71 सूरह नूह हिंदी में​

सूरह नूह कुरान के 29वें पारा में 71वीं सूरह है। यह मक्की सूरह है। सूरह नूह में कुल 28 आयतें और कुल 2 रुकू है।

सूरह नूह हिंदी में | Surah Nuh in Hindi​

बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहिम
शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम वाला है
  1. इन्ना अर् सलना नूहन् इला कौमिही’ अन् अन्ज़िर क़ौ-म-क मिन् क़ब्लि अय्यंअ्ति-यहुम् अज़ाबुन् अलीम
    हमने नूह को उसकी क़ौम की ओर भेजा कि “अपनी क़ौम के लोगों को सावधान कर दो, इससे पहले कि उनपर कोई दूःखदायी यातना आ जाए।”।
  2. क़ा-ल या क़ौमि इन्नी लकुम् नज़ीरूम् मुबीन
    उसने कहा, “ऐ मेरी क़ौम के लोगो! मैं तो तुम्हें साफ़ साफ़ समझाता हूँ,”
  3. अनिअ्बुदुल्ला-ह वत्त्कूहु व अतीअून
    कि ‘अल्लाह की वंदना करो और उसका डर रखो और मेरी बात मानो’।
  4. यग्फिर् लकुम् मिन् जुनूबिकुम् व यु-अख्खिर् कुम् इला’अ-जलिम् मुसम्मन् इन्-न अ-ज-लल्लाहि इज़ा जा-अ ला यु-अख्खरु’लौ कुन्तुम् तअ्लमून
    वह तुम्हें क्षमा करके तुम्हारे गुनाहों से तुम्हें पाक कर देगा और एक निश्चित समय तक (अर्थात तुम्हारी निश्चित आयु तक) तुम्हे अवसर देगा। निश्चय ही जब अल्लाह का निर्धारित समय आ जाता है तो वह टलता नहीं, काश तुम जानते!”
  5. क़ा-ल रब्बि इन्नी दऔतु क़ौमी लैलंव् व नहारन्
    नूह़ ने कहा, “ऐ मेरे रब! मैंने अपनी क़ौम के लोगों को रात और दिन बुलाया,
  6. फ़-लम् यज़िद्हुम् दुआइ’ इल्ला फ़िरारा
    किन्तु मेरी पुकार ने उनके भागने को ही बढ़ाया।
  7. व इन्नी कुल्लमा दऔतुहुम् लितग़्फ़ि-र लहुम् असा़बि-अ़हुम् फ़ी आज़ानिहिम् वस्तग़्शौ सि़या-बहुम् व अस़र्रू वस्तक्बरुस्तिक्बारा
    और जब भी मैंने उन्हें बुलाया, ताकि तू उन्हें क्षमा कर दे, तो उन्होंने अपने कानों में अपनी उँगलियाँ दे लीं और अपने कपड़ों से स्वयं को ढाँक लिया और अपनी हठ पर अड़ गए और बड़ा ही घमंड किया।
  8. सुम्-म इन्नी दऔतुहुम् जिहारन्
    फिर मैंने उन्हें खुल्लमखुल्ला बुलाया,
  9. सुम्-म इन्नी अअ्लन्तु लहुम् व अस्-रर्तु लहुम् इस्रारा
    फिर मैंने उनसे खुले तौर पर भी बातें कीं और उनसे चुपके-चुपके भी बातें कीं।
  10. फ़कुल्तुस्तग्फ़िरू रब्बकुम्, इन्नहू का-न ग़फ्फ़ारंय्
    और मैंने कहा, अपने रब से क्षमा की प्रार्थना करो। निश्चय ही वह बड़ा क्षमाशील है,
  11. युर्सिलिस् समाँ-अ अ़लैकुम् मिद् रारंव्
    वह बादल भेजेगा तुमपर ख़ूब बरसने वाला,
  12. व युम्दिद्कुम् बि-अम्वालिंव् व बनी-न व यज्अ़ल् लकुम् जन्नातिंव व यज्अ़ल् लकुम् अन्हारा
    और वह माल और बेटों से तुम्हें बढ़ोतरी प्रदान करेगा, और तुम्हारे लिए बाग़ पैदा करेगा और तुम्हारे लिए नहरें प्रवाहित करेगा।
  13. मा लकुम् ला तर्जु-न लिल्लाहि वक़ारा
    तुम्हें क्या हो गया है कि तुम अल्लाह की अज़मत का ज़रा भी ख़्याल नहीं करते?
  14. व क़द् ख़-ल-क़कुम् अत्वारा
    हालाँकि उसने तुम्हें विभिन्न अवस्थाओं से गुज़ारते हुए पैदा किया।
  15. अ-लम् तरौ कै-फ़ ख़-ल-क़ल्लाहु सब्-अ़ समावातिन् ति़बाक़ंव्
