25 सूरह अल फु़रकान हिंदी में पेज 3

सूरह अल फु़रकान हिंदी में | Surat Al-Furqan in Hindi

  1. व इज़ा रऔ – क इंय्यत्तख़िजून – क इल्ला हुजुवा, अहाज़ल्लज़ी ब – अ़सल्लाहु रसूला
    और (ऐ रसूल!) ये लोग तुम्हें जब देखते हैं तो तुम से मसख़रा पन ही करने लगते हैं कि क्या यही वह (हज़रत) हैं जिन्हें अल्लाह ने रसूल बनाकर भेजा है (माज़ अल्लाह)।
  2. इन् का – द लयुज़िल्लुना अन् आलि – हतिना लौ ला अन् सबरना अ़लैहा, व सौ-फ़ यअ्लमू – न ही-न यरौनल् – अ़ज़ा – ब मन् अज़ल्लु सबीला
    अगर बुतों की परसतिश पर साबित क़दम न रहते तो इस शख़्स ने हमको हमारे माबूदों से बहका दिया था और बहुत जल्द (क़यामत में) जब ये लोग अज़ाब को देखेंगें तो उन्हें मालूम हो जाएगा कि राहे रास्त से कौन ज़्यादा भटका हुआ था।
  3. अ – रऐ त मनित्त – ख़-ज़ इला – हहू हवाहु, अ-फ़अन् – त तकूनु अ़लैहि वकीला
    क्या तुमने उस शख़्स को भी देखा है जिसने अपनी नफ़सियानी ख़्वाहिश को अपना माबूद बना रखा है तो क्या तुम उसके जि़म्मेदार हो सकते हो (कि वह गुमराह न हों)।
  4. अम् तह्सबु अन् – न अक्स – रहुम् यस्मअू- न औ यअ्किलू – न, इन् हुम् इल्ला कल् – अन्आमि बल् हुम् अज़ल्लु सबीला *
    क्या ये तुम्हारा ख़्याल है कि इन (कुफ़्फ़ारों) में अक्सर (बात) सुनते या समझते है (नहीं) ये तो बस बिल्कुल मिस्ल जानवरों के हैं बल्कि उन से भी ज़्यादा रहे (रास्त) से भटके हुए।
  5. अलम् – त-र इला रब्बि-क कै-फ़ मद्दज्ज़िल् -ल व लौ शा-अ ल-ज – अ़-लहू साकिनन् सुम्-म जअ़ल्नश्शम्-स अ़लैहि दलीला
    (ऐ रसूल!) क्या तुमने अपने परवरदिगार की कु़दरत की तरफ नज़र नहीं की कि उसने क्योंकर साये को फैला दिया अगर वह चहता तो उसे (एक ही जगह) ठहरा हुआ कर देता फिर हमने आफ़ताब को (उसकी शीनाख़्त के वास्ते) उसका रहनुमा बना दिया।
  6. सुम् – म क़बज्नाहु इलैना क़ब्ज़ंय्यसीरा
    फिर हमने उसको थोड़ा थोड़ा करके अपनी तरफ़ खीच लिया।
  7. व हुवल्लज़ी ज-अ़-ल लकुमुल्ले – ल लिबासंव् – वन्नौ – म सुबातंव्-व ज-अ़लन्नहा-र नुशूरा
    और वही तो वह (नाज़िल) है जिसने तुम्हारे वास्ते रात को पर्दा बनाया और नींद को राहत और दिन को (कारोबार के लिए) उठ खड़ा होने का वक़्त बनाया।
  8. व हुवल्लज़ी – अर् – सलर्रिया ह बुश्रम्-बै-न यदै रह्मतिही व अन्ज़ल्ना मिनस्समा इ मा-अन् तहूरा
    और वही तो वह (नाज़िल) है जिसने अपनी रहमत (बारिश) के आगे आगे हवाओं को खुश ख़बरी देने के लिए (पेश ख़ेमा बना के) भेजा और हम ही ने आसमान से बहुत पाक और सुथरा हुआ पानी बरसाया।
  9. लिनुह़्यि-य बिही बल्द-तम् मैतंव्-व नुस्कि – यहू मिम्मा ख़लक़्ना अन्आ़मंव् – व अनासिय् – य कसीरा
    ताकि हम उसके ज़रिए से मुर्दा (वीरान) शहर को जि़न्दा (आबाद) कर दें और अपनी मख़लूकात में से चैपायों और बहुत से आदमियों को उससे सेराब करें।
  10. व ल – कद् सर्रफ़्नाहु बैनहुम् लियज़्ज़क्करू फ़ – अबा अक्सरुन्नासि इल्ला कुफूरा
    और हमने पानी को उनके दरम्यिान (तरह तरह से) तक़सीम किया ताकि लोग नसीहत हासिल करें मगर अक्सर लोगों ने नाशुक्री के सिवा कुछ न माना।
