09 सूरह अत तौबा हिंदी में पेज 1

09 सूरह अत तौबा | Surah At-Tawbah

सूरह अत तौबा में 129 आयतें हैं। यह सूरह पारा 10, पारा 11 में है। यह सूरह मदीना में नाजिल हुई।

इस सूरह के आरंभ में “बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम” नहीं लिखा जाता क्योंकि नबी (सल्ल.) ने खुद नहीं लिखवाई थी।

सूरह अत तौबा हिंदी में | Surat At-Tawbah in Hindi

  1. बराअतुम् – मिनल्लाहि व रसूलिहि इलल्लज़ी – न आहत्तुम् मिनल मुश्रिकीन
    (ऐ मुसलमानों) जिन मुशरिकों से तुम लोगों ने सुलह का एहद किया था अब ख़ुदा और उसके रसूल की तरफ से उनसे (एक दम) बेज़ारी है (1)
  2. फ़सीहू फ़िल्अर्जि अरब-अ-त अश्हुरिंव्व अ्लमू अन्नकुम् ग़ैरू मुअ्जिजिल्लाहि व अन्नल्ला-ह मुख्ज़िल – काफ़िरीन
    तो (ऐ मुशरिकों) बस तुम चार महीने (ज़ीकादा, जिल हिज्जा, मुहर्रम रजब) तो (चैन से बेख़तर) रूए ज़मीन में सैरो सियाहत (घूम फिर) कर लो और ये समझते रहे कि तुम (किसी तरह) ख़़ुदा को आजिज़ नहीं कर सकते और ये भी कि ख़़ुदा काफि़रों को ज़रूर रूसवा करके रहेगा (2)
  3. व अज़ानुम् मिनल्लाहि व रसूलिही इलन्नासि यौमल् – हज्जिल – अक्बरि अन्नल्ला – ह बरीउम् मिनल् – मुश्रिकी-न व रसूलुहू, फ़- इन् तुब्तुम् फहु – व खैरूरुल्लकुम् व इन् तवल्लैतुम् फअ्लअू अन्नकुम् ग़ैरू मुअ्जिजिल्लाहि, व बश्शिरिल्लज़ी -न क -फरू बि-अ़ज़ाबिन अलीम
    और ख़़ुदा और उसके रसूल की तरफ से हज अकबर के दिन (तुम) लोगों को मुनादी की जाती है कि ख़़ुदा और उसका रसूल मुशरिकों से बेज़ार (और अलग) है तो (मुशरिकों) अगर तुम लोगों ने (अब भी) तौबा की तो तुम्हारे हक़ में यही बेहतर है और अगर तुम लोगों ने (इससे भी) मुह मोड़ा तो समझ लो कि तुम लोग ख़़ुदा को हरगिज़ आजिज़ नहीं कर सकते और जिन लोगों ने कुफ्र इख़्तेयार किया उनको दर्दनाक अज़ाब की ख़ुश ख़बरी दे दो (3)
  4. इल्लल्लज़ी – न आहत्तुम् मिनल मुश्रिकी-न सुम्म लम् यन्कुसूकुम् शैअंव – व लम् युज़ाहिरू अलैकुम् अ – हदन् फ़- अतिम्मू इलैहिम् अह – दहुम् इला मुद्दतिहिम्, इन्नल्ला – ह युहिब्बुल – मुत्तक़ीन
    मगर (हाँ) जिन मुशरिकों से तुमने एहदो पैमान किया था फिर उन लोगों ने भी कभी कुछ तुमसे (वफ़ा एहद में) कमी नहीं की और न तुम्हारे मुक़ाबले में किसी की मदद की हो तो उनके एहद व पैमान को जितनी मुद्द्त के वास्ते मुक़र्रर किया है पूरा कर दो ख़़ुदा परहेज़गारों को यक़ीनन दोस्त रखता है (4)
