को झुठलाया और उनसे सरताबी कर बैठे वह लोग जहन्नुमी हैं कि वह उसमें हमेशा रहेगें।
  12. फ-मन् अज़्लमु मिम्-मनिफ़्तरा अलल्लाहि कज़िबन् औ कज़्ज़-ब बिआयातिही, उलाइ-क यनालुहुम् नसीबुहुम् मिनल-किताबि, हत्ता इज़ा जाअत्हुम् रूसुलुना य-तवफ्फ़ौनहुम्, क़ालू ऐ-न मा कुन्तुम् तद्अू-न मिन् दूनिल्लाहि, क़ालू ज़ल्लू अन्ना व शहिदू अला अन्फुसिहिम् अन्नहुम् कानू काफ़िरीन
    तो जो शख़्स अल्लाह पर झूठ बोहतान बाधे या उसकी आयतों को झुठलाए उससे बढ़कर ज़ालिम और कौन होगा फिर तो वह लोग हैं जिन्हें उनकी (तक़दीर) का लिखा हिस्सा (रिज़क) वग़ैरह मिलता रहेगा यहाँ तक कि जब हमारे भेजे हुए (फरिश्ते) उनके पास आकर उनकी रूह कब्ज़ करेगें तो (उनसे) पूछेगें कि जिन्हें तुम अल्लाह को छोड़कर पुकारा करते थे अब वह (कहाँ हैं तो वह कुफ्फार) जवाब देगें कि वह सब तो हमें छोड़ कर चल चंपत हुए और अपने खिलाफ आप गवाही देगें कि वह बेशक काफि़र थे।
  13. क़ालद्ख़ुलू फी उ-ममिन् क़द् ख़लत् मिन् क़ब्लिकुम् मिनल-जिन्नि वल्इन्सि फिन्नारि, कुल्लमा द-ख़लत् उम्मतुल्ल-अनत् उख़्तहा, हत्ता इज़द्दा-रकू फीहा जमीअन्, क़ालत् उख़्राहुम् लिऊलाहुम् रब्बना हा-उला-इ अज़ल्लूना फ़आ़तिहिम् अज़ाबन् ज़िअ्फम्- मिनन्नारि, क़ा-ल लिकुल्लिन् ज़िअ्फुंव्-व लाकिल्ला तअ्लमून
    (तब अल्लाह उनसे) फरमाएगा कि जो लोग जिन व इन्स के तुम से पहले बसे हैं उन्हीं में मिलजुल कर तुम भी जहन्नुम वासिल हो जाओ (और ) एहले जहन्नुम का ये हाल होगा कि जब उसमें एक गिरोह दाखि़ल होगा तो अपने साथी दूसरे गिरोह पर लानत करेगा यहाँ तक कि जब सब के सब पहुँच जाएगें तो उनमें की पिछली जमात अपने से पहली जमाअत के वास्ते बदद्आ करेगी कि परवरदिगार उन्हीं लोगों ने हमें गुमराह किया था तो उन पर जहन्नुम का दोगुना अज़ाब फरमा (इस पर) अल्लाह फरमाएगा कि हर एक के वास्ते दो गुना अज़ाब है लेकिन (तुम पर) तुफ़ है तुम जानते नहीं।
  14. व क़ालत् ऊलाहुम् लिउख़राहुम् फमा का-न लकुम् अ़लैना मिन् फ़ज्लिन् फज़ूक़ुल्-अज़ा-ब बिमा कुन्तुम् तक्सिबून*
    और उनमें से पहली जमाअत पिछली जमाअत की तरफ मुख़ातिब होकर कहेगी कि अब तो तुमको हमपर कोई फज़ीलत न रही पस (हमारी तरह) तुम भी अपने करतूत की बदौलत अज़ाब (के मज़े) चखो बेशक जिन लोगों ने हमारे आयात को झुठलाया।
  15. इन्नल्लज़ी-न कज़्ज़बू बिआयातिना वस्तक्बरू अ़न्हा ला तुफ़त्तहु लहुम् अब्वाबु स्समा-इ व ला यद्ख़ुलूनल् जन्न-त हत्ता यलिजल्-ज-मलु फी सम्मिल् ख़ियाति, व कज़ालि-क नज़्ज़िल्-मुज्रिमीन
