21 सूरह अल अम्बिया हिंदी में पेज 3

सूरह अल अम्बिया हिंदी में | Surah Al-Anbiya in Hindi

  1. कुल इन्नमा उन्ज़िरूकुम् बिल्वह़्यि व ला यस्मअुस्-सुम्मुद्दुआ-अ इज़ा मा युन्ज़रून
    (ऐ रसूल) तुम कह दो कि मैं तो बस तुम लोगों को “वही” के मुताबिक़ (अज़ाब से) डराता हूँ (मगर तुम लोग गोया बहरे हो) और बहरों को जब डराया जाता है तो वह पुकारने ही को नहीं सुनते (डरें क्या ख़ाक)।
  2. व ल – इम् – मस्सत्हुम् नफ़्हतुम् मिन् अ़ज़ाबि रब्बि – क ल – यकूलुन् – न या वैलना इन्ना कुन्ना ज़ालिमीन
    और (ऐ रसूल) अगर कहीं उनको तुम्हारे परवरदिगार के अज़ाब की ज़रा सी हवा भी लग गई तो बेसाक़ता बोल उठें हाय अफसोस वाक़ई हम ही ज़ालिम थे।
  3. व न-ज़अल्-मवाज़ीनल किस्-त लियौमिल् – क़ियामति फ़ला तुज़्लमु नफ़्सुन शैअन्, व इन् का न मिस्का – ल हब्बतिम् – मिन् ख़र् दलिन् अतैना बिहा, व कफ़ा बिना हासिबीन
    और क़यामत के दिन तो हम (बन्दों के भले बुरे आमाल तौलने के लिए) इन्साफ़ की तराज़ू में खड़ी कर देंगे तो फिर किसी शख़्स पर कुछ भी ज़ुल्म न किया जाएगा और अगर राई के दाने के बराबर भी किसी का (अमल) होगा तो तुम उसे ला हाजि़र करेंगे और हम हिसाब करने के वास्ते बहुत काफ़ी हैं।
  4. वल – कद् आतैना मूसा व हारूनल्-फुर्का-न व जियाअंव् – व ज़िक्रल लिल्मुत्तक़ीन
    और हम ही ने यक़ीनन मूसा और हारून को (हक़ व बातिल की) जुदा करने वाली किताब (तौरेत) और परहेज़गारों के लिए अज़सरतापा नूर और नसीहत अता की।
  5. अल्लज़ी-न यख़्शौ न रब्बहुम् बिल्ग़ैबि व हुम् मिनस्सा-अ़ति मुश्फिकून
    जो बिना देखे अपने परवरदिगार से ख़ौफ खाते हैं और ये लोग रोज़े क़यामत से भी डरते हैं।
  6. व हाज़ा ज़िक्रुम् मुबा-रकुन् अन्ज़ल्नाहु, अ- फ़अन्तुम् लहू मुन्किरून *
    और ये (कुरान भी) एक बाबरकत तज़किरा है जिसको हमने उतारा है तो क्या तुम लोग इसको नहीं मानते।
  7. व-ल-कद् आतैना इब्राही-म रुश्दहू मिन् कब्लु व कुन्ना बिही आ़लिमीन
    और इसमें भी शक नहीं कि हमने इब्राहीम को पहले ही से फ़हेम सलीम अता की थी और हम उन (की हालत) से खू़ब वाकि़फ थे।
  8. इज् का-ल लिअबीहि व क़ौमिही मा हाजिहित्तमासीलुल्लती अन्तुम् लहा आ़किफून
    जब उन्होंने अपने (मुँह भोले) बाप और अपनी क़ौम से कहा ये मूरतें जिनकी तुम लोग मुजाबिरी करते हो आखि़र क्या (बला) है।
  9. कालू वजदना आबा-अना लहा आ़बिदीन
    वह लोग बोले (और तो कुछ नहीं जानते मगर) अपने बडे़ बूढ़ों को इनही की परसतिश करते देखा है।
  10. का-ल ल-क़द् कुन्तुम् अन्तुम् व आबाउकुम् फ़ी ज़लालिम्-मुबीन
    इब्राहीम ने कहा यक़ीनन तुम भी और तुम्हारे बुर्जु़ग भी खुली हुई गुमराही में पड़े हुए थे।
  11. कालू अजिअ् – तना बिल्हक्कि अम् अन् त मिनल्-लाअिबीन
