21 सूरह अल अम्बिया हिंदी में पेज 1

21 सूरह अल अम्बिया | Surah Al-Anbiya

सूरह अल अम्बिया में 112 आयतें हैं। यह सूरह पारा 17 में है। यह सूरह मक्के में नाजिल हुई।

क्योंकि इस सूरह में बहुत-से नबियों (अंबिया) का उल्लेख हुआ है, इसलिए इसका नाम अल-अंबिया रख दिया गया।

सूरह अल अम्बिया हिंदी में | Surah Al-Anbiya in Hindi

पारा 17 शुरू

बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहिम
शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम वाला है
  1. इक्त-र-ब लिन्नासि हिसाबुहुम् व हुम् फी ग़फ़्लतिम्-मुअ्-रिजून
    लोगों के पास उनका हिसाब (उसका वक़्त) आ पहुँचा और वो हैं कि गफ़लत में पड़े मुँह मोड़े ही जाते हैं।
  2. मा यअ्तीहिम् मिन् ज़िक्रिम्-मिर्रब्बिहिम् मुह्दसिन् इल्लस्त मअुहु व हुम् यल्अ़बून
    जब उनके परवरदिगार की तरफ से उनके पास कोई नया हुक्म आता है तो उसे सिर्फ कान लगाकर सुन लेते हैं और (फिर उसका) हँसी खेल उड़ाते हैं।
  3. लाहि – यतन् कुलूबुहुम्, व अ सर्रून् नज्वल्लज़ी-न ज़-लमू हल् हाज़ा इल्ला ब-शरूम्-मिस्लुकुम् अ-फ़तअ्तूनस्सिह्-र व अन्तुम् तुब्सिरून
    उनके दिल (आखि़रत के ख़्याल से) बिल्कुल बेख़बर हैं और ये ज़ालिम चुपके-चुपके कानाफूसी किया करते हैं कि ये शख़्स (मोहम्मद कुछ भी नहीं) बस तुम्हारे ही सा आदमी है तो क्या तुम दीदा व दानिस्ता जादू में फँसते हो।
  4. लाहि – यतन् कुलूबुहुम्, व अ सर्रून् नज्वल्लज़ी-न ज़-लमू हल् हाज़ा इल्ला ब-शरूम्-मिस्लुकुम् अ-फ़तअ्तूनस्सिह्-र व अन्तुम् तुब्सिरून
    (तो उस पर) रसूल ने कहा कि मेरा परवरदिगार जितनी बातें आसमान और ज़मीन में होती हैं खू़ब जानता है (फिर क्यों कानाफूसी करते हो) और वह तो बड़ा सुनने वाला वाकि़फ़कार है।
  5. बल् क़ालू अज़्गासु अह़्लामिम्-बलिफ़्तराहु बल् हु-व शाअिरून् फ़ल्य अ्तिना बिआयतिन् कमा उर्सिलल् – अव्वलून
    (उस पर भी उन लोगों ने इकतेफ़ा न की) बल्कि कहने लगे (ये कु़रआन तो) ख्वाबहाय परीशाँ का मजमूआ है बल्कि उसने खु़द अपने जी से झूट-मूट गढ़ लिया है बल्कि ये शख़्स शायर है और अगर हक़ीकतन रसूल है) तो जिस तरह अगले पैग़म्बर मौजिज़ों के साथ भेजे गए थे।
  6. मा आम-नत् क़ब्लहुम् मिन् क़र्-यतिन् अहलक्नाहा अ- फ़हुम् युअ्मिनून
    उसी तरह ये भी कोई मौजिज़ा (जैसा हम कहें) हमारे पास भला लाए तो सही इनसे पहले जिन बस्तियों को तबाह कर डाला (मौजिज़े भी देखकर तो) ईमान न लाए।
  7. व मा अर्सल्ना क़ब्ल-क इल्ला रिजालन् नूही इलैहिम् फ़स्अलू अह़्लज्ज़िक्रि इन् कुन्तुम् ला तअ्लमून
    तो क्या ये लोग ईमान लाएँगे और ऐ रसूल हमने तुमसे पहले भी आदमियों ही को (रसूल बनाकर) भेजा था कि उनके पास “वही” भेजा करते थे तो अगर तुम लोग खु़द नहीं जानते हो तो आलिमों से पूँछकर देखो।
  8. व मा जअ़ल्नाहुम् ज-सदल्-ला यअ्कुलूनत्तआ़-म व मा कानू ख़ालिदीन
    और हमने उन (पैग़म्बरों) के बदन ऐसे नहीं बनाए थे कि वह खाना न खाएँ और न वह (दुनिया में) हमेशा रहने सहने वाले थे।
  9. सुम् – म सदक़्नाहुमुल् – वअ् – द फ़ – अन्जैनाहुम् व मन् – नशा उ व अह़्लकनल्-मुस्रिफ़ीन
