- ला युस्अलु अ़म्मा यफ्अलु व हुम् युस् अलून
जो कुछ वो करता है उसकी पूछगछ नहीं हो सकती (23) - अमित्त – ख़ जू मिन् दूनिही आलि – हतन्, कुल् हातू बुरहानकुम् हाज़ा ज़िक्रु मम् मअि-य व ज़िक्रु मन् क़ब्ली, बल् अक्सरूहुम् ला यअ्लमूनल्-हक्-क फ़हुम् मुअ्-रिजून
(हाँ) और उन लोगों से बाज़ पुरस्त होगी क्या उन लोगों ने खु़दा को छोड़कर कुछ और माबूद बना रखे हैं (ऐ रसूल) तुम कहो कि भला अपनी दलील तो पेश करो जो मेरे (ज़माने में) साथ है उनकी किताब (कु़रआन) और जो लोग मुझ से पहले थे उनकी किताबें (तौरेत वग़ैरह) ये (मौजूद) हैं (उनमें खु़दा का शरीक बता दो) बल्कि उनमें से अक्सर तो हक़ (बात) को तो जानते ही नहीं (24) - व मा अर्सल्ना मिन् कब्लि – क मिर्रसूलिन् इल्ला नूही इलैहि अन्नहू ला इला – ह इल्ला अ-न फ़अ्बुदून
तो (जब हक़ का जि़क्र आता है) ये लोग मुँह फेर लेते हैं और (ऐ रसूल) हमने तुमसे पहले जब कभी कोई रसूल भेजा तो उसके पास “वही” भेजते रहे कि बस हमारे सिवा कोई माबूद क़ाबिले परसतिश नहीं तो मेरी इबादत किया करो (25) - व क़ालुत्त – ख़ज़र्रह्मानु व- लदन् सुब्हानहू, बल् अिबादुम् मुक्रमून
और (एहले मक्का) कहते हैं कि खु़दा ने (फरिश्तों को) अपनी औलाद (बेटियाँ) बना रखा है (हालाँकि) वह उससे पाक व पकीज़ा हैं बल्कि (वो फ़रिश्ते) (खु़दा के) मोअजि़्ज़ बन्दे हैं (26) - ला यस्बिकूनहू बिल्क़ौलि व हुम् बिअम्रिही यअ्मलून
ये लोग उसके सामने बढ़कर बोल नहीं सकते और ये लोग उसी के हुक्म पर चलते हैं (27) - यअ्लमु मा बै- न ऐदीहिम् व मा ख़ल्फ़हुम् व ला यश्फ़अू-न इल्ला लि-मनिर्तज़ा व हुम् मिन् ख़श्यतिही मुश्फिकून
जो कुछ उनके सामने है और जो कुछ उनके पीछे है (ग़रज़ सब कुछ) वो (खु़दा) जानता है और ये लोग उस शख़्स के सिवा जिससे खुदा राज़ी हो किसी की सिफारिश भी नहीं करते और ये लोग खुद उसके ख़ौफ से (हर वक़्त) डरते रहते हैं (28) - व मंय्यकुल मिन्हुम् इन्नी इलाहुम् – मिन् दूनिही फ़ज़ालि- क नज्ज़ीहि जहन्न-म कज़ालि-क नज्ज़िज़्ज़ालिमीन *
और उनमें से जो कोई ये कह दे कि खु़दा नहीं (बल्कि) मैं माबूद हूँ तो वह (मरदूद बारगाह हुआ) हम उसको जहन्नुम की सज़ा देंगे और सरकशों को हम ऐसी ही सज़ा देते हैं (29) - अ-व लम् यरल्लज़ी – न क-फ़रू अन्नस्समावाति वल् अर् – ज़ कानता रत्क़न् फ़ फ़तक़्नाहुमा, व जअ़ल्ना मिनल्मा इ कुल-ल शैइन् हय्यिन्, अ-फ़ला युअ्मिनून
जो लोग काफ़िर हो बैठे क्या उन लोगों ने इस बात पर ग़ौर नहीं किया कि आसमान और ज़मीन दोनों बस्ता (बन्द) थे तो हमने दोनों को शिगाफ़ता किया (खोल दिया) और हम ही ने जानदार चीज़ को पानी से पैदा किया इस पर भी ये लोग ईमान न लाएँगे (30) - अ-व लम् यरल्लज़ी – न क-फ़रू अन्नस्समावाति वल् अर् – ज़ कानता रत्क़न् फ़ फ़तक़्नाहुमा, व जअ़ल्ना मिनल्मा इ कुल-ल शैइन् हय्यिन्, अ-फ़ला युअ्मिनून
और हम ही ने ज़मीन पर भारी बोझल पहाड़ बनाए ताकि ज़मीन उन लोगों को लेकर किसी तरफ झुक न पड़े और हम ने ही उसमें लम्बे-चैड़े रास्ते बनाए ताकि ये लोग अपने-अपने मंजि़लें मक़सूद को जा पहुँचे (31) - व जअ़ल्नस् – समा – अ सक़्फ़म् महफूज़ंव् – व हुम् अ़न् आयातिहा मुअ्-रिजून
और हम ही ने आसमान को छत बनाया जो हर तरह महफूज़ है और ये लोग उसकी आसमानी निशानियों से मुँह फेर रहे हैं (32) - व हुवल्लज़ी ख़ – लक़ल्लै – ल वन्नहा – र वश्शम् – स वल्-क-म- र, कुल्लुन् फ़ी फ़ – लकिंय्यस्बहून
और वही वह (क़ादिरे मुतलक़) है जिसने रात और दिन और आफ़ताब और माहताब को पैदा किया कि सब के सब एक (एक) आसमान में पैर कर चक्कर लगा रहे हैं (33) - व हुवल्लज़ी ख़ – लक़ल्लै – ल वन्नहा – र वश्शम् – स वल्-क-म- र, कुल्लुन् फ़ी फ़ – लकिंय्यस्बहून