  5. फ़- इज़न्स – लखल् अश्हुरूल् – हुरूमु फक्तुलुल् – मुश्रिकी – न हैसु वजत्तुमूहूम् व खुजूहुम् वह्सुरुहुम् वक्अुदू लहुम् कुल-ल मर्सदिन् फ़- इन् ताबू व अकामुस्सला – त व आतवुज़्ज़का- त फ़-ख़ल्लू सबीलहुम्, इन्नल्ला-ह गफूरुर्रहीम
    फिर जब हुरमत के चार महीने गुज़र जाएँ तो मुशरिको को जहाँ पाओ (बे ताम्मुल) कत्ल करो और उनको गिरफ्तार कर लो और उनको कै़द करो और हर घात की जगह में उनकी ताक में बैठो फिर अगर वह लोग (अब भी शिर्क से) बाज़ आए और नमाज़ पढ़ने लगें और ज़कात दे तो उनकी राह छोड़ दो (उनसे ताअरूज़ न करो) बेशक ख़ुदा बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है (5)
  6. व इन् अ -हदुम् मिनल् मुश्रिकीनस्तजार-क फ – अजिरहु हत्ता यस्म – अ कलामल्लाहि सुम् -म अब्लिग्हु मअ् म-नहू, ज़ालि-क बिअन्नहुम् कौमुल्ला यअ्लमून *
    और (ऐ रसूल) अगर मुशरिकीन में से कोई तुमसे पनाह मागें तो उसको पनाह दो यहाँ तक कि वह ख़़ुदा का कलाम सुन ले फिर उसे उसकी अमन की जगह वापस पहुँचा दो ये इस वजह से कि ये लोग नादान हैं (6)
  7. नहू, ज़ालि -कै-फ़ यकूनु लिल्मुश्रिकी – न अह़्दुन् अिन्दल्लाहि व अिन् – द रसूलिही इल्लल्लज़ी-न आहत्तुम् अिन्दल् मस्जिदिल् – हरामि फ़मस्तकामू लकुम् फ़स्तकीमू लहुम्, इन्नल्ला – ह युहिब्बुल मुत्तकीन
    (जब) मुशरिकीन ने ख़ुद एहद शिकनी (तोड़ा) की तो उन का कोई एहदो पैमान ख़़ुदा के नज़दीक और उसके रसूल के नज़दीक क्योंकर (क़ायम) रह सकता है मगर जिन लोगों से तुमने खानाए काबा के पास मुआहेदा किया था तो वह लोग (अपनी एहदो पैमान) तुमसे क़ायम रखना चाहें तो तुम भी उन से (अपना एहद) क़ायम रखो बेशक ख़ुदा (बद एहदी से) परहेज़ करने वालों को दोस्त रखता है (7)
  8. कै-फ़ व इंय्य़ज्हरू अलैकुम् ला यरकुबू फ़ीकुम् इल्लंव् – व ला ज़िम्म-तन्, युर्जुनकुम् बिअफ़्वाहिहिम् व तअ्बा कुलूबुहुम् व अक्सरूहुम् फ़ासिकून
    (उनका एहद) क्योंकर (रह सकता है) जब (उनकी ये हालत है) कि अगर तुम पर ग़लबा पा जाए तो तुम्हारे में न तो रिश्ते नाते ही का लिहाज़ करेगें और न अपने क़ौल व क़रार का ये लोग तुम्हें अपनी ज़बानी (जमा खर्च में) खुश कर देते हैं हालाँकि उनके दिल नहीं मानते और उनमें के बहुतेरे तो बदचलन हैं (8)
  9. इश्तरौ बिआयातिल्लाहि स – मनन् क़लीलन् फ़ – सद्दू अन् सबीलिही, इन्नहुम् सा-अ मा कानू यअ्मलून
    और उन लोगों ने ख़ुदा की आयतों के बदले थोड़ी सी क़ीमत (दुनियावी फायदे) हासिल करके (लोगों को) उसकी राह से रोक दिया बेशक ये लोग जो कुछ करते हैं ये बहुत ही बुरा है (9)
