33 सूरह अल अहज़ाब हिंदी में पेज 3

सूरह अल अहज़ाब हिंदी में | Surat Al-Ahzab in Hindi

  1. या अय्युहल्लज़ी-न आमनुज़्कुरुल्ला-ह ज़िक्रन् कसीरा
    ऐ ईमानवालों! अल्लाह की याद अत्यधिक किया करो।
  2. व सब्बिहूहु बुक्र-तंव्-व असीला
    और सुबह व शाम उसकी पवित्रता बयान करते रहो।
  3. हुवल्लज़ी युसल्ली अ़लैकुम् व मलाइ कतुहू लियुख़् रि-जकुम् मिनज़्ज़ुलुमाति इलन्नूरि, व का-न बिल्मुअ्मिनी-न रहीमा
    वही है, जो दया कर रहा है तुमपर तथा प्रार्थना कर रहे हैं (तुम्हारे लिए) उसके फ़रिश्ते। ताकि तुमको (कुफ्र के) अंधेरों से निकालकर (ईमान की) रौशनी में ले जाए। और अल्लाह ईमानवालों पर बड़ा मेहरबान है।
  4. तहिय्यतुहुम् यौ-म यत्क़ौनहू सलामुन् व अ-अ़द्-द लहुम् अज्रन् करीमा
    जिस दिन वे उससे मिलेंगे उनका अभिवादन सलाम से होगा। और अल्लाह ने तो उनके वास्ते बहुत अच्छा बदला (बेहश्त) तैयार रखा है।
  5. या अय्युहन्नबिय्यु इन्ना अर्सल्ना-क शाहिदंव्-व मुबश्शिरंव्-व नज़ीरा
    ऐ नबी! हमने तुमको (लोगों का) गवाह और (नेकों को बेहश्त की) खुशख़बरी देने वाला और सचेत करनेवाला बनाकर भेजा है।
  6. व दाअि-यन् इलल्लाहि बि-इज़्निही व सिराजम्-मुनीरा
    और अल्लाह की तरफ उसी के हुक्म से बुलाने वाला और (इमान व हिदायत का) रौशन चिराग़ बनाकर भेजा।
  7. व बश्शिरिल्-मुअ्मिनी-न बिअन्-न लहुम् मिनल्लाहि फ़ज़्लन् कबीरा
    और तुम ईमान वालों को खुशख़बरी दे दो कि उनके लिए अल्लाह की तरफ से बहुत बड़ा उदार अनुग्रह है।
  8. व ला तुतिअिल्-काफ़िरी-न वल्-मुनाफ़िक़ी-न व दअ्
    अज़ाहुम् व तवक्कल् अ़लल्लाहि, व कफ़ा बिल्लाहि वकीला
    और (ऐ रसूल!) तुम (कहीं) काफिरों और मुनाफिक़ों के कहने में न आना और उनकी पहुँचाई हुई तकलीफ़ का ख़्याल छोड़ दो। और अल्लाह पर भरोसा रखो और काम बनाने के लिए अल्लाह काफ़ी है।
  9. या अय्युहल्लज़ी-न आमनू इज़ा नकह्तुमुल् मुअ्मिनाति सुम्-म तल्लक़्तुमूहुन्-न मिन् क़ब्लि अन् तमस्सूहुन्-न फ़मा लकुम् अ़लैहिन्-न मिन् अिद्दतिन् तअ्तद्दूनहा फ़-मत्तिअूहुन्-न व सर्रिहू- हुन्-न सराहन् जमीला
    ऐ ईमान वालों! जब तुम मोमिना औरतों से (बग़ैर मेहर मुक़र्रर किये) निकाह करो उसके बाद उन्हें अपने हाथ लगाने से पहले ही तलाक़ दे दो तो फिर तुमको उनपर कोई हक़ नहीं कि (उनसे) इद्दत पूरा कराओ उनको तो कुछ (कपड़े रूपये वग़ैरह) देकर भलाई के साथ रूख़सत कर दो।
