33 सूरह अल अहज़ाब हिंदी में पेज 2

सूरह अल अहज़ाब हिंदी में | Surat Al-Ahzab in Hindi

  1. ल-क़द् का-न लकुम् फ़ी रसूलिल्लाहि उस्वतुन् ह स नतुल्-लिमन् का-न यर्जुल्ला-ह वल्यौमल्-आख़ि-र व ज़-करल्ला-ह कसीरा
    (मुसलमानों) तुम्हारे वास्ते तो खु़द रसूल अल्लाह का (ख़न्दक़ में बैठना) एक अच्छा नमूना था। (मगर हाँ यह) उस शख़्स के वास्ते है जो अल्लाह और प्रलय की उम्मीद रखता हो और अल्लाह की याद अत्यधिक करता हो।
  2. व लम्मा र अल्-मुअ्मिनूनल् अह्ज़ा-ब क़ालू हाज़ा मा व-अ़-दनल्लाहु व रसूलुहू व स-दक़ल्लाहु व रसूलुहू व मा ज़ा-दहुम् इल्ला ईमानंव्-व तस्लीमा
    और जब सच्चे ईमानदारों ने (कुफ्फार के) सैन्य दलों को देखा तो (बेतकल्लुफ़) कहने लगे कि ये यही चीज़ तो है जिसका हम से अल्लाह ने और उसके रसूल ने वायदा किया था (इसकी परवाह क्या है)। और अल्लाह ने और उसके रसूल ने बिल्कुल ठीक कहा था। और (इसके देखने से) उनका ईमानदार और उनकी आज्ञाकारिता और भी ज़िन्दा हो गयी।
  3. मिनल्-मुअ्मिनी-न रिजालुन् स-दक़ू मा आ़-हदुल्लाह अ़लैहि फ़मिन्हुम् मन् क़ज़ा नह्-बहू व मिन्हुम् मंय्यन्तज़िरु व मा बद्दलू तब्दीला
    ईमानदारों में से कुछ लोग ऐसे भी हैं कि अल्लाह से उन्होंने जो वादा किया था उसे पूरा कर दिखाया। तो उनमें से कुछ वह हैं जो (मर कर) अपना वक़्त पूरा कर गए। और उनमें से कुछ (हुक्मे अल्लाह के) प्रतीक्षा कर रहे हैं। और उन लोगों ने (अपनी बात) ज़रा भी नहीं बदली।
  4. लियज्ज़ि- यल्लाहुस्सादिक़ी-न बिसिद्क़िहिम् व युअ़ज़्ज़िबल् -मुनाफ़िक़ी-न इन् शा-अ औ यतू-ब अ़लैहिम्, इन्नल्ला-ह का-न ग़फ़ूरर्रहीमा
    ये इम्तेहान इसलिए था ताकि खु़द सच्चे (इमानदारों) को उनकी सच्चाई की प्रतिफल दे। और अगर चाहे तो कपटाचारियों की सज़ा करे या (अगर वह लोग तौबा करें तो) अल्लाह उनकी तौबा कु़बूल फरमाए। इसमें शक नहीं कि अल्लाह अति क्षमाशील वाला मेहरबान है।
  5. व रद्दल्लाहुल्लज़ी-न क-फ़रू बिग़ैज़िहिम् लम् यनालू ख़ैरन्, व कफ़ल्लाहुल्- मुअ्मिनीनल्-क़िता-ल, व कानल्लाहु क़विय्यन् अ़ज़ीज़ा
    और अल्लाह ने (अपनी कु़दरत से) क़ाफिरों को मदीने से फेर दिया (और वह लोग) अपनी झुंझलाहट में (फिर गए)। और इन्हें कुछ फायदे भी न हुआ और अल्लाह ने (अपनी मेहरबानी से) ईमान वालों को लड़ने की नौबत न आने दी। और अल्लाह तो (बड़ा) ज़बरदस्त (और) प्रभुत्वशाली हैं।
  6. व अन्ज़लल्लज़ी-न ज़ा-हरूहुम् मिन् अह्हिल-किताबि मिन् सयासीहिम् व क़-ज़-फ़ फ़ी क़ुलूबिहिमुर्-रुअ्-ब फ़रीक़न् तक़्तुलू-न व तअ्सिरू न फ़रीक़ा
