09 सूरह अत तौबा हिंदी में पेज 4

सूरह अत तौबा हिंदी में | Surat At-Tawbah in Hindi

  1. व मिन्हुमुल्लज़ी-न युअ्जूनन्नबिय्-य व यकूलू-न हु-व उजुनुन् , कुल उजुनु खैरिल्लकुम्, युअ्मिनु बिल्लाहि व युअ्मिनु लिल्मुअ्मिनी – न व रह़्मतुल् लिल्लज़ी-न आमनू मिन्कुम् वल्लज़ी-न युअ्जू-न रसूलल्लाहि लहुम् अज़ाबुन् अलीम
    और उसमें से बाज़ ऐसे भी हैं जो (हमारे) रसूल को सताते हैं और कहते हैं कि बस ये कान ही (कान) हैं (ऐ रसूल) तुम कह दो कि (कान तो हैं मगर) तुम्हारी भलाई सुन्ने के कान हैं कि ख़़ुदा पर ईमान रखते हैं और मोमिनीन की (बातों) का यक़ीन रखते हैं और तुममें से जो लोग ईमान ला चुके हैं उनके लिए रहमत और जो लोग रसूले ख़़ुदा को सताते हैं उनके लिए दर्दनाक अज़ाब हैं (61)
  2. यह़्लिफू-न बिल्लाहि लकुम् लियुरजूकुम् वल्लाहु व रसूलुहू अहक़्कु अंय्युरजूहु इन् कानू मुअ्मिनीन
    (मुसलमानों) ये लोग तुम्हारे सामने ख़़ुदा की क़समें खाते हैं ताकि तुम्हें राज़ी कर ले हालाकि अगर ये लोग सच्चे ईमानदार है (62)
  3. अलम् यअ्लमू अन्नहू मंय्युहादिदिल्ला-ह व रसूलहू फ़ – अन् – न लहू ना-र जहन्न-म खालिदन् फ़ीहा, ज़ालिकल ख़िज्युल -अ़ज़ीम
    तो ख़ुदा और उसका रसूल कहीं ज़्यादा हक़दार है कि उसको राज़ी रखें क्या ये लोग ये भी नहीं जानते कि जिस शख़्स ने ख़़ुदा और उसके रसूल की मुख़ालेफ़त की तो इसमें शक ही नहीं कि उसके लिए जहन्नुम की आग (तैयार रखी) है (63)
  4. यह़्ज़रूल मुनाफ़िकू-न अन् तुनज़्ज़-ल अलैहिम् सूरतुन् तुनब्बिउहुम् बिमा फ़ी कुलूबिहिम्, कुलिस्तह़्ज़िऊ इन्नल्ला-ह मुख़रिजुम् मा तह़्ज़रून
    जिसमें वह हमेशा (जलता भुनता) रहेगा यही तो बड़ी रूसवाई है मुनाफे़क़ीन इस बात से डरतें हैं कि (कहीं ऐसा न हो) इन मुलसमानों पर (रसूल की माअरफ़त) कोई सूरा नाजि़ल हो जाए जो उनको जो कुछ उन मुनाफिक़ीन के दिल में है बता दे (ऐ रसूल) तुम कह दो कि (अच्छा) तुम मसख़रापन किए जाओ (64)
  5. व ल – इन् सअल्तहुम् ल – यकूलुन् – न इन्नमा कुन्ना नखूजु व नल् अबु, कुल अबिल्लाहि व आयातिही व रसूलिही कुन्तुम् तस्तह़्ज़िऊन
    जिससे तुम डरते हो ख़़ुदा उसे ज़रूर ज़ाहिर कर देगा और अगर तुम उनसे पूछो (कि ये हरकत थी) तो ज़रूर यूही कहेगें कि हम तो यूही बातचीत (दिल्लगी) बाज़ी ही कर रहे थे तुम कहो कि हाए क्या तुम ख़़ुदा से और उसकी आयतों से और उसके रसूल से हॅसी कर रहे थे (65)
  6. ला तअ्तज़िरू क़द् कफ़रतुम् बअ् -द ईमानिकुम्, इन्नअ्फु अन् ताइ – फ़तिम् मिन्कुम् नुअ़ज़्ज़िब् ताइ-फ़तम् बिअन्नहुम् कानू मुज्रिमीन *