और (ऐ रसूल) हमने तुमसे पहले भी किसी फर्द व बशर को सदा की जि़न्दगी नहीं दी तो क्या अगर तुम मर जाओगे तो ये लोग हमेशा जिया ही करेंगे (34) - व हुवल्लज़ी ख़ – लक़ल्लै – ल वन्नहा – र वश्शम् – स वल्-क-म- र, कुल्लुन् फ़ी फ़ – लकिंय्यस्बहून
(हर शख़्स एक न एक दिन) मौत का मज़ा चखने वाला है और हम तुम्हें मुसीबत व राहत में इम्तेहान की ग़रज़ से आज़माते हैं और (आखि़र कार) हमारी ही तरफ लौटाए जाओगे (35) - व इज़ा रआकल्लज़ी न क फ़रू इंय्यत्तख़िजून क इल्ला हुजुवन् अ – हाज़ल्लज़ी यज़्कुरू आलि – ह तकुम् व हुम् बिज़िकरिर्रह्मानि हुम् काफिरून
और (ऐ रसूल) जब तुम्हें कुफ़्फ़ार देखते हैं तो बस तुमसे मसखरापन करते हैं कि क्या यही हज़रत हैं जो तुम्हारे माबूदों को (बुरी तरह) याद करते हैं हालाँकि ये लोग खु़द खु़दा की याद से इन्कार करते हैं (तो इनकी बेवकू़फी पर हँसना चाहिए) (36) - खुलिकल् – इन्सानु मिन् अ़-जलिन् स-उरीकुम् आय़ाती फ़ला तस्तअ्जिलून
आदमी तो बड़ा जल्दबाज़ पैदा किया गया है मैं अनक़रीब ही तुम्हें अपनी (कु़दरत की) निशानियाँ दिखाऊँगा तो तुम मुझसे जल्दी की (धूम) न मचाओ (37) - व यकूलू – न मता हाज़ल – वअ्दु इन् कुन्तुम् सादिक़ीन
और लुत्फ़ तो ये है कि कहते हैं कि अगर सच्चे हो तो ये क़यामत का वायदा कब (पूरा) होगा (38) - लौ यस् – लमुल्लज़ी न क फ़रू ही-न ला यकुफ़्फू – न अंव्वुजूहिहिमुन्ना-र व ला अन् जुहूरिहिम् व ला हुम् युन्सरून
और जो लोग काफि़र हो बैठे काश उस वक़्त की हालत से आगाह होते (कि जहन्नुम की आग में खडे़ होंगे) और न अपने चेहरों से आग को हटा सकेंगे और न अपनी पीठ से और न उनकी मदद की जाएगी (39) - बल् तअ्तीहिम् ब़ग्त – तन् फ़ – तब्हतुहुम् फ़ला यस्ततीअू – न रद्दहा व ला हुम् युन्ज़रून
(क़यामत कुछ जता कर तो आने से रही) बल्कि वह तो अचानक उन पर आ पड़ेगी और उन्हें हक्का बक्का कर देगी फिर उस वक़्त उसमें न उसके हटाने की मजाल होगी और न उन्हें दी ही जाएगी (40) - व ल – क़दिस्तुह्ज़ि – अ बिरूसुलिम् – मिन् क़ब्लि-क फ़हा – क बिल्लज़ी – न सख़िरू मिन्हुम् मा कानू बिही यस्तह्ज़िऊन *
और (ऐ रसूल) कुछ तुम ही नहीं तुमसे पहले पैग़म्बरों के साथ मसख़रापन किया जा चुका है तो उन पैग़म्बरों से मसख़रापन करने वालों को उस सख़्त अज़ाब ने आ घेर लिया जिसकी वह हँसी उड़ाया करते थे (41) - कुल मंय्यक्ल-उकुम् बिल्लैलि वन्नहारि मिनर्रहमानि, बल हुम् अन् जिक्रि रब्बिहिम् मुअ्-रिजून
(ऐ रसूल) तुम उनसे पूछो तो कि खु़दा (के अज़ाब) से (बचाने में) रात को या दिन को तुम्हारा कौन पहरा दे सकता है उस पर डरना तो दर किनार बल्कि ये लोग अपने परवरदिगार की याद से मुँह फेरते हैं (42) - अम् लहुम् आलि-हतुन् तम्नअहुम् मिन् दूनिना, ला यस्ततीअू – न नस् – र अन्फुसिहिम् व ला हुम् मिन्ना युस्हबून
क्या हमारे सिवा उनके कुछ और परवरदिगार हैं कि जो उनको (हमारे अज़ाब से) बचा सकते हैं (वह क्या बचाएँगे) ये लोग खु़द अपनी तो मदद कर ही नहीं सकते और न हमारे अज़ाब से उन्हें पनाह दी जाएगी (43) - बल् मत्तअ्ना हाउला-इ व आबा – अहुम् हत्ता ता-ल अ़लैहिमुल् – अुमुरू, अ-फला यरौ न अन्ना नअ्तिल-अर्ज़ नन्कुसुहा मिन् अतराफ़िहा अ-फ़हुमुल्-ग़ालिबून
बल्कि हम ही से उनको और उनके बुज़ुर्गों को आराम व चैन रहा यहाँ तक कि उनकी उमरें बढ़ गई तो फिर क्या ये लोग नहीं देखते कि हम रूए ज़मीन को चारों तरफ से क़ब्ज़ा करते और उसको फतेह करते चले आते हैं तो क्या (अब भी यही लोग कुफ़्फ़ारे मक्का) ग़ालिब और वर हैं (44)
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