    और किताबवालों में से जिन लोगों (बनी कु़रैज़ा) ने उन (कुफ्फार) की मदद की थी। अल्लाह उनको उनके कि़लों से (बेदख़ल करके) नीचे उतार लाया। और उनके दिलों में धाक बिठा दी कि तुम एक गरोह को जान से मारने लगे और एक गरोह को बन्दी बनाने लगे।
  7. व औ-र-सकुम् अर्-ज़हुम् व दिया-रहुम् व अम्वा-लहुम् व अर्ज़ल्-लम् त-तऊहा, व कानल्लाहु अ़ला कुल्लि शैइन् क़दीरा
    और कुछ को क़ैदी (और गु़लाम) बनाने और तुम ही लोगों को उनकी ज़मीन और उनके घर और उनके माल और उस ज़मीन (खै़बर) का अल्लाह ने मालिक बना दिया जिसमें तुमने क़दम तक नहीं रखा था। और अल्लाह तो हर चीज़ पर क़ादिर वतवाना है।
  8. या अय्युहन्नबिय्यु क़ुल् लिअज़्वाजि-क इन् कुन्तुन्-न तुरिद्नल्- हयातद्दुन्या व ज़ीन-तहा फ़-तआ़लै-न उमत्तिअ्कुन्-न व उसर्रिह्कुन्-न सराहन् जमीला
    ऐ रसूल! अपनी पत्नियों से कह दो कि “यदि तुम सांसारिक जीवन और उसकी शोभा चाहती हो तो आओ, मैं तुम्हें कुछ दे-दिलाकर भली रीति से विदा कर दूँ।
  9. व इन् कुन्तुन्-न तुरिद्नल्ला-ह व क रसूलहू वद्दारल्-आख़िर त फ़-इन्नल्ला-ह अ-अ़द्-द लिल्मुह्सिनाति मिन्कुन्-न अज्रन् अ़ज़ीमा
    और यदि तुम अल्लाह और उसके रसूल तथा आख़िरत के घर को चाहती हो, तो तुम लोगों में से सदाचारिणियों के लिए अल्लाह ने यक़ीनन् बड़ा प्रतिफल रख छोड़ा है।
  10. या निसाअन्नबिय्यि मंय्यअ्ति मिन्कुन्-न बिफ़ाहि-शतिम् मुबय्यि-नतिंय्-युज़ा-अ़फ़् ल-हल्-अ़ज़ाबु जिअ्फ़ैनि, व का-न ज़ालि-क अ़लल्लाहि यसीरा
    ऐ पैग़म्बर की पत्नियो! जो तुममें से खुला दुराचार करेगी, तो (याद रहे कि) उसकी यातना भी दुगना बढ़ा दिया जाएगा। और अल्लाह के लिये (निहायत) आसान है। (पारा 21 समाप्त)

पारा 22 शुरू

  1. व मंय्यक़्नुत् मिन्कुन्-न लिल्लाहि व रसूलिही व तअ्मल् सालिहन् नुअ्तिहा अजरहा मर्रतैनि व अअ्तद्ना लहा रिज़्क़न् करीमा
  2. और तुममें से जो (बीवी) अल्लाह और उसके रसूल की निष्ठापूर्वक आज्ञाकारिता अच्छे काम करेगी। उसको हम उसका सवाब भी दोहरा प्रदान करेगें। और हमने उसके लिए (जन्नत में) इज़्ज़त की रोज़ी तैयार कर रखी है।
  3. या निसा-अन्नबिय्यि लस्तुन्-न क-अ-हदिम् मिनन्निसा-इ इनित्तक़ैतुन्-न फ़ला तख़्-ज़अ्-न बिल्क़ौलि फ़यत्म- अ़ल्लज़ी फ़ी क़ल्बिही म-रजुंव्-व क़ुल्-न क़ौलम् मअ्-रूफ़ा ऐ नबी की पत्नियो! तुम नहीं हो अन्य स्त्रियों के समान। यदि तुम अल्लाह से डरती हो, तो (अजनबी आदमी से) बात करने में कोमल भाव से (लगी लिपटी) बात न करो। ताकि जिसके दिल में (शहवते जि़ना का) रोग है वह (कुछ और) इरादा (न) करे।
