33 सूरह अल अहज़ाब हिंदी में पेज 1

33 सूरह अल अहज़ाब | Surah Al-Ahzab

सूरह अल अहज़ाब में 73 आयतें और 9 रुकू हैं। यह सूरह पारा 21 और पारा 22 में है। यह सूरह मदीना में नाजिल हुई।

इस सूरह का नाम वाक्यांश, “ये समझ रहे हैं कि आक्रमणकारी गिरोह (अल-अहज़ाब) अभी गए नहीं हैं” से लिया गया है।

अहज़ाब के युद्ध में अल्लाह की सहायता तथा मुनाफिकों की दुर्गति बताई गई है। इस में मुँह बोले पुत्र की परंपरा को तोड़ने के लिये नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के साथ जैनब (रज़ियल्लाहु अन्हा) के विवाह का वर्णन किया गया है।

सूरह अल अहज़ाब हिंदी में | Surat Al-Ahzab in Hindi

बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहिम
शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम वाला है
  1. या अय्युहन्नबिय्युत्-तक़िल्ला-ह व ला तुतिअिल्-काफ़िरी-न वल्मुनाफ़िकी-न, इन्नल्ला-ह का-न अ़लीमन् हकीमा
    ऐ नबी! अल्लाह ही से डरते रहो और काफिरों और मुनाफिक़ों की बात न मानो। इसमें शक नहीं कि अल्लाह ह़िक्मत वाला, सब कुछ जानने वाला है।
  2. वत्तबिअ् मा यूहा इलै-क मिर्रब्बि-क, इन्नल्ला-ह का-न बिमा तअ्मलू-न ख़बीरा
    और तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से तुम्हारे पास जो “वही” की जाती है (बस) उसी का पालन करो। तुम लोग जो कुछ कर रहे हो अल्लाह उससे निश्चय अच्छा तरह सूचित है।
  3. व तवक्कल् अ़लल्लाहि, व कफ़ा बिल्लाहि वकीला
    और अल्लाह ही पर भरोसा रखो और अल्लाह ही रक्षा करने के लिए काफी है।
  4. मा ज-अ़लल्लाहु लि-रजुलिम् मिन् क़ल्बैनि फ़ी जौफ़िही व मा ज-अ़-ल अज़्वा-जकुमुल्लाई तुज़ाहिरू-न मिन्हुन्-न उम्महातिकुम् व मा ज-अ़-ल अद्-अिया-अकुम् अब्ना-अकुम्, ज़ालिकुम् क़ौलुकुम् बि-अफ़्वाहिकुम्, वल्लाहु यक़ूलुल्- हक़् क़ व हु-व यह्दिस्सबील
    अल्लाह ने किसी आदमी के सीने में दो दिल नहीं पैदा किये कि (एक ही वक़्त दो इरादे कर सके) और न उसने तुम्हारी बीवियों को जिन से तुम जे़हार करते हो तुम्हारी माएँ बना दी और न उसने तुम्हारे मुँह बोले पुत्रों को तुम्हारे बेटे बना दिये। ये तो तुम्हारे मुँह की बातें हैं। और (चाहे किसी को बुरी लगे या अच्छी) अल्लाह तो सच्ची कहता है और सीधी राह दिखाता है।
  5. उद्-अूहुम् लिआबाइहिम् हु-व अक़्-सतु अिन्दल्लाहि फ़-इल्लम् तअ्लमू आबा-अहुम् फ़-इख़्वानुकुम् फ़िद्दीनि व मवालीकुम्, व लै-स अ़लैकुम् जुनाहुन् फ़ीमा अख़्तअ्-तुम् बिही व लाकिम्-मा तअ़म्म- दत् क़ुलूबुकुम्, व कानल्लाहु ग़फ़ूरर्-रहीमा