    वह लोग कहने लगे तो क्या तुम हमारे पास हक़ बात लेकर आए हो या तुम भी (यूँ ही) दिल्लगी करते हो।
  12. का-ल बर्-रब्बुकुम् रब्बुस्समावाति वल अर्जिल्लज़ी फ़-त- रहुन्-न व अन अ़ला ज़ालिकुम मिनश्-शाहिदीन
    इब्राहीम ने कहा मज़ाक नहीं ठीक कहता हूँ कि तुम्हारे माबूद बुत नहीं बल्कि तुम्हारा परवरदिगार आसमान व ज़मीन का मालिक है जिसने उनको पैदा किया और मैं खु़द इस बात का तुम्हारे सामने गवाह हूँ।
  13. व तल्लाहि ल-अकीदन् न असनामकुम् बअ्-द अन् तुवल्लू मुदबिरीन
    और अपने जी में कहा अल्लाह की क़सम तुम्हारे पीठ फेरने के बाद में तुम्हारे बुतों के साथ एक चाल चलूँगा।
  14. फ़-ज-अ़-लहुम् जुज़ाज़न् इल्ला कबीरल् – लहुम् लअ़ल्लहुम् इलैहि यर्जिअून
    चुनान्चे इब्राहीम ने उन बुतों को (तोड़कर) चकनाचूर कर डाला मगर उनके बड़े बुत को (इसलिए रहने दिया) ताकि ये लोग ईद से पलटकर उसकी तरफ रूजू करें।
  15. कालू मन् फ़-अ़-ल हाज़ा बिआलि-हतिना इन्नहू लमिनज़्ज़ालिमीन
    (जब कुफ़्फ़ार को मालूम हुआ) तो कहने लगे जिसने ये गुस्ताख़ी हमारे माबूदों के साथ की है उसने यक़ीनी बड़ा ज़ुल्म किया।
  16. कालू समिअ्ना फ़-तंय्य़ज़्कुरूहुम् युकालु लहू इब्राहीम
    (कुछ लोग) कहने लगे हमने एक नौजवान को जिसको लोग इब्राहीम कहते हैं उन बुतों का (बुरी तरह) जि़क्र करते सुना था।
  17. कालू फ़अतू बिही अ़ला अअ्युनिन्नासि लअ़ल्लहुम् यश्हदून
    लोगों ने कहा तो अच्छा उसको सब लोगों के सामने (गिरफ़्तार करके) ले आओ ताकि वह (जो कुछ कहें) लोग उसके गवाह रहें।
  18. कालू अ-अन् त फ़ अ़ल-त हाज़ा बिआलि-हतिना या इब्राहीम
    (ग़रज़ इब्राहीम आए) और लोगों ने उनसे पूछा कि क्यों इब्राहीम क्या तुमने माबूदों के साथ ये हरकत की है।
  19. का-ल बल् फ़-अ़-लहू कबीरूहुम् हाज़ा फ़स्अलूहुम् इन् कानू यन्तिकून
    इब्राहीम ने कहा बल्कि ये हरकत इन बुतों (खु़दाओं) के बड़े (अल्लाह) ने की है तो अगर ये बुत बोल सकते हों तो उनही से पूछ के देखो।
  20. फ़-र-जअू इला अन्फुसिहिम् फक़ालू इन्नकुम् अन्तुमुज़्ज़ालिमून
    इस पर उन लोगों ने अपने जी में सोचा तो (एक दूसरे से) कहने लगे बेशक तुम ही लोग खु़द बर सरे नाहक़़ हो।
  21. सुम्-म नुकिसू अ़ला रूऊसिहिम् ल-क़द् अ़लिम्-त मा हाउला इ यन्तिकून
    फिर उन लोगों के सर इसी गुमराही में झुका दिए गए (और तो कुछ बन न पड़ा मगर ये बोले) तुमको तो अच्छी तरह मालूम है कि ये बुत बोला नहीं करते।
  22. सुम्-म नुकिसू अ़ला रूऊसिहिम् ल-क़द् अ़लिम्-त मा हाउला इ यन्तिकून
    (फिर इनसे क्या पूछे) इब्राहीम ने कहा तो क्या तुम लोग अल्लाह को छोड़कर ऐसी चीज़ों की परसतिश करते हो जो न तुम्हें कुछ नफा ही पहुँचा सकती है और न तुम्हारा कुछ नुक़सान ही कर सकती है।

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