  10. या अय्युहन्-नबिय्यु इन्ना अह्लल्ना ल-क अज़्वा-जकल्लाती आतै-त उजू-रहुन्-न व मा म-लकत् यमीनु-क मिम्मा अफ़ाअल्लाहु अ़लै-क व बनाति अ़म्मिक व बनाति अ़म्माति-क व बनाति ख़ालि-क व बनाति ख़ालातिकल्- लाती हाजर्-न म-अ़-क वम्-र-अतम् मुअ्मि नतन् इंव्व-हबत् नफ़्सहा लिन्नबिय्यि इन् अरादन्नबिय्यु अंय्यस्तन्कि-हहा, ख़ालि-सतल् ल-क मिन् दूनिल्-मुअ्मिनी-न, क़द् अ़लिम्ना मा फ़रज़्ना अ़लैहिम् फ़ी अज़्वाजिहिम् व मा म-लकत् ऐमानुहुम् लिकैला यकू-न अ़लै-क ह-रजुन्, व कानल्लाहु ग़फ़ूरर्-रहीमा
    ऐ नबी! हमने तुम्हारे लिए तुम्हारी उन बीवियों को वैध कर दिया है जिनको तुम मेहर दे चुके हो। और तुम्हारी उन दासियों को (भी) जो अल्लाह ने तुमको (बग़ैर लड़े-भिड़े) माले ग़नीमत में अता की है। और तुम्हारे चचा की बेटियाँ और तुम्हारी फूफियों की बेटियाँ और तुम्हारे मामू की बेटियाँ और तुम्हारी ख़ालाओं की बेटियाँ जो तुम्हारे साथ हिजरत करके आयी हैं (हलाल कर दी) और हर ईमानवाली औरत (भी हलाल कर दी) अगर वह अपने को (बग़ैर मेहर) नबी को दे दें और नबी भी उससे निकाह करना चाहते हों। मगर (ऐ रसूल!) ये हुक्म सिर्फ तुम्हारे वास्ते ख़ास है और मोमिनीन के लिए नहीं। और हमने जो कुछ (मेहर या क़ीमत) आम अन्य ईमान वालो पर उनकी बीवियों और उनकी दासियों के बारे में अनिवार्य कर दिया है। हम खू़ब जानते हैं और (तुम्हारी रिआयत इसलिए है) ताकि तुमको (बीवियों की तरफ से) कोई दिक़्क़त न हो। और अल्लाह तो बहुत क्षमाशील, दयावान है।
  11. तुर्जी मन् तशा-उ मिन्हुन्-न व तुअ्वी इलै-क मन् तशा-उ, व मनिब्तग़ै-त मिम्मन् अ़ज़ल्-त फ़ला जुना-ह अ़लै-क, ज़ालि-क अद्ना अन् तक़र्-र अअ्युनुहुन्-न व ला यह्ज़न्-न व यर्-ज़ै-न बिमा आतै-तहुन्-न कुल्लुहुन्न, वल्लाहु यअ्लमु मा फ़ी क़ुलूबिकुम्, व कानल्लाहु अ़लीमन् हलीमा
    इनमें से जिसको (जब) चाहो अलग कर दो और जिसको (जब तक) चाहो अपने पास रखो। और जिन औरतों को तुमने अलग कर दिया था अगर फिर तुम उनको चाहो तो भी तुम पर कोई दोष नहीं है। ये (अख़तेयार जो तुमको दिया गया है) ज़रूर इस क़ाबिल है कि तुम्हारी बीवियों की आँखें ठन्डी रहे और वे शोकाकुल न हों। और जो कुछ तुम उन्हें दे दो सबकी सब उस पर राज़ी रहें। और जो कुछ तुम्हारे दिलों में है अल्लाह उसको ख़ुब जानता है। और अल्लाह तो अति ज्ञानी, सहनशील है।
  12. ला यहिल्लु लकन्निसा-उ मिम्बअ्दु व ला अन् तबद्द-ल बिहिन्-न मिन् अज़्वाजिंव्-व लौ अअ्-ज-ब-क हुस्नुहुन् न इल्ला मा म-लकत् यमीनु-क, व कानल्लाहु अ़ला कुल्लि शैइर्-रक़ीबा *