    मुँह बोले पुत्रों को उनके (असली) बापों के नाम से पुकारा करो यही अल्लाह के नज़दीक बहुत ठीक है। हाँ अगर तुम लोग उनके असली बापों को न जानते हो तो तुम्हारे दीनी भाई और दोस्त हैं (उन्हें भाई या दोस्त कहकर पुकारा करो) और हाँ इसमें भूल चूक जाओ तो अलबत्ता उसका तुम पर कोई इल्ज़ाम नहीं है। मगर जब तुम दिल से जानबूझ कर करो (तो ज़रूर गुनाह है) और अल्लाह तो बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है।
  6. अन्नबिय्यु औला बिल्मुअ्मिनी-न मिन् अन्फ़ुसिहिम् व अज़्वाजुहू उम्महातुहुम्, व उलुल्-अर्हामि बअ्ज़ुहुम् औला बि- बअ्ज़िन् फ़ी किताबिल्लाहि मिनल्-मुअ्मिनी-न वल्मुहाजिरी-न इल्ला अन् तफ़्अ़लू इला औलिया-इकुम् मअ्-रूफ़नू, का-न ज़ालि-क फ़िल्-किताबि मस्तूरा
    नबी तो ईमान वालों से खु़द उनकी जानों से भी बढ़कर हक़ रखते हैं। और उनकी बीवियाँ उनकी माएँ हैं। और अल्लाह के विधान के अनुसार सामान्य मोमिनों और मुहाजिरों की अपेक्षा नातेदार आपस में एक-दूसरे से अधिक निकट हैं। मगर (जब) तुम अपने दोस्तों के साथ भलाई करना चाहो (तो दूसरी बात है) ये तो किताबे (अल्लाह) में लिखा हुआ (मौजूद) है।
  7. व इज़् अख़ज़्ना मिनन्नबिय्यी-न मीसा-क़हुम् व मिन्-क व मिन् नूहिंव्-व इब्राही-म व मूसा व ईसब्नि-मर्य-म व अख़ज़्ना मिन्हुम् मीसाक़न् ग़लीज़ा
    और (ऐ रसूल! वह वक़्त याद करो) जब हमने पैग़म्बरों से, और ख़ास तुमसे और नूह और इबराहीम और मूसा और मरियम के बेटे ईसा से अपना उपदेश पहुँचाने का वचन लिया और उन लोगों से हमने सख़्त वचन लिया था।
  8. लियस्- अलस्सादिक़ी-न अ़न् सिद्क़िहिम् व अ-अ़द्-द लिल्काफ़िरी-न अ़ज़ाबन् अलीमा
    ताकि (क़यामत के दिन) सच्चों (पैग़म्बरों) से उनकी सच्चाई के बारे में पूछे। और इनकार करनेवालों के लिए तो उसने दुःखदायी यातना तैयार ही कर रखा है।
  9. या अय्युहल्लज़ी-न आमनुज़्कुरू निअ्-मतल्लाहि अ़लैकुम् इज़् जाअत्कुम् जुनूदुन् फ़-अर्सल्ना अ़लैहिम् रीहंव्-व जुनूदल्-लम् तरौहा, व कानल्लाहु बिमा तअ्मलू-न बसीरा
    (ऐ ईमानदारों अल्लाह की) उन नेअमतों को याद करो जो उसने तुम पर नाजि़ल की हैं (जंगे खन्दक में) जब तुम पर (काफिरों का) लशकर (उमड़ के) आ पड़ा। तो (हमने तुम्हारी मदद की) उन पर आँधी भेजी और (इसके अलावा फरिश्तों का ऐसा लश्कर भेजा) जिसको तुमने देखा तक नहीं। और तुम जो कुछ कर रहे थे, अल्लाह उसे खू़ब देख रहा था।
  10. इज़् जाऊकुम् मिन् फ़ौक़िकुम् व मिन् अस्-फ़-ल मिन्कुम् व इज़् ज़ा-ग़तिल्-अब्सारु व ब-ल-ग़तिल् क़ुलूबुल्-हनाजि-र तज़ुन्नू-न बिल्लाहिज़्ज़ुनूना