    अब बातें न बनाओं हक़ तो ये हैं कि तुम ईमान लाने के बाद काफि़र हो बैठे अगर हम तुममें से कुछ लोगों से दरगुज़र भी करें तो हम कुछ लोगों को सज़ा ज़रूर देगें इस वजह से कि ये लोग कुसूरवार ज़रूर हैं (66)
  7. अल्मुनाफ़िकू -न वल्मुनाफ़िकातु बअ्ज़ुहुम् मिम् -बअ्ज़िन् • यअ्मुरू-न बिल्मुन्करि व यन्हौ -न अनिल् -मअरूफि व यक्बिजू न ऐदि -यहुम्, नसुल्ला -ह फ़-नसि-यहुम्, इन्नल-मुनाफ़िकी न हुमुल् – फ़ासिकून
    मुनाफिक़ मर्द और मुनाफिक़ औरतें एक दूसरे के बाहम जिन्स हैं कि (लोगों को) बुरे काम का तो हुक्म करते हैं और नेक कामों से रोकते हैं और अपने हाथ (राहे ख़ुदा में ख़र्च करने से) बन्द रखते हैं (सच तो यह है कि) ये लोग ख़़ुदा को भूल बैठे तो ख़़ुदा ने भी (गोया) उन्हें भुला दिया बेशक मुनाफि़क़ बदचलन है (67)
  8. व-अदल्लाहुल मुनाफ़िकी -न वल्मुनाफ़िक़ाति वल्कुफ्फ़ा-र ना- र जहन्न-म ख़ालिदी-न फ़ीहा, हि-य हस्बुहुम् व ल-अ-नहुमुल्लाहु व लहुम् अज़ाबुम् मुकीम
    मुनाफिक़ मर्द और मुनाफिक़ औरतें और काफिरों से ख़़ुदा ने जहन्नुम की आग का वायदा तो कर लिया है कि ये लोग हमेशा उसी में रहेगें और यही उन के लिए काफ़ी है और ख़़ुदा ने उन पर लानत की है और उन्हीं के लिए दाइमी (हमेशा रहने वाला) अज़ाब है (68)
  9. कल्लज़ी-न मिन् कब्लिकुम् कानू अशद्-द मिन्कुम् कुव्वतंव् – व अक्स-र अम्वालंव् – व औलादन, फ़स् तम् तअू बि-खलाकिहिम् फ़स् तम् तअतुम् बि – खलाकिकुम कमस् तम्त अल्लज़ी – न मिन् क़ब्लिकुम् बि – ख़लाकिहिम् व खुज्तुम् कल्लज़ी ख़ाजू, उलाइ-क हबितत् अअ्मालुहुम् फ़िद्दुन्या वल्आखिरति व उलाइ-क हुमुल-ख़ासिरून
    (मुनाफिक़ो तुम्हारी तो) उनकी मसल है जो तुमसे पहले थे वह लोग तुमसे कू़वत में (भी) ज़्यादा थे और औलाद में (भी) कही बढ़ कर तो वह अपने हिस्से से भी फ़ायदा उठा हो चुके तो जिस तरह तुम से पहले लोग अपने हिस्से से फायदा उठा चुके हैं इसी तरह तुम ने अपने हिस्से से फायदा उठा लिया और जिस तरह वह बातिल में घुसे रहे उसी तरह तुम भी घुसे रहे ये वह लोग हैं जिन का सब किया धरा दुनिया और आखि़रत (दोनों) में अकारत हुआ और यही लोग घाटे में हैं (69)
  10. अलम् यअ्तिहिम् न – बउल्लज़ी – न मिन् क़ब्लिहिम् कौमि नूहिंव् – व आदिंव्व समू – द व कौमि इब्राही-म व अस्हाबि मद य – न वल्मुअ्तफ़िकाति, अततहुम् रूसुलुहुम बिल्बय्यिनाति फ़मा कानल्लाहु लि-यज्लि-महुम् व लाकिन् कानू अन्फु-सहुम् यज्लिमून