  11. व लौ शिअ्ना ल-बअ़स्ना फ़ी कुल्लि कर् – यतिन् नज़ीरा
    और अगर हम चाहते तो हर बस्ती में ज़रुर एक (अज़ाबे नाज़िल से) डराने वाला पैग़म्बर भेजते।
  12. फ़ला तुतिअिल्- काफ़िरी-न व जाहिद्हुम् बिही जिहादन् कबीरा
    (तो ऐ रसूल!) तुम काफिरों की इताअत न करना और उनसे कु़रआन के (दलाएल) से खू़ब लड़ों।
  13. व हुवल्लज़ी म – रजल् – बहरैनि हाज़ा अ़जबुन् फुरातुंव् – व हाज़ा मिल्हुन् उजाजुन् व ज-अ़ ल बैनहुमा बर् ज़ख़ंव्-व हिज्रम्-मह्जूरा
    और वही तो वह (नाज़िल) है जिसने दरयाओं को आपस में मिला दिया (और बावजूद कि) ये खालिस मज़ेदार मीठा है और ये बिल्कुल खारी कड़वा (मगर दोनों को मिलाया) और दोनों के दरम्यिान एक आड़ और मज़बूत ओट बना दी है (कि गड़बड़ न हो)।
  14. व हुवल्लज़ी ख़-ल-क़ मिनल् – मा-इ ब-शरन् फ़-ज-अ़-लहू न-सबंव्-व सिहरन्, व का-न रब्बु क क़दीरा
    और वही तो वह (नाज़िल) है जिसने पानी (मनी) से आदमी को पैदा किया फिर उसको ख़ानदान और सुसराल वाला बनाया और (ऐ रसूल!) तुम्हारा परवरदिगार हर चीज़ पर क़ादिर है।
  15. व यअ्बुदू-न मिन् दूनिल्लाहि मा ला यन्फ़अुहुम् व ला यजुर्रुहुम्, व कानल् – काफ़िरु अ़ला रब्बिही ज़हीरा
    और लोग (कुफ़्फ़ारे मक्का) नाज़िल को छोड़कर उस चीज़ की परसतिश करते हैं जो न उन्हें नफा ही दे सकती है और न नुक़सान ही पहुँचा सकती है और काफिर (अबूजहल) तो हर वक़्त अपने परवरदिगार की मुख़ालेफत पर ज़ोर लगाए हुए है।
  16. व मा अर्सल्ना – क इल्ला मुबश्शिरंव् – व नज़ीरा
    और (ऐ रसूल!) हमने तो तुमको बस (नेकी को जन्नत की) खुशबरी देने वाला और (बुरों को अज़ाब से) डराने वाला बनाकर भेजा है।
  17. कुल् मा अस्अलुकुम् अ़लैहि मिन् अज्रिन् इल्ला मन् शा-अ अंय्यत्तखि-ज़ इला रब्बिही सबीला
    और उन लोगों से तुम कह दो कि मै इस (तबलीगे़ रिसालत) पर तुमसे कुछ मज़दूरी तो माँगता नहीं हूँ मगर तमन्ना ये है कि जो चाहे अपने परवरदिगार तक पहुँचने की राह पकडे़।
  18. व तवक्कल् अ़लल्-हय्यिल्लज़ी ला यमूतु व सब्बिह् बिहम्दिही, व कफ़ा बिही बिजुनूबि अबादिही ख़बीरा
    और (ऐ रसूल!) तुम उस (नाज़िल) पर भरोसा रखो जो ऐसा जि़न्दा है कि कभी नहीं मरेगा और उसकी हम्द व सना की तस्बीह पढ़ो और वह अपने बन्दों के गुनाहों की वाकि़फ कारी में काफी है (वह ख़ुद समझ लेगा)।
  19. अल्लज़ी ख़-लक़स्समावाति वलअर्ज़ व मा बैनहुमा फ़ी सित्तति अय्यामिन् सुम्मस्तवा अ़लल्-अ़र्शि, अर्रह़्मानु फ़स्अल् बिही ख़बीरा
    जिसने सारे आसमान व ज़मीन और जो कुछ उन दोनों में है छहः दिन में पैदा किया फिर अर्श (के बनाने) पर आमादा हुआ और वह बड़ा मेहरबान है तो तुम उसका हाल किसी बाख़बर ही से पूछना।
  20. व इज़ा क़ी-ल लहुमुस्जुदू लिर्रह्मानि कालू व मर्रह्मानु अ-नस्जुदु लिमा तअ्मुरुना व ज़ा-दहुम् नुफूरा *सज़्दा*
    और जब उन कुफ्फारों से कहा जाता है कि रहमान (नाज़िल) को सजदा करो तो कहते हैं कि रहमान क्या चीज़ है तुम जिसके लिए कहते हो हम उस का सजदा करने लगें और (इससे) उनकी नफ़रत और बढ़ जाती है।

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