    क्या तुमने देखा नहीं कि अल्लाह ने किस प्रकार ऊपर-तले सात आकाश बनाए,
  16. व ज-अ़-लल् क़-म-र फ़ीहिन्-न नूरंव् व ज-अ़-लश् शम्-स सिराजा
    और उनमें चन्द्रमा को नूर और सूर्य को रौशन चिराग़ बनाया?
  17. वल्लाहु अम्ब-तकुम् मिनल्अर्ज़ि नबाता
    और अल्लाह ने तुम्हें धरती से विशिष्ट प्रकार से विकसित किया,
  18. सुम्-म युअी़दुकुम् फ़ीहा व युख् रिजुकुम् इख्’राजा
    फिर वह तुम्हें उसमें लौटाता है और तुम्हें बाहर निकालेगा भी।
  19. वल्लाहु ज-अ़-ल लकुमुल् अर्-ज़ बिसाता़
    और अल्लाह ने तुम्हारे लिए धरती को बिछौना बनाया,
  20. लितस्लुकू मिन्हा सुबुलन् फ़िजाजा
    ताकि तुम उसके खुली राहों में चलो।
  21. क़ा-ल नूहुर्र्ब्बि इन्नहुम् अ़सौ़नी वत्त-बअ़ु मल्लम् यजिद्हु मालुहू व व -लदुहू इल्ला ख़सारा
    नूह ने कहा, “ऐ मेरे रब! उन्होंने मेरी अवज्ञा की, और उसका अनुसरण किया जिसके धन और जिसके धन और संतान ने उसकी क्षति ही को बढ़ाया।
  22. व माँ-करू मक्’रन् कुब्बारा
    और उन्होंने बड़ी चाल चली।
  23. व क़ालू ला त-ज़रून्-न आलि-ह-तकुम् व ला त-ज़रून्-न वद्’दंव् व ला सुवाअंव्’व ला यगू़-स़ व यऊ-क़ व नस् रा
    और (उलटे) कहने लगे कि आपने माबूदों को हरगिज़ न छोड़ना और न वद को और सुआ को और न यगूस और यऊक़नस्र को छोड़ना। (यह सभी नूह़ (अलैहिस्सलाम) की जाति के बुतों के नाम हैं।)
  24. व क़द् अज़ल्लू कसी़रन्ँव् ला तज़िदिज्ज़ालिमी-न इल्ला ज़लाला
    और उन्होंने बहुत-से लोगों को गुमराह किया है (तो तू उन्हें मार्ग न दिखा) अब, तू भी ज़ालिमों की कुमार्ग ही में अभिवृद्धि कर। (नूह़ (अलैहिस्सलाम) ने 950 वर्ष तक उन्हें समझाया। और जब नहीं माने तो यह निवेदन किया।)
  25. मिम्मा ख़ती’आतिहिम् उग्रिक़ू फ़उद्ख़िलू नारन् फ़-लम् यजिदू लहुम् मिन् दूनिल्लाहि अन्सा़रा
    वे अपने पापों के कारण पानी में डुबो दिए गए, फिर पहुँचा दिये गये नरक में, फिर वे अपने और अल्लाह के बीच आड़ बननेवाले सहायक न पा सके। (इस का संकेत नूह़ के तूफ़ान की ओर है।)
  26. व क़ा-ल नूहुर्र्ब्बि ल़ा त-ज़र् अ़लल्अर्जि़ मिनल् काफ़िरी-न दय्यारा
    और नूह ने कहा, “ऐ मेरे रब! धरती पर इनकार करनेवालों में से किसी बसनेवाले को न छोड़।
  27. इन्न-क इन्’त-जर्हुम् युज़िल्लू अ़िबा-द-क व ला यलिदू इल्ला फ़ाजिरऩ् कफ़्फ़ारा
    यदि तू उन्हें छोड़ देगा तो वे तेरे बन्दों को पथभ्रष्ट कर देंगे और वे दुराचारियों और बड़े अधर्मियों को ही जन्म देंगे।
  28. रब्बिग़्फ़िर्ली व लिवालिदय्-य व लिमन् द-ख़-ल बैति-य मुअ्मिनंव व लिल्मुअ्मिनी-न वल्मुअ्मिनाति’व ला तज़िदिज्ज़ालिमी-न इल्ला तबारा
    ऐ मेरे रब! मुझे क्षमा कर दे और मेरे माँ-बाप को भी और हर उस व्यक्ति को भी जो मेरे घर में ईमानवाला बन कर दाख़िल हुआ और (सामान्य) ईमानवाले पुरुषों और ईमानवाली स्त्रियों को भी (क्षमा कर दे), और ज़ालिमों के विनाश को ही बढ़ा।”

सूरह नूह वीडियो

सूरह नूह हिंदी में

Share this:

Leave a Comment

error: Content is protected !!