    जिस वक़्त वह लोग तुम पर तुम्हारे ऊपर से आ पड़े और तुम्हारे नीचे की तरफ से भी चढ़ आए। और जिस वक़्त (उनकी कसरत से) तुम्हारी आँखें टेढ़ी हो गयीं थी। और (ख़ौफ से) दिल मुँह को आ गए थे। और अल्लाह पर तरह-तरह के (बुरे) विचार करने लगे थे।
  11. हुनालिकब्-तुलियल्-मुअ्मिनू-न व जुल्ज़िलू ज़िल्ज़ालन् शदीदा
    यहाँ पर ईमान वालो का इम्तिहान लिया गया था और ख़ूब अच्छी तरह झिंझोड़े गए थे।
  12. व इज़् यक़ूलुल्- मुनाफ़िक़ू-न वल्लज़ी-न फ़ी क़ुलूबिहिम् म- रजुम् मा व-अ़-दनल्लाहु व रसूलुहू इल्ला ग़ुरूरा
    और जिस वक़्त कपटी और वह लोग जिनके दिलों में (कुफ्र का) रोग था कहने लगे थे कि अल्लाह ने और उसके रसूल ने जो हमसे वायदे किए थे वह बस बिल्कुल धोखा मात्र था।।
  13. व इज़् क़ालत्ताइ-फ़तुम् मिन्हुम् या अहू-ल यस्रि – ब ला मुक़ा-म लकुम् फर्जिअू व यस्तअ्ज़िनु फ़रीक़ुम् मिन्हुमुन्नबिय्-य यक़ूलू-न इन्-न बुयूतना औ़-रतुन्, व मा हि-य बिऔ़-रतिन्, इंय्युरीदू – न इल्ला फ़िरारा
    और अब उनमें का एक गिरोह कहने लगा था कि ऐ मदीने वालों! अब (दुश्मन के मुक़ाबलें में) तुम्हारे कहीं ठिकाना नहीं तो (बेहतर है कि अब भी) पलट चलो। और उनमें से कुछ लोग रसूल से (घर लौट जाने की) इजाज़त माँगने लगे थे कि हमारे घर (मर्दों से) बिल्कुल ख़ाली (गै़र महफूज़) पड़े हुए हैं। हालाँकि वह ख़ाली (ग़ैर महफूज़) न थे (बल्कि) वह लोग तो (इसी बहाने से) बस भागना चाहते हैं।
  14. व लौ दुख़िलत् अ़लैहिम् मिन् अक़्तारिहा सुम्-म सुइलुल्- फ़ित्-न-त लआतौहा व मा तलब्बसू बिहा इल्ला यसीरा
    और अगर ऐसा ही लश्कर उन लोगों पर मदीने के ओर से आ पड़े। और उन से उपद्रव (ख़ाना जंगी) करने की दरख़्वास्त की जाए तो ये लोग उसके लिए (फौरन) आ मौजूद हों।
  15. व ल-क़द् कानू आ़-हदुल्ला-ह मिन् क़ब्लु ला युवल्लूनल्-अद्बा-र, व का-न अ़ह्दुल्लाहि मस्ऊला
    और (उस वक़्त) अपने घरों में भी बहुत कम तवक़्कु़फ़ करेंगे (मगर ये तो जिहाद है)। हालाँकि उन लोगों ने पहले ही अल्लाह से वादा किया था कि हम दुश्मन के मुक़ाबले में (अपनी) पीठ न फेरेगें। और अल्लाह के वादा की पूछताछ तो (एक न एक दिन) होकर रहेगी।
  16. कुल लंय्यन्फ़-अ़कुमुल्-फ़िरारु इन् फ़रर्तुम् मिनल्-मौति अविल्-क़त्लि व इज़ल् ला तुमत्तअू-न इल्ला क़लीला
    (ऐ रसूल! उनसे) कह दो कि यदि तुम मृत्यु और मारे जाने से भागो भी तो (यह) भागना तुम्हें हरगिज़ कुछ भी लाभ नहीं पहुँचायेगा। और अगर तुम भागकर बच भी गए तो बस यही न की दुनिया में कुछ दिन और चैन कर लो।