    और उनसे सरताबी की न उनके लिए आसमान के दरवाज़े खोले जाएंगें और वह बेहश्त्त ही में दाखिल होने पाएगें यहाँ तक कि ऊँट सूई के नाके में होकर निकल जाए (यानि जिस तरह ये मुहाल है) उसी तरह उनका बहिस्त में दाखिल होना मुहाल है और हम मुजरिमों को ऐसी ही सज़ा दिया करते हैं उनके लिए जहन्नुम (की आग) का बिछौना होगा।
  16. लहुम् मिन् जहन्न-म मिहादुंव्-व मिन् फौक़िहिम् ग़वाशिन्, व कज़ालि-क नज्ज़िज़्ज़ालिमीन
    और उनके ऊपर से (आग ही का) ओढ़ना भी और हम ज़ालिमों को ऐसी ही सज़ा देते हैं और जिन लोगों ने ईमान कुबुल किया।
  17. वल्लज़ी-न आमनू व अ़मिलुस्-सालिहाति ला नुकल्लिफु नफ्सन् इल्ला वुस्अ़हा, उलाइ-क अस्हाबुल्-जन्नति, हुम् फ़ीहा ख़ालिदून
    और अच्छे अच्छे काम किये और हम तो किसी शख़्स को उसकी ताकत से ज़्यादा तकलीफ देते ही नहीं यहीं लोग जन्नती हैं कि वह हमेशा जन्नत ही में रहा (सहा) करेगें।
  18. व नज़अ्ना मा फी सुदूरिहिम् मिन् ग़िल्लिन् तज्री मिन् तह़्तिहिमुल-अन्हारू, व क़ालुल्हम्दु लिल्लाहिल्लज़ी हदाना लिहाज़ा, व मा कुन्ना लिनह्तदि-य लौ ला अन् हदानल्लाहु, ल-क़द् जाअत् रूसुलु रब्बिना बिल्हक़्क़ि, व नूदू अन् तिल्कुमुल्-जन्नतु ऊरिस्तुमूहा बिमा कुन्तुम् तअ्मलून •
    और उन लोगों के दिल में जो कुछ (बुग़ज़ व कीना) होगा वह सब हम निकाल (बाहर कर) देगे उनके महलों के नीचे नहरें जारी होगीं और कहते होगें शुक्र है उस अल्लाह का जिसने हमें इस (मंजि़ले मक़सूद) तक पहुंचाया और अगर अल्लाह हमें यहाँ न पहुंचाता तो हम किसी तरह यहाँ न पहुंच सकते बेशक हमारे परवरदिगार के पैग़म्बर दीने हक़ लेकर आये थे और उन लोगों से पुकार कर कह दिया जाएगा कि वह बेहिशत हैं जिसके तुम अपनी कारग़ुज़ारियों की जज़ा में वारिस व मालिक बनाए गये हों।
  19. व नादा अस्हाबुल्-जन्नति अस्हाबन्नारि अन् क़द् वजद्ना मा व-अ-दना रब्बुना हक़्क़न् फ़-हल् वजत्तुम् मा व- अ-द रब्बुकुम् हक़्क़न्, क़ालू न-अम्, फ़ अज़्ज़-न मुअज्ज़िनुम् बैनहुम् अल्लअ्-नतुल्लाहि अ़लज़्ज़ालिमीन
    और जन्नती लोग जहन्नुमी वालों से पुकार कर कहेगें हमने तो बेशक जो हमारे परवरदिगार ने हमसे वायदा किया था ठीक ठीक पा लिया तो क्या तुमने भी जो तुमसे तम्हारे परवरदिगार ने वायदा किया था ठीक पाया (या नहीं) अहले जहन्नुम कहेगें हाँ (पाया) एक मुनादी उनके दरमियान निदा करेगा कि ज़ालिमों पर अल्लाह की लानत है।