    (ऐ रसूल!) अब उन (नौ) के बाद (और) पत्नियाँ तुम्हारे लिए हलाल नहीं और न ये जायज़ है कि उनके बदले उनमें से किसी को छोड़कर और पत्नियाँ कर लो। यद्यपि तुमको उनका सौन्दर्य कैसा ही भला (क्यों न) मालूम हो। मगर तुम्हारी दासीयाँ (इस के बाद भी जायज़ हैं) और वास्तव में अल्लाह की दृष्टि हर चीज़ पर है।
  13. या अय्युहल्लज़ी-न आमनू ला तद्ख़ुलू बुयूतन्नबिय्यि इल्ला अंय्युअ्-ज़-न लकुम् इला तआ़मिन् ग़ै-र नाज़िरी-न इनाहु व लाकिन् इज़ा दुअीतुम् फ़द्ख़ुलू फ़-इज़ा तअिम्तुम् फ़न्तशिरू व ला मुस्तअ्निसी-न लि-हदीसिन्, इन्-न ज़ालिकुम् का-न युअ्ज़िन्नबिय्-य फ़-यस्तह्यी मिन्कुम् वल्लाहु ला यस्तह्यी मिनल्-हक़्क़ि, व इज़ा सअल्तुमूहुन्-न मताअ़न् फ़स्अलूहुन्-न मिंव्वरा-इ हिजाबिन्, ज़ालिकुम् अत्हरु लिक़ुलूबिकुम् व क़ुलूबिहिन्-न, व मा का-न लकुम् अन् तुअ्ज़ू रसूलल्लाहि व ला अन् तन्किहू अज़्वाजहू मिम्बअ्दिही अ-बदन्, इन्- न ज़ालिकुम् का-न अिन्दल्लाहि अ़ज़ीमा
    ऐ ईमानदारों! तुम लोग पैग़म्बर के घरों में न जाया करो मगर जब तुमको खाने के वास्ते (अन्दर आने की) अनुमति दी जाए। (लेकिन) उसके पकने का इन्तेज़ार (नबी के घर बैठकर) न करो। मगर जब तुमको बुलाया जाए तो (ठीक वक़्त पर) जाओ। और फिर जब खा चुको तो (फौरन अपनी अपनी जगह) चले जाया करो। और बातों में न लग जाया करो क्योंकि इससे पैग़म्बर को दुःख होता है। तो वह तुमसे लजाते हैं और अल्लाह तो ठीक (ठीक कहने) से झेंपता नहीं। और जब पैग़म्बर की बीवियों से कुछ माँगना हो तो पर्दे के बाहर से माँगा करो। यही तुम्हारे दिलों और उनके दिलों के वास्ते बहुत सफाई की बात है।और तुम्हारे वास्ते ये जायज़ नहीं कि रसूले अल्लाह को (किसी तरह) दुःख दो। और न ये जायज़ है कि तुम उसके बाद कभी उनकी बीवियों से निकाह करो। बेशक ये अल्लाह के नज़दीक बड़ा (गुनाह) है।
  14. इन् तुब्दू शैअन् औ तुख़्फ़ूहु फ़-इन्नल्ला-ह का-न बिकुल्लि शैइन् अ़लीमा
    चाहे किसी चीज़ को तुम ज़ाहिर करो या उसे छिपाओ। अल्लाह तो (बहरहाल) हर चीज़ से यक़ीनी खू़ब आगाह है।
  15. ला जुना-ह अ़लैहिन्-न फ़ी आबा- इहिन्-न व ला इख़्वानिहिन्-न व ला अब्ना-इ इख़्वानिहिन्-न व ला अब्ना-इ अ-ख़वातिहिन्-न व ला निसा-इहिन्-न व ला मा म-लकत् ऐमानुहुन् न वत्तक़ीनल्ला-ह, इन्नल्ला-ह का न अ़ला कुल्लि शैइन् शहीदा
    औरतों पर न अपने बाप दादाओं (के सामने होने) में कुछ गुनाह है। और न अपने बेटों के और न अपने भाईयों के और न अपने भतीजों के और अपने भांजों के और न अपनी (कि़स्म कि) औरतों के और न अपनी दासियों के सामने होने में कुछ गुनाह है। (ऐ पैग़म्बर की बीबियों!) तुम लोग अल्लाह से डरती रहो। इसमें कोई शक ही नहीं की अल्लाह (तुम्हारे आमाल में) हर चीज़ से साक्षी है।