  4. व क़र्-न फ़ी बुयूतिकुन्-न व ला त-बर्रज्-न त-बर्रुजल्-जाहिलिय्यतिल्- ऊला व अक़िम्नस्सला-त व आतीनज़्- ज़का-त व अतिअ्नल्ला-ह व रसूलहू, इन्नमा युरीदुल्लाहु लियुज़्हि-ब अ़न्कुमुर्- रिज्-स अह्लल्-बैति व यु-तह्हि रकुम् तत्हीरा और रहो अपने घरों में और सौन्दर्य का प्रदर्शन न करो, प्रथम अज्ञान युग के प्रदर्शन के समान। और पाबन्दी से नमाज़ पढ़ा करो। और (बराबर) ज़कात दिया करो और अल्लाह और उसके रसूल की आज्ञा पालन करो। अल्लाह तो बस यही चाहता है कि ऐ नबी के घरवालो, तुमसे गन्दगी को दूर रखे और तुम्हें पूरी तरह पाक-साफ़ रखे।
  5. वज़्कुर्-न मा युत्ला फ़ी बुयूतिकुन्- न मिन् आयातिल्लाहि वल्हिक्मति, इन्नल्ला-ह का- न लतीफ़न् ख़बीरा और (ऐ नबी की बीबियों) तुम्हारे घरों में जो अल्लाह की आयतें और (अक़ल व हिकमत की बातें) पढ़ी जाती हैं उनको याद रखो। कि बेशक अल्लाह बड़ा सूक्ष्मदर्शी, ख़बर रखनेवाला है।
  6. इन्नल्-मुस्लिमी-न वल्मुस्लिमाति वल्मुअ्मिनी-न वल्मुअ्मिनाति वल्क़ानिती-न वल्क़ानिताति वस्सादिक़ी-न वस्सादिक़ाति वस्साबिरी-न वस्साबिराति वल्ख़ाशिई -न वल्ख़ाशिआ़ति वल्मु-तसद्द़िक़ी न वल्मु-तसद्दिक़ाति वस्सा-इमी-न वस्सा-इमाति वल्हाफ़िज़ी-न फ़ुरू-जहुम् वल्हाफ़िज़ाति वज़्ज़ाकिरीनल्ला-ह कसीरंव् – वज़्ज़ाकिराति अ-अ़द्दल्लाहु लहुम् मग़्फ़ि-रतंव्-व अज्रन् अ़ज़ीमा निःसंदेह, मुसलमान मर्द और मुसलमान औरतें और ईमानदार मर्द और ईमानदार औरतें और आज्ञाकारी मर्द और आज्ञाकारिणी औरतें और सच्चे मर्द और सच्ची औरतें और सब्र करने वाले मर्द और सब्र करने वाली औरतें और विनम्रता दिखानेवाले मर्द और विनम्रता दिखानेवाली औरतें और दानशील मर्द और दानशील औरतें और रोज़ादार मर्द और रोज़ादार औरतें और अपनी गुप्तांगों की हिफाज़त करने वाले मर्द और हिफाज़त करने वाली औरतें और अल्लाह की बकसरत याद करने वाले मर्द और याद करने वाली औरतें बेशक इन सब लोगों के वास्ते अल्लाह ने क्षमा और बड़ा प्रतिदान तैयार कर रखा है।
  7. व मा का-न लिमुअ्मिनिंव्-व ला मुअ्मि-नतिन् इज़ा क़ज़ल्लाहु व रसूलुहू अम्रन् अंय्यकू-न लहुमुल्-ख़ि-य-रतु मिन् अम्रिहिम्, व मंय्यअ्सिल्ला-ह व रसूलहू फ़-क़द् ज़ल्-ल ज़लालम् – मुबीन और न किसी ईमानदार मर्द को ये अधिकार है और न किसी ईमानदार औरत को कि जब अल्लाह और उसके रसूल किसी काम का हुक्म दें, तो फिर उन्हें अपने मामले में कोई अधिकार शेष रहे। और (याद रहे कि) जिस शख़्स ने अल्लाह और उसके रसूल की अवज्ञा की, तो वह खुले कुपथ में पड़ गया।
