72 सूरह जिन्न हिंदी में​

72 सूरह अल जिन्न | Surah Al-Jinn

सूरह अल जिन्न कुरान के 29वें पारा में 72वीं सूरह है। यह मक्की सूरह है। इस सूरह मे कुल 28 आयतें और कुल 2 रुकू है। यह सूरह पारा नंबर 29 मे है।

सूरह जिन्न हिंदी में | Surah Al-Jinn in Hindi

बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहिम
शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम वाला है
  1. कुल् ऊहि-य इलय्-य् अन्नहुस्-त-म-अ़ न-फ़रुम् मिनल्-जिन्नि फ़का़लू इन्ना समिअ्ना कुरआनन् अ़-जबा
    (ऐ रसूल! लोगों से) कह दो कि मेरे पास वही आयी है कि जिनों के एक समूह ने (क़ुरान को) जी लगाकर सुना। तो कहने लगे कि हमने एक अजीब क़ुरान सुना है।
  2. यह्दी इलर्-रुश्दि फ़-आमन्ना बिही, व लन्-नुश्रि-क बिरब्बिना अ-हदा
    जो भलाई और सूझ-बूझ की राह दिखाता है तो हम उस पर ईमान ले आए। और अब तो हम किसी को अपने पालनहार का साझी न बनाएँगे।
  3. व अन्नहू तआ़ला जद्दु रब्बिना मत्त-ख़-ज़ साहि-बतंव्-व ला व-लदा
    और ये कि हमारे रब की शान बहुत बड़ी है। उसने न (किसी को) पत्नी बनाया और न सन्तान।
  4. व अन्नहू का-न यकूलु सफ़ीहुना अ़लल्लाहि श-तता
    और यह कि हममें का मूर्ख व्यक्ति अल्लाह के विषय में सत्य से बिल्कुल हटी हुई बातें कहता रहा है।
  5. व अन्ना ज़नन्ना अल्-लन् तकूलल्-इन्सु वल्जिन्नु अ़लल्लाहि कज़िबा
    और ये कि हमारा तो ख्याल था कि आदमी और जिन अल्लाह के विषय में कभी झूठी बात नहीं बोल सकते।
  6. व अन्नहू का-न रिजालुम् मिनल्-इन्सि यअूजू-न बिरिजालिम् मिनल्-जिन्नि फ़ज़ादूहुम् र-हका़
    और वास्तविक्ता ये है कि मनुष्य में से कुछ लोग, शरण माँगते थे जिन्नों में से कुछ लोगों की, तो उन्होंने अधिक कर दिया उनके गर्व को।
  7. व अन्नहुम् ज़न्नू कमा ज़नन्तुम् अल्लंय् – यब् – अ़सल्लाहु अ – हदा
    और ये कि मनुष्यों ने भी वही समझा, जो तुमने अनुमान लगाया कि कभी अल्लाह फिर किसी को जीवित नहीं करेगा।
  8. व अन्ना ल – मस् नस्समा – अ फ़ – वजद्नाहा मुलिअत् ह – रसन् शदीदंव् – व शुहुबा
    और ये कि हमने आसमान को टटोला तो उसको भी बहुत सख़्त प्रहरियों और शोलो से भरा हुआ पाया।
  9. व अन्ना कुन्ना नक़अु़दु मिन्हा मकाअिद लिस्सम्अि, फ़-मंय्यस्तमिअिल्-आ-न यजिद् लहू शिहाबर्-र-सदा
    और ये कि पहले हम वहाँ बहुत से स्थानों में (बातें) सुनने के लिए बैठा करते थे। मगर अब कोई सुनना चाहे तो अपने लिए शोले तैयार पाएगा।
  10. व अन्ना ला नद्री अ-शर्रुन् उरी-द बिमन् फिल्अर्ज़ि अम् अरा-द बिहिम् रब्बुहुम् र-शदा
    और ये कि हम नहीं समझ पाते कि क्या धरती वालों के साथ किसी बुराई का इरादा किया गया या उनके साथ उनके पालनहार ने सीधी राह पर लाने का इरादा किया है।
  11. व अन्ना मिन्नस्सालिहू-न व मिन्ना दू-न ज़ालि-क कुन्ना तराइ-क़ कि़-ददा
    और हममें से कुछ सदाचारी हैं और हममें से कुछ इसके विपरीत हैं। हम विभिन्न प्रकारों में विभाजित(फिरकें) हैं।
  12. व अन्ना ज़नन्ना अल्-लन् नुअ्जिज़ल्ला-ह फिल्अर्ज़ि व लन् नुअ्जि-ज़हू ह-रबा
    और ये कि हम समझते थे कि हम ज़मीन में (रह कर) अल्लाह को हरगिज़ हरा नहीं सकते हैं। और न विवश कर सकते हैं उसे भागकर।
  13. व अन्ना लम्मा समिअ्नल्-हुदा आमन्ना बिही, फ़- मय्युअ्मिम् बिरब्बिही फ़ला यख़ाफु बख़्संव्-व ला र- हक़ा
    और ये कि जब हमने मार्गदर्शन (की किताब) सुनी तो उन पर ईमान लाए तो जो शख़्श अपने पालनहार पर ईमान लाएगा तो उसको न नुक़सान का ख़ौफ़ है और न ज़ुल्म का।