  20. अल्लज़ी-न यसुद्दू-न अन् सबीलिल्लाहि व यब्ग़ूनहा अि-वजन्, व हुम् बिल्आख़ि-रति काफ़िरून
    जो अल्लाह की राह से लोगों को रोकते थे और उसमें (ख़्वामख़्वाह) कज़ी (टेढ़ा पन) करना चाहते थे और वह रोज़े आख़ेरत से इन्कार करते थे।
  21. व बैनहुमा हिजाबुन्, व अलल्-अअ्-राफ़ि रिजालुंय्यअ्-रिफू-न कुल्लम्-बिसीमाहुम्, व नादौ अस्हाबल्-जन्नति अन् सलामुन् अलैकुम्, लम् यद्ख़ुलूहा व हुम् यत्मअू-न
    और बहिश्त व दोज़ख के दरमियान एक हद फ़ासिल है और कुछ लोग आराफ़ पर होगें जो हर शख़्स को (बहिस्ती हो या जहन्नुमी) उनकी पेशानी से पहचान लेगें और वह जन्नत वालों को आवाज़ देगें कि तुम पर सलाम हो या (आराफ़ वाले) लोग अभी दाखि़ले जन्नत नहीं हुए हैं मगर वह तमन्ना ज़रूर रखते हैं।
  22. व इज़ा सुरिफ़त् अब्सारूहुम् तिल्क़ा-अ अस्हाबिन्नारि, क़ालू रब्बना ला तज्अल्ना मअ़ल् क़ौमिज़्ज़ालिमीन*
    और जब उनकी निगाहें पलटकर जहन्नुमी लोगों की तरफ जा पड़ेगीं (तो उनकी ख़राब हालत देखकर अल्लाह से अजऱ् करेगें) ऐ हमारे परवरदिगार हमें ज़ालिम लोगों का साथी न बनाना।
  23. व नादा अस्हाबुल्-अअ्-राफि रिजालंय्-यअ्-रिफूनहुम् बिसीमाहुम् क़ालू मा अग़्ना अ़न्कुम् जम्अुकुम् व मा कुन्तुम् तस्तक्बिरून
    और आराफ वाले कुछ (जहन्नुमी) लोगों को जिन्हें उनका चेहरा देखकर पहचान लेगें आवाज़ देगें और और कहेगें अब न तो तुम्हारा जत्था ही तुम्हारे काम आया और न तुम्हारी शेखी बाज़ी ही (सूद मन्द हुयी)।
  24. अहा-उला-इल्लज़ी-न अक़्सम्तुम् ला यनालुहुमुल्लाहु बिरह् मतिन्, उद्ख़ुलुल्-जन्न-त ला ख़ौफुन अलैकुम् व ला अन्तुम तह़्ज़नून
    जो तुम दुनिया में किया करते थे यही लोग वह हैं जिनकी निस्बत तुम कसमें खाया करते थे कि उन पर अल्लाह (अपनी) रहमत न करेगा (देखो आज वही लोग हैं जिनसे कहा गया कि बेतकल्लुफ) बेहशत में चलो जाओ न तुम पर कोई खौफ है और न तुम किसी तरह आज़र्दा ख़ातिर परेशानी होगी।
  25. व नादा अस्हाबुन्नारि अस्हाबल्-जन्नति अन् अफ़ीज़ू अलैना मिनल्मा-इ औ मिम्मा र-ज़-क़कुमुल्लाहु, क़ालू इन्नल्ला-ह हर्र-महुमा अ़लल्-काफ़िरीन
    और दोज़ख वाले अहले बहिश्त को (लजाजत से) आवाज़ देगें कि हम पर थोड़ा सा पानी ही उंडेल दो या जो (नेअमतों) अल्लाह ने तुम्हें दी है उसमें से कुछ (दे डालो दो तो अहले बहिश्त जवाब में) कहेंगें कि अल्लाह ने तो जन्नत का खाना पानी काफिरों पर कतई हराम कर दिया है।

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