  17. क़ुल मन् ज़ल्लज़ी यअ्सिमुकुम् मिनल्लाहि इन् अरा-द बिकुम् सूअन् औ अरा-द बिकुम् रह्म-तन्, व ला यजिदू-न लहुम् मिन् दूनिल्लाहि वलिय्यंव-व ला नसीरा
    (ऐ रसूल!) तुम उनसे कह दो कि अगर अल्लाह तुम्हारे साथ बुराई का इरादा कर बैठे तो तुम्हें उसके (अज़ाब) से कौन ऐसा है जो बचाए। या भलाई ही करना चाहे (तो कौन रोक सकता है) और ये लोग अल्लाह के सिवा न तो किसी को अपना संरक्षक पाएँगे और न सहायक।
  18. क़द् यअ्-लमुल्लाहुल्-मुअ़व्विक़ी न मिन्कुम् वल्क़ाइली-न लि-इख़्वानिहिम् हलुम्-म इलैना व ला यअ्तूनल्-बअ्-स इल्ला क़लीला
    तुममें से जो लोग (दूसरों को जिहाद से) रोकते हैं अल्लाह उनको खू़ब जानता है। और (उनको भी खू़ब जानता है) जो अपने भाइयों से कहते हैं कि हमारे पास चले भी आओ और खु़द भी (फक़त पीछा छुड़ाने को लड़ाई के मैदान) में बस एक ज़रा सा आकर तुमसे अपनी जान चुराई।
  19. अशिह्ह-तन् अ़लैकुम् फ़-इज़ा जा-अल्-ख़ौफ़ु रऐ-तहुम् यन्-ज़ुरू-न इलै-क तदूरु अअ्युनुहुम् कल्लज़ी युग़्शा अ़लैहि मिनल्- मौति फ़-इज़ा ज़-हबल्-ख़ौफ़ु स-लक़ूकुम् बि-अल्सि-नतिन् हिदादिन् अशिह्ह-तन् अ़लल्-ख़ैरि, उलाइ-क लम् युअ्मिनू फ़- अह्-बतल्लाहु अअ्मालहुम्, व का-न ज़ालि-क अ़लल्लाहि यसीरा
    और चल दिए। और जब (उन पर) कोई ख़ौफ (का मौक़ा) आ पड़ा तो देखते हो कि (आस से) तुम्हारी तरफ देखते हैं। (और) उनकी आँखें इस तरह घूमती हैं जैसे किसी शख्स पर मौत की बेहोशी छा जाए। फिर वह ख़ौफ (का मौक़ा) जाता रहा और ईमानदारों की फतेह हुयी तो माले (ग़नीमत) पर गिरते पड़ते फौरन तुम पर अपनी तेज़ ज़बानों से ताना कसने लगे। ये लोग (शुरू) से ईमान ही नहीं लाए (फक़त ज़बानी जमा ख़र्च थी) तो अल्लाह ने भी इनका किया कराया सब व्यर्थ कर दिया और ये तो अल्लाह के वास्ते एक (बहुत) आसान बात थी।
  20. यह्सबूनल्-अह्ज़ा-ब लम् यज़्हबू व इंय्यस्तिल्-अह्ज़ाबु यवद्दू लौ अन्नहुम् बादू-न फ़िल्-अअ्-राबि यस्अलू-न अ़न् अम्बा-इकुम्, व लौ कानू फ़ीकुम् मा क़ा-तलू इल्ला क़लीला
    (मदीने का मुहासेरा करने वाले चल भी दिए मगर) ये लोग अभी यही समझ रहे हैं कि (काफि़रों के) लश्कर अभी नहीं गए। और अगर कहीं (कुफ्फार का) लश्कर फिर आ पहुँचे तो ये लोग चाहेंगे कि काश वह जंगलों में गाँव में जा बसते। और (वहीं से बैठे बैठे) तुम्हारे हालात दरयाफ़्त करते रहते। और यदि तुममें होते भी, तो वे युध्द में कम ही भाग लेते।

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