  8. व इज़् तक़ूलु लिल्लज़ी अन्-अ़मल्लाहु अ़लैहि व अन्अ़म्-त अ़लैहि अम्सिक् अ़लै-क ज़ौ-ज-क वत्तक़िल्ला-ह व तुख़्फ़ी फ़ी नफ़्सि-क मल्लाहु मुब्दीहि व तख़्शन्ना-स वल्लाहु अ-हक़्क़ु अन् तख़्शाहु, फ़-लम्मा क़ज़ा ज़ैदुम्-मिन्हा व-तरन् ज़व्वज्ना-क-हा लिकैला यकू-न अ़लल्-मुअ्मिनी-न ह-रजुन् फ़ी अज़्वाजि अद्अिया-इहिम् इज़ा क़ज़ौ मिन्हुन्-न व-तरन्, व का-न अम्-रुल्लाहि मफ़्अूला और (ऐ रसूल! वह वक़्त याद करो) जब तुम उस शख़्स (ज़ैद) से कह रहे थे जिस पर अल्लाह ने एहसान (अलग) किया था और तुमने उस पर (अलग) एहसान किया था कि अपनी बीबी (ज़ैनब) को अपनी ज़ौजि़यत में रहने दे और अल्लाह से डर। खु़द तुम इस बात को अपने दिल में छिपाते थे जिसको (आखि़रकार) अल्लाह ज़ाहिर करने वाला था। और तुम लोगों से डरते थे हालांकि अल्लाह इसका ज़्यादा हक़दार है कि तुम उस से डरो। ग़रज़ जब ज़ैद अपनी हाजत पूरी कर चुका (तलाक़ दे दी) तो हमने (हुक्म देकर) उस औरत (ज़ैनब) का निकाह तुमसे कर दिया। ताकि आम मोमिनीन को अपने मुँह बोले पुत्रों की बीवियों (से निकाह करने) में जब वह अपनी आवश्यक्ता उन औरतों से पूरा कर चुकें (तलाक़ दे दें) किसी तरह की तंगी न रहे। अल्लाह का फ़ैसला तो पूरा होकर ही रहता है।
  9. मा का-न अ़लन्नबिय्यि मिन् ह-रजिन् फीमा फ़-रज़ल्लाहु लहू, सुन्नतल्लाहि फिल्लज़ी-न ख़लौ मिन् क़ब्लु, व का-न अमूरुल्लाहि क़-दरम् मक़्दूरा जो हुक्म अल्लाह ने पैग़म्बर पर फर्ज़ कर दिया (उसके करने) में उस पर कोई तंगी नहीं जो लोग (उनसे) पहले गुज़र चुके हैं उनके बारे में भी अल्लाह का (यही) दस्तूर (जारी) रहा है (कि निकाह में तंगी न की)। और अल्लाह का काम तो जँचा-तुला होता है।
  10. अल्लज़ी-न युबल्लिग़ू-न रिसालातिल्लाहि व यख़्शैनहू व ला यख़्शौ-न अ-हदन् इल्लल्ला-ह, व कफ़ा बिल्लाहि हसीबा वह लोग जो अल्लाह के पैग़ामों को पहुँचाते थे और उससे डरते थे। और अल्लाह के सिवा किसी से नहीं डरते थे (फिर तुम क्यों डरते हो) और हिसाब लेने के वास्ते तो खु़द  पर्याप्त है।
  11. मा का न मुहम्मदुन् अबा अ-हदिम्-मिर्रिजालिकुम् व लाकिर्रसूलल्लाहि व ख़ा-तमन्- नबिय्यी-न, व कानल्लाहु बिकुल्लि शैइन् अ़लीमा (लोगों) मोहम्मद तुम्हारे मर्दों में से (हक़ीक़तन) किसी के बाप नहीं हैं (फिर जै़द की बीवी क्यों हराम होने लगी) बल्कि अल्लाह के रसूल और नबियों में अन्तिम हैं और अल्लाह तो हर चीज़ से पूरा ज्ञान है।

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