  16. इन्नल्ला-ह व मलाइ-क-तहू युसल्लू-न अ़लन्नबिय्यि, या अय्युहल्लज़ी-न आमनू सल्लू अ़लैहि व सल्लिमू तस्लीमा
    इसमें भी शक नहीं कि अल्लाह और उसके फरिश्ते पैग़म्बर (और उनकी आल) पर दुरूद भेजते हैं। तो ऐ ईमानदारों! तुम भी दुरूद भेजते रहो। और बराबर सलाम करते रहो।
  17. इन्नल्लज़ी-न युअ्जूनल्ला-ह व रसूलहू ल-अ़-नहुमुल्लाहु फ़िद्-दुन्या वल्-आख़िरति व अ-अ़द्-द लहुम् अ़ज़ाबम् – मुहीना
    बेशक जो लोग अल्लाह को और उसके रसूल को दुःख देते हैं। उन पर अल्लाह ने दुनिया और आखे़रत (दोनों) में धिक्कार किया है और उनके लिए अपमानकारी यातना  तैयार कर रखा है।
  18. वल्लज़ी-न युअ्ज़ूनल्-मुअ्मिनी-न वल्मुअ्मिनाति बिग़ैरि मक्त-सबू फ़-क़दिस्त-मलू बुह्तानंव्-व इस्मम्-मुबीना
    और जो लोग ईमानदार मर्द और ईमानदार औरतों को बगै़र कुछ किए दुख पहुँचाते हैं। तो वह एक आरोप और खुले पाप का बोझ (अपनी गर्दन पर) उठाते हैं।
  19. या अय्युहन्नबिय्यु क़ुल् लि-अज़्वाजि-क व बनाति-क व निसाइल्-मुअ्मिनी-न युद्नी-न अ़लैहिन्-न मिन् जलाबीबिहिन्-न, ज़ालि-क अद्ना अंय्युअ्-रफ़्-न फ़ला युअ्ज़ै-न, व कानल्लाहु ग़फ़ूरर्रहीमा
    ऐ नबी! अपनी बीवियों और अपनी लड़कियों और मोमिनीन की औरतों से कह दो कि (बाहर निकलते वक़्त) अपने (चेहरों और गर्दनों) पर अपनी चादरों का घूँघट लटका लिया करें। ये उनकी (शराफ़त की) पहचान के वास्ते बहुत मुनासिब है। तो उन्हें कोई छेड़ेगा नहीं और अल्लाह तो बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है।
  20. ल- इल्लम् यन्तहिल्- मुनाफ़िक़ू-न वल्लज़ी-न फ़ी क़ुलूबिहिम् म- रजुंव्वल्- मुर्जिफ़ू-न फ़िल्मदी-नति ल-नुग़्रियन्न-क सुम्-म ला युजाविरू-न-क फ़ीहा इल्ला क़लीला
    ऐ रसूल! कपटाचारी और वह लोग जिनके दिलों में (कुफ्र का) रोग है और जो लोग मदीने में बुरी ख़बरें उड़ाया करते हैं। अगर ये लोग (अपनी शरारतों से) बाज़ न आएंगे तो हम तुम ही को (एक न एक दिन) उन पर हावी कर देगें। फिर वह तुम्हारे पड़ोस में कुछ दिनो के सिवा ठहर न पाएँगे।(मुश्रिक मुसलमानों को हताश करने के लिये कभी मुसलमानों की पराजय और कभी किसी भारी सेना के आक्रमण की अफ़्वाह मदीना में फैला दिया करते थे। जिस के दुष्परिणाम से उन्हें सावधान किया गया है।)

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