    क्या इन मुनाफिक़ों को उन लोगों की ख़बर नहीं पहुँची है जो उनसे पहले हो गुज़रे हैं नूह की क़ौम और आद और समूद और इबराहीम की क़ौम और मदियन वाले और उलटी हुयी बस्तियों के रहने वाले कि उनके पास उनके रसूल वाजेए (और रौशन) मौजिज़े लेाकर आए तो (वह मुब्तिलाए अज़ाब हुए) और ख़ुदा ने उन पर जुल्म नहीं किया मगर ये लोग ख़ुद अपने ऊपर जुल्म करते थे (70)
  11. वल्मुअ्मिनू -न वल्मुअ्मिनातु बअ्जुहुम् औलिया -उ बअ्ज़िन् यअ्मुरू-न बिल मअ्-रूफ़ि व यन्हौ-न अनिल्मुन्करि व युक़ीमूनस्सला-त व युअ्तूनज़्ज़का-त व युतीअूनल्ला-ह व रसूलहू, उलाइ-क स-यर् हमुहुमुल्लाहु, इन्नल्ला-ह अ़ज़ीज़ुन हकीम
    और ईमानदार मर्द और ईमानदार औरते उनमें से बाज़ के बाज़ रफीक़ है और नामज़ पाबन्दी से पढ़ते हैं और ज़कात देते हैं और ख़़ुदा और उसके रसूल की फरमाबरदारी करते हैं यही लोग हैं जिन पर ख़़ुदा अनक़रीब रहम करेगा बेषक ख़़ुदा ग़ालिब हिकमत वाला है (71)
  12. व-अ़ दल्लाहुल् मुअ्मिनी-न वल्मुअ्मिनाति जन्नातिन् तज्री मिन् तह़्तिहल् -अन्हारू ख़ालिदी-न फ़ीहा व मसाकि-न तय्यि -बतन् फी जन्नाति अदनिन्, व रिज्वानुम् मिनल्लाहि अक्बरू, ज़ालि-क हुवल् फौजुल् -अ़ज़ीम *
    ख़़ुदा ने ईमानदार मर्दों और ईमानदारा औरतों से (बेहशत के) उन बाग़ों का वायदा कर लिया है जिनके नीचे नहरें जारी हैं और वह उनमें हमेषा रहेगें (बेहश्त अदन के बाग़ो में उम्दा उम्दा मकानात का (भी वायदा फरमाया) और ख़़ुदा की ख़़ुशनूदी उन सबसे बालातर है- यही तो बड़ी (आला दर्जे की) कामयाबी है (72)
  13. या अय्युहन्नबिय्यू जाहिदिल् – कुफ्फा-र वल्मुनाफ़िक़ी- न वग्लुज् अलैहिम्, व मअ्वाहुम् जहन्नमु, व बिअ्सल मसीर
    ऐ रसूल कुफ़्फ़ार के साथ (तलवार से) और मुनाफिकों के साथ (ज़बान से) जिहाद करो और उन पर सख़्ती करो और उनका ठिकाना तो जहन्नुम ही है और वह (क्या) बुरी जगह है (73)
  14. यह़्लिफू-न बिल्लाहि मा कालू, व ल-क़द् कालू कलि-मतल्कुफ्रि व क-फरू बअ्-द इस्लामिहिम् व हम्मू बिमा लम् यनालू व मा न – कमू इल्ला अन् अग़्नाहुमुल्लाहु व रसूलुहू मिन् फ़ज्लिही फ़ – इंय्यतूबू यकु खैरल्लहुम् व इंय्य – तवल्लौ युअ़ज़्ज़िबहुमुल्लाहु अ़ज़ाबन अलीमन् फिद्दुन्या वल्आख़िरति व मा लहुम् फिल्अर्ज़ि मिंव्वलिय्यिंव्वला नसीर
    ये मुनाफे़क़ीन ख़़ुदा की क़समें खाते है कि (कोई बुरी बात) नहीं कही हालाकि उन लोगों ने कुफ्ऱ का कलमा ज़रूर कहा और अपने इस्लाम के बाद काफिर हो गए और जिस बात पर क़ाबू न पा सके उसे ठान बैठे और उन लोगें ने (मुसलमानों से) सिर्फ इस वजह से अदावत की कि अपने फज़ल व करम से ख़़ुदा और उसके रसूल ने दौलत मन्द बना दिया है तो उनके लिए उसमें ख़ैर है कि ये लोग अब भी तौबा कर लें और अगर ये न मानेगें तो ख़ुदा उन पर दुनिया और आखि़रत में दर्दनाक अज़ाब नाजि़ल फरमाएगा और तमाम दुनिया में उन का न कोई हामी होगा और न मददगार (74)