    फिर हमने उन्हें (अपना अज़ाब का) वायदा सच्चा कर दिखाया (और जब अज़ाब आ पहुँचा) तो हमने उन पैग़म्बरों को और जिस जिसको चाहा छुटकारा दिया और हद से बढ़ जाने वालों को हलाक कर डाला।
  10. ल-क़द् अन्ज़ल्ना इलैकुम् किताबन् फ़ीहि ज़िक्रुकुम्, अ-फ़ला तअ्किलून*
    हमने तो तुम लोगों के पास वह किताब (कु़रआआन) नाजि़ल की है जिसमें तुम्हारा (भी) जि़क्रे (ख़ैर) है तो क्या तुम लोग (इतना भी) नहीं समझते।
  11. व कम् क़सम्ना मिन् क़र – यतिन् कानत् ज़ालि-मतंव् – व अन्शअ्ना बअ्-दहा क़ौमन् आ-ख़रीन
    और हमने कितनी बस्तियों को जिनके रहने वाले सरकश थे बरबाद कर दिया और उनके बाद दूसरे लोगों केा पैदा किया।
  12. फ़- लम्मा अ – हस्सू बअ्सना इज़ा हुम् मिन्हा यरकुजून
    तो जब उन लोगों ने हमारे अज़ाब की आहट पाई तो एका एकी भागने लगे।
  13. ला तरकुजू वर्जिअू इला मा उतरिफ़्तुम् फ़ीहि व मसाकिनिकुम् लअ़ल्लकुम् तुस् अलून
    (हमने कहा) भागो नहीं और उन्हीं बस्तियों और घरों में लौट जाओ जिनमें तुम चैन करते थे ताकि तुमसे कुछ पूछगछ की जाए।
  14. क़ालू या वैलना इन्ना कुन्ना ज़ालिमीन
    वह लोग कहने लगे हाए हमारी शामत बेशक हम सरकश तो ज़रूर थे।
  15. फ़मा ज़ालत् तिल-क दअ्वाहुम हत्ता जअ़ल्नाहुम् हसीदन् ख़ामिदीन
    ग़रज़ वह बराबर यही पड़े पुकारा किए यहाँ तक कि हमने उन्हें कटी हुयी खेती की तरह बिछा के ठन्डा करके ढेर कर दिया।
  16. व मा ख़लक़्नस्समा – अ वल्अर्-ज़ व मा बैनहुमा लाअिबीन
    और हमने आसमान और ज़मीन को और जो कुछ इन दोनों के दरमियान है बेकार लगो नहीं पैदा किया।
  17. लौ अरद्ना अन् नत्तखि-ज़ लह़्वल् लत्त ख़ज़्नाहु मिल्लदुन्ना इन् कुन्ना फ़ाअिलीन
    अगर हम कोई खेल बनाना चाहते तो बेशक हम उसे अपनी तजवीज़ से बना लेते अगर हमको करना होता (मगर हमें शायान ही न था)।
  18. बल् नक्ज़िफु बिल्हक्कि अ़लल्-बातिलि फ़-यदमगुहू फ़-इज़ा हु-व जाहिकुन्, व लकुमुल् – वैलु मिम्मा तसिफून
    बल्कि हम तो हक़ को नाहक़ (के सर) पर खींच मारते हैं तो वह बातिल के सर को कुचल देता है फिर वो उसी वक़्त नेस्तो नाबूद हो जाता है और तुम पर अफ़सोस है कि ऐसी-ऐसी नाहक़ बातें बनाया करते हो।
  19. व लहू मन् फ़िस्समावाति वल् अर्जि, व मन् अिन्दहू ला यस्तक्बिरू न अ़न् अिबादतिही व ला यस्तह्सिरून
    हालाँकि जो (फरिश्ते) आसमान और ज़मीन में हैं (सब) उसी के (बन्दे) हैं और जो (फरिश्ते) उस सरकार में हैं न तो वो उसकी इबादत की शेख़ी करते हैं और न थकते हैं।
  20. युसब्बिहूनल्लै-ल वन्नहा-र ला यफ़्तुरून
    रात और दिन उसकी तस्बीह किया करते हैं (और) कभी काहिली नहीं करते।
  21. अमित्त ख़जू आलि – हतम् मिनल्अर्ज़ि हुम् युन्शिरून
    उन लोगों ने जो माबूद ज़मीन में बना रखे हैं क्या वही (लोगों को) ज़िन्दा करेंगे।
  22. लौ का न फ़ीहिमा आलि – हतुन् इल्लल्लाहु ल-फ़-स- दता फ़- सुब्हानल्लाहि रब्बिल् अ़र्शि अ़म्मा यसिफून
    (बा ग़रज़ मुहाल) ज़मीन व आसमान में अल्लाह कि सिवा चन्द माबूद होते तो दोनों कब के बरबाद हो गए होते तो जो बातें ये लोग अपने जी से (उसके बारे में) बनाया करते हैं अल्लाह जो अर्श का मालिक है उन तमाम ऐबों से पाक व पाकीज़ा है।

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