  14. व अन्ना मिन्नल्-मुस्लिमू-न व मिन्नल्-का़सितू-न, फ़- मन् अस्ल-म फ़-उलाइ-क त-हररौ र-शदा
    और ये कि हम में से कुछ लोग तो फ़रमाबरदार हैं और कुछ लोग नाफ़रमान तो जो लोग फ़रमाबरदार हैं तो वह सीधे रास्ते पर चलें और रहें।
  15. व अम्मल्-कासितू-न फ़कानू लि-जहन्न-म ह-तबा
    तथा जो अत्याचारी हैं, तो वे नरक के ईंधन हो गये।
  16. व अल्-लविस्तका़मू अ़लत्तरी-क़ति ल-अस्कै़नाहुम् माअन् ग़-दका
    और (ऐ रसूल! तुम कह दो) कि अगर ये लोग सीधी राह(अर्थात इस्लाम) पर क़ायम रहते तो हम सींचते उन्हें भरपूर जल से।
  17. लिनफ्ति-नहुम् फ़ीहि, व मंय्युअ्रिज् अ़न् जिक्रि रब्बिही यस्लुक्हु अ़जा़बन् स-अ़दा
    ताकि उससे उनकी परीक्षा लें और जो शख़्श अपने परवरदिगार की याद से मुँह मोड़ेगा तो वह उसको कड़ी यातना में झोंक देगा।
  18. व अन्नल्-मसाजि-द लिल्लाहि फ़ला तद्अू मअ़ल्लाहि अ-हदा
    और ये कि मस्जिदें अल्लाह के लिए हैं। अतः, अल्लाह के साथ किसी को मत पुकारो। (मस्जिद का अर्थ सज्दा करने का स्थान है। भावार्थ यह है कि अल्लाह के सिवा किसी अन्य की इबादत तथा उस के सिवा किसी से प्रार्थना तथा विनय करना अवैध है।)
  19. व अन्नहू लम्मा का-म अ़ब्दुल्लाहि यद्अूहु कादू यकूनू- न अ़लैहि लि-बदा
    और ये कि जब उसका बन्दा (मोहम्मद) उसकी इबादत को खड़ा होता है, तो समीप था कि वे लोग उसपर पिल पड़ते।
  20. कुल इन्नमा अद्अू रब्बी व ला उश्रिकु बिही अ-हदा
    (ऐ रसूल!) तुम कह दो कि मैं तो अपने पालनहार की इबादत करता हूँ। और उसका किसी को साझी नहीं बनाता।
  21. कुल् इन्नी ला अम्लिकु लकुम् ज़ररंव्-व ला र-शदा
    (ये भी) कह दो कि मैं तुम्हारे हक़ में न बुराई ही का अधिकार रखता हूँ और न भलाई का।
  22. कुल इन्नी लंय्युजी-रनी मिनल्लाहि अ-हदुंव्-व लन् अजि-द मिन् दूनिही मुल्त-हदा
    (ये भी) कह दो कि मुझे अल्लाह (के अज़ाब) से कोई भी पनाह नहीं दे सकता। और न मैं उसके बचकर कतराने की कोई जगह देखता हूँ।
  23. इल्ला बलाग़म् मिनल्लाहि व रिसालातिही , व मंय्यअ्सिल्ला-ह व रसूलहू फ़-इन्-न लहू ना-र जहन्न- म ख़ालिदी-न फ़ीहा अ-बदा
    अल्लाह की तरफ से (आदेश के) पहुँचा देने और उसके उपदेशों के सिवा और जिसने अल्लाह और उसके रसूल की अवज्ञा की तो उसके लिए यक़ीनन नरक की आग है। जिसमें वह सदैव रहेगा।
  24. हत्ता इज़ा रऔ मा यू-अ़दू-न फ़-सयअ्लमू-न मन् अज़अ़फु नासिरंव्-व अक़ल्लु अ़-ददा
    यहाँ तक कि जब ये लोग उन चीज़ों को देख लेंगे जिनका उनसे वायदा किया जाता है। तो उनको मालूम हो जाएगा कि किसके सहायक निर्बल और किसकी संख्या कम है।
  25. कुल् इन् अद्री अ-क़रीबुम्-मा तू-अ़दू-न अम् यज्अ़लु लहू रब्बी अ-मदा
    (ऐ रसूल!) तुम कह दो कि मैं नहीं जानता कि जिस दिन का तुमसे वायदा किया जाता है, समीप है या मेरे परवरदिगार ने उसकी लम्बी अवधि ठहरा दी है।
  26. आ़लिमुल्-गै़बि फ़ला युज्हिरु अ़ला गै़बिही अ-हदा
    वह ग़ैब (परोक्ष) का ज्ञानी है, और अपनी ग़ैब की बाते किसी पर ज़ाहिर नहीं करता।
  27. इल्ला मनिर्तज़ा मिर्रसूलिन् फ़-इन्नहू यस्लुकु मिम्-बैनि यदैहि व मिन् ख़ल्फ़िही र-सदा
    मगर जिस पैग़म्बर को पसन्द फरमाए तो उसके आगे और पीछे रक्षक फरिश्ते लगा देता है।
  28. लियअ्ल-म अन् क़द् अब्लगू रिसालाति रब्बिहिम् व अहा-त बिमा लदैहिम् व अह्सा कुल्-ल शैइन् अ़-ददा
    ताकि देख ले कि उन्होंने अपने पालनहार के उपदेश पहुँचा दिए और (यूँ तो) जो कुछ उनके पास है और उसने घेर रखा है, और उसने तो एक एक चीज़ गिन रखी हैं।

सूरह जिन्न वीडियो

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