  10. ला यर्कुबू-न फी मुअ्मिनिन् इल्लंव् – व ला ज़िम्म-तन्, व उलाइ – क हुमुल मुअ्स्तदून
    ये लोग किसी मोमिन के बारे में न तो रिश्ता नाता ही कर लिहाज़ करते हैं और न क़ौल का क़रार का और (वाक़ई) यही लोग ज़्यादती करते हैं (10)
  11. फ़- इन् ताबू व अकामुस्सला – त व आतवुज़्ज़का- त फ़ – इख़्वानुकुम् फ़िद्दीनि, व नुफस्सिलुल् – आयाति लिकौमिंय्य अ्लमून
    तो अगर (अभी मुशरिक से) तौबा करें और नमाज़ पढ़ने लगें और ज़कात दें तो तुम्हारे दीनी भाई हैं और हम अपनी आयतों को वाकि़फकार लोगों के वास्ते तफ़सीलन बयान करते हैं (11)
  12. व इन्न – कसू ऐमानहुम् मिम् -बअ्दि अह़्दिहिम् व त -अनू फी दीनिकुम् फ़क़ातिलू अ – इम्मतल – कुफ्रि इन्नहुम् ला ऐमा – न लहुम् लअ़ल्लहुम् यन्तहून
    और अगर ये लोग एहद कर चुकने के बाद अपनी क़समें तोड़ डालें और तुम्हारे दीन में तुमको ताना दें तो तुम कुफ्र के सरवर आवारा लोगों से खूब लड़ाई करो उनकी क़समें का हरगिज़ कोई एतबार नहीं ताकि ये लोग (अपनी शरारत से) बाज़ आएँ (12)
  13. अला तुक़ातिलू – न कौमन् न कसू ऐमानहुम् व हम्मू बि – इख्राजिर्रसूलि व हुम् ब – दऊकुम् अव्व-ल मर्रतिन्, अतख़्शौनहुम् फ़ल्लाहु अहक़्कु अन् तख़्शौहु इन् कुन्तुम् मुअ्मिनीन
    (मुसलमानों) भला तुम उन लोगों से क्यों नहीं लड़ते जिन्होंने अपनी क़समों को तोड़ डाला और रसूल को निकाल बाहर करना (अपने दिल में) ठान लिया था और तुमसे पहले छेड़ भी उन्होंने ही शुरू की थी क्या तुम उनसे डरते हो तो अगर तुम सच्चे ईमानदार हो तो ख़़ुदा उनसे कहीं बढ़ कर तुम्हारे डरने के क़ाबिल है (13)
  14. क़ातिलूहुम् युअ़ज़्ज़िबहुमुल्लाहु बिऐदीकुम व युख्जिहिम् व यन्सुरकुम् अलैहिम् व यश्फि सुदू-र कौमिम् -मुअ्मिनीन
    इनसे (बेख़ौफ (ख़तर) लड़ो ख़ुदा तुम्हारे हाथों उनकी सज़ा करेगा और उन्हें रूसवा करेगा और तुम्हें उन पर फतेह अता करेगा और इमानदार लोगों के कलेजे ठन्डे करेगा (14)
  15. व युज्हिब् गै-ज़ कुलूबिहिम्, व यतूबुल्लाहु अ़ला मंय्यशा -उ, वल्लाहु अलीमुन् हकीम
    और उन मोनिनीन के दिल की क़ुदरतें जो (कुफ़्फ़ार से पहुचॅती है) दफ़ा कर देगा और ख़़ुदा जिसकी चाहे तौबा क़ुबूल करे और ख़़ुदा बड़ा वाकि़फकार (और) हिकमत वाला है (15)
  16. अम् हसिब्तुम् अन् तुत्रकू व लम्मा यज् – लमिल्लाहुल्लज़ी – न जाहदू मिन्कुम् व लम् यत्तखिजू मिन् दूनिल्लाहि व ला रसूलिही व लल्मुअ्मिनी-न वली-जतन्, वल्लाहु ख़बीरूम्-बिमा तअ्मलून *