  15. व मिन्हुम् मन् आ – हदल्ला – ह ल – इन् आताना मिन् फ़ज़्लिही लनस्सद् – द – कन् – न व ल – नकूनन् – न मिनस्सालिहीन
    और इन (मुनाफे़की़न) में से बाज़ ऐसे भी हैं जो ख़़ुदा से क़ौल क़रार कर चुके थे कि अगर हमें अपने फज़ल (व करम) से (कुछ माल) देगा तो हम ज़रूर ख़ैरात किया करेगें और नेकोकार बन्दे हो जाएगें (75)
  16. फ़- लम्मा आताहुम् मिन् फ़ज्लिही बखिलू बिही व त – वल्लौ व हुम् मुअ्-रिजून
    तो जब ख़ुदा ने अपने फज़ल (व करम) से उन्हें अता फरमाया-तो लगे उसमें बुख़्ल करने और कतराकर मुह फेरने (76)
  17. फ़- अअ्क-बहुम् निफ़ाक़न् फ़ी कुलूबिहिम् इला यौमि यल्कौनहू बिमा अख़्लफुल्ला-ह मा व अ़दूहु व बिमा कानू यक्ज़िबून
    फिर उनसे उनके ख़ामयाजे़ (बदले) में अपनी मुलाक़ात के दिन (क़यामत) तक उनके दिल में (गोया खुद) निफाक डाल दिया इस वजह से उन लोगों ने जो ख़़ुदा से वायदा किया था उसके खि़लाफ किया और इस वजह से कि झूठ बोला करते थे (77)
  18. अलम् यअ्लमू अन्नल्ला – ह यअ्लमु सिर्रहुम् व नज्वाहुम् व अन्नल्ला-ह अ़ल्लामुल ग़ुयूब
    क्या वह लोग इतना भी न जानते थे कि ख़ुदा (उनके) सारे भेद और उनकी सरगोशी (सब कुछ) जानता है और ये कि ग़ैब की बातों से ख़ूब आगाह है (78)
  19. अल्लज़ी-न यल्मिजूनल मुत्तव्विई-न मिनल् मुअ्मिनी -न फ़िस्स दक़ाति वल्लज़ी-न ला यजिदू – न इल्ला जुह़्दहुम् फ़-यस्ख़रू – न मिन्हुम्, सख़िरल्लाहु मिन्हुम् व लहुम् अज़ाबुन् अलीम
    जो लोग दिल खोलकर ख़ैरात करने वाले मोमिनीन पर (रियाकारी का) और उन मोमिनीन पर जो सिर्फ अपनी मशक्कत (मेहनत) की मज़दूरी पाते (शख़ी का) इल्ज़ाम लगाते हैं फिर उनसे मसख़रापन करते तो ख़़ुदा भी उन से मसख़रापन करेगा और उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है (79)
  20. इस्तग्फिर् लहुम् औ ला तस्तग्फिर लहुम्, इन् तस्तग्फिर् लहुम् सब्ई-न मर्रतन् फ़-लंय्यग्फ़िरल्लाहु लहुम, ज़ालि-क बिअन्नहुम क – फरू बिल्लाहि व रसूलिही, वल्लाहु ला यह़्दिल् कौमल-फ़ासिक़ीन *
    (ऐ रसूल) ख़्वाह तुम उन (मुनाफिक़ों) के लिए मग़फिरत की दुआ मागों या उनके लिए मग़फिरत की दुआ न मागों (उनके लिए बराबर है) तुम उनके लिए सत्तर बार भी बखि़्शश की दुआ मांगोगे तो भी ख़ुदा उनको हरगिज़ न बख़्शेगा ये (सज़ा) इस सबब से है कि उन लोगों ने ख़़ुदा और उसके रसूल के साथ कुफ्र किया और ख़़ुदा बदकार लोगों को मंजि़लें मकसूद तक नहीं पहुँचाया करता (80)

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