    क्या तुमने ये समझ लिया है कि तुम (यॅू ही) छोड़ दिए जाओगे और अभी तक तो ख़ुदा ने उन लोगों को मुमताज़ किया ही नहीं जो तुम में के (राहे ख़़ुदा में) जिहाद करते हैं और ख़़ुदा और उसके रसूल और मोमेनीन के सिवा किसी को अपना राज़दार दोस्त नहीं बनाते और जो कुछ भी तुम करते हो ख़़ुदा उससे बाख़बर है (16)
  17. मा का-न लिल्मुश्रिकी-न अंय्यअ्मुरू मसाजिदल्लाहि शाहिदी न अ़ला अन्फुसिहिम् बिल्कुफ्रि उलाइ-क हबितत् अअ्मालुहुम् व फिन्नारि हुम् ख़ालिदून
    मुशरेकीन का ये काम नहीं कि जब वह अपने कुफ्ऱ का ख़ुद इक़रार करते है तो ख़ुदा की मस्जिदों को (जाकर) आबाद करे यही वह लोग हैं जिनका किया कराया सब अकारत हुआ और ये लोग हमेशा जहन्नुम में रहेंगे (17)
  18. इन्नमा यअ्मुरू मसाजिदल्लाहि मन् आम-न बिल्लाहि वल्यौमिल् – आखिरि व अक़ामस्सला-त व आतज़्ज़का-त व लम् यख् – श इल्लल्ला-ह, फ़-अ़सा उलाइ-क अंय्यकूनू मिनल् मुह्तदीन
    ख़़ुदा की मस्जिदों को बस सिर्फ वहीं शख़्स (जाकर) आबाद कर सकता है जो ख़़ुदा और रोजे़ आखि़रत पर ईमान लाए और नमाज़ पढ़ा करे और ज़कात देता रहे और ख़़ुदा के सिवा (और) किसी से न डरो तो अनक़रीब यही लोग हिदायत याफ़्ता लोगों मे से हो जाएंगे (18)
  19. अ-जअ़ल्तुम् सिका-यतल् – हाज्जि व अिमा- रतल् मस्जिदिल् – हरामि कमन् आम – न बिल्लाहि वल्यौमिल – आखिरि व जाह – द फी सबीलिल्लाहि ला यस्तवू – न अिन्दल्लाहि, वल्लाहु ला यह़्दिल् क़ौमज़्ज़ालिमीन
    क्या तुम लोगों ने हाजियों की सक़ाई (पानी पिलाने वाले) और मस्जिदुल हराम (ख़ानाए काबा की आबादियों को उस शख़्स के हमसर (बराबर) बना दिया है जो ख़ुदा और रोज़े आख़ेरत के दिन पर ईमान लाया और ख़ुदा के राह में जेहाद किया ख़़ुदा के नज़दीक तो ये लोग बराबर नहीं और खुदा ज़ालिम लोगों की हिदायत नहीं करता है (19)
  20. अल्लज़ी – न आमनू व हाजरू व जाहदू फ़ी सबीलिल्लाहि बिअम्वालिहिम् व अन्फुसिहिम् अअ् -ज़मु द-र-जतन् अिन्दल्लाहि, व उलाइ – क हुमुल् फ़ाइजून
    जिन लोगों ने ईमान क़़ुबूल किया और (ख़़ुदा के लिए) हिजरत एख़्तियार की और अपने मालों से और अपनी जानों से ख़़ुदा की राह में जिहाद किया वह लोग ख़़ुदा के नज़दीक दर्जें में कही बढ़ कर हैं और यही लोग (आला दर्जे पर) फायज़ होने वाले हैं (20)

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